'वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा मधुबाला जी'
वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा
(मधुबाला जी)
एक अलौकिक, सुंदरता और शानदार अदाकारा, मधुबाला भारत में प्रेम और सुंदरता का पर्याय मानी जाती थीं. आज भी मानी जाती है, एवं अनन्त तक प्रेम की प्रतिमूर्ति के रूप में उनको याद किया जाएगा. मधुबाला जी जैसा सौन्दर्य न किसी को मिला है,न ही किसी को मिलेगा. मधुबाला जी को इसीलिए 'वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा' उपनाम दिया गया था. वीनस प्यार और सुंदरता की रोमन देवी थी, जो ग्रीक देवी एफ़्रोडाइट के समकक्ष थी. भारत की तरह ग्रीस को भी मधुबाला में अपना एफ़्रोडाइट मिला. मधुबाला जी को सिल्वर स्क्रीन पर देखते हुए आज की पीढ़ियां भी उनके अनुपम सौंदर्य में डूब जाती हैं, मधुबाला जी केवल गोल्डन एरा की केवल अदाकारा नहीं है, बल्कि 1950-60 के दशक में भारत में जवान हो रही पीढ़ियों के किसी भी व्यक्ति से पूछें तो बताते हैं "मधुबाला के प्यार में पड़ना मुश्किल नहीं था. कोई भी उनकी सुन्दरता से अनभिज्ञ नहीं था. हर कोई उनकी सुंदरता में बह जाता था, एवं हर कोई अपने अंदर पनपे इस भाव से आनंदित होता था. गोल्डन एरा के दौर से अब तक शायद की कोई ऐसा हो, जिसने अपने अंदर की तिलिस्मी भावनाओं को जाहिर न किया हो, उनके सौन्दर्य का कायल न रहा हो. कहते हैं उस दौर के सुपरस्टार उनसे अपनी भावनाएं जाहिर करते थे, जिसे सुनकर मधुबाला आनन्दित होतीं थीं.
प्रेम दिवस यानी वेलेन्टाइन डे पर जन्मी हिन्दी सिनेमा की सबसे खूबसूरत महान अदाकारा 'मधुबाला' जो खुद लोगों के लिए बेशुमार प्रेम अपने अन्दर समेटे रहतीं थीं, अफ़सोस उनको किसी से प्रेम ही नहीं मिला... मधुबाला को देखकर लगता है उनको किसी भी शै की ज़रूरत नहीं थी, उन्होंने लोगों को सिर्फ़ दिया है, जिसमें अपने पिता को बेशुमार दौलत, दर्शकों को यादगार फ़िल्मों से उनका मनोरंजन, एवं हिन्दी सिनेमा के सृजनकारों को बेशुमार फ़िल्में एवं अपने प्रेमियों को बेशुमार प्रेम के साथ बेवफाई के लिए मुआफी के साथ हिन्दी सिनेमा में अपना अविस्मरणीय योगदान जिसके साथ ही एक समूचा संसार छोड़ कर अनन्त में चली गईं. जिन्होंने लोगों से कुछ लिया नहीं सिर्फ दिया. नरगिस के साथ, मधुबाला हिन्दी सिनेमा की अग्रणी अभिनेत्री थीं. उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें मुग़ल-ए-आज़म, मिस्टर एंड मिसेज '55 और चलती का नाम गाड़ी, हावड़ा ब्रिज, कालापानी, जैसी क्लासिक्स कल्ट शामिल हैं. भारत भूषण, देवानंद साहब, राज कपूर, अशोक कुमार, गुरुदत्त साहब, दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, आदि सभी सुपरस्टारों के साथ स्क्रीन साझा की. मधुबाला की ज़िन्दगी का एक - एक पृष्ठ पढ़ना तकलीफ़देह है. जियाली मधुबाला जी की मुस्कान, इठलाने की अद्भुत आभा, प्राकृतिक सौंदर्य उनका अपना था. प्राकृतिक सौंदर्य की मल्लिका मधुबाला जी हिन्दी सिनेमा के लिए ईश्वर का नायाब तोहफ़ा थीं. आज के दौर में उनकी सुन्दरता की मिसालें दी जाती हैं, लेकिन मधुबाला जी अपनी सुन्दरता के कारण ज़िन्दा रहते ही किंवदन्ती बन गईं थीं. उस दौर में भी अगर किसी अदाकारा का कॅरियर परवान चढ़ता था, कालांतर में उस अभिनेत्री को सफलता का सर्टिफिकेट देने के लिए मधुबाला के साथ तुलना किया जाता था, जिससे अभिनेत्रियां खुद को गौरवांवित महसूस करती थीं.
'मधुबाला जी' 'मुमताज़ जहाँ बेगम देहलवी' के रूप में 14 फरवरी 1933 को दिल्ली में जन्मी थीं. उनके पिता पश्तून अताउल्लाह खान थे. किसी भी अदाकारा के पिता का जिक्र करने का कोई औचित्य नहीं है, लेकिन मधुबाला जी के रिवायती पिता का जिक्र करना जरूरी है, जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मधुबाला जी का खूब शोषण किया एवं उनकी टूटती सांसो के जिम्मेदार भी थे. मधुबाला जी जैसी फर्माबरदार बेटी का पिता इतना क्रूर हो सकता है? पैसे की हवस आदमी को पागल कर देती है. मधुबाला जी की तीन बहनें थीं और दो भाइयों की पांच और छह साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी. 14 अप्रैल 1944 को आग ने उनको बेघर कर दिया. युवा मधुबाला जी काम की तलाश में बार-बार बॉम्बे फिल्म स्टूडियो का दौरा करने लगीं. 9 साल की उम्र में, मधुबाला को फिल्म उद्योग में काम मिलना शुरू हो गया था. जिससे उनके परिवार को कुछ आर्थिक राहत हुई. मधुबाला जी ने फ़िल्म बसंत 1942 में एक बाल कलाकार के रूप में काम किया. वह बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. उन्होंने अभिनेत्री मुमताज शांति द्वारा निभाई गई मां की बेटी के रूप में अभिनय किया. दिलचस्प बात यह है कि बाम्बे टाकीज की मालकिन, अभिनेत्री देविका रानी उनके प्रदर्शन और क्षमता से प्रभावित हुईं. मधुबाला की ख़ूबसूरती से प्रभावित होकर उनका नाम मधुबाला रख दिया. 14 साल की उम्र में मधुबाला जी ने राज कपूर के साथ नील कमल 1947 में मुख्य नायिका के रूप में काम किया. मधुबाला ने अपना वास्तविक स्टारडम 1949 में हासिल किया जब उन्हें बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो की फ़िल्म महल में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया. फिल्म के निर्देशक कमाल अमरोही द्वारा चुने जाने से पहले अभिनेत्री की भूमिका के लिए स्क्रीन-परीक्षण किया गया था. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उस समय की तीसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म बन गई.वर्ष 1949 तक मधुबाला की कई फ़िल्में प्रदर्शित हुई, लेकिन इनसे मधुबाला को कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ. सन 1949 मे बॉम्बे टाकीज के बैनर तले बनी फ़िल्म 'महल' की कामयाबी के बाद मधुबाला फ़िल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने में सफल हो गयीं. इस फ़िल्म का एक गीत 'आयेगा आने वाला 'सिने प्रेमी आज भी नहीं भूल पाये है. सन 1950 से 1957 तक का वक्त मधुबाला के सिने कैरियर के लिये बुरा साबित हुआ. इस दौरान उनकी कई फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल हो गयीं, लेकिन 1958 में उनकी फागुन, हावडा ब्रिज, काला पानी तथा चलती का नाम गाड़ी की सफलता ने एक बार फिर मधुबाला को शोहरत की बुंलदियों पर पहुँचा दिया था. फ़िल्म हावड़ाब्रिज में मधुबाला ने क्लब डांसर की भूमिका अदा कर दर्शकों का मन मोह लिया. इसके साथ ही वर्ष 1958 में हीं प्रदर्शित फ़िल्म चलती का नाम गाड़ी में उन्होंने अपने कॉमिक अभिनय से दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया था.
मधुबाला जी 14 फरवरी को पैदा हुईं, इसे प्यार का दिन माना जाता है, लेकिन मधुबाला जी को ताउम्र सच्चा प्रेम ही नसीब नहीं हुआ. दिलीप साहब एवं मधुबाला जी का रूहानी प्रेम आज भी अदब के साथ याद किया जाता है. दोनों एक-दूसरे को दिलोजान से चाहते थे. दिलीप साहब एवं मधुबाला जी के प्रेम की दीवार भी उनके पिता ही बने थे. मधुबाला के पिता इस बात से डरते थे, कि अगर मधुबाला की शादी हो गई, तो फिर मुझे पैसे नहीं देगी. अतः वो मधुबाला जी की शादी ही मुकम्मल नहीं होने देना चाहते थे. एक दो रिश्ते उनके पिता ने अपने जिद से खत्म करवा दिया था, लेकिन दिलीप कुमार के साथ उनकी शादी के खौफ से भयभीत हो जाते थे, क्योंकि उनको डर था, कि दोनों का मज़हब भी एक है कहीं दोनों मिलकर शादी न कर लें. इसलिए मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ दूर भेजना नहीं चाहते थे. बी. आर. चोपड़ा की 'नया दौर' फिल्म के कुछ हिस्सों की शूटिंग कर चुकी मधुबाला को मेकर्स ने बाकी शूटिंग के लिए ग्वालियर जाने के लिए कहा, डकैत इलाका होने के चलते उनके पिता ने जानबूझकर एक रंजिश पैदा की. पिता ने मेकर्स से लोकेशन चेंज करने के लिए कहा, जिसके लिए वे राजी नहीं हुए. तब पिता ने मधुबाला को फिल्म छोड़ने और मेकर्स के पैसे लौटाने के लिए कहा. आउटडोर शूटिंग पर न जाने के कारण बीआर चोपड़ा ने उनकी जगह वैजयंतीमाला को साइन कर लिया. मधुबाला की जगह वैजयंतीमाला को साइन किए जाने का यह मामला इतना बिगड़ा कि कोर्ट तक पहुंच गया. इस दौरान दिलीप कुमार ने फिल्म के निर्देशक का साथ दिया और मधुबाला के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी. दिलीप कुमार की गवाही की वजह से न सिर्फ मधुबाला का दिल टूट बल्कि दोनों के रिश्तों में दरार आ गई. दिलीप कुमार की गवाही के बाद दोनों के प्यार में कभी न मिटने वाली दूरी पैदा हो गई. मधुबाला ने दिलीप कुमार को अपने पिता के डर से भी अवगत कराया था, लिहाज़ा दिलीप साहब को मधुबाला जी का साथ देना गंवारा नहीं था, तो कम से कम उनका विरोध नहीं करना चाहिए था. हालांकि दोनों पहले से चल रही फिल्म मुगल-ए-आजम में साथ शूटिंग जरूर करते रहे थे, लेकिन साथ रहते हुए दोनों एक-दूसरे के लिए बिल्कुल अजनबी बन गए. लोगों को शायद इस बात की जानकारी नहीं है, कि दोनों मुगल ए आज़म के सेट पर बातचीत भी नहीं करते थे. लिहाज़ा उनके पिता का रिवायती अंदाज़ उनकी अंतिम साँस तक चलता रहा.
दिलीप साहब मधुबाला जी के बारे में कहते थे
"मधु इस गुज़रे ज़माने की सुन्दरता की रानी मोहक ख़ूबसूरती,उसकी मोहक आँखें, शरारत भरी निगाहें, चकाचौंध भरी मुस्कान, दमकती त्वचा, श्रृंगार से मुक्त प्राकृतिक रूप और अतुलनीय, कालातीत कामुक व्यक्तित्व की अमिट छाप थी. मधु अगर बहुत दिनों तक जिवित रहतीं तो उनके बराबर मुकाम शायद किसी का नहीं होता.मुगल-ए-आजम से पहले तराना फ़िल्म में काम किया था, जहां मुझे और मधु को एक साथ कास्ट किया गया था. अंतरंग, शुद्ध खुशी की आभा को पहले या बाद में किसी भी फिल्म में इतने प्रभावी ढंग से नहीं लिया गया है, जैसा कि मैंने एक उंगली के साधारण झटकों से मधुबाला के चेहरे से बालों के बिखरे हुए बालों को दूर धकेल दिया था. उसकी आँखों में देखा फिर मधु के अलावा कुछ दिखता ही नहीं था ".
दिलीप कुमार के बारे में आम बात थी, कि वो वह मधुबाला पर कम ही बोलते हैं, दिलीप साहब ने एक साक्षात्कार में कहा" नैतिक और अपनी बुद्धिमत्ता से तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिए गए थे, इसमे विवादित कुछ भी नहीं था. मधु जिस लड़की को मैंने इतनी शिद्दत से चाहा, प्यार किया था. मधु एक महान अदाकारी थीं, उनके जैसे आभा दूसरी किसी अभिनेत्री में नहीं थी.स्टूडियो के बाहर किसी अन्य स्टार के लिए ऐसे फैन्स नहीं उमड़े जैसे "उन्होंने मधु के लिए फैन्स में दीवानगी देखी. उनका व्यक्तित्व जीवंत था. मधु बहुमुखी प्रतिभा के साथ उत्कृष्ट कलाकार के रूप में अपनी महानता के साथ अमर हैं, "उन्हें अपने काम के प्रति जुनून था,बहुत ही समर्पित महिला थीं". संप्रेषक ने पूछा आपकी पसंदीदा अभिनेत्री कौन थी? दिलीप साहब कहते हैं 'मीना और मधु'" जब संप्रेषक ने जोर से कहा कि मधुबाला आपकी सर्वकालिक पसंदीदा हैं, तो दिलीप मुस्कुराए और कहा: "आप बहुत समझदार हैं". दिलीप साहब ने जब भी मधुबाला जी जा जिक्र किया है, ऐसे ही बड़ी अदब के साथ किया है.
देव साहब तो अद्वितीय थे ही. देवानंद साहब एवं मधुबाला जी दोनों एक साथ खूब जचते थे. मधुबाला जी शोखियाँ देखने लायक होती थीं.
मधुबाला को उनके जमाने में पर्दे की देवी माना जाता था. उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति ने लाखों दिलों को मोह लेती थी. लोग आज भी उनकी जीवंत ऊर्जा और आकर्षक-आकर्षण को याद करते हैं. मधुबाला के साथ 8 फिल्मों में काम करने वाले देवानंद साहब उनकी हंसी से हैरान थे. वहीं मधुबाला जी देवानंद साहब को दुनिया का सबसे सुन्दर, स्टाइलिश, आकर्षक पुरुष कहती थीं. 'बम्बई का बाबू' फ़िल्म में देवानंद साहब हीरो हैं, सुनकर बिना कहानी सुने ही फिल्म करने के लिए हाँ कह दिया, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि फिल्म में उन्हें देवानंद साहब की बहन का रोल करना पड़ेगा, तो उन्होंने काम करने से मना कर करते हुए कहा "देव साहब दुनिया के सबसे स्टाइलिश, आकर्षक हीरो की बहन क्यों बनूँ" जब कि मैं खुद हसीन हूं, दोनों की जुगलबंदी बहुत उम्दा थी.
मधुबाला जी के बारे में ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में देवानंद साहब लिखते हैं -
मुझे मधुबाला के लिए सबसे ज्यादा काला पानी याद है. शानदार महिला फिल्मों की परियों की दुनिया में सभी नायिकाओं में सबसे खूबसूरत, अपने प्राकृतिक रूप के साथ, हमेशा सुबह की ओस की तरह ताजा, भारी मेकअप के बिना, झूठी पलकें, कॉन्टैक्ट लेंस या डिज़ाइनर द्वारा बनाए गए कपड़े जो कृत्रिम ग्लैमर प्रदान करते थे, जो पुरुष जिज्ञासा को कम करते हैं, उनकी बचपन की मासूमियत उनके चरित्र की सबसे अधिक ध्यान देने योग्य विशेषता थी, उनकी हंसी ही उनकी पहिचान थी.
वो बेचारी इतनी प्यारी लड़की थी, जो सबको प्यार करती थी, कभी भी उसने अपनी उदासी को चेहरे पर नहीं लाने दिया, मुझे मधुबाला बहुत याद आती है. हर बार जब भी मैं उसके बारे में सोचता हूं, मुझे अपने मेकअप रूम के बाहर उसकी हंसी सुनाई देती है. मधुबाला हमेशा दरवाजे पर एक हंसी के साथ दस्तक देती थी, जो उसके आने की घोषणा करती है. 'तो आप आ गए! हो-हो-हो!' और मैं उनका अभिवादन करता. उसका 'हां, मेरे पास' हमेशा एक और हंसी से मैं भी हंसने लगता था. मधुबाला हमेशा मामूली बहाने पर भी खूब हंसती थी, कोई नहीं जानता था कि हंसी का अगला गुबार कब आएगा, और एक बार हो जाने के बाद, यह कितने समय तक चलेगा. कई बार कैमरा चालू होने पर वह अचानक से एक टेक के दौरान हंसना शुरू कर देती थी. शूट को अनिश्चित काल के लिए बंद करना पड़ता था, इसी बहाने चाय का ऑर्डर दिया जाता था. जब तक कि वह अपने आप को और अपनी हंसी को थाम लें. मधुबाला बहुत ही खुशमिजाज लड़की थी, बेचारी कभी भी अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थीं. मधुबाला इतनी शालीन थीं, खूब मदद करने वाली थीं. महान नायिका शायद अपने आस-पास की दुनिया पर हंस रही थी, जो कभी मुकम्मल नहीं हो सकी. वो नहीं जानती थीं, कि उनको जानलेवा बीमारी है. और वह काफी कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गईं. दुःख होता है, कि मधुबाला अपने कष्ट में असहनीय दर्द के बावजूद भी पेन किलर खाकर भी कभी काम में आना - कानी नहीं की. मधुबाला जैसा कोई भी नहीं है, न कोई होगा, हम सभी के लिए कभी न भूलने वाला दुःख था उनका जाना". देव साहब ने मधुबाला जी को कई बार बेचारी यूँ ही नहीं कहा!!देवानंद साहब मधुबाला जी के जीवन की कठिनाइयों के बारे में खूब जानते थे, देव साहब ने मधुबाला के पिता को एक रिवायती क्रूर पिता कहा है.
देव साहब ने उनके पिता को यूँ ही क्रूर पिता नहीं कहा, मधुबाला जी इतने बड़े मुकाम पर थीं, लेकिन वो कोई भी फ़िल्म साईन नहीं कर सकती थीं, क्योंकि उनके पिता ने उनसे यह भी अधिकार ले रखा था, यहां तक कि किसी से प्रेम करने एवं शादी करने के लिए भी बहुत सारी पाबंदियां थीं. जानलेवा बीमारी होने के बाद भी पेन किलर खाते हुए भी उन्होंने कभी काम से छुट्टी नहीं ली, एवं अपनी बीमारी को भी छिपाया, बीमारी छुपाने का कारण था, कोई काम नहीं देगा... मुगल ए आज़म की शूटिंग के दौरान बहुत भारी जंजीरें शरीर में लादकर शूटिंग करतीं थीं, एवं खुद कभी नहीं कहा कि मैं असहज हूं, इस हद तक कि मज़बूरी के साथ जीने को मजबूर करने वाले पिता को क्या क्रूर नहीं कहा जा सकता!! ख़ैर
साठ के दशक में मधुबाला जी ने फ़िल्मों मे काम करना काफ़ी हद तक कम कर दिया था. चलती का नाम गाड़ी और झुमरू के निर्माण के दौरान ही मधुबाला किशोर कुमार के काफ़ी क़रीब आ गयी थीं. मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार को सूचित किया. मधुबाला इलाज के लिये लंदन जा रही है,अतः लंदन से आने के बाद शादी कर पाएंगी, लेकिन मधुबाला को यह अहसास हुआ कि शायद लंदन में हो रहे आपरेशन के बाद हो सकता है उनका निधन हो जाए. यह बात उन्होंने किशोर कुमार को बतायी इसके बाद मधुबाला की इच्छा को पूरा करने के लिये किशोर कुमार ने मधुबाला से शादी कर ली. शादी के बाद मधुबाला की तबीयत और ज़्यादा ख़राब रहने लगी. हालांकि इस बीच उनकी फ़िल्में रिलीज हुईं. पासपोर्ट 1961 झुमरू 1961, ब्वॉयफ्रेंड 1961, हाफ टिकट (1962, और शराबी, 1964, जैसी कुछ फ़िल्में प्रदर्शित हुई. वर्ष 1964 में एक बार फिर से मधुबाला ने फ़िल्म इंडस्ट्री की ओर रुख़ किया,लेकिन फ़िल्म चालाक के पहले दिन की शूटिंग में मधुबाला बेहोश हो गयी और बाद में यह फ़िल्म बंद कर दी गई. अपनी दिलकश अदाओं से लगभग दो दशक तक सिने प्रेमियों का मनोरंजन करने वाली महान् अभिनेत्री मधुबाला जी ने मुम्बई में 23 फ़रवरी 1969 को नृशंस दुनिया को अलविदा कह दिया... आज भी मधुबाला जी हर सिने प्रेमी के जेहन में अंकित हैं. उनके दौर से लेकर अब तक फ़िल्मकार, अभिनेता, दर्शक हर कोई उनके प्राकृतिक सौंदर्य का कायल है. मधुबाला जी अपने अनुपम सौंदर्य एवं कालजयी अदाकारी के साथ अनन्तकाल तक ज़िंदा रहेंगी. मधुबाला जी भारत की मर्लिन मुनरो नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा में सुन्दरता की देवी के रूप में ही याद की जाएंगी. मधुबाला जी जब इस दुनिया को छोड़ गईं तब मैं पैदा भी नहीं हुआ था लेकिन मैं आज भी उनकी सिनेमाई यात्रा का गवाह हूं, जहां उन्होंने दुनिया में कभी किसी से कुछ नहीं लिया , बल्कि छोड़ने के लिए अपना समस्त संसार छोड़कर चली गईं. सुन्दरता, प्रेम की इस देवी को मेरा सलाम.........
दिलीप कुमार
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