राम - एक युगपुरुष मर्यादापुरुषोत्तम की अनंत कथा
*राम - एक युगपुरुष मर्यादापुरुषोत्तम की अनंत कथा*
एक आदर्श मानव जीवन कैसा होना चाहिए प्रभु श्री राम ने दुनिया को अपने उत्तम आचरण से बताया समझाया है, जो समस्त ब्रह्मांड के मालिक हैं वे जब राम नामक किरदार निभाने के लिए मृत्युलोक आए तो वे खुद भी भूल गए और सांसारिक लोग भी भूल गए कि ये स्वयं चतुर्भुज भगवान श्री विष्णु हैं l क्योंकि राम ने कभी कहा ही नहीं कि वे स्वयं ईश्वर हैं l राम ने आदमी के रूप में हर प्रकार से खुद को आदर्श सिद्ध किया है l और सिद्ध करने के लिए नहीं किया अपितु उनके उच्चतम मानवीय आचरण से ये सिद्ध होता गया l चाहे बेटा के रूप में हों या पति के रूप में हों, या फिर भाई के रूप में हों या फिर मित्र के रूप में हों या फ़िर राजा के ही रूप में क्यों न हों l एक बेटे के रूप में उन्होंने उच्चतम आदर्श स्थापित किए आज भी अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए हम सब राम का अनुशरण करते हैं l राम जैसा बेटा मिले भारत के प्रत्येक माता-पिता इसका वरदान भगवान से मांगते हैं l राम जैसा राजा मिले, राम जैसा प्रेमी मिले, राम जैसा मित्र मिले l राम पुनः सबकुछ बनकर अब सृष्टि पर आने से रहे, अतः हम सभी को अपने अंदर ही मर्यादापुरुषोत्तम राम को ढूढ़ने की हार्दिक आवश्यकता है l
राम एक एक दिन राजा बनने वाले थे अचानक से पिता के कक्ष मिलने जाते हैं, पिता की तरफ़ से आदेश हुआ भी नहीं सौतेली माँ के मुँह से सुना - "पिता जी की ये आज्ञा है राम अब तुम्हें राजा नहीं बनाया जा रहा अब तुम वन जाओ' l बिना किसी क्रोध, बिना शिकायत प्रभुश्री राम मुस्कराते हुए जंगल चले जाते हैं l और जब अयोध्या लौटते हैं तो सबसे पहले उन्हीं माता कैकेयी के चरण स्पर्श कर कहते हैं - 'माँ तुम खुद को इसका उत्तरदायी क्यों मान रही हो, तुम्हें खुश होना चाहिए कि मैं तुम्हारे आदेश का पालन करता हुआ पूरे राज्य की सीमा चहुंओर से सुरक्षित करके लौटा हूं, माता मैं अयोध्या में वो सब हासिल नहीं कर पाता जो मुझे वन में मिला l माता तुम्हारे कारण मुझे समस्त भारत भ्रमण का मौका मिला l माता मुझे तो तुम्हारे कारण एक साधना, महान ऋषि मुनियों की सेवा का अवसर मिला l माता सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती हैं कि ऐसा बेटा कदाचित ही किसी को मिला होगा, लेकिन ऐसा बेटा ईश्वर सभी को दे l
जब आदर्श पति के उदाहरण दिया जाता है तब प्रभु श्री राम से आदर्श पति दूसरा कोई नहीं है l जब राजा बहुविवाह करते थे तब उन्होंने एकपत्नी वृत लेने का प्रण अपनी पत्नी हमारी जगत जननी सीता से किया और उसे निभाया भी l प्रभु श्री राम जैसा प्रेमी भी कोई नहीं है जब माता सीता एक साधारण साड़ी पहनकर अपने पति के साथ जंगल जाने के लिए तैयार हो रहीं थीं तब उन्हें साड़ी पहनना नहीं आ रहा था, तब ही प्रभु श्री राम अपने हाथों से माता सीताजी को साड़ी पहनाते हैं l जब रावण माता सीता हो हर के ले जाता है तब श्री राम ईश्वर नहीं अपितु एक साधारण इंसान के रूप में विकल होकर पशु पक्षियों से पूछने लगते हैं, ऐसे दुःखी होते हैं जैसे कोई आम आदमी हताश हो जाता है वैसे ही प्रभु श्री राम रोने लगते हैं l और पूछते हैं
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥
लक्ष्मण तुम्हें याद है सीता ऐसे मुझे खाना खिलाती थी, सीता मुझे ऐसे कहती थी, हम जानते हैं कि प्रभु लीला कर रहे थे, लेकिन वे खुद भी खुद को भूल जाते हैं, और हम भी भूल जाते हैं l ऐसा प्रेमी कोई राम जैसा ही हो सकता है l जानते थे रावण बहुत ताकतवर है, सौ योजन का समुद्र है फिर भी उस आतातायी से भिड़ने के लिए चल पड़ते हैं, और उस सौ योजन समुद्र को बाँध सेतु बनाकर लांघ जाते हैं l श्री राम पति एवं प्रेमी के रूप में याद किए जाते हैं l आज भी हम सब उनसे उनसे प्रेरणा लेते हैं l
भगवान राम जैसा मित्र होना भी दुर्लभ है, उन्होंने एक हारे हुए निष्कासित सुग्रीव को कल्टीवेट किया l एक डिप्रेस्ड सुग्रीव को ऐसे मोटिवेट किया कि इतने बड़े युद्ध में सुग्रीव एक नायक एक महान योद्धा के रूप में निखर कर सामने आते हैं l हम आज किसी को मोटिवेट नहीं कर पाते किसी को मार्केट भी भेजते हैं तो उसे तरह - तरह से गाइड करते हैं, क्योंकि हम उसके ऊपर विश्वास नहीं कर पाते l लेकिन जब हनुमान जी माता सीता का पता लगाने गए तब श्रीराम जी ने हनुमान जी से कुछ नहीं कहा सिर्फ़ इतना कहा कि सीता का पता लगाकर उसे मेरा संदेश देकर आओ l प्रभु श्री राम का दिया हुआ वो विश्वास ही था कि सबसे ताकतवर रावण के दरबार में ललकारा ही नहीं अपितु पूरी लंका को जलाकर आ गए l प्रभु श्री राम बताते नहीं हैं वे अपने मित्रों अनुयायियों में विश्वास पैदा करते हैं राम इसलिए महानायक हैं l इसलिए मित्रता में श्रेष्ठ हैं l रावण जब विभीषण को शक्ति मारते हैं तब श्री राम उस शक्ति आघात को खुद ही अपनी छाती पर ले लेते हैं पूरी सेना में हाहाकार मच जाता है क्योंकि श्री राम भले ही भगवान हैं लेकिन मानव रूप में हैं तो इसका असर तो होना ही था l तब ही विभीषण कहते हैं - "हे भगवन आप जगत उद्घार के लिए इस समय धरती पर आए हैं l आपको अभी बहुत बड़े - बड़े कार्यो को सिद्ध करना है, फ़िर भी आपने मेरे जैसे तुच्छ जीव के लिए अपने प्राण संकट में डाल दिए?
तब प्रभु मुस्कराकर कहते हैं -
" रघुकुल रीति सदा चली आई l
प्राण जाई पर वचन न जाई ll
हे लंकापति महाराज विभीषण हमने आपको लंका के सिंहासन पर बिठाने का वचन दिया है l अतः हम अपने प्राणों की आहुति देकर भी आपकी जान बचाएंगे l विभीषण सुनकर रोने लगते हैं तब राम कहते हैं - "विभीषण जी आप अपने आप को छोटा मत समझें रघुवंशी जिसे एकबार जो वचन दे देते हैं उसे अपने प्राण देकर भी पूरा करते हैं l सो हे विभीषण जी हमने भी वही किया है"l यही कारण है कि भगवान राम जैसा मित्र इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं हो सकता l
आजकल लोग प्रभु श्री राम के गुस्से में पोस्टर जारी करते रहते हैं कि जैसे राम गुस्से में हैं लेकिन राम को गुस्सा तो कभी आया ही नहीं l पूरी रामायण में श्री राम केवल दो बार ही गुस्सा हुए हुए हैं वो भी थोड़ी देर के लिए हल्की सी गुस्सा जिसमें एक प्रण था तो दूसरे में एक हल्का सा गुस्सा ... भगवान श्री राम जब समुद्र की याचना करते हैं और ढाई दिन बीत जाते हैं तब भगवान कहते हैं
--"हे लक्ष्मण इस मूर्ख की मैं ढाई दिनों से पूजा कर रहा हूं l लेकिन इसने मेरे विनय का मोल नहीं जाना l इसके ऊपर मेरी शालीनता का कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ l ये सिर्फ मेरी अवज्ञा कर रहा है l अपनी गर्जना से मुझे चुनौती दे रहा है l आज मैं इसे अपने एक बाण से सुखा दूँगा l
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।
प्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देखकर ये समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय से काम होगा। तभी श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के अन्दर ऐसी आग लग गई कि उसमें वास करने वाले जीव-जन्तु जलने लगे तभी समुद्र अपने वास्तविक रूप में प्रकट होते हुए त्राहि-त्राहि करते हुए प्रभु के चरणों में गिर जाते हैं l और समुद्र अपने ऊपर सेतु बनाने के लिए कहते हैं " कृपानिधान भगवान खुश होकर समुद्र की बात मान लेते हैं l
ये एक छोटा सा गुस्सा था, अन्यथा श्री राम को कहीं गुस्सा नहीं आता l इन राजनीतिक लोगों को आजकल भगवान राम के नाम पर लोगों को भावनात्मक रूप से फायदा उठाते देखता हूं तो सोचता हूं प्रभु राम होते तो अपने इन भक्तों को त्याग
देते l
राम को एक गुस्सा आता है वो वास्तव में गुस्सा नहीं था बल्कि एक चेतावनी एक वचन था हालांकि विद्वान उसे प्रभु श्री राम के गुस्सा का नाम देते हैं l जब रावण माता सीता को हर कर ले जाता है तब दशरथ के मित्र वीर जटायु लड़ते हुए घायल अवस्था में पड़े हुए होते हैं l भगवान राम उनका सिर अपनी गोद में रखकर अपनी पिता की भांति स्नेह दिखाते हैं जटायु तब ही निश्चय कर लेते हैं अब मैं अपने मित्र के पास स्वर्ग जाऊँगा l राम बताओ अपने मित्र महाराज दशरथ के लिए तुम्हारा कोई संदेश देना है? तब भगवान श्री राम जी कहते हैं - 'हे तात पिताजी से स्वर्ग में मेरी इस स्थिति की जानकारी मत दीजिएगा अन्यथा उन्हें वहाँ कष्ट होगा, मैं नहीं चाहता कि वे स्वर्ग में भी परिवारिक मोह में उलझ जाएं' और फिर कुपित होकर बोलते हैं - 'रावण खुद ही अपने कुटुंब सहित स्वर्ग जाकर सारा सन्देशा मेरे पिता जी को सुनाएगा l ये भगवान राम का गुस्सा नहीं अपितु एक विश्वास था l भगवान राम को गुस्सा तो कभी आया ही नहीं l
आज हम किसी भी बात पर जश्न मनाने लगते हैं - "जब श्री राम की वानर सेना शत्रु को बुरी तरह से पराजय कर चुकी थी तब पूरी सेना भगवान राम से आज्ञा मांगती है कि हम जयघोष करना चाहते हैं जिससे शत्रु सेना त्राहि- त्राहि कर उठे l तब भगवान राम कहते हैं -" जीतने के बाद आदमी को विनम्र होना चाहिए, आपकी विजय ही उल्लास है, ये मत भूलिए कोई हार - जाता है कोई जीत जाता है ये तो स्वाभाविक है लेकिन जीत को सहजता के साथ पाचन कर पाना दुर्लभ होता है l हालांकि शालीनता ही श्रेष्ठ है, जीतकर भी सहज होना इंसान का परम धर्म है l तब पूरी वानर सेना श्री राम की बातेँ सुनकर भावुक हो उठती है l मानवीयता के ऐसे पाठ भगवान श्री राम ने सिखाए हैं l
आज हम मरे हुए लोग क्या जिन्दा लोगों के प्रति भी असंवेदनशील हो जाते हैं l लेकिन भगवान राम ऐसे नहीं हैं l मेघनाद को मारने के बाद जामवंत भगवान से कहते हैं "-प्रभु इस मेघनाद ने आपको नागपाश का दंश दिया था, अतः हम सबलोग आपकी आज्ञा चाहते हैं आप आज्ञा दीजिए इस शव की ऐसी दुर्गति की जाए कि शत्रु सेना कांप उठे"l तब भगवान कहते हैं -" जामवंत जी ये जबतक जिन्दा था हमारा शत्रु था लेकिन ये एक महान योद्धा का शव है इसका अपनाना नहीं होना चाहिए ये पितृभक्त बेटा अपने पिता की ईच्छा को पूर्ण करने के लिए वीर गति को प्राप्त हो गया ये हर प्रकार से आदर का पात्र है" l तब जामवंत कहते हैं - "धन्य है प्रभु आप सचमुच दया के सागर हैं आप कृपानिधान हैं"
आज लोग कुटिलता से जनता की सहानुभूति और सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन प्रभु श्री राम ने पूरी जनता को मनाया कि अयोध्या का कल्याण मेरे जंगल जाने में है, और जब प्रजा नहीं मानी तो उन्हें सोता हुआ छोड़कर चले जाते हैं l
छोटी - छोटी चुनौतियों से हम सब घबरा जाते हैं अपना संयम त्याग देते हैं लेकिन भगवान राम ने कभी संयम नहीं त्यागा यही संयम उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्री राम बनाता है l
भगवान श्री राम भगवान होते हुए भी उन्होंने खुद को कभी भगवान नहीं कहा, जबकि आम इंसान खुद को भगवान होने का भ्रम बेचते हैं l कोई भी भगवान श्री राम का अपमान कर जाता है वे मुस्कराते रहते हैं l हम छोटी सी विपत्ति आने पर बड़े - बड़े लोगों के साथ अपनी रिश्तेदारी खोजने लगते हैं, लेकिन भारत के सबसे बड़े राज्य के होने वाले राजा श्री राम जब जंगल गए तब उन्होंने किसी भी राजा से मिलना मुनासिब नहीं समझा l न जाने कितने ही राजा उनके स्वागत के लिए आना चाहते रहे होंगे, लेकिन श्री राम मिले तो केवट से उनके घास के बिछौने को मखमल का बिस्तर समझते और केवट का बार - बार आभार करते l ऐसे जैसे महलों में सो रहे हैं l जंगल में विचरण करने वाले आदिवासियों, शूद्रों, वंचितों से मिले सताए हुए लोगों से मिले... बलशाली राजा बाली से नहीं मिले, राज्य से निकाले हुए अपमानित सुग्रीव को अपनी मित्रता से कृतार्थ किया l क्योंकि उन्हें पता था कि वे जिस अनाचार से लड़ने के लिए जा रहे हैं उन्हें दौलत नहीं बल्कि सदाचार की आवश्यकता है l राजभोग खाने वाले राम ने अधम जाति की शबरी के जूठे बेर ऐसे खाए जैसे माता कौशिल्या के हाथ से राज भोग खा रहे हैं l
हमारे ऋषि मुनि कहते हैं कि राम से बड़ा राम का नाम है इस नाम के कारण आदमी कुछ भी कर लेता है l समुद्र में सेतु बन रहा था तब भगवान भी एक पत्थर समुद्र में डालते हैं तब वो पत्थर डूब जाता है, तब भगवान को संकोच में देखकर नल - नील कहते हैं - प्रभु आपका नाम लिखकर ये पत्थर पानी में तैर गए हैं, लेकिन आपने उस पत्थर को त्याग दिया तो उसे तो डूबना ही था l हे भगवान आप जिसको अपना लें वो निश्चित ही भवसागर से पार हो जाता है l रावण ने प्रभु राम को इतना भला - बुरा कहा माता सीता को हरने का महापाप किया तब भी जब भगवान लंका सेना लेकर पहुंचते हैं तब भी शांति का मार्ग नहीं छोड़ते l अंगद को शान्ति दूत बनाकर भेजते हैं, लेकिन वो तो अपना समूल नाश निश्चित कर चुका था, इतना पाप करने के बाद भी जब उसने मरने से पहले श्री राम का नाम लिया तो भवसागर को पार कर गया l प्रभु श्री राम कृपानिधान हैं दया के सागर हैं l
हम आस्तिक हों या नास्तिक उससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता लेकिन हम सब श्री राम के व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीख सकते हैं l मैं कोई अंतिम दावा नहीं करना चाहता, लेकिन कुछ बातेँ मुझे हैरान करती हैं जैसे शंबूक वध एवं सीता त्याग.... रामचरितमानस में जब हम पढ़ते हैं तो लंकाकांड (युद्ध कांड) तक रामायण पढ़ने में रोते हैं भावुक होते हैं, लेकिन मजा आता है l वहीँ उत्तरकांड पढ़ते हैं तो उसमे नीरसता आती है, पढ़ने में मन नहीं लगता l राम नाम उसमे भी है लेकिन उसकी भाषा-शैली बदल जाती है l जब लक्ष्मण जी सीता जी को राम के त्याग करने के बाद वन छोड़ने जाते हैं तब वे पूछते हैं - "माता महाराज के लिए आपका कोई संदेश -" तब माता सीता कहती हैं तुम अपने उस राजा से कहना" सीता जी कभी भी राम जी के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग कर ही नहीं सकती l एक बार इन्द्र के बेटे जयंत ने अपने पिता से पूछा पिताजी आप किस की पूजा कर रहे हैं तब इन्द्र कहते हैं - बेटा मैं भगवान श्री राम की पूजा कर रहा हूं l तब राम के बारे में जयंत पूछता है पिताजी जंगल में तपस्वियों की तरह ज़िन्दगी बिताने वाला भगवान कैसे हो सकता है? " मैं अभी परीक्षा लेकर आता हूं और सिद्ध करूंगा कि ये भगवान नहीं हैं l तब जयंत कौवे का रूप धारण कर चित्रकूट पहुंचा जब भगवान राम माता सीता के साथ प्रेम पूर्वक वार्तालाप कर रहे थे l तब श्रीराम भगवान माता सीता के पैरों में आलता लगा रहे थे तब जयंत ने सीता जी के पैरों में चोंच मारी और उड़ गया l अब चूंकि प्रेम के समय शस्त्र लेकर जाना मना होता है, तब भगवान को अच्छा नहीं लगा कि ये पक्षी कौन है जो हमारे निजी प्रेम के समय में व्यवधान डाल रहा है, तब भगवान ने वही सरकंडा जयन्त की ओर फेंका जिससे आलता लगा रहे थे, अब जयंत तीनों लोकों में भागता हुआ पहुंचा कि इस सरकंडे से मदद कीजिए l किसी ने जयंत की मदद नहीं की सभी ने यही कहा कि इससे तुम्हारी रक्षा श्रीराम ही कर सकते हैं l तब जयंत प्रभु श्री राम के चरणों मे गिर पड़ा तब भगवान ने उसे अभयदान दिया l हालांकि प्रहार कर दिया था तो जयंत की एक आंख ज़रूर फ़ूट गई l अब सवाल यही उठता है जिन श्रीराम ने कौवे की एक चोंच अपनी पत्नी पर सहन नहीं किया, वो कुछ लोगों के कहने पर अपनी पत्नी को त्याग देंगें ये बात हजम नहीं होती l भगवान राम के व्यक्तित्व को कलंकित करने के लिए ये सब बकवास लिखी गईं हैं.
ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम लक्ष्मण जब मिथिला के लिए जा रहे थे l तब ही रास्ते पर युगों से एक शिला रूपी औरत अहिल्या इंतज़ार कर रही थी l अचानक श्रीराम की नज़र पड़ी तब उन्होंने ब्रह्मऋषि से उनकी दुर्दशा का कारण पूछा तब ब्रह्मऋषि बताते हैं - "राम ये गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या है ये बेचारी पूरी दुनिया के द्वारा त्याग दी गई है इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं, दुनिया भर के तिरस्कृत, शोषित, दुःखी लोगों के लिए एक सहारा तुम ही हो राम... अपनी कृपा से इस बदकिस्मत अहिल्या को धन्य करो राम"
सुनकर भगवान राम अहिल्या को माता कहकर पुकारते हैं, और उन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं l पूरी दुनिया के द्वारा त्याग दी गई अहिल्या को राम ने माँ कहकर संबोधित किया, ऐसे संवेदनशील राम अपनी पत्नी सीता को त्याग देंगे ये बात ही कपोल कल्पित है l
शंबूक वध भी भगवान राम के व्यक्तित्व को कलंकित करने के लिए ही गढ़ा गया है अन्यथा जिन राम ने भीलनी शबरी के जूठे बेर खाए हो, उसी शबरी को नवधा भक्ति का वरदान दिया हो l जिन्होंने जंगल में हमेशा पिछड़े वंचित लोगों को गले लगाया हो वे श्री राम शंबूक वध कर देंगे ये बात हजम नहीं होती l देवताओ में कमियां हो सकती हैं, लेकिन मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के चरित्र में एक भी कोई दोष नहीं है l उनका नाम ही भवसागर से पार ले जाता है l धीरे-धीरे ही सही उन पर लगाए गए आक्षेप एक न एक दिन शीशे की तरह साफ़ हो जाएंगे l आज दुनिया को आभास हो रहा है एक नाम जो गुंजायमान हो रहा है वो है जय सिया राम
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