'आजाद परिंदों की रुकती नहीं परवाजे' शशि कपूर

'आज़ाद परिंदों की रुकती नहीं परवाजें'

(शशि कपूर) 

एक ऐसा अभिनेता जो अपनी खूबसूरती के कारण सिल्वर स्क्रीन पर चमकने से पहले ही चर्चाओं में था. शर्मिला टैगोर इस नवयुवक को देखते ही रह गईं थीं. एक ऐसा हैंडसम, यंगमैन जिसकी तस्वीर देखकर अमिताभ बच्चन ने सोचा कि अगर ऐसे लोग हमारी स्पर्धा में हैं, तो शायद हम जैसे बेहद साधारण दिखने वालों को हीरो बनने का ख्वाब छोड़ देना चाहिए. एक ऐसा हीरो जिसने थियेटर के साथ व्यवसायी सिनेमा के साथ ग़ज़ब का समन्वय स्थापित किया. कपूर खानदान का अनोखा हीरो जो सिल्वर स्क्रीन से पहले थियेटर की दुनिया का मझा हुआ कलाकार था. बेहद प्रतिभाशाली, आकर्षक व्यक्तित्व बेहद खूबसूरत होने के बाद भी उस तरह के हीरो नहीं बन पाए, जिस मुकाम के हकदार थे. आज 'शशि कपूर' के जन्मदिन पर उनको याद करने का दिन है, जिन्होंने सिनेमा में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया. शबाना आज़मी, श्याम बेनेगल, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, नसीरूद्दीन शाह, जैसे सिनेमाई समझ के उत्तम लोगों ने कई बार कहा है कि हिन्दी सिनेमा का दुर्भाग्य है कि उसने शशि कपूर से वो सब नहीं ले सका... जितनी ज्यादा इनके काबिलियत थी. 

'शशि कपूर' हिन्दी सिनेमा एवं थियेटर के प्रसिद्ध अदाकार रहे हैं. शशि जी ने अपने सदाबहार अभिनय से लगभग चार दशक तक हिन्दी सिनेमा एवं दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. अपनी सिनेमाई सफ़र पर 'शशि कपूर' ने ज़िन्दगी का हर रंग देखा, फिर भी सीखने की ललक ने उनको ताउम्र के लिए सदाबहार ही रखा है. शशि कपूर शारीरिक रूप से आज भले ही नहीं है, लेकिन उनकी रची गई सदाबहार दुनिया में एक ही मौसम है प्रेम का जिसमें एक ही ऋतु बसंत आती है. 'शशि कपूर' कोलकाता में आज ही के दिन 18 मार्च 1938 को जन्मे थे. शशि कपूर का असली नाम 'बलबीर राज कपूर था. उनके पिता पृथ्वीराज कपूर, अपने नाम के मुताबिक रंगमंच के सम्राट कहा जाए तो एक जाने माने रंगकर्मियों में शुमार थे. ग्रेट शो मैन राज कपूर, एवं सुपरस्टार शम्मी कपूर पहले से ही सुपरस्टार थे. इस माहौल में होने के कारण बचपन से ही हीरो बनने की ललक होना स्वाभाविक था. हालाँकि यह इतना आसान नहीं होता. आज भी कपूर खानदान पर परिवारवाद का आरोप लगाया जाता है, लेकिन एक सवाल उठता है कि राजीव कपूर, रणधीर कपूर, खुद शशि कपूर के बेटे आदि को पहिचान नहीं मिली, हो सकता है परिवार के कारण फ़िल्में मिल जाएं, लेकिन प्रतिभा नहीं होगी तो दर्शक नकार देते हैं. जनता किसी का मुलाहजा नहीं करती, फिर भी शशि कपूर के पिता एवं भाई अगर चाहते शशि को हीरो के तौर पर फ़िल्म बना सकते थे, शशि कपूर स्वयं ही संघर्ष से अपनी मेहनत से ही अपना मुकाम हासिल किया. आपार प्रतिभा के धनी शशि कपूर अपनी दुनिया में शिखर तक पहुंचे. 

शशि कपूर अपने स्कूल के नाटकों में काम करना चाहते थे, फिर भी उन्हें कभी रोल नहीं मिला. आखिरकार पृथ्वी थिएटर से शशि कपूर ने 50 के दशक में ही अदाकारी के गुर सीखने लगे थे. किसी भी हीरो के लिए रंगमंच से बेहरीनशु रुआत नहीं हो सकती. शशि कपूर ने अपने बाल्यकाल से ही कई धार्मिक फ़िल्मों, रंगमंच में बाल कलाकार के रूप में कई यादगार रोल किए. नतीजतन शशि के बड़े भाई शो मैन राजकपूर साहब ने उन्हें 'आग' 1948 और 'आवारा'1951 में बाल कलाकार के रूप में रोल दिया. महान फिल्म 'आवारा' में शशि कपूर ने राजकपूर साहब के बचपन का रोल निभाया था. 
' शशि कपूर' की जिंदगी का एक अहम अध्याय शुरू होता है. जब 'ब्रिटेन की मशहूर नाटक कम्पनी 'शेक्सथियरेना' भारत दौरे पर आई थी. शेक्सथियरेना' नाटक के संचालक कोई और नहीं बल्कि शशि कपूर के होने वाले ससुर' मिस्टर केण्डेल' थे. भारत सहित पूरी दुनिया के रंगमंच में 'मिस्टर केण्डेल' का नाम आज भी बड़ी अदब के साथ लिया जाता है. 'मिस्टर केण्डेल' भारतीय नाट्य कला में भी अपने योगदान के लिए याद किए जाते हैं. रंगमंच के माहिर अदाकारों में टॉम ऑल्टर, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, रघुवीर यादव, राज बब्बर, जैसे हीरो भी 'मिस्टर केण्डेल' को अपना आदर्श मानते हैं. शो मैन राजकपूर एवं शम्मी कपूर का रंगमंच से कोई संबंध नहीं था, दोनों हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े अभिनेताओं में शुमार थे. 'शशि कपूर खानदान के होते हुए भी अपनी मेहनत के लिए जाने जाते हैं, उनका समर्पण आज भी एक प्रेरणा है. 'शशि कपूर' का रंगमंच प्रेम जाहिर था. उनके लिए थियेटर जरूरी एवं मजबूरी भी रहा है.' मिस्टर केण्डेल' रंगकर्मी होने के कारण पृथ्वीराज कपूर से खूब परिचत थे. मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे. इसलिए पृथ्वीराज कपूर ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को मौका देने के लिए आग्रह किया. शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया. अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल के मार्गदर्शन में अभिनय की बारीकियों को सीख रहे थे. इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी जेनिफ़र से हो गई, जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन की रीढ़ हैं. शशि -जेनिफ़र धीरे-धीरे मित्रता से प्रेम पाश में बँध गए थे. शशि पहले कपूर नायक हैं जिन्होंने विदेशी लड़की से शादी की. शशि कपूर की पत्नी जेनिफ़र एक उदारवादी नास्तिक महिला थीं. उन्होंने शशि के लिए हिन्दी भी सीख ली. एक दिन शशि जी कहा, मैं तुम्हारे पिता और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थियेटर में काम क्यों नहीं करतीं? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी.उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटकों में जेनिफ़र रोल करने लगीं . शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे. गौरतलब है जेनिफ़र उम्र में शशि कपूर से बड़ी थीं. अक्सर नाटकों में शशि कपूर की माँ का किरदार निभाती थीं. 1958 में शशि कपूर ने 20 वर्ष की उम्र में जेनिफ़र केण्डेल से विवाह कर लिया. 
शशि कपूर ने बतौर हीरो पदार्पण यश चोपडा की फ़िल्म 'धर्म पुत्र' सन 1961 से किया. फिर महान विमल रॉय की फ़िल्म 'प्रेम पत्र' में भी अवसर मिला. दोनों ही फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गईं. इसके बाद शशि कपूर ने 'मेंहदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलीडे इन बांम्बे' जैसी फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन यह फ़िल्में भी खास नहीं चलीं. आख़िरकार शशि कपूर का सितारा साल 1965 से बुलन्द हुआ. इसी साल शशि कपूर को अपने जीवन की सबसे बड़ी फिल्म 'जब जब फूल मिले' फिल्म सुपरहिट हुई. अपने कालजयी गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की सफ़लता ने अभिनेत्री नंदा गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को सफ़लता के शीर्ष पर पहुंचा दिया था. इस फिल्म के बाद 'शशि कपूर' हिन्दी सिनेमा के शीर्ष पर पहुंचे. इस फ़िल्म के सभी गीत आज भी सुने एवं गाए जाते हैं. 'परदेसियों से न अखियाँ मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का, 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत कभी भी पुराने नहीं होंगे. 'जब जब फूल खिले' पर ही आमिर ख़ान और करिश्मा कपूर को लेकर 'राजा हिंदुस्तानी' बनाई गई थी. जो आज भी यादगार है. यह एक ऐसी फिल्म थी, जब शशि कपूर इससे पहले फ्लॉप हो चुके थे, तब कोई बड़ी ऐक्ट्रिस उनके साथ काम नहीं करना चाहती थी, लेकिन शशि कपूर ऐक्ट्रिस नन्दा के आजीवन शुक्रगुज़ार रहे, एवं नन्दा को अपना गुरु भी मानते थे. 

1965 शशि कपूर के लिए बेहद उम्दा रहा है, इसी साल शशि कपूर के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट मल्टीस्टारर फ़िल्म 'वक्त' रीलीज़ हुई थी. इस फ़िल्म में उनके साथ बलराज साहनी, राजकुमार और सुनील दत्त जैसे दिग्गज थे. इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे. पहले शशि कपूर इस फिल्म में काम नहीं करना चाहते थे, उन्हें डर था कि इन दिग्गजों के सामने मैं क्या ही कर पाउंगा.. लेकिन निर्देशक ने समझाया आप खुद को साबित कर सकते हैं. इन फ़िल्मों की आपार सफलता के बाद शशि कपूर की छवि रोमांटिक हीरो की बन गई थी. साल 1965 से 1976 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में शशि कपूर ने जिन फ़िल्मों में काम किया. उनमें ज़्यादातर फ़िल्में सुपरहिट हुईं. फिर एक्शन फ़िल्मों का युग शुरू हुआ तो राजेश खन्ना सहित शशि कपूर की रोमांटिक फ़िल्में फ्लॉप होने लगीं थीं. हालाँकि शशि कपूर ने कभी भी खुद को अहंकारी नहीं होने दिया.. खूब सहायक रोल भी किए. अस्सी के दशक में शशि कपूर ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और 'जूनून' फ़िल्म बनाई. इसके बाद उन्होंने 'कलयुग', '36 चौरंगी लेन', 'विजेता', 'उत्सव', और 'रमन' आदि फ़िल्में बनाईं. हालाँकि यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा सफल नहीं हो पाईं, लेकिन इन फ़िल्मों को समीक्षकों ने काफ़ी पसंद किया. जिससे शशि कपूर अभिनेता के साथ ही एक उम्दा फ़िल्मकार बन चुके थे. अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म अजूबा का निर्माण अमिताभ बच्चन को लेकर किया, लेकिन यह फिल्म बुरी तरह असफ़ल हुई. 

यूँ तो शशि कपूर ने अपने सिनेमाई सफ़र में हर छोटी बड़ी अभिनेत्री के साथ काम किया, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा अभिनेत्री शर्मिला टैगोर एवं नन्दा के साथ पसंद किया गया. शर्मिला टैगोर एवं 'शशि कपूर' पहली बार 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म वक़्त में एक साथ दिखे. कालांतर में शशि कपूर और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने 'सुहाना सफर', 'माई लव', 'आ गले लग जा', 'पाप और पुण्य' और 'न्यू दिल्ली टाइम्स' जैसी बड़ी फ़िल्मों में भी एक साथ यादगार अभिनय किया. शर्मिला टैगोर शशि जी को याद करते हुए कहती हैं "मैं शम्मी कपूर के साथ फिल्म की शूटिंग कर रही थी, तब ही एक नवयुवक सेट पर आया, वह नवयुवक शशि जी ही थे, जो अपने बड़े भाई शम्मी कपूर जी से मिलने आए थे, तब मैंने उनके बारे में सुना था, लेकिन देखा तो मैं उनकी खूबसूरती के कारण उनको देखती रही थी, इसमे कोई अज़ीब बात नहीं है शशि जी बहुत खूबसूरत इंसान थे. शशि कपूर की जोड़ी नन्दा के साथ भी काफ़ी पसंद की गई. यह जोड़ी सबसे पहले साल 1961 में रिलीज फ़िल्म 'चार दीवारी' में एक साथ नज़र आई थी. इसके बाद 'जब जब फूल खिले', 'मोहब्बत इसको कहते है', नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', 'जुआरी राजा साहब' और 'रूठा ना करो' में भी दोनो ने एक साथ काम किया था. शशि कपूर नन्दा के लिए आजीवन आभारी रहे हैं. 

अमिताभ बच्चन एवं शशि कपूर को एक साथ याद नहीं किया जाए तो शायद सिनेमा का एक अध्याय पूरा नहीं होगा. शशि एवं अमिताभ बच्चन की जोड़ी हिन्दी सिनेमा की सबसे यादगार जोड़ी रही है. यह जोड़ी हिट फ़िल्म 'दीवार' में एक साथ दिखाई दी थी. इस फ़िल्म में दो भाईयों के बीच टकराव को दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं. आज भी शशि कपूर का संवाद "मेरे पास माँ है" हिन्दी सिनेमा का सबसे यादगार संवाद है, जो शशि कपूर को बखूबी परिभाषित करता है. बाद में इस जोड़ी ने 'इमान धर्म', 'त्रिशूल', 'शान', 'कभी कभी', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'सुहाग', 'सिलसिला', 'नमक हलाल', 'काला पत्थर' और 'अकेला' में भी काम किया और दर्शको का मनोरंजन किया. अमिताभ बच्चन ने शशि कपूर जी को याद करते हैं 

                                                            "हम जिंदगी को अपनी कहां तक सम्भालते, इस कीमती किताब का काग़ज़ खराब था" इस पंक्ति के साथ अमिताभ ने शशि कपूर को याद किया अमिताभ बच्चन कह्ते हैं "मैंने पहली बार मैगज़ीन पर देखने से लेकर पहली मुलाकात एवं उनके साथ बिताया गया वक़्त याद आता है. शशि जी की यादाश्त बहुत उम्दा रही है. शशि जी खूबसूरत दोस्त थे, शशि जी मुझे 'बबुआ' कहकर संबोधित करते थे. 60 के दशक में जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था , तब मैंने शशि कपूर की तस्वीर को पहली बार देखा था, मैगज़ीन में उनकी शानदार तस्वीर छपी थी, और साथ ही लिखा था कि राज और शम्मी कपूर के छोटे भाई जल्द ही डेब्यू करने जा रहे हैं, इसे पढ़कर अभिनेता बनने की चाहत रखने वाले मेरे मन में ख्याल आया था- "यदि आसपास ऐसे खूबसूरत इंसान हैं , तो मेरा कोई चांस नही है. शम्मी कपूर जी के अंतिम संस्कार के समय उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा, लेकिन वो बोलने में असमर्थ थे, हालाँकि उनकी आँखों से बहते हुए आंसू उनकी भावनाएं व्यक्त कर रहे थे. 

शशि कपूर की कुछ प्रमुख फ़िल्मों को जरूर देखना चाहिए. इन फ़िल्मों को देखने के बाद इंसानी तौर पर एक नजरिया ज़रूर बनेगा. शशि कपूर ने, दीवार, त्रिशूल, सुहाग, नमक हलाल, शान, जैसी व्यवसायी फ़िल्मों में अपनी अदाकारी दिखाई, वहीँ उनकी अधिकाशं रोमांटिक फ़िल्में कालजयी मानी जाती है, लेकिन उनकी कुछ फ़िल्मों का जिक्र करना चाहूँगा, जिनकी बहुत कम ही चर्चा हुई है. शशि कपूर की डेब्यू फिल्म धर्मपुत्र जो फ्लॉप हुई "उसमे संवाद है “हिंदू - मुस्लिम दो कौमों का नहीं, तारीख़ के एक दौर का नाम है. " हिंदू-मुस्लिम इस देश की एक तहज़ीब, एक सभ्यता का नाम है. हिंदू-मुस्लिम इस धरती के उन दो बेटों का नाम है, जिनकी ख़ुशी और ग़म, जिनका जीना और मरना एक है. ये दोनों एक थे, एक ही हैं और एक ही रहेंगे.” “ज़माना देखते-देखते बदल जाता है, वो ज़मीं-आसमान, जहां कल मुहब्बत के नारे गूंजते थे, आज वहां नफरत के शोले भड़क रहे हैं. इंसान कितनी जल्दी बदल जाता है, कितनी जल्दी हर बात भूल जाता है. ” “धर्म आदमी को इंसान नहीं बनाता, इंसान को इंसान से लड़ाता है. आज भी शशि कपूर का यह संवाद प्रासंगिक है. न्यू डेल्ही टाइम्स, मुहाफ़िज़, कलियुग, जुनून, आदि फ़िल्में देखी जानी चाहिए, जहां शशि कपूर की विविधतापूर्ण अदाकारी देखी जा सकती है. 

शशि कपूर ने बहुत सारी सामजिक फ़िल्मों का निर्माण किया, एवं अपनी विविधतापूर्ण अदाकारी के साथ रंगमंच के लिए अपने योगदान के लिए याद किए जाएंगे. शशि कपूर को हिन्दी सिनेमा से ज्यादा थियेटर में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है. आम तौर पर व्यवसायिक फ़िल्मकार कला फ़िल्मों से परहेज़ करते हैं, लेकिन शशि कपूर ने सरोकार एवं अदाकारी में बेहतर सृजन के लिए अर्थिक संकट से भी जुझ चुके हैं. फिर भी उन्होंने कला फ़िल्मों से परहेज़ नहीं किया. शशि कपूर की विविधतापूर्ण अदाकारी एवं उनके करिश्माई व्यक्तिव को समझा जा सकता है,कि एक रंगमंच के सुपरस्टार नसीरूद्दीन शाह, वहीँ व्यवसायी फ़िल्मों के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन शशि जी के सबसे बड़े प्रशंसकों में से एक हैं. वहीँ कला फ़िल्मों की सशक्त हस्ताक्षर शबाना आज़मी एवं मेन स्टीम अदाकारा शर्मिला टैगोर उनकी सबसे बड़ी प्रसंशक है. ऐसा मुकम्मल मुकाम बहुत कम लोगों को नसीब हुआ है, ख़ासकर ऐसा बहुत कम हुआ है, कि किसी हीरो को थिएटर, एवं मेन स्टीम सितारों ने साराहा हो. शशि कपूर को तीन बार नेशनल अवार्ड, पद्म भूषण, एवं सिनेमा के सबसे बड़े दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. लम्बी बीमारी के बाद 04 दिसंबर 2017 को शशि कपूर इस फानी दुनिया से रुख़सत कर गए... शशि कपूर किसी से छोटे - बड़े नहीं अपितु अपनी प्रतिभा के महान अदाकार रहे हैं. वो भले ही अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार न बन पाए हों, लेकिन उन्होंने अपना प्रभाव बखूबी कायम किया. कमाया होगा बहुतों ने धन, संपत्ति फिर भी याद वो किया जाता है, जो समाज के लिए कुछ करे, पृथ्वी थियेटर की स्थापना करना उनका बहुत बड़ा काम है, जहां केवल रंगमंचन नहीं होता, अपितु वहाँ आज नए बच्चों को अदाकारी के लिए बहुत बड़ा मंच मिलता है . शशि जी को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. ख़ासकर पृथ्वी थियेटर के लिए शशि जी हमेशा याद किए जाएंगे. महान अदाकार, फ़िल्मकार को मेरा सलाम......... 

दिलीप कुमार 

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