'वो पहला प्रेम वो पहली नज़र'
वो पहला प्रेम वो पहली नज़र
एक बार मैंने सिने प्रेमियों से अपना बदला लिया था. जी हाँ ये शब्द राज कपूर साहब के ही हैं. उन्होंने फिल्म बॉबी बनाकर महान फिल्म 'मेरा नाम जोकर' की असफलता का बदला लिया था. राज कपूर साहब ने कहा था - "मैंने मेरा नाम जोकर फिल्म बनाने के लिए अपनी पूरी हस्ती लगा दिया था. यहां तक कि मैंने अपनी पत्नी के जेवर तक गिरवी रख दिया था, पूरी संपत्ति खत्म हो गई थी. जिसमें दो इंटरवल थे. बाद में फिल्म फ्लॉप हो गई, मुझे बहुत दुःख हुआ कि हमारे देश में केवल सतही फ़िल्में जो अश्लीलता से भरपूर हों वही देखते हैं. अर्थपूर्ण फ़िल्मों का भविष्य खतरे में है, इसलिए मैंने खुद को उबारने के लिए बॉबी फिल्म का निर्माण किया था". पहले लोगों को लगता था, कि राज कपूर साहब अपने बेटे को लॉन्च करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है, वो बॉबी फिल्म में सुपरस्टार राजेश खन्ना को लेना चाहते थे. उनके पास राजेश खन्ना को देने के लिए भारी रकम नहीं थीं. अंततः फिल्म में राज कपूर साहब ने अपने बेटे को लॉन्च कर दिया था. महान ऐक्टर प्राण साहब जो हमेशा लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहते थे, उस नाजुक दौर में राज कपूर साहब से सिर्फ एक रुपया लेकर फिल्म में काम करते हुए अपनी दोस्ती निभाई थी. इसका खुलासा ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा 'खुल्लमखुल्ला' 2017 में किया था.
अब तक दो फ़िल्मों में ही दो इंटरवल थे दोनों राज कपूर साहब ने बनाई थी. एक उनकी महात्वाकांक्षी फिल्म 'संगम' दूसरी 'मेरा नाम जोकर' .. संगम फिल्म ने बहुत धन अर्जित किया था, जिसकी खुशी में राज कपूर साहब ने 'मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुन्दरम, जैसी फ़िल्मों को बनाने की घोषणा की थी. भारतीय सिनेमा एक से बढ़कर एक क्लासिकल कल्ट फ़िल्मों का निर्माण किया है. अफ़सोस भारतीय सिने प्रेमियों की सतही सिनेमाई समझ के कारण हमारे देश में फ़िल्में बॉक्स ऑफिस की सफलता पर सफल मानी जाती है, और क्यों नहीं आखिरकार आखिरी कलेक्शन ही फिल्म की कहानी बताता है, भारत में अधिकांश फ़िल्मों को बहुत बाद महान फ़िल्मों का दर्जा मिला.. उनमे से एक फिल्म है 'मेरा नाम जोकर' इस फिल्म को ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब ने बनाया था, इस फिल्म में दो इंटरवल थे, फिल्म निर्माण में बहुत समय लगा, जिससे फिल्म का बजट बढ़ गया था.
‘मेरा नाम जोकर’ के न चलने से राज कपूर काफी आर्थिक दबाव में आ गए थे. ऐसा लगने लगा था कि राज कपूर नामक अध्याय खत्म हो गया है. आख़िरकार राज कपूर साहब को सबसे महान शोमैन क्यों कहा जाता है, बॉबी फिल्म उसकी बानगी है. राज कपूर साहब को यथार्थवादी सिनेमा का अग्रदूत कहा जाता है. हिन्दी सिनेमा को कल्पना से बाहर निकालकर सच्चाई, को पर्दे पर उकेरने पर उनकी मासूमियत, सादगी ऐसी थी, कि दर्शकों को अपने प्रवाह में बहा ले जाती थी. असल ज़िन्दगी की घटनाओं को पर्दे पर उतारने में राज कपूर साहब का कोई सानी नहीं था. नरगिस जी के साथ अपनी पहली मुलाकात को आजीवन भूल नहीं सके. राज कपूर साहब नरगिस जी की माँ जद्दन बाई से मिलने गए. राज कपूर साहब ने दरवाज़ा खटखटाया पकौड़े तल रहीं नरगिस जी ने घर का दरवाजा खोला, बाद में राज कपूर साहब को दरवाजे पर देखकर शर्म से लाल हो गईं, उन्होंने शर्म से अपना हाथ अपने सर पर रखा, जिससे हाथों में लगा बेसन उनके बालों में लग गया था. इस हसीन मुलाकात को राज कपूर साहब ने अपनी फिल्म बॉबी में दशकों बाद इस सीन पर उतार दिया था. कहते हैं सृजनात्मक आदमी हर स्थिति में कुछ न कुछ रचता ही रहता है, या उसका दृष्टिकोण हावी रहता है.
कहानी शुरू होती है, एक बोर्डिंग स्कूल से जहां राजा
(ऋषि कपूर) कविताएं लिख रहा है, आज उसका बोर्डिंग में आखिरी दिन है... दोराहे पर खड़ा राजा सोच रहा है, दोस्तों के साथ मस्ती में बह जाऊँ या उन माँ बाप के पास जाऊँ जहां मेरे लिए किसी के लिए समय नहीं है... ख़ैर राजा (ऋषि कपूर) के जन्मदिन पर राजा गाते हैं, "मैं शायर तो नहीं मगर ए हंसी जब से देखा मैंने तुझको मुझको शायरी आ गई". कमसिन बॉबी (डिम्पल कपाड़िया) को देखकर दोनों किशोरों का प्रेम परवान चढ़ता है.. बॉबी फिल्म किशोरावस्था के प्रेम प्रसंग पर आधारित थी. कहानी थी 18 साल के हिंदू और अमीर परिवार के बेटे राजा और उसके गरीब और कैथलिक मेड की 16 वर्षीय पोती बॉबी की है जिसमें गरीबी - अमीरी, नौकर - मालिक की खाई को पाटकर प्रेम के धरातल पर उतरी हुई फिल्म है. "हम दोनों एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए" आज भी प्रेमियों के लिए गीत पहली पसंद बना हुआ है. प्राण साहब मिस्टर नाथ के रूप में अपने अना के आगे दोनों के प्रेम को तोड़ने की कोशिश करते हैं, नतीजतन दोनों प्रेमी बगावत चुनते हैं, मर्यादा की ड्योढी पोती लांघ न जाए दादी खूब कोशिश करतीं हैं, लेकिन प्रेम किसी मर्यादा का पाबंद नहीं होता. दोनों प्रेमी नदी में कूद जाते हैं... आगे कहानी बहुत रोचक है.. समझने के लिए देखना चाहिए, कि मिस्टर नाथ (प्राण साहब) अपने बेटे के प्रेम में पिघलता है या नहीं??
विलियम शेक्सपियर प्रेम को बेहतरीन लिखते थे, जितना उन्होंने प्रेम को अपने शब्द दिये शायद ही कोई दे सका. शेक्सपियर के नॉवेल रोमियो जूलिएट की कहानी को राज कपूर साहब ने सिल्वर स्क्रीन के कैनवास पर ग्लेमर, उतार दिया था. राज कपूर साहब के ऊपर आरोप लगा था, कि उन्होंने अश्लीलता परोस दिया हैं. राज कपूर ने कहा था- "सिने प्रेमियों को जो देखना पसंद है वही दिखाया है, मेरा नाम जोकर के बाद यह सबक मिला है". दर्शकों और समीक्षकों को भी बेहद पसंद आई. बॉबी से प्रेरणा लेकर काफी फिल्मकारों ने अमीर-गरीब और धर्म के इर्द गिर्द प्रेम कहानी पिरो कर फिल्में बनाई. फिल्म का निर्देशन और निर्माण राज कपूर साहब ने किया था. ख्वाजा अहमद अब्बास ने फिल्म लिखी थी. फिल्म में ऋषि कपूर और डिंपल कपाडिया, दुर्गा खोटे, प्राण, प्रेमनाथ, फरीदा जलाल, अरुणा ईरानी और प्रेम चोपड़ा जैसे दिग्गज कलाकारों की फौज थी. फिल्म से पहले नीतू सिंह, डिम्पल एवं डिम्पल कपाड़िया दोनों का ऑडिशन लिया गया था, जिसमें कमसिन डिम्पल अव्वल आई थीं.
बॉबी फिल्म का मदहोश कर देने वाला कालजयी संगीत लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल ने दिया था, जो आज भी बेहद लोकप्रिय है. फिल्म के कुछ गीत जैसे, ‘हम तुम एक कमरे में’, ‘झूठ बोले कौवा काटे’, ‘ना मांगो सोना चांदी’ और ‘मैं शायर तो नहीं’ हर किसी की जुबान पर रहते हैं. राज कपूर साहब यथार्थवादी सिनेमा के अग्रदूत माने जाते हैं. उनकी यह फिल्म देख कर लगा कि राज साहब कितने बड़े फ़िल्मकार थे..
एक संदर्भ को ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है लेकिन उससे पूर्णतः असंतुष्ट हूं. ऋषि कपूर कहते हैं कि मैंने बेस्ट ऐक्टर के लिए अवार्ड खरीदा था, 18 साल के ऋषि कपूर जिन्होंने आजतक कोई काम नहीं किया था. छोटी सी उम्र में काम किया भी, तो पिता के प्रोडक्शन में.. बॉबी बनाते समय राज कपूर साहब के पास पैसे नहीं थे, अब सवाल यह उठता है कि ऋषि कपूर के पास इतना पैसा कहां से आ गया?? बात अगर तार्किक हो तो समझ आती है... मैं इस बात से पूर्णता असहमत हूं,... फिल्म की कहानी रोचक है.. फिल्म देखने लायक है, ख़ासकर हम जैसे कुंठित समाज के लोगों को समझना चाहिए, कि किशोरावस्था में बच्चों की मनोस्थिति क्या होती है. हम समझ ही नहीं पाते कि इस उम्र में दिमाग कितनी उलझनों से गुजरता है. हर माँ बाप को बच्चों से बात करना जरूरी है. किशोरावस्था एक कुंठित, शापित दौर होता है. बॉबी राज कपूर साहब की कालजयी कृति है...
दिलीप कुमार
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