हरे राम हरे कृष्णा (देव साहब की फिल्म)

देव साहब के लिए नेपाल के महाराजा किंग महेंद्र ने जब पशुपतिनाथ मंदिर का नियम बदल दिया था.. 

"हरे राम हरे कृष्णा"

हिन्दी सिनेमा में रिकॉर्ड सबसे ज्यादा समय तक सक्रिय रहने वाले लगभग पैंसठ साल से ज्यादा वक़्त तक सिल्वर स्क्रीन पर राज करने वाले देव साहब आज होते तो हाथों में कोई न कोई स्क्रिप्ट लिए होते. भले ही निन्यानवे साल उनकी उम्र होती, क्योंकि देव साहब रुकने वाले नहीं थे, बढ़ते ही रहे. हमेशा सक्रिय रहे, और फ़िल्मों में डूबे रहे, आज भी होते तो जरूर डूबे होते, कोई न कोई फिल्म बना रहे होते, स्क्रिप्ट संभाल रहे होते, उस स्क्रिप्ट के अनुकूल नायिका के चयन पर विचार कर रहे होते, अपनी आँखों में गढ रहे होते, कि कि इस रोल के लिए कौन सी नायिका फिट बैठेगी,क्या इसमे किसी नई नायिका को लेकर आया जाए, वॊ खोज में निकल पड़ते. वैसे जिस उम्र में दुनिया छोड़ गए वह उम्र भी इतनी तो थी, कि कोई सिल्वर स्क्रीन को देखते हुए असहज हो सकता है. देव साहब 88 साल की उम्र में अपनी मौत के वक़्त चर्चित फिल्म हरे राम हरे कृष्णा का सीक्वल बना रहे थे, उससे पहले ही उन्होंने एक चर्चित फिल्म बनाई थी, 'हरे राम हरे कृष्णा' जो उनके जीवन की सबसे चर्चित फ़िल्मों में से एक है.

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो देव साहब की दीवानगी ऐसी थी, कि उनके नाम की तूती बोलती थीं. देव साहब की नेपाल के महाराजा किंग महेन्द्र से घनिष्ठ मित्रता थी. दोस्ती ऐसी कि कभी मिलना होता, बुलाना होता तो किंग महेंद्र फोन करते देव साहब आज डिनर हम आपके साथ करेंगे. किंग महेंद्र का चार्टर्ड प्लेन मुंबई आता देव साहब सवार होते और नेपाल पहुंच जाते. यह हिन्दी सिनेमा का आदर्शकाल था. आज देव साहब, जैसे समाज के पैरोकार, निःस्वार्थ भावना से सिनेमा को गढ़ने वालों की कमी खल रही है. 

एक बार देव साहब नेपाल किंग महेन्द्र से मिलने पहुंचे, तो उनके करीबी प्रोटोकॉल अधिकारी देव साहब की पसंद के बारे में जानते थे. उन्होंने देव साहब को एक जगह के बारे में बताया. जहां, बाहर से लोग आकर पार्टीज करते हैं, नशा करते हैं. देव साहब भी उस नए माहौल को देखने के लिए उत्सुक हुए. किंग महेंद्र के करीबी प्रोटोकॉल अधिकारी देव साहब को घुमाने के लिए ले गए. वो हिप्पी कल्ट इलाक़ा था. देव साहब
घूमते हुए देख रहे थे, जहां गोरे नशा कर रहे हैं, झूम रहे हैं. उसी वक़्त उनके जर्मन दोस्त का फोन आया कि अभी अपनी एक डाक्यूमेंट्री की शूटिंग के लिए काठमांडु आया हूँ. देव साहब ने हंसकर कहा कि अभी वहीँ हूं यही नज़ारा देख रहा हूँ. इतने में ही उन्होंने देखा कि जवान लड़के-लड़कियां नशे में झूम रहे हैं. तभी उनकी नज़र एक लड़की पर पड़ी, वो देखने में फॉर्नर नहीं लग रही थी. उनके बीच एक हिन्दुस्तानी लड़की बैठी है. उन्होंने उसको उसके रूप'रंग से भांपा, लेकिन जब उस लड़की ने कहा, कि मेरा बॉब चश्मा देना...यह साठ के दशक का अंतिम साल था. यह देखते हुए सुनकर देव साहब आश्चर्यचकित हो गए. देव साहब ने उस लड़की से मिलने की इच्छा व्यक्त की, तो अधिकारियों ने कहा कि अभी मिलना उचित नहीं है. उसको आपसे मिलने के लिए बुला लेंगे. 

अगले दिन जब सुबह मिलने के लिए होटेल बुलाया गया तो, उसने बताया, कि मैं कैनेडा से भागकर आई हूँ, क्योंकि मेरे माता - पिता बहुत झगड़ते थे, मुझे रहना उचित नहीं लगा. मेरी माँ मुझ पर पाबंदियां लगाती थीं, इसलिए यहां आ गई. देव साहब पूछते हैं, तुम्हारा नाम क्या है? लड़की बताती है मेरा नाम जस्वीर है, यहां लोग मुझे जस्सी के नाम से जानते हैं. कवि हर शै में अपनी प्रेमिका को देखते हुए कविता गढ़ने लगता है, जैसे लेखक अपनी कहानी को कहीं भी गढ सकता है. एक रचनाकार में अपनी सृजनशीलता हावी रहती है. देव साहब ने भी एक कहानी सोची,जेनिस की कहानी सुनते-सुनते देव साहब को अपनी नई फिल्म की कहानी का आइडिया आने लगा और उन्होंने मन में ठान लिया कि वो जेनिस की लाइफ पर, एक हिप्पी कल्चर पर फिल्म बनाएंगे. 

"हरे राम हरे कृष्णा" फिल्म में कमोवेश वही स्थिति एवं पूरी तरह कैनेडा से भागकर आई लड़की की कहानी पर फिल्म सिल्वर स्क्रीन पर उतार दिया. देव साहब ने फिल्म बनाने की सोचकर मुंबई वापस लौट आए. देव साहब को वो सब याद आ रहा था. देव साहब जल्द ही फिर से नेपाल किंग महेंद्र के पास पहुंचे. नेपाल पहुंचकर देव साहब ने महाराजा को सब किस्सा सुनाया, कि मैं एक फिल्म बनाना चाहता हूं. महाराजा ने कहा यह तो बड़ी अच्छी बात है, कि नेपाल की वादियों में आप फिल्म बनाएंगे,इससे नेपाल को एक पहिचान मिलेगी. जो आपका विज़न है, उसकी दाद देनी चाहिए. कहते हुए किंग महेंद्र ने देव साहब के लिए चार्टर्ड प्लेन की व्यवस्था किया. आप ज़रूर फिल्म बनाएं. देव साहब स्पेशल प्लेन में सवार होकर पोखरा पहुंचे, तीन दिन पोखरा में रहते हुए पूरी स्क्रिप्ट लिख डाली. स्क्रिप्ट को पूरा रूप दे दिया. वहाँ से लौटते वक़्त स्क्रिप्ट के पन्ने प्लेन में बिखर गए, देव साहब होटेल आ गए, फिर उनको लगा देखता हूं शायद प्लेन के सफ़ाई कर्मचारियों ने स्क्रिप्ट के पन्ने फेंक तो नहीं दिए. देव साहब प्लेन में पहुंचे आख़िरकार स्क्रिप्ट मिल गई. फिर देव साहब ने अपने जीवन की सबसे चर्चित फ़िल्मों में से एक फिल्म "हरे राम हरे कृष्णा" का बतौर निर्देशक, निर्माता, ऐक्टर निर्माण कर डाला.

"हरे राम हरे कृष्णा" फिल्म का निर्माण करना आसान नहीं था, एक व्यवस्था को उलट - पलट कर रख देना था. पशुपतिनाथ मन्दिर में हिन्दुओं के अलावा दूसरे धर्म के लोगों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी. देव साहब किंग महेंद्र के कितने करीब थे, देव साहब को महाराजा महेंद्र कितना मानते थे, इसकी बानगी दिखती है.... पशुपतिनाथ मन्दिर के बाहर लगे हुए बोर्ड को ढंक दिया गया. ऐसी व्यवस्था की गई, देव साहब की मित्रता के लिए किंग महेंद्र ने एक व्यवस्था को बदल दिया. देव साहब ने कहा था कि मेरी नायिका, मुस्लिम हैं, एवं कैमरामैन भी मुस्लिम है, अंततः इनका प्रवेश होना जरूरी है, क्योंकि फिल्म बनना बहुत आवश्यक है. देव साहब की फ़िल्मों के प्रति जुनून देखने लायक बनता है, वहीँ देव साहब का तिलिस्म नेपाल के महाराजा के लिए कितना है यह भी देखा जा सकता है.फिल्म में दो मुस्लिम नायिकाओं सहित टीम में शामिल कैमरामैन के कारण अन्दर जाने की विशेष अनुमति मिली, फिल्म बनी, फिल्म यादगार रही. ज़ीनत अमान ने अपनी पहली ही फिल्म में कालजयी अभिनय किया, जो आगे चलकर आधुनिक लड़की की भूमिका उनका स्टाइल बना. दम मारो दम को कौन भूल सकता है. वो ज़ीनत अमान का झूमना यादगार है. 

फिल्म "हरे राम हरे कृष्णा" 1971 की सबसे कामयाब फिल्म थी. पूरी फिल्म नेपाल की राजधानी काठमांडू में फिल्माई गई. यह फिल्म न केवल एक टूटे हुए परिवार के विषय के साथ, बल्कि एक भाई और एक बहन के बीच के रिश्ते को बखूबी दर्शाती है. ड्रग्स और हिप्पी आंदोलन, जिसने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया. कृष्ण भक्ति के लिए चेतना का प्रसार करना रहा. फिल्म ड्रग्स के दृश्यों से शुरू होती है और बताया जाता है कि सामने नाचने वाली महिला कथाकार की बहन है. अपने माता-पिता को बहस करते हुए सुनने के लिए भाई और बहन खुशी-खुशी घर के चारों ओर खेल रहे हैं. जल्द ही उनका परिवार बिखर जाता है. भाई मां के साथ और बहन पिता के साथ जाती है. 

जैसे ही साल बीतते हैं, भाई अपनी बहन की तलाश में निकल जाता है. और उसे सूचित किया जाता है कि वह अब पिता के साथ नहीं रहती है और वह नेपाल चली गई है. यहाँ,भाई प्रशांत को न केवल प्यार मिलता है, बल्कि वह अपनी बहन जेनिस को ढूंढ भी लेता है, लेकिन उसे पता चलता है कि वह न केवल दोस्तों की गलत संगति में है, बल्कि ड्रग्स लेती है, क्योंकि वह अपने अतीत की सारी यादों को रोकना चाहती है. अपने प्यार की मदद से,भाई अपनी बहन को इस सब से दूर करने की कोशिश करता है, लेकिन उसे कई बाधाओं को दूर करना पड़ता है, जिसमें लोग उसे रोकने के लिए हर तरह के स्तर तक गिर जाते हैं. यह एक मल्टी कास्ट फिल्म है . निर्देशक और खुद निर्माता, देव साहब और जीनत अमान (उनकी पहली फिल्म), मुमताज, राजेंद्रनाथ, प्रेम चोपड़ा, इफ्तेखार, जूनियर महमूद, एके हंगल और अचला सचदेव भी हैं. सितारों से सजी फिल्म में आधुनिक ज़ीनत अमान आकर्षित करती हैं,
यह देव साहब की यादगार फिल्मों में से एक है. जिन्होंने ज्वेलथीफ, गाइड, कालापानी, सीआईडी,विशिष्ट फिल्में दीं. कहानी छोटी है (यदि आप मुझसे पूछें कि कहानी क्या है. हिप्पी संस्कृति, ड्रग्स के प्रति उनका समर्पण, स्वतंत्रता, कर्तव्य से बचना, परिवार, और कुछ भी नया अपनाना जैसे जो गोरों के लिए नया था. उन्हें पूरी तरह से दिखाया गया है. ज़ीनत ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और देव साहब हमेशा की तरह उल्लेखनीय थे. इस फिल्म में गानों का सबसे अच्छा इस्तेमाल किया गया है. एक आदर्श उदाहरण है 'देखो ओ दीवानाओ... राम का नाम बदनाम न करो' गीत का प्रत्येक शब्द दार्शनिक प्रवृति को दिखाता है. यह फिल्म का सार नहीं है. कुल मिलाकर अलग-अलग फिल्में बनाने में यकीन रखने वाले देव साहब यहां जो दिखाना चाहते थे, उसे दिखाने में सफल रहे हैं. देव साहब की सोच कितनी स्पष्ट थी,उन्होंने ने 1965 में अपने समय से दशकों पहले की फिल्म थी, उस वक़्त लोगों को ज्यादा समझ नहीं आई थी. आज के दौर में गाइड हिन्दी सिनेमा की सबसे महानतम फ़िल्मों में शुमार है. देव साहब ने तीन देवियाँ बनाई वो भी अपने समय से पहले की फिल्म है. आज तीन देवियाँ सुपरहिट कल्ट फिल्म मानी जाती है. फिल्म "हरे राम हरे कृष्णा" उस वक़्त किसी भी निर्माता के लिए घाटे का सौदा बन सकती थी. हिन्दी सिनेमा में फ़िल्में तय फार्मूले पर बनती थीं, वो फ़िल्में ही हिट होती थी. देव साहब हमेशा कहते थे, कि मैं कल्पना आधरित फ़िल्में नहीं बनाता फ़िल्मों में यथार्थ भाव होता है. यही कारण है कि दर्शकों को फिल्म पसंद आती है, कहीं न कहीं वह सब्जेक्ट मुझे समाज से ही मिलता है. मैंने कहीं न कहीं उसको महसूस किया होगा. हरे राम हरे कृष्णा फिल्म की कहानी आज घर - घर में देखी जा सकती है. सत्तर के दशक में देव साहब ने नशे से संबंधित फिल्म का निर्माण किया था. आज उसको हर कोई महसूस कर सकता है. देव साहब अति दूरदर्शी व्यक्ति थे. दो राय नहीं है. सत्तर के दशक की हिप्पी संस्कृति और सुंदर नेपाल का अनुभव करने के लिए अवश्य देखा जा सकता है. पूरी फिल्म को देखने के बाद समझा जा सकता है कि देव साहब की सिनेमाई समझ कितनी अव्वल दर्जे की रही है. हिन्दी सिनेमा में "हरे राम हरे कृष्णा" यादगार फिल्म मानी जाती है........ 

       दिलीप कुमार

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