तू कहाँ ये बता
तू कहाँ ये बता
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कोई मेन स्ट्रीम ऐक्टर कितना भी बड़ा ऐक्टर है ग़र उसने ज़िन्दगी में एक कॉमेडी फ़िल्म नहीं की तब तक उसे सम्पूर्ण ऐक्टर नहीं कहा जा सकता ! क्योंकि ऐक्टिंग में सबसे मुश्क़िल होता है कॉमेडी करना.. देव साहब, दिलीप साहब, बच्चन साहब, धरम जी, ग्रेट संजीव कुमार जी, किशोर कुमार, सुनील दत्त, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, नाना पाटेकर, अनिल कपूर, मिथुन, गोविंदा, संजय दत्त, आमिर, शाहरुख, अक्षय आदि मेन स्ट्रीम नायक अपने दौर में बड़े इसलिए ही माने गए हैं क्योंकि उन्होंने सफल कॉमेडी फ़िल्में की हैं. गोल्डी आनन्द लिखित, निर्देशित देव साहब अभिनीत ऐसी ही एक कॉमिक, रोमांटिक फ़िल्म "तेरे घर के सामने" की बात कर रहा हूं. जो देव साहब को सम्पूर्ण ऐक्टर बनाती है.
'तेरे घर के सामने' कॉमिक रोमांटिक फ़िल्म हैं, यूँ तो देव साहब रोमांस, कॉमेडी, व्यंगात्मक, थ्रिलर, संजीदगी आदि अभिनय शैली में माहिर थे. वहीँ नूतन उनके बिल्कुल उलट थीं. नूतन अभिनय के लिहाज से संजीदगी, यथार्थ , सशक्त अभिनय शैली में उनका कोई सानी नहीं था, नूतन एक सशक्त अभिनेत्री थीं, उनको कभी भी अपनी फ़िल्मों में हीरो की आवश्यकता नहीं पड़ती थीं, नूतन अपने आप में एक मुक्कमल नायिका थीं. उन्होंने अधिकांश खुद पर केंद्रित फ़िल्मों में काम किया, और सफल हुईं. उस दौर में मीना कुमारी, नूतन ये दो ऐसे नाम थे, जिनको कभी भी हीरो की आवश्यकता नहीं हुई.
देव साहब की मूल शैली रोमांटिक है, वहीँ नूतन सशक्त हिरोइन फिर भी देव साहब एवं नूतन की केमिस्ट्री देखने लायक होती है. बात - बात पर नखरे करती नूतन और ऐसे ही उनको मनाते देवानंद फिल्म देखते ही बनती है. रोमांटिक भूमिकाओं में देव साहब का आज भी कोई सानी नहीं है. वैसे भी उनसे अच्छा रोमांस कोई कर ही नहीं सकता. 'तेरे घर के सामने' फिल्म में नूतन जितनी बार रूठती हैं उतनी बार देव साहब मनाते हैं यह देखते हुए सबसे ज्यादा मज़ा आता है. देव साहब कहते थे - "मैं अगर नूतन के साथ रोमांस कर सकता हूं, तो मैं मान सकता हूँ रोमांस कर लेता हूं. वहीँ नूतन भी देव साहब के लिए कहती थीं -" देव साहब ऐसे नायक हैं कि उनका चेहरा देखकर गुस्सा गायब हो जाता है. देव साहब पर सिर्फ़ आता है तो प्यार... मधुबाला, वहीदा, सुरैया किसी के भी साथ देव साहब की केमेस्ट्री देखकर मजा आता है. फिर भी मुझसे जितनी बार बोल जाए कि देव साहब को पर्दे पर सबसे ज्यादा किसके साथ देखना पसंद करोगे तो मैं हर बार नूतन का नाम नाम लूँगा. देव साहब के पीछे - पीछे घूमती नायिकाएं हमेशा दिखती हैं लेकिन इसमें नूतन को मनाते देव साहब कमाल लगते हैं.
कभी - कभार सोचता हूं बर्मन दादा न होते तो देव साहब की फ़िल्मों का संगीत कैसा होता? ऐसे ही बर्मन दादा ने संगीत के ज़रिए जादू किया है, वहीँ हसरत जयपुरी लिखित गीत नायाब हैं. गोल्डी आनन्द निर्देशित फ़िल्मों में हम गोल्डी की छाप स्पष्ट देख सकते हैं, गोल्डी कभी भी गीतों के फिल्मांकन से गिरफ्त नहीं छोड़ते गाने फिल्मांकन में गोल्डी से बेहतरीन निर्देशक हुआ ही नहीं है, यही कारण है कि देव साहब के सफ़लता की कुंजी बन गए थे. टैक्सी ड्राइवर, "तेरे घर के सामने" दोनों फ़िल्में गोल्डी ने स्कूल टाइम में ही लिख डाली थीं. इससे समझ सकते हैं कि गोल्डी नाम ही काफ़ी था.
'दिल का भंवर', 'तेरे घर के सामने', "देखो रूठा ना करो, ये रफी साहब के जीवन के सबसे प्रमुख गीतों में से एक होंगे, लेकिन 'तू कहाँ ये बता' दिल्ली से खोजते हुए देव साहब शिमला में जब नूतन को खोज लेते हैं, तब दोनों की अदाएं देखते ही बनती हैं . ये गीत रोते हुए व्यक्ति को हँसा सकता है. दूसरी ऐसी कोई फ़िल्म नहीं हैं, जहां नूतन जी ने इस तरह रोमांस जिया हो. नूतन सशक्त नायिका रहीं हैं लेकिन इस फ़िल्म ने उन्हें बहुत ऊंचा फलक दिया है.
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