'ब्युटी क्वीन नलिनी जयवंत' '

'ब्युटी क्वीन नलिनी जयवंत' 


हिन्दी सिनेमा की दुनिया में जितना ज्यादा ग्लैमर है. जितनी ज्यादा चमक - धमक है, उतनी ही गूढ़ है. सिनेमा में सफलता प्राप्त कर लेना कोई मुश्किल नहीं है, अगर आपके पास प्रतिभा हो. सिनेमा एक सशक्त माध्यम है, जो घर - घर कला के जरिए पहुंचा देता है. हिन्दी सिनेमा हमेशा से ही अपनी स्टाइलिश, सुंदरता के लिए कुछ खास अदाकारा याद की जाती हैं, लेकिन अगर यह बात गोल्डन एरा की हो, तो यह लिस्ट थोड़ा लम्बी हो जाती है. सिनेमा में खूबसूरती का प्रतीक मधुबाला ही रहीं हैं. फिर भी एक अदाकारा अपनी सुन्दरता के लिए याद आती हैं, नाम नलिनी जयवंत है, जिनकी खूबसूरती के चर्चे आज भी होते हैं. आज भी कालापानी फिल्म में "नज़र लागी राजा तोरे बंगले में" गीत में किशोरी बाई के रूप में तवायफ देव साहब को रिझाती नलिनी जयवंत को कौन भूल सकता है. हिन्दी सिनेमा की नायाब अदाकारा के साथ किस्मत ने ऐसे पलटी मारी कि नलिनी जयवंत एक गहरे दुःख में डूब गईं फिर निकल ही नहीं सकीं... हिन्दी सिनेमा जितना ही रंगीन है, उतना ही विचित्र है, मैं हमेशा हिन्दी सिनेमा को एक शापित दुनिया कहता हूं. गोल्डन एरा की बहुत सी यादगार फिल्मों का संस्मरण जेहन में आता है, दरअसल अभिनेत्री नलिनी जयवंत का स्मरण भी है. राज खोसला की सस्पेंस थ्रिलर फिल्म ‘कालापानी’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. अपनी सिनेमाई यात्रा के आखिरी में नलिनी जयवंत ने फिल्म नास्तिक में अमिताभ बच्चन की माँ का किरदार निभाया था. फिर सिनेमा से दूरी बना ली, अपनी एकाकी दुनिया में गुमशुदा हो गईं. जहां से प्रशंसक, सिल्वर स्क्रीन सब दूर हो जाते हैं. नलिनी जयवंत का गुम हो जाना कोई नया नहीं था. हमेशा से ही ढलती हुई उम्र गिरता हुआ स्टारडम सिनेमा सुन्दरियों को अर्श से फर्श पर ले आता है. 

नलिनी जयवंत का जन्म 18 फ़रवरी, 1926 में ब्रिटिश भारत के बम्बई शहर में हुआ था. नलिनी के पिता और अभिनेत्री शोभना समर्थ (नूतन और तनुजा की माँ) की माँ रतन बाई रिश्ते में भाई-बहन थे, इसी नाते नलिनी, शोभना समर्थ की ममेरी बहन लगती थीं. नलिनी जयवंत खूबसूरत तो थीं ही, साथ ही मशहूर अदाकारा शोभना समर्थ की बहिन होने के नाते नलिनी जयवंत ने अभिनेत्री बनने का सोचा. मुश्किल यह था कि फ़िल्मों में काम करने की इजाजत नहीं थी. नलिनी जयवंत के पिता ने समझाया फ़िल्मों में काम मत करो भविष्य बनाओ फिल्मी दुनिया बदनाम दुनिया है, इससे पूरा का पूरा कुटुंब बदनाम हो जाएगा. नलिनी जयवंत को खूब प्रताड़ना भी मिली, नलिनी जयवंत के पिता औरों की तरह ही रिवायती पिता थे. यह कोई अज़ीब बात भी नहीं है, लेकिन नलिनी जयवंत विद्रोही स्वभाव की थीं, लिहाज़ा घर छोड़ कर चली गईं. कहते हैं प्रतिभा अपना हर्जाना वसूल कर लेती है. नलिनी जयवंत को अदाकारी का सपना खरीदने के लिए अपना पैतृक घर छोड़कर चुकाना पड़ा. अतिसंवेदनशील इन्सान होने के नाते  नलिनी जयवंत के लिए लिखते हुए मेरे आंसू नहीं रुक रहे, दुःख तो यह है कि आजादी के पहले हमारा मुल्क इतना प्रोग्रेसिव नहीं था, अतः उनके पिता का सोचना इतना बड़ा कारण नहीं है. नलिनी जयवंत जैसे किसी भी लड़की का किशोरावस्था में घर छूट जाना किसी श्राप से कम नहीं है. इसी लिए कहता हूं समाज ने कभी भी ल़डकियों - महिलाओं के लिए कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी, हालाकि वो मुल्क स्वतंत्रता से पहले की बात है. 

नलिनी जयवंत ने एक शो किया था, उस शो में देखकर मशहूर फ़िल्मकार 'चिमन भाई देसाई' खासा प्रभावित हुए. अगले दिन चिमन भाई अदाकारा शोभना समर्थ से मिलने पहुंचे. उन्होंने जो देखा, जिस अदाकारा से कल खासा प्रभावित हुए थे, उन्हें वो आज शोभना के घर में मिलीं. इसे कहते हैं बिन मांगे मोती मिले. चिमन भाई ने 14 साल की नलिनी को फिल्म ऑफर कर दिया.  नलिनी जयवंत ने फ़िल्मों में पदार्पण किया. नलिनी जयवंत का चिमन भाई देसाई व महबूब खान सरीखे फिल्मकारों से मिले ब्रेक से नलिनी का कैरियर शुरु हुआ. नलिनी जयवंत की फ़िल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की ग़ायब हो गई. इसकी ख़बर तक न हुई. उस समय नलिनी जयवंत की आर्थिक स्थिति नाजुक थी. उनके पास रहने की वयवस्था नहीं थी. अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था. इसलिए ठिकाना छूट गया, अब ठिकाना छूट गया था, तो स्टार भी गुम हो गईं. गुमनाम होने का प्रमुख कारण भी यही था. इस प्रकार नलिनी जयवंत की पहली फ़िल्म थी 'राधिका', जो 1941 में रिलीज हुई. वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म के अन्य कलाकार हरीश, ज्योति, कन्हैयालाल, भुड़ो आडवानी थे. इस फ़िल्म के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत ने आवाज़ दी थी. यह बात भी बहुतेरे लोगों को शायद पता नहीं है कि नलिनी एक नायाब गायिका थीं. 

फ़िल्म 'राधिका' के बाद इसी वर्ष महबूब ख़ान की फिल्म में एक फ़िल्म  'बहन' रिलीज हुई थी. इस फ़िल्म में नलिनी के साथ प्रमुख भूमिका शेख मुख्तार थे. साथ में थीं नन्हीं-सी मीना कुमारी, जो 'बेबी मीना' के नाम से इस फ़िल्म में एक बाल कलाकार थीं. नलिनी जयवंत ने मीना कुमारी को बाल कलाकार से हिन्दी सिनेमा की मल्लिका बनते देखा है.  संगीतकार अनिल बिस्वास ने नलिनी जयवंत से चार गीत गवाए थे. इन चार गीतों में से वजाहत मिर्ज़ा का लिखा हुआ एक गीत था- 'नहीं खाते हैं भैया मेरे पान', जो बहुत लोकप्रिय हुआ.  1941 में ही फिर से वीरेन्द्र देसाई के ही निर्देशन में बनी फ़िल्म 'निर्दोष' आई, जिसमें मुकेश नायक की भूमिका में थे. फ़िल्म में मुकेश की आवाज़ में कुल तीन गीत थे, जिनमें एक सोलो गीत 'दिल ही बुझा हुआ हो तो फस्ले बहार क्या' एवं शेष दो गीत नलिनी जयवंत के साथ डुएट गीत थे. जबकि नलिनी के तीन सोलो गीत थे. अपने एक संस्मरण में नलिनी जयवंत ने कहा था कि- "मैं जब बमुश्किल छह-सात साल की थी, तभी ऑल इंडिया रेडियो पर नए-नए शुरू हुए बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेने लगी थी. इसी कार्यक्रम में हुई संगीत प्रतियोगिता में मैंने गायन के लिए प्रथम पुरस्कार जीता था. 

महान दिलीप कुमार साहब बहुत कम ही लोगों से अदाकारी के लिहाज से प्रभावित हुए हैं, लेकिन महान दिलीप साहब ने अपने साथ काम करने वाली नायिकाओं में नलिनी जयवंत को महान अदाकारा कहा था- "नलिनी जयवंत एक बेहद प्रतिभाशाली अदाकारा हैं, मुझे उनके साथ काम करने का अच्छा अनुभव रहा है, नलिनी की संवाद अदायगी उम्दा है, ख़ासकर उनकी सिनेमाई समझ बहुत उत्तम दर्जे की रही है. उनकी कैमरे के सामने उपस्थित ग़ज़ब का आत्मविश्वास होता था. हिन्दी सिनेमा तो ठीक है, नलिनी जयवंत ने खूब भी अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं किया, अगर उन्होंने खुद के साथ न्याय किया होता तो उनका नहीं एक उत्तम स्थान होता असल में जिसकी वो हकदार थीं". नलिनी जयवंत ने दिलीप कुमार के साथ ‘अनोखा प्यार’ से पहली बडी ख्याति मिली थी. इस त्रिकोणीय कहानी में दिलीप कुमार- नरगिस के साथ काम किया था. कहानी में नलिनी के किरदार को समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया था. नलिनी जयवंत बहुमुखी प्रतिभा की धनी रही हैं. नलिनी जयवंत एक अदाकार के साथ एक उम्दा गायिका भी थी. शुरूआती दिनों में अभिनय के साथ गाने गाया करती थीं. नलिनी जयवंत ने लगभग 30 गीतों को अपनी आवाज़ से नवाजा है. नलिनी जयवंत की लोकप्रियता के कारण सफलता के शीर्ष पर थीं. 

उस दौर में सुंदरता की देवी वीनस ऑफ हिन्दी सिनेमा कही जाती थीं, हर कोई मधुबाला का सुन्दरता का दीवाना था, लेकिन मधुबाला के होते हुए भी, तत्कालिक एक पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में नलिनी जयवंत को हिन्दी सिनेमा की सबसे सुंदर अदाकारा का खिताब मिला था. मधुबाला के दौर में नलिनी को लोगों ने ज्यादा सुन्दर माना. ग्रेट शो मैन राजकपूर साहब के अलावा उस दौर के बड़े - बड़े सुपरस्टार उनके साथ काम करते थे. राज कपूर साहब के साथ उन्हें काम करने का मौका नहीं मिला. अशोक कुमार, अजीत के साथ नलिनी जयवंत ने सबसे ज्यादा काम किया. देवानंद साहब, दिलीप साहब, एवं सुनील दत्त आदि के साथ काम किया. दिलीप साहब के साथ ‘शिकस्त’ एवं देवानंद साहब के क्लासिकल ‘कालापानी’ के लिए आज भी याद किया जाता है. नए - नए अदाकार सुनील दत्त की ‘रेलवे प्लेटफार्म भी उत्तम श्रेणी में आती है. फिर भी बाम्बे सिनेमा की यादगार नायिकाओं में नलिनी ना जाने क्युं अक्सर नजरअंदाज रहीं. एक समय के बाद सिनेमा क्या, कोई भी भाव नहीं देता. इसलिए इस दुनिया को नाटकीय कहता हूं. 

अशोक कुमार के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी कामयाब तो हुई, वहीं दोनों के रोमांस की चर्चा भी शुरू हो गई. अशोक कुमार ने अपने परिवार से अलग चैम्बूर के यूनियन पार्क इलाके में नलिनी जयवंत के सामने एक बंगला भी ले लिया था. जहाँ वे ज़िंदगी के आखि़री दिनों में भी बने रहे और वहीं प्राण विसर्जित किया. दोनों ने ने 1952 में 'काफिला', 'नौबहार' और 'सलोनी' फिर 1957 में 'मिस्टर एक्स' और 'शेरू' जैसी फ़िल्में कीं. दिलीप कुमार के साथ, जिन्होंने नलिनी जयवंत को 'सबसे बड़ी अदाकारा' का दर्जा दिया, उन्होंने 'अनोखा प्यार' के अलावा 'शिकस्त' 1953 और देव आनंद के साथ 'राही' 1952 'मुनीमजी' 1955 और 'काला पानी' 1958 जैसी कामयाब फ़िल्में कीं. नलिनी जयवंत ने लगभग सौ फ़िल्मों में काम किया, उनकी ज़िंदगी का सबसे यादगार समय 1949 से 1959 तक रहा.. इसी दशक में उनकी एक से बढ़कर एक फ़िल्मों में काम किया था. 1954 में आई नास्तिक नाम की फिल्म में भी नलिनी ने काम किया था.उस फिल्म में नलिनी लीड एक्ट्रेस थी जबकी इस फिल्म में नलिनी ने मां का किरदार निभाया था.अमिताभ बच्चन वाली नास्तिक के बाद नलिनी ने खुद को हमेशा के लिए एक्टिंग से दूर कर लिया.नलिनी ने कहा था कि वो फिल्म मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी.मुझे मेरी भूमिका जैसी सुनाई गई थी वैसा फिल्म में कुछ भी नहीं था.मैं इस तरह से काम नहीं कर सकती. इसिलिए मैंने खुद को फिल्मों से पूरी तरह दूर रखना ही बेहतर समझा. अब तक यह उनका दर्द झलका था, लेकिन इससे पहले उनको फिल्म में भरपूर दमदार रोल करतीं थीं उनकी मजबूत उपस्थिति होती थी. 

फ़िल्मों की शोहरत के बीच नलिनी जयवंत वीरेन्द्र देसाई ने शादी कर ली फिर उनका तलाक हो गया.. तलाक का कारण अशोक कुमार से नजदीकी रही. नलिनी अत्यंत महात्वाकांक्षी महिला थीं, अतः आगे बढ़ गईं. फिर पुनः उन्होंने अभिनेता प्रभु दयाल से शादी कर लिया था. अभिनेता प्रभु दयाल उस दौर में बड़े - बड़े अभिनेताओं के साथ काम करते हुए प्रसिद्ध हुए थे. दो-दो शादी के बावजूद भी नलिनी जयवंत माँ नहीं बन सकीं, आजीवन एकाकी रहीं. यह दुख उनके साथ हमेशा होता था. फिर हिन्दी सिनेमा से ताल्लुक खत्म हो गया.. अंधेरे के गर्त में नलिनी जयवंत दूब चुकी थीं, अब न कोई मित्र बचा था, न कोई अपना...
हिन्दी सिनेमा भी ऐसे अलग हो चुके कलाकारों के साथ नर्म नहीं रहता... शुरुआत से लेकर देहान्त के कुछ सालों तक अशोक कुमार के साथ उनकी मित्रता मिलना - जुलना चलता रहा है, लेकिन नलिनी फिर पूर्णतः खुद की दुनिया में डूब गईं. और अशोक कुमार से भी मिलना कम कर दिया.. ग़म के साये में मर-मर कर जीने वाली नलिनी जयवंत ने 20 दिसम्बर 2010 के दिन इस नाटकीय दुनिया को अलविदा कह दिया. नलिनी जयवंत का जीवन यादगार अपितु दुःखद रहा है. घोर निराशा में जीते हुए रहना, जिस सिनेमा के लिए कोई अपनी ज़िन्दगी खपा दे आखिर में अगर ऐसा होता तो हिन्दी सिनेमा वाकई विचित्र है, क्योंकि विचित्र भी इस कदर कि उनकी लाश तीन दिन तक उनके घर में सड़ती रही... वातारण में फैली बदबू के कारण टीवी पर खबर फ्लैश हुई मशहूर अदाकारा नलिनी जयवंत का देहांत हो गया.... विचित्र है, ये दुनिया नलिनी जयवंत जी आपको आपके जन्म दिन आपको मेरा सलाम..

दिलीप कुमार 

Comments

Popular posts from this blog

*ग्लूमी संडे 200 लोगों को मारने वाला गीत*

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

राम - एक युगपुरुष मर्यादापुरुषोत्तम की अनंत कथा