नदियों के मायका मध्यप्रदेश में नदियों की दुर्दशा

नदियों के मायका मध्यप्रदेश में नदियों की दुर्दशा


मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है l एमपी अपने सुन्दर वनों, प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर देश के मध्य में स्थित अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण देश के हृदय प्रदेश के रूप में जाना जाता है l मध्यप्रदेश न तो उत्तर भारत का हिस्सा है और न ही दक्षिण का हिस्सा है, मध्यप्रदेश को हिन्दुस्तान की धड़कन कहा जाता है l पूरे देश की संस्कृति को अपने आप में समेटे मध्यप्रदेश भारत की संस्कृति का नायाब प्रदेश है l
एमपी में रेत माफियाओं का डेरा

एमपी एक ऐसा राज्य है जहां कुल मिलाकर 207 नदियां बहती हैं। यहां ऐसी कई नदियां हैं, जो देश में पानी के पीने, और किसानों के लिए पानी की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं l मध्य प्रदेश ही एक ऐसा प्रदेस है, जहां छोटे से लेकर बड़ी नदियां बहती हैं। यही वजह है, इस राज्य को नदियों का मायका कहते हैं। मध्यप्रदेश को रिवर स्टेट भी कहा जाता है l मध्यप्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, हालांकि सबसे बड़े राज्य राजस्थान में रेगिस्तान ही ज़्यादा है लेकिन एमपी में सुन्दर, घने जंगल एमपी की सबसे बड़ी पूंजी हैं l एमपी की सरकार ने एमपी के आदिवासियों एवं यहां के जंगलों की देखरेख अन्य राज्यों की तुलना में ठीक ही किया है l या यूं कहें एमपी के आदिवासियों ने एमपी के जंगलों प्राकृतिक सौंदर्य को बखूबी संरक्षित किया हुआ है l
हालाँकि आदिवासी चाहकर भी नदियों का संरक्षण नहीं कर पा रहे l मध्य प्रदेश में प्रदूषण के कारण कई नदियां प्रदूषित हो गई हैं। कुछ बड़ी नदियां जैसे नर्मदा, क्षिप्रा, बेतवा, चंबल और कान्हा नदी भी प्रदूषण की वजह से प्रदूषित हो गई हैं। एमपी की कुछ प्रमुख नदियां जो लुप्त होने की कगार पर हैं, उनमें द्वार, पारम, सरारी, कदवाल और दौनी शामिल हैं। इस कारण से एमपी के करोड़ों लोग पीने के पानी की कमी से जूझ रहे हैं, पूरे एमपी में उत्खनन अभी चल रहा है, लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र में उत्खनन इतनी तेजी से हो रहा है कि वहाँ नदियां तो सूख ही रही हैं साथ ही जलस्तर भी काफ़ी नीचे पहुंच गया है l बुंदेलखंड में रेत माफियाओं का बोलबाला ऐसा है कि कानून की धज्जियां सरेआम उड़ाई जाती हैं l

आइए एमपी की प्रमुख नदियों की वास्तविक स्थिति से परिचय कराते हैं

*नर्मदा* नदी देश की प्रमुख नदियों में से एक है, ये नदी लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। नर्मदा नदी तीन राज्यों में बहती है, जिनमें सबसे ज़्यादा मध्य प्रदेश में बहती है l गुजरात और महाराष्ट्र के इलाकों को भी स्पर्श करती है l नर्मदा नदी जीवन भी कहलाती है। नर्मदा नदी का उद्गम अमरकंटक से होता है, जो खंभात की खाड़ी में जाकर गिरती है। नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1312 किमी है, जो करीबन 1022 किमी एमपी में बहती l नर्मदा नदी अब सबसे ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है, 16 बड़े शहरों से गुजरने के कारण हर शहर के सीवरेज का पानी इसमें कहीं न कहीं से पहुंच रहा है l साफ़ करने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये नाकाफी साबित हो रहे हैं l अब राज्य सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की तर्ज पर नमामि देवी नर्मदे प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, इसके तहत 1042 करोड़ की लागत से नर्मदा नदी के संरक्षण, प्रदूषण निवारण और परिक्रमा पथ के लिए कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव है l नर्मदा ही ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है, और हर वर्ष हजारों श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा करते हैं l बावजूद इस नदी को प्रदूषण से बचाने के गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं l  हम नदियों को माँ की तरह मानते हैं लेकिन माता जैसी नदियों के नाम पर सिर्फ़ वोट कमाते हैं, करते कुछ नहीं हैं l भले ही नदियों को नदियों की तरह ही मानिए माँ भले ही न माने लेकिन उसे स्वच्छ रखना हम सभी की साझी जिम्मेदारी है l विदेशी लोग नदियों को नदियों की तरह ही मानते हैं लेकिन स्वच्छता निर्मलता का ध्यान रखते हैं, हम संस्कृति का दम्भ करने वाले उनसे भी कहीं पीछे हैं l


*बेतवा* मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में आती है, जो रायसेन जिले के कुमरा गांव से भी निकलती है। ये नदी यूपी के हमीरपुर में यमुना नदी में मिल जाती है। बेतवा नदी की कुल लंबाई करीबन 480 किमी है, जिसमें से 380 किमी का सफर मध्य प्रदेश में तय हो जाता है। बेतवा नदी की सहायक नदियां बीना, केन, धसान, सिंध, देनवा जैसी नदियां हैं l इसे मध्य प्रदेश की गंगा भी कहते हैं । बेतवा नदी का धार्मिक महत्व भी है l इसके पास भगवान राम की चरण पादुका मौजूद हैं l एक समय वो था जब बेतवा नदी के पानी से आचमन और स्नान करने मात्र से कुष्ठ रोग और चर्म रोग ठीक हो जाते थे l लेकिन इसी बेतवा में स्नान करने वालों को अब गंभीर रोग होने की आशंका है l बेतवा नदी को बुंदेलखंड की गंगा कहा जाता है l पर्यावरण रिपोर्ट के अनुसार बेतवा देश की 38 सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है l इसमें केमिकल ऑक्सीजन डिमांड 250 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से भी अधिक है l मंत्रालय ने माना है कि पानी में प्रदूषण का वह स्तर है, जिसे सीवेज ट्रीटमेंट में भेजे जाने की जरूरत हैl 

*चंबल* नदी देश की बड़ी नदियों में से एक है, जो इंदौर के महू के भादकला वाटरफॉल से भी निकलती है। अगर हम बात करें, चंबल नदी की लंबाई की तो ये करीबन 1024 किमी का सफर तय करती है l कथाओं के अनुसार, कहते हैं कि चंबल नदी का पौराणिक नाम चर्मणवती था। ये नदी करीबन 965 किमी का सफर तय करती है और इटावा के पास यमुना नदी में मिल जाती है। मध्य प्रदेश में चंबल नदी 325 किमी का सफर तय करती है। चंबल नदी भी प्रदूषित हो चुकी है l कई शहरों में सीवरेज के अलावा नागदा में उद्योगों से निकलने वाले पानी से यह नदी प्रदूषित हो रही है l इसके लिए पानी की सैंपल रिपोर्ट पेश की गई जिसमें पानी में लैड, मरक्यूरी और एल्यूमिनियम जैसे कई तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ी हुई मिली है l चंबल नदी में प्रदूषण के कारण घड़ियाल समेत सभी जलीय वन्यजीवों की जान पर खतरा मंडरा 
रहा है l इसका मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल भी 
पहुंच चुका है l

*ताप्ती* नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई से बहती
 है l ताप्ती सूरत के खम्भात में जाकर मिल जाती है। कुल लंबाई 724 किमी है, जो मध्य प्रदेश में 279 कमी का सफर तय करती है। ताप्ती नदी मध्‍यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक जाती है। वहीं ताप्ती नदी मध्‍यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीच सीमा की तरह काम करती है। *माही* नदी पश्चिमी भारत की प्रमुख नदियों में आती है। ये नदी एक ऐसी अकेली नदी है, जो कर्क रेखा को पार करती है। ये नदी मध्य प्रदेश के धार जिले मिन्डा ग्राम से बहती है, जो झाबुआ और रतलाम जिलों से होकर राजस्थान में हबकर खंभात की खाड़ी में गिरती है। कुल लंबाई करीबन 576 किमी है।

*कैसे सम्पन्न होगा उज्जैन महाकुंभ*

हिंदू धर्म की सबसे पवित्र नदियों में *क्षिप्रा* नदी की गिनती होती है l इसका धार्मिक और पौराणिक महत्व बहुत ज्यादा है l ब्रह्मपुराण में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है l यह नदी धार जिले से निकलती है और 195 किमी लंबी है l इस नदी को हिंदुओं द्वारा गंगा जैसे पवित्र नदी की संज्ञा दी जाती है l इसी कारण इसे मोक्षदायिनी भी कहा जाता है l इस नदी के पूर्वी तट पर उज्जैन शहर बसा हुआ है l इस स्थान पर हर 12 साल में सिंहस्थ मेले का आयोजन किया जाता है l कुछ सालो बाद क्षिप्रा नदी उज्जैन में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाएगा, लेकिन नदी इतनी प्रदूषित है कि नहाने लायक भी नहीं है, कई विशेषज्ञ तो कहते हैं कि क्षिप्रा सूख गई है l अभी संतों ने क्षिप्रा सफाई अभियान के तहत प्रदर्शन किया था, सफाई हुई तो नहीं है, जब कुम्भ आएगा तब तक सरकार तत्परता दिखाएगी l ऐसे नदियां साफ - स्वच्छ नहीं होतीं l 

नदियों के संरक्षण में मध्यप्रदेश फिसड्डी होता जा रहा है l एमपी में सरकारें बदलती रहीं हैं लेकिन एक मुद्दा कभी सुलझ नहीं पाया l पिछले 15 वर्षों में लोकसभा, विधानसभा और शहरी निकाय चुनावों में नर्मदा, क्षिप्रा तथा बेतवा जैसी प्रमुख नदियों की सफाई एक निरंतर मुद्दा उछाला जाता रहा 
है l मध्यप्रदेश में रेत माफियाओं का खौफ कायम होता जा रहा है l एमपी में छोटी - 2 नदियां रेत खनन के कारण निरंतर पानी की कमी से जूझती जा रही हैं l नदियाँ प्रदूषण से तो सिकुड़ ही रहीं हैं साथ ही रेत माफियाओं के द्वारा माता के समान पूजनीय नदियाँ लूटी जा रहीं हैं, जिस तरह से एमपी में रेत माफियाओं का डेरा डला हुआ है एकदिन सारी की सारी नदियां ख़त्म हो जाएंगी l 

मध्य प्रदेश की प्रमुख और जीवनदायिनी नदियों में प्रदूषण बेहिसाब बढ़ता जा रहा है l प्रदूषण इस हद तक बढ़ रहा है कि नदियां छटपटा रही हैं और यदि यही हाल रहा तो इन नदियों का अस्तित्व समाप्त होते देर नहीं लगेगी l इन नदियों में इतने गंदे नाले डाले जा रहे हैं कि इनकी सफाई पूर्णतः हो नहीं पाएगी l इन नदियों में ऑक्सीजन भी निरंतर कम होता चला जा रहा है l इसका असर जलीय जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है l जीवनदायिनी नर्मदा नदी देश की बड़ी नदियों में प्रदूषण के मामले में 6वें नबंर गिनी जाती है l क्षिप्रा नदी का हाल तो इससे भी ज्यादा खराब है l यदि कहा जाए कि अब इन नदियों का दम घुट रहा है तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं है l ये ऐसी नदियां हैं जिनका पानी पीना तो दूर नहाने लायक नहीं बचा l एमपी में सैकड़ों नदियों का उद्गम होता है l इनमें से 40 से ज्यादा ऐसी नदियां हैं, जिनका अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है, और लगभग 20 नदियां ऐसी हैं जिनका पानी नहाने लायक भी नहीं रह गया l इनमें से 5 ऐसी बड़ी और प्रमुख नदियां शामिल हैं. अगर लोगों ने इन नदियों को प्रदूषित करना नहीं छोड़ा तो तय मानिए कि वह दिन दूर नहीं जब ये विलुप्त हो जाएंगी और एमपी के लोग पानी के लिए तरसेगें l आने वाली पीढ़ियां इन्हें किताबों में ही पढ़ पाएंगी l 

मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के सीमा क्षेत्र में बहने वाली कान्ह नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है l पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण अब नदी का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा l इंदौर संभाग में नर्मदा सहित 12 नदियों के सर्वे की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है l यह नदी सांवेर से उज्जैन की ओर जाती है l इसी बीच के ग्रामीण नदी के पानी बिना फिल्टर पीते हैं इससे कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं l बताया जाता है कि कान्ह नदी की सफाई को लेकर पिछले 15 साल में कई प्रोजेक्ट तैयार किए गए और इन सालों में 1157 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है लेकिन नतीजा कोई खास नहीं निकला यानि प्रदूषण जस का तस बना हुआ है l जीव-जंतु दम तोड़ रहे हैं l केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि नदियों के संरक्षण पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन हालात नहीं बदल रहे, यह चिंताजनक है l ऐसे में लोगों को अब और ज्यादा जागरुक होने की जरूरत है l राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) वर्ष 1995 में शुरू की गई एक केंद्रीय योजना है जिसका उद्देश्य नदियों के प्रदूषण को रोकना है। इसके बाद भी प्रदूषण रुका तो नहीं अपितु बढ़ा है l राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) के तहत नदी संरक्षण के कार्यक्रम क्रियान्वित किये तो जा रहे हैं लेकिन ज़मीन पर कुछ दिखता नहीं है l





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