भारतीय सिनेमा में 'कल्ट फ़िल्मों की शुरुआत'

भारतीय सिनेमा में कल्ट फ़िल्मों की शुरुआत 

भारतीय सिनेमा को चालीस साल का लगभग वक़्त गुजर गया था, हिन्दी सिनेमा में बड़ी - बड़ी फ़िल्में बन रहीं थीं, लेकिन फिर भी एक मोती था, जो सागर की अथाह गहराईयों में था.. वो मोती था क्लासिकल कल्ट फिल्म नामक मोती जो फिल्म के साथ जुड़े हर सदस्य को अमरत्व देता है. हिन्दी सिनेमा अभी तक बहुत सारी फ़िल्मों का निर्माण कर चुका था, लेकिन उसने अभी एक एक भी क्लासिकल कल्ट फिल्म का निर्माण नहीं किया था... ऐसे में भारतीय सिनेमा में क्लासिकल कल्ट फ़िल्मों के रूप में साइलेंट मास्टर महान विमल रॉय अग्रदूत बनकर उभरे...विमल रॉय ही थे, जिन्होंने भारत एवं हिन्दी सिनेमा को पहली नायाब क्लासिकल कल्ट फिल्म से नवाजा था. 

पहला आदमी फिल्म में एक युद्घ के दृश्य को एक इंडोर स्टुडियो में ही फ़िल्माया था, यह विमल रॉय की सिनेमाई समझ, सिनेमैटोग्राफी स्किल कैमरा प्लेसमेंट आदि, का सटीक संयोजन है, जिसको आजतक तमाम निर्देशन सीख रहे बच्चों के लिए अजूबा बना हुआ है. आजादी के बाद भारत अपनी ताबीर गढ़ने में लगा हुआ था. पचास के शुरुआती दशक में बंबई, कलकत्ता, कि बड़ी - बड़ी फ़िल्म कंपनिया घाटे में चल रही थीं. अब तक का सिनेमा केवल आर्ट जन सरोकार पर टिका हुआ था. भारतीय सिनेमा समान्तर सिनेमा के साथ थियेटर, नाटक के साथ आर्थिक समन्वय स्थापित करने में सफल नहीं हो पा रहा था. कला जन सरोकार आदि तो ठीक है, लेकिन सभी के लिए आवश्यक पैसे की जरूरत होती है. न्यू थियेटर लिमिटेड, बाम्बे टॉकीज जैसे प्रमुख फिल्म कंपनिया बंद होने के कगार पर खड़ी थीं. बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी के शिखर को छूने वाले विमल दा को हिन्दी सिनेमा ने बंबई बुलाया. पहली बार बॉम्बे टॉकीज के लिए फ़िल्म माँ का निर्देशन किया. आख़िरकार फिल्म सुपर फ्लॉप हुई... विमल दा हिन्दी सिनेमा से जुड़े रहे. हिन्दी सिनेमा में सफलता के लिए एक साल का इंतज़ार करना पड़ा. विमल दादा की तिलिस्मी शख्सियत लाजवाब थी. उनके साथ बड़े - बड़े विद्वान जुड़े हुए थे. उनके साथ दिग्गजों की फौज, वो सब विमल दादा के शिष्य थे. जिसमें थे एडिटर ऋषिकेश मुखर्जी, वासु भट्टाचार्य, सलिल चौधरी, नवेंदु घोष, बाल महेंद्र, असित सेन, नाजिर हुसैन, आदि दिग्गजों के गुरु विमल दादा थे. विमल दा यूँ तो बहुत कम नपा - तुला बोलते थे, लेकिन वो अपने विद्वान शिष्यों से खूब विमर्श करते थे. यही से शुरू होता है भारत में क्लासिकल कल्ट फिल्म का सफर.... विमल दादा ने जापान के महान फ़िल्मकार रायटर, 'अकीरा कुरोसावा' की एक बहुचर्चित फिल्म 'राशोमोन' देखने के लिए हिदायत दी और कहा - " यह फिल्म आप सब देखना, लेकिन ध्यान रहे ऐसी फ़िल्में केवल देखी नहीं, अपितु सीखना भी पड़ता है, आप सभी अपनी - अपनी सिनेमैटिक समझ के लिहाज से एक समीक्षक के रूप में देखिएगा. इनको देखते हुए आप सब अपना मत प्रस्तुत करना. शाम को पूरी टीम फिल्म देखकर लौटी. विमल दादा ने पूरी टीम से कहा - "क्या आप सभी अपना - अपना मत प्रस्तुत करेंगे? ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा" ऐसी महान फिल्म हम कब बनाएंगे. ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा- दादाा 'राशोमोन' फिल्म महान फिल्म है बहुत ही दूरदर्शी अंदाज़ के साथ बनाई गई है". विमल रॉय ने कहा -" ऐसी महान फिल्म हम कब बनाएंगे? ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा" दादा आप भारतीय सिनेमा के महान शिल्पकार हैं. आपकी सिनेमाई समझ उत्तम है. 'अकीरा कुरोसावा' से आपकी तुलना करते हुए आपके कद को दायरे में नहीं समेट सकता, लेकिन आप खुद सिनेमा का पूरा का पूरा आकाश हैंं". विमल दादा ने कहा - "यह सब छोड़ो, बताओ क्या बना सकते हैं"? ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा -" क्यों नहीं ज़रूर बना सकते हैं". विमल दादा ने पूछा "स्क्रिप्ट कौन लिखेगा" ? ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा-" स्क्रिप्ट की चिंता छोड़ दीजिए मैं लिखूँगा". यही से गोल्डन एरा में नायाब मोती जुड़ना शुरू हुए. तब ही विमल दादा ने अपनी फिल्म कम्पनी विमल रॉय प्रोडक्शन कम्पनी खोली. विमल दादा हीरा पहिचानने वाले जौहरी थे. उन्होंने अपनी एवं हिन्दी सिनेमा की महानतम फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' की स्क्रिप्ट लिखने की जिम्मेदारी सलिल चौधरी की दी . सलिल चौधरी ने भी विमल दा को निराश नहीं किया. इस फिल्म के निर्माण से विमल दादा ने भारतीय सिनेमा की पहली कल्ट फिल्म 'दो बीघा ज़मीन' का निर्माण कर डाला. फ़िल्म बनाने के बाद एक मानक तैयार हो गयाा, कि हिन्दी सिनेमा में कल्ट फिल्म का सबसे ऊंचा आसमान 'दो बीघा ज़मीन' जितना होता है. शंभू के किरदार की वेदना, दुःख पलायन का दंश हर मन को अंदर तक छू गया. बलराज साहनी के अभिनय को धरातल पर उतार लाने वाले विमल दादा ही थे. इस फिल्म से प्रेरित होकर महान गुरुदत्त साहब ने फिल्म 'प्यासा' का निर्माण किया. महान सत्यजीत रे ने' पाथेर पांचाली' का निर्माण किया. विमल दादा की इस फिल्म ने भारत सहित पूरी दुनिया में अवॉर्ड जीतने की सारी सीमाएं लांघ दीं. हिन्दी सिनेमा में समानान्तर सिनेमा के प्रणेता विमल दादा सूर्य की भांति चमकने लगे थे. भगवान बुद्ध पर बनाई गई उनकी डाक्यूमेंट्री भी विश्व प्रसिद्ध हुई. हिन्दी सिनेमा एक तरफ बेहतरीन संगीत से सुसज्जित आजादी के बाद गरीबी, बेरोजगारी पर फ़िल्में बना रहा था, वहीँ महान विमल दादा साहित्य एवं पीछे छूट गए सरोकार एवं स्त्री नायकत्व को पर्दे पर समेट कर फ़िल्मों का निर्माण करते हुए अपनी फ़िल्मों को 'लार्जर देन लाइफ' की शक़्ल दे रहे थे. स्त्री नायकत्व का सुनहरा दौर जो हिन्दी सिनेमा ने विमल दादा के द्वारा देखा पुनः वो दौर कभी लौट नहीं सका. आज भी स्त्री नायकत्व के लिए अभिनेत्रियों को विमल दादा की फ़िल्में देखकर उसकी महत्ता को समझने के लिए पूरा सिलेबस मानी जाती है. 
विमल दादा को फिल्म निर्देशन का विद्यालय कहा जाता है. ऑस्कर, भारतरत्न पुरूस्कार से सम्मानित फ़िल्मकार महान सत्यजीत रे विमल दादा को अपने गुरु समान दर्जा देते थे. जिन्होंने विमल दादा की महान कल्ट फिल्म 'दो बीघा ज़मीन' को देखकर उससे प्रेरित होकर एक क्लासिकल कल्ट फिल्म पाथेर पांचाली का निर्माण किया. महान सत्यजीत रे ने विमल दादा की शख्सियत के लिए जिन शब्दों से नवाजा वो ये थे--

                          " दादा ने अपनी पहली फिल्म से ही परंपरागत फिल्मी के मकड़जाल को साफ़ कर दिया था, जिनका अवार्ड जीतने में कोई सानी नहीं था .भारतीय सिनेमा में दादा का नाम सबसे पहले लिया जाएगा. विमल दादा की सिनेमाई समझ का ही परिणाम है कि हम जैसे फ़िल्मकार अस्तित्त्व में आए. पूरी दुनिया में सिनेमाई शख्सियत जो पूरे विश्व में भारतीय सिनेमा की पहिचान थे. उनके लिए महान सत्यजीत रे ने इन शब्दों से नवाजा था, इससे समझा जा सकता है, कि विमल दादा का ऑरा कितना बड़ा था. विमल दादा की बात करें तो सबसे ज्यादा जेहन में आती है. "दो बीघा ज़मीन" यह एक ऐसी वाहिद फिल्म थी, जिसे उस समय वेनिस, मेलबोर्न, रूस, कांस, कार्लोवी वेरी, चाइना आदि फिल्म फेस्टिवल में अलग - अलग पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया.
दो बीघा ज़मीन को देखकर ग्रेट शोमैन राज कपूर साहब ने कहा था, 'दो बीघा ज़मीन' जैसी महान कल्ट फिल्म शायद ही कोई दुनिया में दोबारा बना सके. जब भी कभी सदियों, या युगों बाद, भारतीय सिनेमा की सबसे महानतम फ़िल्मों का जिक्र होगा, तब सबसे पहले पायदान पर 'दो बीघा ज़मीन' का नाम होगा. यह फिल्म विमल दादा की महान शख्सियत की गवाही देती रहेगी".क्लासिकल कल्ट फिल्मी सफर के पहले अग्रदूतों में शुमार विमल रॉय जिनकी महानता के लिए कहा जाता है. Vimal Roy the man who speak in film's.  मैं आज भी इस उम्मीद में हूँ कि सिनेमा में उनके योगदान के लिए क्या उनको ऑस्कर, नॉवेल पुरूस्कार देने की क्या कोई गुंजाइश है क्या अगर है तो देर नहीं होना चाहिए. यूँ तो विमल दादा किसी भी सम्मान के से बड़े हैं, लेकिन फिर भी भारत सरकार उनको भारतरत्न से नवाजे तो यह भारत के द्वारा उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता सिद्ध होगी. आज ही दिन 8 जनवरी सन 1966 में मेरे ही नहीं पूरी दुनिया के सबसे महानतम फ़िल्मकार विमल दादा बहुत जल्दी इस फानी दुनिया से रुखसत कर गए,और छोड़ गए अपने पीछे साहित्य, कला फ़िल्मों इस संसार जिसका न आदि न अंत.

दिलीप कुमार

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