युवाओं को धार्मिक उन्माद के अंधकार से बचाना होगा
युवाओं को धार्मिक उन्माद के अंधकार से बचाना होगा
अतीत रहने के लिए नहीं बल्कि सीखने के लिए होता है, चाहे कोई देश, समाज, व्यक्ति कोई भी हो ग़र वो अतीत में रहेगा तो जाहिर है कभी भी बेहतर भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता l
बीते कुछ सालों से हमारे शांतिपूर्ण देश में मस्जिदों में मंदिर ढूढ़ने के खूब सर्वे हो रहे हैं l ये भी मुमकिन है कि अतीत में मंदिरों की जगह मस्जिदों का निमार्ण हुआ हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता, जब धार्मिक उन्माद चरम पर होता है तो सत्ता में बने रहने के लिए सत्ताधीश धर्म की आड़ लेकर कुर्सी के पाए मज़बूत करते हैं । हालांकि हमारे देश का उद्देश्य कभी भी धार्मिक उन्मादी देश बनना नहीं रहा। ये और भी चिन्ताजनक है कि अब मस्जिदों में भगवान ढूंढने का ट्रेंड चल पड़ा है l महान दार्शनिक 'लियो टॉल्स्टॉय' ने कहा था कि "किसी भी देश को बर्बाद करना हो तो वहां के लोगों को धर्म के नाम पर आपस में लड़ा दो, देश अपने आप बर्बाद हो जाएगा।
आजकल हमारे देश में धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है, जिसको कहीं से भी सही नहीं कहा जा सकता।
एक पीढ़ी का काम होता है, एक बेहतर समाज की कल्पना जिससे आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ और बेहतर समाज दिया जाए जहां धार्मिक सौहार्दपूर्ण वातावरण हो, जहां आपसी भाईचारा हो, आपस में प्रेम हो शांति हो l देखा जाए तो हमारे देश की तासीर हमेशा शांतिपूर्ण रही है l कभी भी हमारा समाज उन्मादी नहीं रहा हैl हमारे देश की तासीर हमेशा सौहार्दपूर्ण रही हैl हालांकि आजकल सनातन धर्म की आड़ लेकर मॉब लिंचिंग की खबरें आती रहती हैं, कहीं किसी बच्चे से नारे लगवा कर मार दिया जाता है। कहीं किसी को नारे न लगाने के कारण मार दिया जाता है । ऐसी तरह-तरह की खबरें आती रहती है जो बेहद चिंताजनक है l किसी भी समाज के लिए यह सबसे खराब बातें होती है l सनातन ख़तरे है, टाइप, टाइप धार्मिक नारे लगाकर आम बच्चों को बरगलाने का ट्रेंड चल रहा है l सनातन खत्म नहीं हो सकता, सनातन को बचाने की बजाय लोगों को खुद का मूल्यांकन करना चाहिए, कि सनातन कभी खत्म नहीं होगा सनातन को कोई खत्म भी नहीं कर सकता l क्या कोई सनातन को खत्म कर सकता है? बिल्कुल नहीं ये सिर्फ़ यह सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नारे हैं l सनातन है और रहेगा l कोई भी खत्म नहीं कर सकताl
आम लोगों की समझ इतनी नहीं होती कि वे इन राजनीतिक गूढ़ बातों को समझ पाएं l नेताओं के कुचक्र में फंसकर युवाओं को भ्रमित किया जा रहा है, नेताओ को पता होता है अगर बच्चे पढ़ेंगे, लिखेंगे तो जन अधिकार की समझ नागरिक अधिकार का बोध इनमें आ जाएगा अतः इन्हें रोजगार देना पड़ेगा. और अगर रोजगार नहीं दिया गया उनकी मूलभूत सुविधाओं को पूरा नहीं किया गया तो ये युवा आंदोलित हो जाएंगे और आंदोलन युवा किसी भी सत्ता के लिए ठीक नहीं होते l सत्ता हमेशा इस बात का ख्याल रखती है कि हमारे देश के युवा कभी भी सत्ता के विरुद्ध ना जाएं l राजनीतिक कुचक्र है युवाओं को धर्मांधता के जाल में फंसा कर उनके जन - अधिकारों को और उनकी बुनियादी सुविधाओं को न देकर उनको फंसाएं रखा जाए l परिणामस्वरुप न पढ़ेंगे, न लिखेंगे न रोज़गार मांगेगे...बड़ी बिडम्बना है दरअसल होना चाहिए कि आम लोगों को धार्मिक लड़ाई की जगह बच्चों को पढ़ाने - लिखाने की जद्दोजहद करना चाहिए l अपने बच्चों के बेहतर कल के बारे में सोचना चाहिए l मस्जिदों में भगवान ढूढ़ने की बजाय बेहतर जीवन की कल्पना करनी चाहिए l रोजगार के अवसर तलाशने चाहिए l धर्म की रक्षा कोई इंसान नहीं कर सकता l हालांकि यह बेहद चिंताजनक है कि इस देश के अधिकांश परिपक्व लोग भी धर्मांता की लड़ाई लड़ रहे हैं।
देखा जाए तो आस्था बेहद निजी होती है l इसको मन के भीतर रखना चाहिए, इसे सड़कों पर लेकर नहीं आना चाहिए l जर्मन दार्शनिक 'फ्रेडरिक नीत्शेने' कहा था कि धर्म जब दिमाग में चढ़ जाता है तो नशा बन जाता है l आज दार्शनिक की बात बिल्कुल सच साबित हो रही है l आज हमारे मुल्क में अधिकांश यही चल रहा है अपने मुल्क में युवाओं को इस धारा में बहते हुए देखकर तकलीफ़ होती है l क्या हमने ऐसे समाज़ की कल्पना की थी?
ज्ञानवापी, संभल से लेकर बदायूं तक के मुद्दे कोर्ट में उठाए जाने को लेकर लगातार विवाद गहरा रहा है l इस मामले में अखिलेश यादव का बड़ा बयान सामने आया है। समाजवादी पार्टी पार्टी अध्यक्ष ने कहा है कि अगर आप खोदोगे तो एक दिन देश का सौहार्द खो दोगे। अखिलेश यादव एक राजनेता हैं लेकिन उनके सवाल एवं उनका रोष वाज़िब लगता है l केवल धार्मिक उन्माद ही नहीं सामाजिक तौर पर और राजनीतिक तौर पर अगर इसका मूल्यांकन करें तो भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में अब तक का सबसे खराब दौर है। अगर हमारी राजनीतिक पार्टियाँ और हमारा समाज इसी धरे पर चला रहा तो एक दिन हम सब कुछ खो देंगे l हमने जिन लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की थी हमने जो सामाजिक सौहार्द्र कायम किया था l हमने जो अपने इतिहास से अपने अतीत से इतना सब कुछ सीखा था वह सब कुछ व्यर्थ ही रह जाएगा और हमारा देश धर्मान्ध हो चलेगा इससे पहले की सब कुछ हाथ से निकल जाए लोगों की चेतना जागृत होनी चाहिए की धार्मिक
लड़ाइयां किसी भी स्वस्थ समाज के लिए खतरनाक होती हैं l हमें बचाना है आने वाली पीढ़ी को जिससे हम एक बेहतर विकसित स्वस्थ समाज की स्थापना कर सके यह हम सब की साझी नैतिक जिम्मेदारी है।
दिलीप कुमार पाठक
लेखक /पत्रकार नई दिल्ली
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