रंगीला रे
रंगीला रे......
हर गीत के पीछे ऊसके जन्म की कहानी होती है. देव साहब की प्रेम पुजारी का गीत 'रंगीला रे' गीत के आने से पहले ही कविराज शैलेंद्र का निधन हो गया. 'प्रेम पुजारी' फिल्म के गीत लिखने की जिम्मेदारी बर्मन दादा ने शैलेन्द्र को दी थी, चूंकि शैलेन्द्र का निधन हो गया था. देव साहब एवं बर्मन दादा को एक अच्छे गीतकार की आवश्यकता थी. देव साहब अपनी दूसरी फिल्म में मसरूफ हो गए. मुंबई के तत्कालीन इन्कम टैक्स कमिश्नर' राधेश्याम जी झुनझुनवाला' जो आज के कारोबारी शेयर मार्केट के बिगबुल, वारेन बफेट के नाम से विख्यात राकेश झुनझुनवाला के पिता थे. उन्होंने उसी दौरान मुंबई में कमिश्नर ने कवि सम्मेलन का आयोजन किया, कमिश्नर राधेश्याम जी ने अपने कार्यक्रम में देवानंद साहब को आमंत्रित किया, देव साहब ने कुछ कारण बता कर मना कर दिया, फिर कमिश्नर राधेश्याम झुनझुनवाला ने देव साहब को कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया, और कहा कि आपको एक उत्तरप्रदेश के शानदार कवि गोपाल दास नीरज से मिलवाता हूं. देव साहब आख़िरकार कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. वो कार्यक्रम की शानदार यादें लेकर चले गए. एवं गोपाल दास नीरज को अपना कार्ड देकर भरोसा दिया कि, तुम्हारी कविताएं बहुत अच्छी लगीं, नवकेतन फिल्म स्टुडियो में मिलते हैं,तुम मेरे साथ काम करना.
गोपलदास नीरज शैलेंद्र का बड़ा मान करते थे, उन्हें प्रेम पुजारी फिल्म में एक गीतकार की जरूरत को समझते हुए, उन्हें देव साहब से हुई एक मुलाकात याद आई. बड़े लोगों की बड़ी बातें. क्या पता देव साहब को वह मुलाकात याद होगी भी कि नहीं, हो सकता है, नौजवान कवि का दिल रखने के लिए सुपरस्टार ने वे बातें कह दी हों, क्योंकि हौसलाअफजाई के लिए कही गईं बातेँ जरूरी थोड़ा ही है, कि देव साहब काम दे देंगे. लेकिन दिल नहीं माना गोपाल दास नीरज ने देव साहब को खत लिख दिया. नीरज ने अपना परिचय देते हुए देव साहब को वादा याद दिलाया, कि आपका एक वायदा मेरे पास उधार पड़ा है. देव साहब बहुत ही जुनून वाले इंसान थे, देव साहब ने बहुत से लोगों को काम दिया है, जल्द ही देव साहब की हेंडराइटिंग में लिखा खत नीरज को मिला. देव साहब ने लिखा नवजवान मुंबई के नव केतन फिल्म स्टुडियो में आपका स्वागत है. देव साहब ने मुंबई से आमंत्रित किया था, अब एक पल की देर करना मुनासिब नहीं था, गोपाल दास नीरज पहली गाड़ी पकड़कर बंबई रवाना हो गए .
गोपाल दास नीरज से देव साहब मिले सीधे पूछा कितने दिन के लिए आए हो. नीरज ने कहा छह दिन की छुट्टी लेकर आया हूं. देव साहब प्रेम पुजारी बना रहे थे, संगीतकार थे, एस डी बर्मन दादा लेकिन गीतकार शैलेंद्र की जगह खाली थी, देव साहब ने बर्मन दादा से कहा नीरज से गीत लिखा लीजिए, दादा ने पूछा, कौन नीरज? बहरहाल, बर्मन दादा आए. उन्होंने नीरज को पूरी सिचुएशन समझाई, कैसे एक भारतीय लड़की अपने प्रेमी को खोजते हुए विदेश पहुंचती है. वहां जाकर क्या देखती है कि जिस प्रेमी के लिए वह इतनी दूर आई है, वह किसी और की बाहों में झूल रहा है. लडकी बौराई हुई सी हाथ में शराब का प्याला लिए नाच रही है,साथ ही महान संगीतकार बर्मन दादा ने दो शर्तें लगाईं- गीत के बोल रंगीला शब्द से शुरू होंगे. दूसरी बात यह कि इसमें हल्के शब्द गुलगुल-बुलबुल,शमां-परवाना, शराब-जाम का इस्तेमाल नहीं होगा. हल्की शायरी से बचना, किसी भी नए आदमी के लिए यह सुनना कोई नई बात नहीं है.
बर्मन दादा कहकर चले गए, नीरज को गीत का बीज देते हुए देव साहब भी नीरज को गुड लक कहकर चले गए, लेकिन नीरज जागते रहे, सुबह देव साहब को को गीत सुनाया. “रंगीला रे, तेरे रंग में जो रंगा है, मेरा मन, छलिया रे, किसी जल से,न बुझेगी, ये जलन छलिया रे" देव साहब संगीत के बेहतरीन जानकर थे. हिन्दी सिनेमा में सबसे शानदार गीत देव साहब की फ़िल्मों में ही मिलते हैं. देव साहब की सफलता का राज़ शानदार संगीत को जाता है, वहीँ साए की तरह उनके साथ रहने वाले बर्मन दादा देव साहब की सफलता की कुंजी थे. देव साहब ने सुनते हुए कहा ओह नीरज क्या कहने, तुमने वो ही लिखा है, जैसा हमें चाहिए था, कविराज शैलेन्द्र की जगह लेना कोई छोटी सी बात नहीं थी, यह कहते हुए तुरंत बर्मन दादा को फोन लगाया, कहा, गीत तैयार है. सचिन देव वर्मन दादा अवाक, बोले रात भर में गीत बन गया?? उन्होंने भी गीत सुना, उन्होंने भी ओके कर दिया. बर्मन दादा का नीरज को ओके कहना नीरज ने लिए सर्टिफिकेट था, कि नीरज भी लिख लेते हैं. देव साहब ने नीरज से कहा, चलो चलें. बर्मन दादा ने पूछा- कहां देव साहब बोले अब ये कहीं नहीं जाएंगे मेरे साथ रहेंगे.
फिर नीरज बताते थे, कि कैसे महान संगीतकार बर्मन दादा उन्हें अपने यहां अक्सर खाने पर बुलाते थे, यह एक ऐसा सम्मान था, जिसके लिए बड़े-बड़े सितारे तरसते थे. गोपाल दास नीरज देव साहब को अपना गॉड फ़ादर मानते थे, वहीँ बर्मन दादा के लिए नीरज हमेशा आभार की मुद्रा में रहते थे. गोपाल दास नीरज कहते हैं कि देव साहब ने मुझे अगर काम न दिया होता तो शायद यह मुकाम न मिलता, लेकिन प्रतिभा तो अपना मुकाम ढूंढ ही लेती है, आख़िरकार देव साहब की महत्वकांक्षी फिल्म प्रेम पुजारी के गीत तैयार हो चुके थे, फिल्म तो तत्काल ऑडिएंस को समझ नहीं अंततः फिल्म फ्लॉप हो गई,कई बार महान फ़िल्में शुरू में समझ नहीं आईं,बाद में अपना मुकाम ज़रूर हासिल कर लेती हैं. गोपाल दास नीरज ने बर्मन दादा के लिए और भी मधुर और मैलोडियस गीत लिखे.... चूंकि हर गीत की अपनी कहानी होती है, प्रत्येक गीत को बनाने के लिए कई लोगों की मेहनत शामिल होती है, ऐसे ही कोई और गीत की कहानी का किस्सा फिर कभी......
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