रीजनल पार्टियों की बैसाखी कब तक बनी रहेगी काँग्रेस



क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखी कब तक बनी रहेगी काँग्रेस 


कांग्रेस अधिवेशन 2025 गुजरात के अहमदाबाद में शुरू हो गया है l कांग्रेस का अधिवेशन हर साल होता है, बड़े से बड़े नेता इकट्ठा होते हैं पार्टी करते हैं चले जाते हैं l केवल अधिवेशन से कुछ नहीं होगा आज मैं जो बात बोलने जा रहा हूं वह हो सकता है कांग्रेस के नेताओं को हजम ना हो l हालांकि सच तो बोलना होगा l सच्चाई यही है कि हर बार अधिवेशन होता है l तमाम तरह के सुझाव निकलते हैं, मंथन होता है लेकिन जमीन पर कुछ दिखाई नहीं देता l कांग्रेस बार-बार एक ही तरह की गलती दोहराती है, एक ही तरह के मुद्दे लेकिन सीख क्या लेती है? अमल क्या करती है ज़मीन में कहीं दिखाई नहीं देता l 


राहुल गांधी बार-बार भाजपा को संविधान विरोधी बोलते हुए आरोप लगाते हैं और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे उठाते हैं l 
लेकिन कांग्रेस पार्टी और विपक्ष चुनाव लड़ने के लिए राजी हो जाते हैं l राहुल गांधी और कांग्रेस हमेशा कहते हैं कि सदन में हमें बोलने नहीं दिया जाता अगर बोलने नहीं दिया जाता तो आप सब सामूहिक इस्तीफा क्यों नहीं देते! अगर आप सामूहिक इस्तीफा देंगे तो सत्ता के चेहरे पर से नकाब उतर जाएगा l विपक्ष हमेशा ईवीएम का मुद्दा उठाती है लेकिन जब हार जाती है तब जब कर्नाटक, हिमाचल जैसे राज्य कांग्रेस जीत जाती है तब चुप हो जाती है l दर-असल यही कमी दिखती है कि कांग्रेस कहती कुछ हे करती कुछ है l एकतरफ़ा आप ईवीएम का विरोध क्यों नहीं करते? 

राहुल गांधी हमेशा कहते हैं कि हम जमीन से बदलाव करेंगे पार्टी को खड़ा करेंगे l कांग्रेस पार्टी में ट्विटर चलाने वाले और सोशल मीडिया पर आवाज उठाने वाले नेताओं का जमावड़ा है लेकिन ज़मीन पर उतर कर काम करने वालों की भारी कमी 
है l कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन लड़के ने बिल्कुल सही कहा है - "हम मुस्लिम, दलितो में उलझे रहे और हमारा जो हमारा कोर वोटर ओबीसी हमेशा हमारे साथ रहा है, वह हमसे छटक गया है l यह सच है जिसकी तरफ ओबीसी वोट होगा उसकी सत्ता होगी तो केवल अधिवेशन से सत्ता में वापसी कांग्रेस कर पाएगी ये वास्तविकता से विपरीत है l कांग्रेस की तुलना में भाजपा का थिंकटैंक बहुत ही सुदृढ़ है l भाजपा एक चुनाव के बाद अगले चुनाव की रणनीति में लग जाती है जबकि कांग्रेस सबसे ज़्यादा यहीं पिछड़ती है l कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन जैसे भाजपा लगभग लगभग राज्य में हर महीने में एक बार कर लेती है उनका अपने कार्यकर्ताओं के साथ संवाद अच्छा है l क्योंकि चुनावी मैनेजमेंट में उनका आजकल कोई सानी नहीं है l देखिए नैतिकता एक अलग चीज होती है वह सब ठीक है लेकिन चुनाव जीतना जमीन पर लड़ते हुए दिखाई देना वह एक अलग बात होती है l उदाहरण के तौर पर मल्लिकार्जुन खडगे ने एक ज़रूरी बात कही है कि कांग्रेस को राज्यों में अपने दम पर अपना संगठन खड़ा करना चाहिए l रीजनल पार्टियों की पिछलगू बनकर कांग्रेस का जनाधार  खत्म ही हो रहा है , साथ ही जो छोटा से छोटा कार्यकर्ता है जो अपनी पार्टी को जीता है, जब पार्टी बड़े से बड़े राज्यों में अपनी दम पर चुनाव ही नहीं लड़ती यही कारण है कि उनका मनोबल गिर जाता है l किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसके कार्यकर्ता होते हैं l 

उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस का जो कोर वोटर था जो कार्यकर्ता थे, वे अन्य पार्टियों में शिफ्ट हो चले हैं l देश में जितनी भी रीजनल पार्टियों है सारी की सारी कांग्रेस के असंतोष के कारण पैदा हुई थीं और आज यही पार्टियां मोदी के दामन से बचने के लिए कांग्रेस पार्टी का सहारा लेकर कांग्रेस पार्टी के वोटबैंक को ही हथिया गईं l 

बिहार में देखिए तेजस्वी को इतने मौके मिले लेकिन नीतीश और भाजपा को रोक पाने में नाकाम हैं l कांग्रेस राजद के पीछे चलती आई है, जिससे अपना कोर वोटर भी कांग्रेस ने खो दिया है l कांग्रेस के लिए यह मुफीद समय है  जब कन्हैया की तरह हर राज्य में युवा नेताओं को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दे l कन्हैया ने यात्रा शुरू की है यही समय है जब कांग्रेस अपना संवाद जनता के साथ करे l उत्तरप्रदेश, बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत बनाए l छोटे से छोटे कार्यकर्ता को खड़ा करे जब तक आप कार्यकर्ताओं में  आत्मसम्मान पैदा नहीं करेंगे तब तक कार्यकर्ताओं में पार्टी को जीने का जोश नहीं आएगा l कांग्रेस के लिए वापसी का रास्ता यहीं से तय होगा, शॉर्टकट से कांग्रेस की वापसी संभव नहीं हैl 


केवल अधिवेशन में बैठकर फोटो खिंचवाने से कुछ नहीं होता, सबसे पहले रीजनल पार्टियों का पिछलगू बना छोड़े अपने
जनाधार को खोजकर अपने नेताओ को खड़ा करें, देर सवेर ही सही पार्टी खड़ी हो जाएगी l  मध्यप्रदेश, राजस्थान छत्तीसगढ़, हरियाणा जैसे राज्यों में कांग्रेस भले ही सत्ता में नहीं है लेकि मजबूत स्थिति में है l रीजनल पार्टियों के चक्कर में महाराष्ट्र में  कांग्रेस सिंगल डिजिट में आ गई है, सारे के सारे राज्यों में कांग्रेस की सहयोगी पार्टियाँ अपने राज्यों में मजबूत हैं लेकिन कांग्रेस खोखली हो गई है, यही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है l 


दिलीप कुमार पाठक 
लेखक पत्रकार
मो :  9755810517

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