राम की कथा, रामलीला में जीवंत होती है
राम की कथा, रामलीला में जीवंत होती है
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हमारे गाँव में कई ऐसे बुज़ुर्ग अब भी हैं जो रामायण के पात्रों के नामों से पुकारे जाते हैं. एक बुज़ुर्ग हैं आज भी कई लोग उन्हें जनक जी या बिदेह राज कहकर संबोधित करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वे खुशी खुशी बोलते हैं. तो एक बुज़ुर्ग महाशय तो दशानन कहे जाते हैं. कई तो मेघनाद, नारद, सुग्रीव ऐसे नामों से जाने जाते हैं. पहले गांव में रामलीला होती थी तो ये सब महोदय उसमे अक्सर रामलीला में रामायण के पात्रों की भूमिकाएं निभाते थे. जब सिनेमा नहीं था, टेलीविजन नहीं था.. थिएटर, रंगमंच कुछ भी नहीं था तब हमारे देश में रामलीला सबसे बड़ा मनोरंजन का स्वस्थ्य साधन था. पूरे साल लोगों को इंतज़ार रहता था कि कब रामलीला का समय आएगा. और जैसे ही रामलीला का समय आता, पूरे गांव में हलचल उत्पन्न हो जाती. यूँ लगता कैसे कोई त्योहार आ गया है. लोग पूरे दिन अपने - अपने काम से फ्री होकर रामलीला प्रांगण में एकत्र हो जाते थे. कहते हैं दूर के ढोल सुहावने होते हैं, लेकिन रामलीला में ये बात भी झूठी सिद्द होती है. क्यों कि स्थानीय गाँव के कलाकारों के ज़रिए ही मंच पर सचमुच जैसे रामलीला हो रही है भक्त उस भक्ति में डूब जाते थे. कम संसाधनो के बावजूद मंच में अलौकिक, दिव्या का तेज होता था. दर्शकों को आनन्दित आस्था का अनुभव होता था.
भगवान राम का प्रभाव तो पूरी सृष्टि में है, यही कारण है कि भारत ही नहीं दुनिया के तमाम हिस्सों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन दर्शन का मंचन होता है.. ईश्वर से जुड़ी लीला के जरिए रामकथा का गायन और मंचन हमें सात्विक संस्कारों से अभिमंत्रित करता है. देश भर में शारदीय नवरात्रि के समय रामलीला का मंचन किया जाता है. नवरात्रि के समय रामलीला मंचन की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
आम तौर पर यह बात कही जाती है कि रामचरित मानस के प्रचार-प्रसार के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने रामलीला की शुरूआत की थी, हालांकि गोस्वामी तुलसीदास जी की रामलीला के पहले भी रामकथा के गायन और उनके चरित्र के नाट्य स्वरूप का जिक्र मिलता है. जैसा कि लवकुश रामकथा का गायन करते हैं, इसी तरह महाभारत में तथा हरिवंश पुराण में भी राम के चरित्र को लेकर नाटक का उल्लेख मिलता है.
लीला शब्द न सिर्फ राम बल्कि कृष्ण के साथ भी जुड़ा हुआ है. ईश्वर के अवातार से जुड़ी ‘लीला’ भारतीय भक्तों की अनूठी परिकल्पना है, जिसमें केवल भक्ति नहीं है, उसमे सुकून के साथ मनोरंजन भी है, और संस्कृति को संगठित करने की शक्ति भी है. पुराणों ने लीला में देवत्व को भी मानत्व में रूपांतरित किया है. भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को देखकर इसे सहज ही जाना जा सकता है. रामलीला के तमाम मंचों माँ रामलीला के दौरान कई बार पात्र उस भूमिका में डूब जाते हैं. पात्र को स्वयं के विशिष्ट होने या फिर उस पात्र विशेष के निकट होने का एहसास होता है. देश में ऐसी कई आलौकिक घटनाएं हुई हैं जैसे कई बार लकड़ी के धनुष की जगह लोहे का धनुष रख दिया गया है, लेकिन वो धनुष भी पात्रों द्वारा तोड़ दिया गया है.. कई बार हनुमान पात्र ने अपने अतुलित बल का परिचय दिया है. यही रामलीला का प्रभाव है. इसलिए ही लोगों में रामलीला के लिए आनन्दित आस्था है, जो तर्को - कुतर्कों से परे है.
रामलीला मंचन करते समय सिर्फ राम का पात्र निभाने वाला ही नहीं बल्कि रावण की भूमिका में खुद को प्रस्तुत कर रहा व्यक्ति खुद को सौभाग्यशाली समझता है. रामलीला के दौरान किसी पात्र की भूमिका निभाना उसके लिए ईश्वर की साधना से कम नहीं होता है. इन्हीं आस्थावान पात्रों के कारण रामलीला के दर्शकों में भी निष्ठाभाव उत्पन्न होता है. रामलीला महज मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान होता है. जिसमें नियमों और परंपराओं का पूरा पालन किया जाता है. यही कारण है कि लीला में पात्रों का मेकअप नहीं बल्कि श्रद्धा भाव से शृंगार किया जाता है. गाने नहीं बल्कि चौपाई पढ़ी जाती हैं. रामलीला श्रीराम कथा का जाग्रत सार है. और चौपाईयां और संवाद उसमे रस ले आते हैं. रामलीला में प्रभु श्रीराम के जिन जीवन प्रसंगों को दर्शाया जाता है, उनमें धनुष यज्ञ का दृश्य, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाथ संवाद, राम-रावण युद्ध, भरत मिलाप आदि प्रमुख हैंं. जिन्हें सालों-साल देखते रहने के बाद मन नहीं भरता है. हालाांकि इनमे सबसे ज़्यादा लोकप्रिय केवट संवाद, एवं लक्ष्मण - परशुराम संवाद है, जिनके संवाद आज भी लोगों को मुँह जुबानी याद हैं. विश्वभर में मंचन की जाने वाली रामलीला की लोकप्रियता एवं उसके प्रभाव का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी लोग राम जैसा पुत्र, राम जैसा दोस्त, राम जैसा भाई, राम जैसा पति, राम जैसा राजा, राम जैसा शिष्य अतः राम जैसा प्रतिद्वंदी भी चाहते हैं कि उसका नाम लेकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाए. अन्य पात्रों का महत्व समझने के लिए भी रामलीला देखी जाती है. सीता, उर्मिला जैसी पत्नी, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न जैसे भाई और हनुमान जैसा सेवक सभी कोई पाना चाहते हैं.
रामलीला का सबसे लोकप्रिय लक्ष्मण - परसुराम संवाद
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसे लक्ष्मण - परसुराम संवाद के तौर पर नहीं लिखा, बल्कि उन्होंने राम - राम संवाद के रूप में लिखा है. हालांकि लोगों को यहां रामजी की विनम्रता की बजाय लक्ष्मण की उद्दंडता ज़्यादा पसंद आती है. लोगों को झगडे में तू - तू मैं मैं में ज़्यादा मजा आता है. यही कारण है कि रामलीला को रोचक बनाने के लिए इसे राम - परसुराम संवाद नहीं बल्कि लक्ष्मण - परसुराम संवाद कहा गया है कि क्यों कि इसमे क्रोध, उद्दंडता, विनोद, हास्य सब कुछ है. और वैसे भी मंचन की अपनी एक शैली होती है उसे ज़्यादा रोचक बनाना ही पड़ता है. कई बार राम -रावण युद्घ से पहले राक्षस सेना की ओर से ऐसे - ऐसे मनगढंत मगर रोचक किरदार गढ़े जाते हैं कि रामलीला का आनन्द और कई गुना बढ़ जाता है.
जनकपुर में सीता स्वयंवर के समय जब भगवान राम उस प्रसिद्ध शिव धनुष को तोड़ते हैं तब भगवान परशुराम आदिदेव शिव जी का धनुष टूटने के बाद बड़े क्रोध में आकर टूटे शिव धनुष को देखकर राजा जनक से प्रश्न करते हैं
- ऐ मूढ़ जनक तू जल्दी बता , ये धनु किसने तोड़ा है
इस भरे स्वयंवर में सीता से नाता किसने जोड़ा है
जल्दी उसकी सूरत बतला, वरना चौपट कर डालूँगा
जितना राज्य तेरा पृथ्वी पर, उलट-पुलट कर डालूँगा
मेरे इस खूनी फरसे ने खून की नदिया बहाई है
इस आर्य भूमि में कई बार, क्षत्राणी विधवा बनाई है
तब भगवान श्री राम जी कहते हैं -
नाथ शम्भु धनु भंजन हारा, वो भी है कोई दास तुम्हारा
जो कुछ आयसु होई गुसाईं, सिर धर नाथ करूँ मैं सोई
रामजी के मुख से यह बात सुनते ही परशुराम जी कहते हैं - राम! जिसने भी मेरे गुरु का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है. यदि वह शीघ्र मेरे सामने नहीं आया तो मैं उपस्थित सभी राजाओं को मार डालूँगा.
बहु धनु तोरेऊँ हम लरिकाई, कबहुं न अस रिष कीन्ह गुसाईं l
यहि धनु पर ममता केहि हेतु, कारण हमहिं कहो भृगु केतु ll
लक्ष्मण की बात सुनकर भगवान परसुराम क्रोध से जल जाते हैं, और तब लक्ष्मण को उस धनुष का महत्व बताते हुए कहते - "जुबान संभालकर बोलो राजा के छोकरे "
परसुराम
- दुध-मुंहु बड़ों से छोड़ हँसी, यह हँसना तुझे रुलायेगा
कर देगा दांत अभी खट्टे, फरसा यह स्वाद चखायेगा
लड़के महलों में खेल-खुल क्यों मुझसे लड़के करता है
मेरे क्रोधानल के आगे, क्यों तड़फ-तड़फ कर मरता है
लक्ष्मण -
श्री महाराज हम लड़के हैं इसलिए लड़कपन करते हैं
शोभित है नहीं बड़ों को यह जो बच्चों के मुँह लगते हैं
मेरे मुँह में वह दूध नहीं जो फरसे से खटिया जाये
भय है आपके क्रोधानल से, कहीं उबाल न आ जाये
परशुराम-
जो पितृ ऋण से उऋण हुआ, जो माता का बलिदाता है
गुरु ऋण के कारण वही हाथ एक बार फिर खुजलाता है
इस कारण उस उद्धार का अब ऐसा भुगतान करूंगा मैं
अपने इस कुलिस कुल्हाड़ी से तेरा बलिदान करूंगा मैं
लक्ष्मण-
यह लोहा तुम्हें निहाल करें, जिसने घर का लहू चाटा
बलिहारी मैं उन हाथों की, जिसने माता का सिर काटा
गुरु ऋण अब तक माथे पर है, उसको अब मैं निबटा दूंगा
ले आये आप महाजन को, कौड़ी-कौड़ी चुकता दूँगा........
इस तरह से रामलीला के संवाद बहुत ही रोचक होते हैं जो सुनने में मधुरता के साथ मनोरंजक थोड़ा नाटकीय भी होते हैं. जो देश /दुनिया की रामलीला में अपनी स्थानीय भाषाओ में बोले जाते हैं जो सबसे ज़्यादा रोचक लगते हैं. लक्ष्मण -परसुराम संवाद इतना लोकप्रिय है कि उत्तर भारत में कई बार विशेष रूप से बिना नवरात्रि के भी लक्ष्मण - परसुराम संवाद का मंचन किया जाता है.. लोगों को इसमे ज़्यादा मजा आता है क्योंकि इसमे दोनों पात्र संवाद करते हुए बचकाना करते हैं. दोनों डींगे हांकते हैं, एक - दूसरे को चिढ़ाते हैं. समस्त रसों से युक्त रामलीला मनोरंजन के साथ हमारी गौरवशाली संस्कृति भी है. रामलीला हमारे देश की संस्कृति के साथ एक मौसम के रूप में होती है जो साल में एक बार ज़रूर आती है, लेकिन अब उस तरह लोगों में उत्साह नहीं रह गया. समय बदलता है इसमे कोई दो राय नहीं है लेकिन हमे इस गौरवशाली इतिहास को बचाए रखने की आवश्यकता है.
दिलीप कुमार पाठक
मो : 9755810517
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अजयगढ़ पन्ना मध्यप्रदेश
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लेखक पत्रकार व फिल्म समीक्षक हैं, देश /दुनिया के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सिनेमा, साहित्य, संगीत, राजनीतिक, सांस्कृतिक, समसामयिक, विषयो पर लिखते हैं, वहीँ सिनेमा के विविध पक्षों पर गंभीरता से लिखते हैं...
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