जब मिलेनियम स्टार का सामना अभिनय सम्राट से हुआ

जब मिलेनियम स्टार का सामना अभिनय सम्राट से हुआ
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दिलीप साहब की गंगा जमुना को लगभग 40 बार देखकर ऐक्टर बनने का ख़्वाब देखने वाले अमिताभ बच्चन दिलीप साहब को अपना आदर्श मानते थे, और उनके साथ स्क्रीन साझा करने के इच्छुक थे. जब उन्हें रमेश सिप्पी ने शक्ति फ़िल्म ऑफर की तब अमिताभ बच्चन ने स्टोरी, संवाद आदि पूछे बगैर हाँ कर दिया, जबकि 1980 के दशक में अमिताभ बच्चन खुद सुपरस्टार थे, उनके नाम से फ़िल्में चलती थीं. बहुतेरे फिल्म समीक्षक कहते रहते हैं कि अमिताभ बच्चन को शक्ति फ़िल्म में काम नहीं करना चाहिए था क्योंकि इस फ़िल्म में उनके लिए कुछ भी नहीं था. कई फ़िल्म समीक्षक तो तुलनात्मक अध्ययन करते बताते हैं कि दिलीप साहब अमिताभ बच्चन पर भारी पड़े थे. दर-असल कोई पूछे कि आसमान में कितने तारे हैं! समुन्दर में कितनी लहरें हैं, अग्नि में कितनी शिखाएं हैं, गंगा में कितना जल है, हिमालय में कितनी बर्फ है! तो ये सवाल यूँ भी बेमानी हो जाता है. ऐसे ही कौन बता सकता है कि शक्ति में किसका अभिनय बेहतर था. 
फ़िल्म शक्ति एक पुलिस ऑफिसर (दिलीप कुमार) की कहानी है जिसमें उनके छोटे से बच्चे को किडनैप कर लिया जाता है और किडनैप करने वाले कहते हैं - "हम आपके बच्चे को मार डालेंगे. तब पुलिस ऑफिसर कहते - "मार डालो मैं अपने फ़र्ज़ से गद्दारी नहीं करूंगा" ये शब्द उस बेटे के कान में गूंजते रहते हैं. यही बच्चा बड़ा होकर विजय (अमिताभ बच्चन) बनता है. विजय के अंदर अपने पिता के लिए दिल में एक ग़ुस्सा, एक टीस, एक कसक होती है. शक्ति पिता - पुत्र के बीच चलते गुस्से, और फ़र्ज़ की ज़ंग है. पिता पुलिस ऑफिसर है तो बेटा अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है. शक्ति फिल्म के लिए दिलीप साहब को बेस्ट ऐक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला, जबकि इसी कैटेगरी में अमिताभ बच्चन भी नॉमिनेट हुए और उन्हें अवॉर्ड नहीं मिला. तो क्या सचमुच दिलीप साहब अमिताभ बच्चन पर भारी पड़े थे? ये प्रश्न खूब पूछा जाता है. 

रायटर सलीम - जावेद जब इस कहानी को लिख रहे थे तब ये कहानी एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार पुलिस ऑफिसर थी. जिसकी अपने बेटे के साथ जद्दोजहद चलती रहती है, और विजय के किरदार के लिए अमिताभ बच्चन नहीं बल्कि पहली पसंद राज बब्बर थे. इससे सिद्ध होता है कि पिता पुलिस ऑफिसर का रोल बेटे की अपेक्षा ज़्यादा दमदार था. हालाँकि जब डिस्ट्रीब्यूटरों ने कहा - "आप राज बब्बर को लेंगे तो फ़िल्म नहीं चलेगी, आप अमिताभ बच्चन को लीजिए, थिएटर में भीड़ खीच लाने के लिए महानायक का नाम काफ़ी है. अपने पसन्दीदा दिलीप साहब के साथ काम करने के लिए उत्सुक अमिताभ बच्चन तैयार हो गए फ़िर 1980 में इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई, और फिल्म 1982 में रिलीज हुई. शक्ति दिलीप साहब को ध्यान में रखकर लिखी गई थी, मतलब ये फ़िल्म दिलीप साहब की ही थी. क्योंकि लेखक जब किसी ख़ास किरदार को ध्यान में रखते हुए कहानी के लिखता है तो उसके एक - एक संवाद उसकी भूमिका को सशक्त करने के लिए ख़ासा ध्यान देते हैं, यही कारण है कि दिलीप साहब का किरदार अमिताभ बच्चन से कहीं अधिक प्रभावशाली था. फ़िर भी अमिताभ बच्चन ने अपनी अभिनय क्षमता का नायाब प्रदर्शन किया है, ऐसा किरदार अमिताभ बच्चन ही निभा सकते थे, जिस भूमिका में ज़्यादा कुछ नहीं था ये उनकी अदाकारी का ही कमाल था कि दिलीप साहब के होते हुए भी उन्हें नॉमिनेशन मिला ये बहुत बड़ी बात है. उदाहरण के लिए जेल में जब दिलीप साहब अपने बेटे से मिलने जाते हैं और पूछते हैं तुमने बयान क्यों नहीं दिया? तब अमिताभ बच्चन कहते हैं - "क्या मेरे बयान देने से आपका कानून मुझे बेगुनाह मान लेगा? तब दिलीप साहब कहते हैं -" बेगुनाह मानना न मानना मेरा काम नहीं है ये जज का काम है. तब बेटा कहता है मैं बयान भी जज के सामने दूँगा. जब दिलीप साहब की आँखों में आँखे डालकर अमिताभ बच्चन जब बोलते हैं तब उनकी आँखों की इंटेंसिटी देखने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ख़ासकर माँ के निधन के बाद जब अमिताभ बच्चन पुलिस कस्टडी से आते हैं और तब दिलीप साहब से नजरे मिलाते हुए बिना बोले ही बहुत कुछ कह जाते हैं. जब थाने में दिलीप कुमार अमिताभ बच्चन से पूछते हैं - "जब तुम्हारी गर्लफ्रेंड यानी स्मिता पाटिल को गुंडे छेड़ रहे थे तब तुमने पुलिस की मदद क्यों नहीं ली तब अमिताभ बच्चन कहते हैं -" मुझे अपनी और अपनी गर्लफ्रेंड की मदद के लिए पुलिस की आवश्यकता नहीं है. तब दिलीप सब कहते हैं - "बरखुरदार अगर पुलिस के लिए तुम्हारी सोच यही है तो तुम एक न एक दिन मुश्किल में पढ़ सकते हो मेरी बात याद रखना  तब अमिताभ बच्चन दिलीप साहब की आंखों में आंखें डालकर कहते हैं - " मैं आपकी यह बात भी याद रखूंगा. एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन को यूँ ही नहीं कहा जाता है. पूरी फिल्म में दिलीप साहब छाए रहते हैं लेकिन अपनी अदाकारी से अमिताभ बच्चन यादगार अभिनय कर जाते हैं. या फिर समुद्र के किनारे जब दिलीप कुमार अमिताभ बच्चन को कहते हैं - "विजय तुम्हारी मां बीमार है. दोनों की अभिनय क्षमता एवं ऐक्टिंग की रेंज पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता कि किसका अभिनय ज़्यादा बेहतर था और किसका अभिनय कमतर था, क्योंकि मेंढक तोलना किसी के बस का रोग नहीं है. जब दो महान एक्टर अपनी मेधा का परिचय देते हैं तब एक्टिंग के ऐसे ही यादगार आयाम बनते हैं. अभिनय सीख रहे बच्चों को शक्ति फ़िल्म देखना चाहिए तब पता पड़ेगा कि अभिनय क्या है. 

फिल्म जब रिलीज हुई तब अमिताभ बच्चन के फैन्स फिल्म देखकर थोड़ा मायूस हुए क्योंकि 1982 तक अमिताभ बच्चन सुपरस्टार बहुत बड़े अदाकार बन चुके थे और तब तक तो अमिताभ बच्चन अपनी कॉमिक टाइमिंग भी सिद्ध कर चुके थे. दर्शकों की शिकायत थी कि उनका किरदार बहुत ही सीरियस था. तब तक कई फिल्म समीक्षकों का मानना था कि अमिताभ बच्चन जब कुली फिल्म की शूटिंग कर रहे थे तब रमेश सिप्पी के साथ बैठकर दिलीप साहब ने अमिताभ बच्चन के कई महत्वपूर्ण सीन कटवा दिए क्योंकि ऐसे कहा जाता था कि दिलीप साहब अपने से बेहतर किसी को होने नहीं देते थे. बताइए यह भी बकवास बातें लिखी गई हैं. रमेश सिप्पी ने एक बार एक इंटरव्यू में बताया था -"1980 के दशक में अमिताभ बच्चन का इतना बड़ा रुतबा था कि वह चाहते तो किसी का भी सीन कटवा सकते थे, वे दिलीप साहब का भी रोल कटवा सकते थे यह अमिताभ बच्चन का जलवा था उसे दौर में लेकिन अमिताभ बच्चन दिलीप साहब की बहुत इज्जत करते थे और रमेश सिप्पी के लिए भी उनके अंदर बहुत आदर का भाव था. दिलीप साहब की इतनी सशक्त भूमिका थी उन्हें अमिताभ की भूमिका से कोई खतरा ही नहीं था. यही कारण था कि उन्होंने फिल्म को छुआ तक नहीं... पता नहीं लोग क्या-क्या बोलते हैं.  मेरा मानना है की शक्ति जैसी फिल्म को अगर देखना है तो देखिए की एक्टिंग क्या होती है. इसलिए भाव से मत देखिए कि दिलीप साहब अमिताभ बच्चन पर भारी पड़े थे या अमिताभ बच्चन का रोल छोटा था. अमिताभ बच्चन का रोल दिलीप साहब की तुलना में  ज़्यादा दमदार नहीं था, लेकिन मैं फिर भी मानता हूं कि यह अमिताभ बच्चन की एक्टिंग का एक नायाब नमूना था अगर अमिताभ इस फिल्म में काम करने से मना कर देते तो शायद सिनेप्रेमी एक नायाब सहकार से वंचित हो जाते. जब भी अमिताभ बच्चन की  अभिनय क्षमता का उदाहरण दिया जाएगा शक्ति फ़िल्म में निभाया विजय का किरदार इसकी गवाही देता रहेगा. 



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