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"अभिनय के भगवान अभिनय के संस्थान संजीव कुमार महान"

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"अभिनय के भगवान अभिनय के संस्थान संजीव कुमार महान"  मैं जब बहुत छोटा था और और जब टीवी देखता था तो मुझे गुरुदत्त साहब, संजीव कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी, मुमताज़ सबसे ज़्यादा पसंद थीं, मुझे लगता था कि सबसे ज़्यादा सिनेमैटिक चेहरा इन्हीं का है, बुज़ुर्ग से संजीव कुमार स्क्रीन पर आते दिल जीत ले जाते थे, लेकिन कई दोस्त संजीव कुमार जी को बूढ़ा कहकर चिढ़ाते मैं तब ज़्यादा कह नहीं पाता था, लेकिन जब पत्रकारिता, साहित्य सिनेमा से जुड़ा तो पता चला कि संजीव कुमार की अदाकारी का मेयार कितना ऊंचा रहा है. संजीव कुमार हिन्दी सिनेमा के इकलौते ऐसे अदाकार रहे हैं, जिनकी अदाकारी की कमियां ढूंढने पर भी नहीं मिलती.  महान अभिनेता संजीव कुमार जी आज जिंदा होते तो हिन्दी सिनेमा में वो अद्वितीय कहे जाते. शायद उनके आसपास कोई दूसरा नहीं होता. मुझे लगता है, कि अभिनय के लिहाज से संजीव कुमार जैसा प्रतिभाशाली अभिनेता वैश्विक सिनेमा में कोई दूसरा नहीं है. अभी भी समय है, सिनेमा की दुनिया के रहबरों को घोषित कर देना चाहिए, कि अभिनय का कोई भगवान है तो संजीव कुमार जी हैं. अत्यंत महत्वपूर्ण बात उपरवाले को किसी रं

कमला हैरिस की हार: लोकतंत्र की परिपक्वता पर एक बड़ा सवाल

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 कमला हैरिस की हार: लोकतंत्र की परिपक्वता पर एक बड़ा सवाल ----------------------------------------------------------------------- एक बार फिर से डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं. उन्हें 50 राज्यों की 538 में से 295 सीटें मिली हैं, बहुमत के लिए 270 सीटें जरूरी होती हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी की कैंडिडेट कमला हैरिस कड़ी टक्कर देने के बावजूद 226 सीटें ही जीत पाईं हैं. कमला हैरिस ने अपनी हार स्वीकार करते हुए वॉशिंगटन डीसी हावर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी स्पीच में उन्होंने कहा- आज मेरा दिल आपके भरोसे अपने देश के प्रति प्यार और संकल्प से भरा हुआ. भारतवंशी कमला हैरिस ने कहा, 'इस चुनाव का नतीजा वह नहीं है जिसकी मुझे उम्मीद थी, या जिसके लिए हमने लड़ाई लड़ी थी, लेकिन हम कभी हार नहीं मानेंगे और लड़ते रहेंगे. निराश मत होइए. यह समय हाथ खड़े करने का नहीं है, यह समय अपनी स्लीव्स चढ़ाने का है. यह समय आजादी और जस्टिस के लिए एकजुट होने का है. हमें उस भविष्य के लिए एकजुट होना होगा, जिसे हम सभी मिलकर बना सकते हैं.  किसी भी व्यक्ति के लिए हार स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता

*हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक पहिचान हैं, जो प्रमुख आर्थिक विकास का जरिया बन सकते हैं*

*हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक पहिचान हैं, जो प्रमुख आर्थिक विकास का जरिया बन सकते हैं* -------------------------------------------------------------------------- अत्याधुनिक मशीनी होते दौर में भी अगर हाथकरघा एवं हस्तशिल्प नाम जेहन में आता है तो सबसे पहले भारत के हृदय मध्यप्रदेश नाम आता है. मध्यप्रदेश और हस्तशिल्प एवं हाथकरघा को एक साथ सोचें, तो ज़्यादातर लोगों के दिमाग में चंदेरी, माहेश्वरी की साड़ियां जेहन में आती हैं जो अपनी कलात्मक डिज़ायन एवं रंगों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिन्हें कारीगर खुद अपने हाथों से बनाते हैं. ग़र किसी ने हस्तशिल्प व हाथकरघा की वस्तुएं बनते देखा है तो उसे पता ज़रूर होगा कि यह एक ऐसा हुनर है जो अपने आप में नायाब है. हालाँकि एमपी में चंदेरी एवं महेश्वरी की साड़ियां बहुत प्रचलित एवं लोकप्रिय हैं. गौरतलब है कि राज्य एमपी में और भी हस्तशिल्प हैं. एमपी में हस्तशिल्प के बहुतेरे विकल्प भी हैं जो मध्यप्रदेश की हस्तशिल्प कलाओ को उत्तम सिद्ध करती हैं. देखा जाए तो हस्तशिल्प और हाथकरघा दोनों ही कारीगरों द्वारा उनके हाथो से वस्तुएं गढ़ी जाती हैं. हस्तशिल्प में

महाराष्ट्र चुनाव में मराठी अस्मिता की लड़ाई

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महाराष्ट्र में राजनीतिक बगावत, टूटते राजनीतिक दल अपने - अपने कुनबो को बचाने के साथ सत्ता संघर्ष करते हुए आज चुनाव के मुहाने पर खड़े हुए हैं. सभी राजनीतिक दलों की अपनी - अपनी महत्वाकांक्षाओं के बीच महाराष्ट्र चुनाव काफ़ी दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है.  तमाम राजनीतिक समझौतों के बीच महाराष्ट्र में दलों ने अपने - अपने अलायंस कर लिए हैं. हर राज्य की अपनी समस्याएं एवं मुद्दे होते हैं, लेकिन महा विकास आघाड़ी के द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को मराठी अस्मिता को जोड़ने के साथ ही चुनाव की रूपरेखा ही बदल गई है. इससे यह होगा कि एक - एक मराठी चुनाव के साथ खुद को जोड़ लेता है. साथ ही लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी का राजनीतिक जादू अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले कभी होता था.  महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता के साथ चुनाव लड़े जाने के बाद पीएम मोदी महाराष्ट्र में काफ़ी कमज़ोर दिख रहे हैं. जबकि नितिन गडकरी, देवेन्द्र फडणवीस इस मुद्दे पर काफ़ी असहज दिख रहे हैं. महा विकास आघाड़ी के आरोप ये भी हैं कि नितिन गडकरी द्वारा लाए गए प्रोजेक्ट को मोदी गुजरात ले गए हैं, और देवेन्द्र फडणवीस, नितिन गडकरी कुछ नहीं

महाराष्ट्र में कांग्रेस की उदारता भाजपा के लिए चिंता का विषय

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महाराष्ट्र में कांग्रेस की उदारता भाजपा के लिए चिंता का विषय ------------------------------------------------------------------------- महाराष्ट्र में 288 सीटों पर 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होना है. महायुति में सीटों के बंटवारे पर सहयोगी दलों के साथ सहमति पहले ही बन चुकी है. अब महा विकास अघाड़ी की बारी है. हालाँकि महा विकास आघाडी ने 85-85-85 सीटों का फ़ार्मूला निकाला था, बांकी बची हुई सीटों पर कांग्रेस लड़ना चाहती है, लेकिन उद्धव ठाकरे कांग्रेस को पूरी सीटें देना नहीं चाहते. वक़्त कोई भी हो  सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा बिल्कुल भी आसान नहीं होता. राजनीति पल - पल बदलती है, ख़ासकर राजनीति नम्बरों पर ही टिकी हुई होती है. हरियाणा की जीती हुई बाजी हारने के बाद कांग्रेस को महाराष्ट्र में बेहद कम सीटों पर संतुष्ट होना पड़ रहा है. जबकि महाराष्ट्र में भी कांग्रेस खासी मज़बूत स्थिति में है. जिस महाराष्ट्र में कभी कांग्रेस अपने दम पर सरकार चलाती थी, अब स्थिति ऐसी हो गई है कि गठबंधन के सहारे चलना कांग्रेस की मजबूरी बन गई है. पिछले कई चुनावों में शरद पवार के साथ मिलकर कांग्रेस लड़ती रही है,

समाज के लिए खतरा बनता अपराधियों का महिमामंडन

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समाज के लिए खतरा बनता अपराधियों का महिमामंडन ------------------------------------------------------------------------- किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कई बार के विधायक अभिनेता सलमान खान के क़रीबी नेता बाबा सिद्दीकी की निर्मम हत्या कर दी गई. किसी पूर्व मंत्री की हत्या हो जाना, कानून व्यवस्था की पोल तो खोल ही रहा है साथ ही तमाम तरह के सवाल भी उठ रहे हैं. वहीँ सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया में बाबा सिद्दीकी की हत्या करने की जिम्मेदारी लेने वाले वाले गैंग एवं लॉरेंस बिश्नोई का महिमामंडन भी चल रहा है, जो बेहद ख़तरनाक है. किसी भी समाज एवं समुदाय के लिए हिंसा खतरनाक है, वहीँ इस तरह से अपराधियों का महिमामंडन करना हमारे समाज के युवाओं को भ्रमित कर सकता है. युवावस्था यूँ भी बहुत पेचीदगियों से भरी होती है. इस उम्र में हिंसा युवाओं को आकर्षित करती है. अतः मीडिया एवं हमारे समाज का उत्तरदायित्व हो जाता है कि समाज को एक शांति की राह पर ले जाया जाए. मेनस्ट्रीम मीडिया को विश्नोई समाज से सीखना चाहिए, जब पूरी मीडिया लॉरेंस बिश्नोई को हीरो बनाने पर तुली हुई है, तब विश्नोई समा

*उमर अबदुल्ला सरकार की राहें आसान नहीं*

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*उमर अबदुल्ला सरकार की राहें आसान नहीं* -------------------------------------------------------- धारा 370 खत्म होने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है. उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री होंगे. हालांकि, उमर अब्दुल्ला के लिए राह उतनी आसान नहीं होगी, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर का 'पावर' गेम बहुत बदल गया है, और जम्मू - कश्मीर की राजनीति के लिए यह सबसे अहम पहलू है. उमर अब्दुल्ला पहले भी जनवरी 2009 से जनवरी 2014 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्हें मुख्यमंत्री होने का तजुर्बा भी है, लेकिन तब और अब में बहुत फर्क है. उमर अब्दुल्ला को एक स्वतंत्र राज्य का सीएम होने का अनुभव है, लेकिन केंद्र शासित प्रदेश का सीएम होने का तजुर्बा नहीं है. जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य हुआ करता था और अब ये केंद्र शासित प्रदेश है. तब जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का था, अब बाकी राज्यों की तरह ही 5 स