*भारत रत्न से वंचित सिनेमा की महान विभूतियाँ*

*दिलीप कुमार पाठक*
*लेखक /पत्रकार /फ़िल्म समीक्षक* 
*नई दिल्ली मो :9755810517*

*भारत रत्न से वंचित सिनेमा की महान विभूतियाँ*
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हिन्दी सिनेमा को विश्व पटल पर भारत की संस्कृति के ब्रांड एंबेसडर के रूप में देखा जाता है. जबकि हमारे देश में सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है. सिनेमा आज़ादी के पहले से आज़ादी की उपयोगिता समझाता एवं भारत के क्रांतिकारियों की आवाज़ को फ़िल्मों के ज़रिए लोगों तक पहुंचाता रहा है. जबकि आज़ादी के बाद आज़ाद भारत को एक विकसित राष्ट्र की चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हमारे हिन्दी सिनेमा में बहुतेरे फ़िल्मकारों, गीतकारों, संगीतकारों, नायक - नायिकाओं ने अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया. हिन्दी सिनेमा के हमारे कई उस्तादों को ग्लोबल सुपरस्टार के रूप में पूरी दुनिया जानती है, जिनकी भूमिका दुनिया में भारत के ब्रांड एंबेसडर के रूप में रही है, अफ़सोस कला के क्षेत्र में सर्वोत्तम काम करने के लिए भारत रत्न का विधान है लेकिन हमारे नायकों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लायक समझा ही नहीं गया. जानना चाहिए कि भारत रत्न सम्मान के मायने क्या हैं! एक सच्चाई यह भी है, हमारे देश में सर्वोच्च नागरिक सम्मान को जातिगत आधार पर नेताओ के लिए हमारी राजनीतिक पार्टियों ने सीमित कर रखा है, या फिर राजनीतिक समझौतों पर बांटे जाते हैं. एक दौर में जब हिन्दी सिनेमा शुरुआत में अपने घुटनों के बल चलते हुए रवानी पर पहुंच रहा था, तब उस दौर के क्लासिकल सिनेमा, संगीत की बात ही और है. हालांकि जब सिनेमा के क्लासिकल संगीत को साहित्य जगत ने कुंठित होकर जब उसे स्वीकार नहीं किया तो हिन्दी सिनेमा का पूर्णतः व्यापारीकरण हो गया, और धीरे-धीरे सिनेमा अपनी गुणवत्ता खोता चला जा रहा है. 

खुद से पूछना चाहिए हम ऐसे कितने साहित्यकारों को जानते हैं जिनका सिनेमा में अविस्मरणीय योगदान है लेकिन उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया. आज़ादी के पहले से कविराज शैलेन्द्र समाज़ को विकसित चेतना अलख जाग्रति करते रहे, बाद में सिनेमा के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया आज की पीढ़ी से पूछा जाए कि कविराज शैलेन्द्र कौन हैं तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, अधिकांश गूगल करने लगेंगे. ऐसे कितने संगीतकारों, को भारतरत्न से सम्मानित किया गया है?? दशकों हिन्दी सिनेमा के ज़रिए अपना संगीत लोगों तक पहुँचाने वाले संगीत सम्राट 'नौशाद अली साहब', 'बर्मन दादा' , 'मदनमोहन जी' जैसे संगीतकारों को आजतक सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लायक ही नहीं समझा गया. जब आप भारतरत्न से सम्मानित व्यक्तियों की लिस्ट देखेंगे तो आपको ऐसे कोई साहित्यकार, गीतकार, संगीतकार नहीं दिखेंगे कोई होंगे तो अपवाद स्वरुप.... यही कारण है कि हमारे देश में संगीत /सिनेमा के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है. 

कहावत है कि आप कितना बड़ा योगदान सिनेमा, साहित्य, संगीत, में दीजिए आपको सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया जाता. यही कारण है हमारे देश में नेता बनने की सोच रखने वाले बच्चे हर गली मुहल्ले में मिल जाएंगे... देश का बच्चा - बच्चा जानता है कि देश की चाबी नेताओ के हाथ होती है. हमारे देश में ज्यादातर नेताओं पर इनवेस्ट किया जाता है तो देश में भरपूर मात्रा में नेता तैयार होते हैं. हमारे देश में पढ़ने, लिखने, गीत -, संगीत, सिनेमा का कल्चर यूं लगता है जैसे नेपथ्य की ओर है. 

दुनिया भर के लोग कहते हैं भारत में 'राम' , 'कृष्ण' , 'सिनेमा' 'संगीत' , 'गंगा', 'बुद्ध' , 'महावीर', 'गांधी' हैं.. तब समझ आता है भारत का संगीत भारत के मूल में है. हमारा क्लासिकल संगीत भारत की आत्मा में बसता है. 'पण्डित भीमसेन जोशी' , 'पण्डित रविशंकर प्रसाद', 'बिस्मिल्ला खान' , 'भूपेन हजारिका' जैसे संगीत के उस्तादों को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है, ये अच्छी बात है. महान गायिका स्वर कोकिला 'लता मंगेशकर' को भी भारत रत्न से सम्मानित किया गया है, ये भी अच्छी बात है, लेकिन स्वर कोकिला 'लता मंगेशकर' से सीनियर 'शहंशाह ए तरन्नुम' खुदा की आवाज़ महान गायक 'मुहम्मद रफ़ी' साहब को आजतक भारतरत्न से सम्मानित नहीं किया गया. जबकि 'रफी साहब' के नाम से दुनिया भर के अनेक विश्वविद्यालयों में थीसिस लिखे जा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर कई बड़े संस्थानों में पढ़ाया जाता है. जिन रफी साहब ने देश के लिए विभिन्न राग, भजन, कव्वाली, ग़ज़ल, सबकुछ गाया. बच्चे, बुजुर्ग, भिकारी, पुजारी, सैनिक, लेखक कवि, राजा, रंक, ईश्वर, हर किसी की आवाज़ बने.. जिन्होंने देश के सैनिकों के लिए सैकड़ों गाने गाए. उन्हें आजतक सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया, नागरिक सम्मान तो बड़ी बात है आजतक दादा साहेब फाल्के पुरूस्कार से भी सम्मानित नहीं किया गया. जबकि उनकी जूनियर लता मंगेशकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया है तो ये बात हजम नहीं होती ! अब तो रफी साहब के चाहने वालों की व्यथा ये है कि इतने आंदोलन, अनशन करने के बाद भी सम्मानित नहीं किया गया तो अब सम्मानित भी किया जाए तो क्या फर्क़ पड़ता है. जब हम रफी साहब जैसे ग्लोबल सुपरस्टार का सम्मान नहीं करेंगे तो हमारे देश के संगीत में गिरावट ही आएगी, बढ़ोत्तरी का तो सवाल ही नहीं उठता.  

सिनेमा समाज का दर्पण होता है, ग़र हमारा सिनेमा नहीं होता तो कोई दो राय नहीं भारत की जीवन-शैली कुछ और होती. हमारे तीन दिग्गज कलाकारों ने हिन्दी सिनेमा के ज़रिए दुनिया भर के कोने - कोने में भारत की संस्कृति को पहुँचाया. एक समय 'ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब' के कारण रूस भारत के बहुत करीब आया ये बात कही जाती हैै. देखा जाए तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं है. 'राजकपूर साहब' पहले ऐसे भारतीय कलाकार हैं, जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को वैश्विक स्तर पर पहिचान दिलाई. आज दशकों बाद भी रूस सहित कई मुल्कों मेंं राजकपूर साहब के फैन्स उनके गीत गाते हुए मिल जाएंगे...प्रधानमंत्री 'पण्डित नेहरू जी' ने कहा था- "रूस सहित दुनिया भर के मुल्कों में बहुत से लोग राजकपूर को जानते हैं, और वे वहाँ खासे लोकप्रिय हैंं". रुस के साथ घनिष्टता में ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब के गीतों ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है. भारत सरकार ने राजकपूर साहब को पद्म सम्मान दिए लेकिन आजतक सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया.. ये बताता है कि हम अपने नायकों का सम्मान करना नहीं जानते ! अब तक के सिनेमा, साहित्य, समाज का अध्ययन करने वाले लोग बताते हैं, कि अभिनेता 'दिलीप कुमार' का भारतीय जीवन शैली को आगे बढ़ाने संस्कृति के साथ खान, पान, पहनावा आदि को बढावा दिया. दिलीप कुमार से कई पीढ़ियां प्रभावित रही हैं. कहते हैं कि दिलीप साहब के सिनेमा काल में उनके प्रभाव से कोई आम आदमी भी बच नहीं पाया. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने तो दिलीप कुमार को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया, लेकिन अपने मुल्क में इस सम्मान के लायक नहीं समझा गया बिडम्बना है. 

भारतीय सिनेमा में प्राकृतवाद सिनेमा के अग्रदूत जिन्होंने देश, दुनिया की कई पीढ़ियों को सिनेमा के साथ जोड़ा. 'देवानंद साहब' भारतीय सिनेमा के ऐसे स्तम्भ रहे हैं जिन्होंने भारत के सिनेमा की सबसे ज्यादा कई दशकों तक सेवा की, हमारे देश में अधिकांश लोग अवसाद में रहने के आदि हों उस मुल्क के लोगों को जिन्होंने जिंदादिल रहना सिखाया. जिनकी दीवानगी यूरोप , अमेरिका, ब्रिटेन, सहित पूरी दुनिया में रही है. एक समय बर्मिंघम पैलेस से लेकर, नेपाल, म्यांमार, अमेरिका, यूरोप तक तूती बोलती थी, भारत सरकार ने देवानंद साहब को पद्म सम्मान, सहित दादा साहेब फाल्के पुरूस्कार से सम्मानित ज़रूर किया, लेकिन उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान लायन नहीं समझा गया. जो कभी नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, ब्रिटेन, अमेरिका में भारत के एक ध्वजवाहक के रूप में देखे गए हैं. 

महान 'विमल रॉय' एक ऐसे फ़िल्मकार रहे हैं जिन्हें भारत की रूढ़िवादी सोच के जाले साफ़ करने वाला फ़िल्मकार माना जाता है. जिन्होंने कृषि प्रधान मुल्क को 'दो बीघा ज़मीन' जैसी कल्ट फिल्म बनाकर देश को बताया कि कल्ट फिल्म कैसे बनाते हैं. जिनसे कई पीढ़ियां प्रेरित रहीं.' गुरुदत्त साहब', 'राज कपूर साहब' , 'हृषीकेश मुखर्जी', 'सत्यजीत रे', आदि जिन्हें अपने गुरु का दर्जा देते थे. क्लासिकल कल्ट फिल्मी सफर के पहले अग्रदूत के रूप में प्रचलित रहे हैं. 'विमल रॉय' जिनकी महानता के लिए कहा जाता है. Vimal Roy the man who speak in film's....' श्याम बेनेगल' जैसे उस्ताद जिन्होंने भारत के आम लोगों की ज़िन्दगी को अपने समानांतर सिनेमा में लेकर आए जिन्होंने समझाया कि किन-किन क्षेत्रों में सहयोग काम करने की आवश्यकता है. उन्हें आजतक इस सम्मान लायक नहीं समझा गया.. जबकि देश के ऐसे ही एक हीरो महान 'सत्यजीत रे' को जब ऑस्कर मिला तब उसके अगले दिन उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जबकि हमारे सिने प्रेमियों को पता भी नहीं होगा कि 'सत्यजीत रे', महान 'विमल रॉय' के शिष्य थे. 

जब हम 'देवानंद साहब' , 'दिलीप कुमार ' , 'राज कपूर' , 'मुहम्मद रफ़ी' , 'विमल रॉय',' नौशाद अली', 'बर्मन दादा', जैसे विश्व नायकों का सम्मान नहीं कर सकते तो देश में कला को लेकर एक उदासीनता का भाव होना लाजिमी है. जब अमेरिका के दो - दो राष्ट्रपति भारत आकर हिन्दी फ़िल्मों के डायलॉग बोलते हुए खुद को भारत के नजदीक लाने की कोशिश करते दिखते हैं, जब ब्रिटेन/फ्रांस/अरब आदि के मुल्कों में हमारे सिनेमा के नायकों को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाता है तब भी हमारे हुक्मरानों की आंखे नहीं खुलती. हालांकि तब समझ आता है, हमारा सिनेमा दुनिया भर में भारत के एम्बेसडर के रूप में काम करता है. हमें अपने मुल्क के नायकों का सम्मान करना अमेरिका, यूरोप से सीखना चाहिए. सोचिए हमारे देश में सम्मान प्राप्त करने के लिए किसी भी नायक के फैन्स आंदोलन करते हैं, तब भी सरकारें नहीं ध्यान देतीं. जो काफ़ी निराशाजनक है. सिनेमा /संगीत /साहित्य की दशा देख कर अंदाजा लगा सकते हैं. हम खुद अपने नायकों का सम्मान नहीं करते और रोते रहते हैं कि हमारे देश को नोबेल पुरस्कार, ऑस्कर, नहीं मिलते. मुझे एक बात समझ आती है, जिनका घर में सम्मान नहीं होता तो मुहल्ले वाले, रिश्तेदार भी सम्मान नहीं करते. यही बात हमारे नायकों पर फिट बैठती है. अगर हमें अपने सिनेमा में नायक पैदा करने हैं, तो उनके लिए प्रेरणा स्त्रोत भी पैदा करने होंगे, और वो केवल और केवल प्रोत्साहन से किया जा सकता है. केवल कहने से नहीं होता कि ये सब भारतरत्न से भी बड़े नायक है.. सम्मान किया जाए तो वो दिखना और महसूस होना चाहिए. जिससे पीढ़ियां भी प्रेरित होती हैं.

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