'लो आ गई आपकी याद' महान संगीतकार रवि जी'

'लो आ गई आपकी याद' 

(महान संगीतकार रवि शंकर शर्मा ) 

 किसी भी फिल्म की आत्मा उसके गीत एवं गीत की आत्मा उसका संगीत होता है. सिल्वर स्क्रीन पर एक से बढ़कर एक महान संगीतकार हुए हैं, जिनका अपना - अपना योगदान है. संगीतकारों की अपनी रची गई दुनिया यूँ भी बहुत खूबसूरत है, जिसके लिए वो अदब के साथ याद भी किए जाते हैं, लेकिन एक ऐसे संगीतकार हुए हैं जिनका संगीत आज भी दिल को सुकून देता है, महान संगीतकार का नाम 'रवि शंकर शर्मा' है. अधिकांश लोग इनके बारे में कम ही जानते हैं, लेकिन इनका संगीत लोगों के दिलों तक पहुंच जाता था. आज के दौर में भले ही लोगों को उनका नाम न मालूम हो, लेकिन आज भी उनका संगीत श्रोताओं से सीधा संवाद करता है. 40 से 70 के दशक हिन्दी सिनेमा में संगीत के लिहाज से स्वर्णिम दौर था, बर्मन दादा , नौशाद अली, शंकर-जयकिशन जी , ओपी. नैय्यर, मदन मोहन, रोशन जैसे संगीतकार अपने करिश्माई संगीत से आसमान की बुलंदियों पर थे. ऐसे में 'संगीतकार रवि' ने एक के बाद एक लगातार कर्णप्रिय घुनें देकर संगीत की दुनिया में अपना नाम इन दिग्गजों के साथ बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया था. कभी भी संगीत की शिक्षा न लेने वाले संगीतकार जीते जी ही किंवदन्ती बन चुके थे. हालाँकि उनका समर्पण, लगन, कि भी पराकाष्ठा है. 

आज भी कौन भूल सकता है 'जो समझो तबले की तो ये मुँह पर तमाचा है', गीत आज भी संगीत की समझ बयान करता है. जिनके गीतों के बिना आज भी शादियाँ अधूरी लगती हैं. कौन भूल सकता है 'मेरी भी शादी हो जाए दुआ करो सब मिलकर', 'आज मेरे यार की शादी है, 'बेटियों की विदा के वक़्त पिता की आँखों से फूटते वात्सल्य के ज्वार के समय बजता गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' आज भी भारतीय पिता की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बना हुआ है. आज उन महान संगीतकार को याद करने का दिन है, जिन्होंने संगीत का 'सा' भी नहीं सीखा फिर भी संगीत की दुनिया ऐसी रची कि कोई गाने सुने या न सुने, फिर भी महान संगीतकार रवि जी के रचे संगीत से अछूता नहीं होगा. संगीत की दुनिया में एक कहावत खूब प्रचलित है हिन्दी सिनेमा के टॉप 500 गीतों की लिस्ट बनाई जाए, तो उसमे 100 गीत संगीतकार रवि के होंगे. रवि अपने दौर के सफलतम संगीतकार रहे हैं, आम तौर पर किसी फिल्म के सभी गाने सुपर हिट नहीं होते. हालाँकि रवि ऐसे संगीतकार रहे जिनकी अनेकों फिल्मों के सारे के सारे गाने सुपरहिट हुए जैसे ‘चौदहवीं का चांद’ ‘गुमराह‘ वक्त ‘दो बदन’ ‘हमराज़’ निकाह आदि. 

महान संगीतकार रवि अपने तिलिस्मी संगीत के पाश में आज भी लोगों को बांधे हुए हैं. जिनका चार दशक लंबा सिनेमाई सफ़र इतना जीवंत है, कि जाने कितने मौसम आए और गए, लेकिन संगीतकार रवि का मौसम आज भी जवान है. कई बार लोग कुछ करना चाहते हैं, नियति कुछ करा देती है. हम समय अपने मुताबिक करने लगते हैं, लेकिन नियति हमे अपने मुताबिक चलाती हैं. सफ़लता का आत्मविश्वास से बहुत गहरा नाता होता है. संगीतकार रवि यूँ तो गायक बनना चाहते थे, लेकिन नियति ने उनको संगीतकार बना दिया. जब कठिन मेहनत के बाद गायक की बजाय संगीतकार बनने का मौका मिला तो उन्होंने भुना लिया एवं कालजयी संगीत दिया... जब गीत हिट हुए तो संगीतकार रवि का आत्मविश्वास अपने चरम पर था. सफ़लता का आत्मविश्वास से गहरा संबंध होने का यही अर्थ है. महान संगीतकार रवि 3 मार्च 1926 को दिल्ली में जन्मे थे. संगीतकार रवि का नाम 'रवि शंकर शर्मा था'. रवि ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी,लेकिन उनका लक्ष्य गायक बनने का था. लिहाज़ा बचपन से ही गाने गाते हुए खुद को मानिसक रूप से तैयार कर चुके थे. बचपन से ही हारमोनियम बजाना सीख चुके थे, जाहिर सी बात है, आम तौर पर कला सृजन सोच वाले बच्चे पढ़ाई में औसत होते हैं, क्योंकि उनके अन्दर कुछ नया करने का जुनून हिचकोले खाता रहता है. हालाँकि जीविकोपार्जन के लिए इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करते हुए रवि ने खूब गाना बजाना भी किया. गाना सीखा.

 हर रोज़ कोई न को बंबई आता है, दो चार - हजार लोग हिन्दी सिनेमा में अपना खास मुकाम हासिल करने के लिये आते हैं. जिससे अपने सपनों को पँख दिए जा सकें. आखिकार संगीतकार रवि अपने ख्वाबों की पोटली बांधे 1950 में वह मुंबई आ गए, तब तक उनकी शादी भी हो चुकी थी, एक बेटी भी जन्म ले चुकी थी. संगीतकार रवि देखने में बहुत ही शालीन व्यक्तित्व समझ आते हैं, लेकिन इतने रिस्की, ऐसा कोई बहुत बेपरवाह इंसान ही हो सकता है, आम तौर पर ऐसे बेपरवाह लोग मेरे आईडियल होते हैं. बंबई अपना हर्जाना वसूल करता है, संगीतकार रवि के पास न सिर छुपाने की जगह थी, और न पेट भरने के लिए रकम थी, ख्वाबों को पूरा करने के जुगनू के अलावा कुछ नहीं था. संघर्ष की पराकाष्ठा ऐसी कि वो ज्यादातर रातें तब वह मलाड स्टेशन पर गुजारते थे. कई बार बाज़ार में दुकानों से गिरते हुए शटर के बाद वहीँ उनका बिस्तर लग जाता था, जहां सपने और प्रबल होते जा रहे थे. 

कहते हैं अगर ईमानदार कोशिश की जाए तो प्रतिभा अपना मुकाम हासिल कर लेती है, भले ही चाहे समय लग जाए. एक बार संगीतकार रवि की मुलाकात संगीतकार, गायक हेमंत कुमार से हुई. एक पारखी नज़र वाला उस्ताद ही अपने शागिर्द को पहिचान सकता है. 'हेमंत दा' ने संगीतकार रवि को पहिचान लिया था. आख़िरकार वह उन्हें अपने साथ ले गए. उन्होंने पहले रवि से ‘आनन्द मठ’ फिल्म में ‘वंदे मातरम्’ में कोरस (सामूहिक) गीत गाकर ब्रेक दिया. फिर उन्हें अपना सहायक निर्देशक बना लिया. हेमंत कुमार ने रवि को सहायक इसलिए भी बनाया कि संगीतकार रवि दिल्ली के थे, जिससे उनका हिन्दी उच्चारण उत्तम था, एवं शब्दों का ज्ञान था, लिहाज़ा रवि हमेशा 'हेमंत दा' की हिन्दी उच्चारण एवं हिन्दी शब्दों में मदद करते थे, क्योंकि हेमंत कुमार बंगाली पृष्ठभूमि से थे. यही कारण था कि संगीतकार रवि 'हेमंत दा' के चहेते बन चुके थे. 

यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘नागिन’ की सुपर हिट बीन वाली धुन रवि ने ही तैयार की थी, जो पहली बार ‘मेरा तन डोले, मेरा मन डोले’ में इस्तेमाल हुई थी. दरअसल इस गीत में बीन नहीं बल्कि रवि ने अपने हार्मोनियम से यह धुन तैयार की थी.' हेमंत दा' वाकई बहुत महान इंसान थे, वो रवि को बहुत स्नेह देते थे, एक दिन रवि हमेशा ही की तरह हेमंत कुमार के ऑफिस पहुंचे तब 'हेमंत दा' ने रवि से कहा - 
                                                        "रवि तुम कब तक ऐसे मेरी परछाई बने रहोगे, जबकि तुम्हारे अन्दर प्रतिभा की खान है, तुम उसका उपयोग करो, मैं चाहता हूं तुम एक महान संगीतकार के रूप में जाने जाओ, मुझे अब गंवारा नहीं कर रहा कि मैं तुम्हें अपने सहायक के रूप में खर्च कर दूं, देखना तुम महान संगीतकार बनोगे, लेकिन तुम मुझसे फेवर नहीं माँगना तुम खुद अपनी दम से अपना मुकाम हासिल करो देखो दुनिया तुम्हारा इंजतार कर रही है". रवि ने 'हेमंत दा' की बात सुनी तो भावुक हो गए, उन्होंने कहा कि "दादा क्या मैं महान संगीतकार बन सकता हूँ? आपने कहा तो ज़रूर बनूँगा, लेकिन हर रोज़ आपके साथ काम करना बहुत याद आएगा कहकर रोने लगे दोनों खूब भावुक हुए. ऐसे संबन्ध आज कम ही देखे जाते हैं. 
 
महान संगीतकार हेमंत दा के साथ काम करने का आपार अनुभव लिए रवि चल पड़े. हेमंत कुमार से अलग होने के अगले दिन ही निर्माता नाडियाडवाला ने रवि को बतौर संगीतकार तीन फ़िल्मों में संगीत रचने का काम दे दिया. तीन फिल्में- ‘मेंहदी’, ‘घर संसार’ और ‘अयोध्यापति’ थीं. अब 'रवि शंकर शर्मा' संगीतकार रवि बन चुके थे. फिर निर्माता एस. डी. नारंग ने भी रवि को ‘दिल्ली का ठग’ और ‘बॉम्बे का चोर’ आदि फ़िल्मों में बतौर संगीतकार काम दे दिया था. बस उसके बाद रवि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अब तक हेमंत कुमार के सहायक के रूप में जाने जाते थे, अब तक दिल्ली से गायक बनने का सपना लेकर आया युवक रवि शंकर शर्मा हिन्दी फिल्मों का मशहूर संगीतकार रवि नामक ब्रांड बन चुका था. अब तक की सफ़लता के मापदंडों के हिसाब से देवेन्द्र गोयल से रवि की मुलाकात हुई. उन दिनों अपनी फ़िल्म 'वचन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे. देवेन्द्र गोयल ने काम दिया था. अपनी पहली ही फ़िल्म में रवि ने दमदार संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था. इस फिल्म में उन्होने तीन काम किये, पहला संगीत तो दिया ही, साथ ही साथ दो गीत "चंदा मामा दूर के" एवं "एक पैसा दे दे बाबू" गीत भी लिखे इससे उन्हें गीतकार भी कहा जा सकता है. इसके अलावा आशा भोसले के साथ एक युगल गीत "यूँ ही चुपके चुपके बहाने बहाने" को स्वर भी दिया. 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'वचन' में पार्श्वगायिक आशा भोंसले की आवाज में रचा बसा गीत 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए भूर के...' उन दिनों काफ़ी सुपरहिट हुआ और आज भी बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. आशा भोसले एवं महेंद्र कपूर को स्थापित करने में संगीतकार रवि का अहम योगदान है. 

यूँ तो संगीतकार रवि ने लगभग सभी गीतकारों के साथ काम किया उनका कभी कोई मनमुटाव सुनने -पढ़ने को नहीं मिला. फिल्म गुमराह" से उन्होंने लगातार गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ काम किया. वक़्त, हमराज़, आदमी और इन्सान, धुन्ध, निकाह, देहलीज़ उनकी सर्वकालिक हिट फ़िल्में हैं. वह साहिर के साथ बहुत सहज थे. उनकी शायरी के साथ आजकल, काजल, अंकल, नीलकमल, दो कलियाँ, अमानत, गंगा तेरा पानी अमृत, एक महल हो सपनो का, आदि फ़िल्मों में उन्होंने कालजयी संगीत दिया. 1950 और 1960 के दशक के दौरान हिंदी फ़िल्मों में एक सफल कैरियर के बाद, उन्होंने 1970 से 1982 काम करना बंद कर दिया था. 1982 में, उन्होंने हिंदी फ़िल्म "निकाह" के लिए संगीत दिया. उस फिल्म का संगीत यादगार है. हिन्दी सिनेमा में बदलते हुए समय के साथ संगीत बदल चुका था, तो उन्होंने मलयालम सिनेमा में लगातार यादगार संगीत दिया और कई अवॉर्ड अपने नाम किए. केरल फिल्म इंडस्ट्री में एक रवि नामक संगीतकार थे, जिससे एक विशिष्ट पहिचान के लिए इनका नाम 'रवि बंबई' पड़ गया था. शकील बदायूंनी की किस्मत का सितारा भी रवि के साथ बुलन्द हुआ था, गुरुदत्त साहब की फिल्म 'चौदहवीं का चाँद' से अब तक उनको नौशाद साहब के साथ एक भी अवॉर्ड नहीं मिला था, लेकिन इसी फिल्म से मिला था. 

कभी संगीत की शिक्षा न लेने वाले संगीतकार रवि ने उर्दू, अरबी संगीत भी रचा, एवं क्लासिकल संगीत भी रचा. उनकी महानतम संगीत यात्रा के लिए उनको खूब अवॉर्ड मिले. हालाँकि संगीतकार रवि अपने जीवन के अंतिम दिनों काफी निराश हो चुके थे, अपने बेटे - बहू के कारण की पढ़कर अंदर तक कलेजा सिहर जाता है. उनकी बेटियों से रवि जी को खूब प्यार दिया एवं संभाला, रवि जी पर एक ही आलेख से उनका जीवन मुक्कमल बयान नहीं हो सकता.... लंबी बीमारी के बाद 86 साल की उम्र में 07 मार्च 2012 को इस क्रूर दुनिया से रुखसत कर गए... इस आलेख से उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण अध्याय रह गए... जल्द ही अगले फीचर में लिखूँगा तब तक के लिए महान संगीतकार रवि जी को सादर प्रणाम.

आज उनके कुछ यादगार नग्मे सुनने गुनगुनाने का दिन है.

नीले गगन के तले धरती का प्यार पले
रहा गर्दिशों में हरदम
आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो
बाबुल की दुआएं लेती जा
औलाद वालों फूलो फलो
तेरी आँख का जो इशारा न होता 
आगे भी जाने न तू पीछे भी जाने न तू
तोरा मन दर्पण कहलाये
दिल में किसी के प्यार का जलया हुआ दिया
वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे
‘सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
जब चली ठंडी हवा
ये परदा हटा दो
किसी पत्थर की मूरत से
आज मेरे यार की शादी है
बार बार देखो हजार बार देखो
देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से
दिल के अरमां आंसुओं में
हम जब सिमट के आपकी बांहों में आ गए
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
लो आ गई उनकी याद...

दिलीप कुमार

Comments

Popular posts from this blog

*ग्लूमी संडे 200 लोगों को मारने वाला गीत*

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

राम - एक युगपुरुष मर्यादापुरुषोत्तम की अनंत कथा