सभ्य इश्क़बाज देव साहब
सभ्य इश्क़बाज देव साहब
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वहीदा रहमान जी एवं देवानंद साहब की जोड़ी साथ क्या खूब ज़मी. सिल्वर स्क्रीन पर दोनों करिश्माई जोड़ी के रूप में याद आते हैं. वहीदा जी एवं देवानंद साहब का एक - दूसरे के प्रति निजी जीवन भी बेहद सम्मानित रहा. वहीदा रहमान एक साक्षात्कार में कहती हैं-
"महान देवानंद साहब हिन्दी सिनेमा के शुरुआती अग्रदूतों में से एक थे. देव साहब जिस तरह से चलते थे, बात करते थे, और अपनी फिल्मों में अभिनय करते थे, प्रशंसक उन महान अभिनेता की जिंदादिली के दीवाने थे. उस समय, उनकी जिस तरह की फैन फॉलोइंग थी, वह न केवल प्रतिष्ठित थी, बल्कि असाधारण भी थी. देव साहब शानदार इंसान थे. देव साहब एवं अन्य स्पर्श में बहुत अन्तर था. वे बहुत ही शालीनता के साथ पेश आते थे. 1965 में 'गाइड' की शूटिंग के दौरान, 'आज फिर जीने की तमन्ना है' गाने से पहले एक शॉट था, जिसे वहीदा जी ने याद किया और कहा, "आज फिर जीने की तमन्ना है", गाने से ठीक पहले एक और दृश्य था, जिसे एक सड़क पर शूट किया गया था. उदयपुर की सड़क के दृश्य में मैं राजू से कह रही हूं, "घुंघरू बंधो!" देव साहब ने बाद में मुझसे कहा, “मुझे सार्वजनिक रूप से सीन शूट करने में अजीब लगा, लेकिन तुम इतनी बिंदास थीं, कि पूरा सीन आसानी से हो गया मैंने कहा अगर मैं इतना परेशान करती तो बहुत सारे रीटेक की जरूरत होती. मैंने बस यह विश्वास करते हुए स्विच ऑन और ऑफ किया कि बस हम दोनों ही थे. ”
देवानंद साहब की उनके सज्जनतापूर्ण व्यवहार की प्रशंसा करते हुए, वहीदा रहमान ने कहा, “जब भी वे 'नंदा' , 'साधना', 'मधुबाला' , 'मीना कुमारी' , 'नूतन' , 'वैजयंती माला' , 'सुचित्रा सेन' , 'माला सिन्हा' , 'आशा पारेख' मुझसे एवं अपनी नायिकाओं से मिलते थे, तो देव साहब प्यार से हमारे कंधे पर हाथ रखते थे, बेझिझक मिलते थे, लेकिन हम लड़कियों ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उनके पास इतना साफ-सुथरा वाईब था. वहीँ अगर दूसरे ऐसा करते, तो हम पीछे हट जाते. दूसरे नायक टिप्पणी करते थे , “अरे वाह, देव साहब पर आपको कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब हम जरा भी करीब आ जाते हैं, तो आप हट जाते हो " कुछ लोगों के भद्दे वाइब्स थे. अगर वे हाथ पकड़ लेते तो हाथ नहीं छोड़ते... लेकिन देव साहब ने हम सभी को एक सुरक्षित एहसास दिया. इसलिए मैंने उन्हें हमेशा 'सभ्य इश्कबाज' कहा है... देव साहब हम सभी नायिकाओं से उम्र में बड़े थे लेकिन हम से कोई भी जब उन्हें देव साहब कहता तो वे बच्चों की तरह बिफर जाते बुलाने से भी नहीं बोलते, फ़िर अचानक से कहते - "Don't call me Devanand Sahab I'm not a senior . I'm a young man, just call me Dev." फ़िर हम सब को न चाहते हुए भी देव कहना पड़ता, देव साहब इतनी सहजता देते थे.
देव साहब के अलावा शायद ही कोई अदाकार हुआ या होगा जिसकी इतनी ज्यादा दीवानगी होते हुए भी कभी बहके नहीं. देव साहब जैसा सभ्य इश्क़बाज दूसरा नहीं हो सकता". ये भी तो सच है देव साहब जैसी दीवानगी आज भी किसी दूसरे अभिनेता की देखने को नहीं मिलती... देव साहब कितने प्रोग्रेसिव थे इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देव साहब आज़ादी के पहले ऐक्टर बन चुके थे... क्रमश :
दिलीप कुमार पाठक
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