महाराष्ट्र में कांग्रेस की उदारता भाजपा के लिए चिंता का विषय
महाराष्ट्र में कांग्रेस की उदारता भाजपा के लिए चिंता का विषय -------------------------------------------------------------------------
महाराष्ट्र में 288 सीटों पर 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होना है. महायुति में सीटों के बंटवारे पर सहयोगी दलों के साथ सहमति पहले ही बन चुकी है. अब महा विकास अघाड़ी की बारी है. हालाँकि महा विकास आघाडी ने 85-85-85 सीटों का फ़ार्मूला निकाला था, बांकी बची हुई सीटों पर कांग्रेस लड़ना चाहती है, लेकिन उद्धव ठाकरे कांग्रेस को पूरी सीटें देना नहीं चाहते. वक़्त कोई भी हो सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा बिल्कुल भी आसान नहीं होता. राजनीति पल - पल बदलती है, ख़ासकर राजनीति नम्बरों पर ही टिकी हुई होती है. हरियाणा की जीती हुई बाजी हारने के बाद कांग्रेस को महाराष्ट्र में बेहद कम सीटों पर संतुष्ट होना पड़ रहा है. जबकि महाराष्ट्र में भी कांग्रेस खासी मज़बूत स्थिति में है. जिस महाराष्ट्र में कभी कांग्रेस अपने दम पर सरकार चलाती थी, अब स्थिति ऐसी हो गई है कि गठबंधन के सहारे चलना कांग्रेस की मजबूरी बन गई है. पिछले कई चुनावों में शरद पवार के साथ मिलकर कांग्रेस लड़ती रही है, जबकि अब तो शरद पवार - और कांग्रेस के साथ उद्धव ठाकरे भी आ गए हैं. हालाँकि ज़्यादा मजबूत सहयोगियों के साथ अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित करना ही पड़ता है. यही गठबंधन धर्म है जो कांग्रेस निभाती हुई दिख रही है. जो तात्कालिक हरियाणा हार की कीमत है जो महाराष्ट्र में चुकानी पड़ रही है. यही कीमत है जो हर बार कांग्रेस चुकाती है सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने क्षेत्रीय नेताओ के कारण जो खुद ही सबकुछ हासिल करना चाहते हैं.
कहाँ तो कांग्रेस हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीतकर महाराष्ट्र के महा विकास आघाडी में बड़े भाई की भूमिका चाहती थी, लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा. हरियाणा हार - जाने के बाद कांग्रेस को भाजपा से सीधी टक्कर में बेहद कमज़ोर माना जा रहा है, कांग्रेस हरियाणा में भाजपा से सीधे टक्कर में थी यही कारण है कि हरियाणा हारने के बाद कांग्रेस को निधाना बनाया गया है. यही कारण है ये भी है कि शरद पवार - संजय राउत कांग्रेस के साथ अच्छी खासी बार्गेनिंग करके फायदा उठा रहे हैं. जबकि कांग्रेस की उदारवादी सोच भाजपा के लिए चिंता का सबब बनी हुई है. हालाँकि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में लोकसभा वाला शानदार प्रदर्शन नहीं दोहरा पा रही है. हरियाणा इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां पर जीती हुई बाजी पार्टी ने गंवाई है. अगर महाराष्ट्र की बात करें तो कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 16 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 13 सीटें जीती हैं, यहां भी 11 सीटों पर उसने बीजेपी प्रत्याशी को मात दी थी. अतः अब संदेश देने का प्रयास हो रहा है कि बीजेपी को हराने में सिर्फ कांग्रेस सक्षम है. ऐसे में पार्टी को अगर फिर महाराष्ट्र में अपनी स्थिति मजबूत करनी है उसे हर कीमत पर अपने पारंपारिक वोटबैंक को मजबूत करना होगा. यानी कि पार्टी को दलित, मुस्लिम और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए भरपूर कोशिश करनी चाहिए. जिस तरह से इस बार के लोकसभा चुनाव ने मराठवाड़ा के मराठा आंदोलन ने कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाई, फिर कुछ वैसा ही कमाल पार्टी को करना पड़ेगा. स्थानीय मुद्दों को आगे लेकर चलना होगा.
महाराष्ट्र में 85 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस महाराष्ट्र में अपना सीएम नहीं बना पाएगी, अब तो यही लग रहा है. चूंकि पिछली बार कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी कि सीएम पद तो उद्धव ठाकरे को दे दिया गया था क्योंकि समय की डिमांड कुछ ऐसी ही थी. अब जाहिर है कि कांग्रेस इस बार महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में नहीं है, यही कारण है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में वैसी नहीं दिख रही जैसी कांग्रेस कभी होती थी. महाराष्ट्र में भाजपा - कांग्रेस दोनों एक दूसरे को रोकने के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं की बलि दे रहीं हैं, जहां बेहद कम सीटों वाले शिंदे को भाजपा ने सीएम बना दिया था. जबकि कांग्रेस ने अपने सिद्धांतो से समझौता करते हुए उद्धव ठाकरे को सीएम बना दिया था. देखा जाए तो हर राज्य का चुनाव दूसरे राज्यों से अलग होता है, सभी के मुद्दे अलग होते हैं. भाजपा महाराष्ट्र को हरियाणा की तरह जीतना चाहती है, जबकि महाराष्ट्र एवं हरियाणा में कुछ फर्क़ हैं जो कांग्रेस के लिए राहत की बात हैं. दरअसल कांग्रेस पार्टी हर बार आपसी खींचतान अंदरुनी कलह, गुटबाजी में अव्वल रही है, कांग्रेस में अनुशासन की भारी कमी दिखती रही है, जबकि भाजपा अपनी अंदरुनी मामलों को पहले ही निपटा लेती है. कांग्रेस की अंदरुनी कलह भाजपा के लिए हमेशा फायदे का सबब होती रही है. हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश इसके ताजा उदाहरण हैं..
हालाँकि कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में एक राहत की बात यह जरूर है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस किसी एक लोकल नेता पर निर्भर नहीं है. जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को लेकर विवाद था, हरियाणा में हुड्डा बनाम शैलजा की जंग थी. एमपी में कमलनाथ की मनमानी थी. लेकिन महाराष्ट्र में तो उसके अलग-अलग इलाकों में अलग स्थानीय नेता सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. ऐसे में महत्वकांक्षा या सत्ता की वो रस्साकशी यहां देखने को नहीं मिलने वाली. उदाहरण के लिए लातूर में अमित देशमुख, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में विजय वडेट्टीवार, भंडारा में नाना पटोले अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं, महाराष्ट्र में कांग्रेस नेताओ की अंदरुनी कलह जैसी कोई स्थिति नहीं है जबकि अभी सीएम बनने - बनाने की बात अभी दूर की बात है क्योंकि अभी महा विकास आघाडी चुनाव लड़ने पर फोकस करना चाहेगी. महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी का अपने नेताओं पर अंकुश पार्टी के लिए एक अच्छा संकेत है जबकि भाजपा के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि भाजपा के लिए जीत की राहें यहीं से बनना शुरू होती हैं.
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