*राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अमर विचार*
*राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अमर विचार*
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महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी की विराट शख्सियत पर कहा था -"करिश्माई लीडर महात्मा गांधी अपने लोगों के नेता, जिनकी सफलता तकनीकी उपकरणों और कलाबाजी पर निर्भर नहीं है, बल्कि उनके व्यक्तित्व की विश्वसनीय क्षमता पर निर्भर है. एक विजयी योद्धा जिन्होंने ताकत के इस्तेमाल से हमेशा नफरत की है. एक बुद्धिमान और विनम्र इंसान, जो बार-बार सुलझे मस्तिष्क के साथ काम करते है, जिन्होंने अपनी सारी ऊर्जा को अपने लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है, एक ऐसे इंसान जिन्होंने यूरोप की क्रूरता और निर्दयिता का साधारण मानव रहकर डटकर सामना किया है... भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था.' गौरतलब है कि अल्बर्ट आइंस्टीन एवं गांधी जी की उम्र में ज़्यादा कोई अन्तर नहीं था. अल्बर्ट आइंस्टीन और गांधी एक दूसरे के बड़े प्रशंसक थे और अक्सर दोनों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान हुआ करता था. आइंस्टीन ने एक पत्र में गांधी को "आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रोल मॉडल" कहा था. उनके बारे में लिखते हुए उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि गांधी के विचार हमारे समय के सभी राजनीतिक पुरुषों में सबसे प्रबुद्ध थे." गांधी जी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए गांधी जी अमर विचार हैं, जर्मनी, अमेरिका, यूरोप, आदि में महात्मा गांधी के बारे में खूब पढ़ाया जाता है.. जर्मनी अमेरिका, यूरोप में गांधी जी की तुलना ईसा मसीह से की गई है. वहाँ के कई लेखक गांधी जी को ईसा मसीह जैसी शख्सियत की तरह ही देखते हैं. इनमें से कई का मानना है कि गांधी धरती पर ईसा मसीह के एक अवतार के रूप में आए थे. उन्होंने सारी जिंदगी ईसा मसीह के मानवता के सिद्धांत पर ही जोर दिया था. भारत के बाद गांधी जी सबसे ज्यादा अमेरिकियों के दिलों में बसते हैं. आज भी अमेरिका में गाँधी जी के विचारों को देखा जा सकता है. एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा वर्जीनिया के एक स्कूल में पहुंचे. यहां लिली नाम की एक छात्रा ने उनसे पूछ दिया कि यदि आपको मौका मिले तो आप किस जीवित या मृत व्यक्ति के साथ डिनर करना चाहेंगे? ओबामा ने फट से जवाब दिया- "मुझे लगता है कि मैं महात्मा गांधी के साथ डिनर करना चाहूंगा. वो मेरे सच्चे हीरो हैं. लेकिन शायद ये डिनर बहुत छोटा होगा, क्योंकि गांधी ज्यादा खाते नहीं थे".दुनिया का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां गांधी जी के अमर विचार उस कोने को प्रकाशित न किए हो.
आज पूरी दुनिया नफ़रत की राह पर चल पड़ी है, जहां देखिए बारूद के ढेरों तले बचपन कुर्बान हो रहे हैं, लोग पढ़ तो रहे हैं लेकिन संयम खत्म होता जा रहा है... हालांकि गांधी जी की जन्मस्थली भारत ने कभी भी शांति का रास्ता नहीं छोड़ा.
भारत ने हमेशा शांति की बात की है, भारत ने हमेशा शांति की बात इसलिए नहीं कि है कि भारत ने युद्घ नहीं लड़े, बल्कि भारत इसलिए शांति की बात करता है कि भारत को युद्घ की विभीषिका का मर्म पता है. भारत हज़ारों युद्ध जी चुका है, भारत हज़ारों युद्धों का गवाह है. भारत ने वो खूनी तांडव देखे हैं अतः भारत का उतरदायित्व बढ़ जाता है कि वो दुनिया को शांति की कीमत समझाए. और भारत ने हमेशा से ही शांति का मार्ग अपनाया है. आज हम अपने देश में एक - दूसरे से असहमत हो सकते हैं लेकिन हमें पता है कि असहमतियों के बीच कड़वाहट नहीं होनी चाहिए. भारत ने इतिहास में असहमतियों के बीच कड़वाहट का वो दौर जिया है. दो सौ साल की लम्बी गुलामी झेलते हुए भारत के हमारे एक महान पूर्वज महात्मा गांधी जी ने शांति, अहिंसा की बात की थी. ऐसा नहीं है कि गांधी जी की एक हुंकार पर करोड़ों लोग युद्ध लड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन गांधी जी को पता था कि युद्ध केवल एक सैनिक एक नागरिक नहीं लड़ता, बल्कि युद्ध एक बेटा, बाप, भाई, पति, युद्घ लड़ता है, जिसके साथ कंधे से कंधा मिलकर माँ, पत्नी, बेटी, बहिन भी युद्ध में भाग लेती है. युद्ध की विभीषिका आने वाली पीढ़ियों को चुकाना पड़ता है. युद्ध नफ़रत से शुरू होता ज़रूर हैं लेकिन युद्घ मुहब्बत की उम्मीद पर खत्म होता है, अतः मुहब्बत का रास्ता कभी भी नहीं त्यागना चाहिए. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जब इंग्लैंड गए तो उनकी मुलाकात ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल से हुई. पिछली बातों को याद करते हुए चर्चिल ने जब उनसे पूछा - "आपने अंग्रेजों के शासन में कितने वर्ष जेल में बिताए? नेहरू का जवाब था कि 10 वर्ष.. चर्चिल ने पुन: सवाल किया -" तब तो अपने साथ किए गए व्यवहार के प्रति आप हमसे घृणा करते होंगे? पंडित नेहरू ने तपाक से उत्तर दिया - "बिल्कुल भी ऐसा नहीं है, हमने एक ऐसे नेता के नेतृत्व में काम किया है, जिसने हमें दो बातें सिखाई, एक किसी से डरो मत और दूसरा, किसी से घृणा मत करो.. हम उस समय आपसे डरते नहीं थे और आज घृणा भी नहीं करते.. दरअसल नेहरू जी ने महात्मा गांधी की बात की थी.
महात्मा गांधी अहिंसा, शांति के ऐसे दूत थे जो अपने आचरण से पूरे विश्व को शांति का मार्ग दिखाते हैं. ये सोचने की बात नहीं है कि आज गांधी जी होते तो क्या करते. बापू अहिंसा त्याग कर अधिकांश युद्घ के मार्ग पर चल पड़ी दुनिया के विरुद्ध खड़े दिखाई देते. आज गांधी जी अनशन पर बैठे हुए दुनिया को शांति की स्थापना का मार्ग बताते, लोगों को उग्रता का मार्ग छोड़कर अहिंसा के मार्ग पर चलने का आव्हान करते. क्योंकि शांति ही प्रगति पथ है. गांधी जी का सबसे प्रमुख जीवन का मंत्र अहिंसा था और वे आज भी अहिंसा के महत्व का प्रचार कर रहे होते और अहिंसा की प्रासंगिकता लोगों को समझा रहे होते. उन्होंने अपने जीवन में अग्रेजों के अत्याचार को देखा सहा और उनके शक्तिशाली होने के बाद भी उनसे निपटने के लिए अपने निजी जीवन और धार्मिक मूल्यों को लागू किया और सत्य और अहिंसा का रास्ता निकाला. अहिंसा का अर्थ हिंसा ना करना होता है, किसी की हत्या ना करना या किसी को कष्ट ना पहुंचाना होता है. व्यापक अर्थ में अहिंसा को किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वनऔर वाणी से नुकसान ना पहुंचाना और कर्म से किसी भी प्राणी की हिंसा का नहीं करना ही अहिंसा है. केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अहिंसक हो सकता है, क्योंकि उसमें चेतना होती है. अहिंसा ही समस्त शक्तियों में सबसे शक्तिशाली है. बापू कहते थे - "कमजोर नहीं बल्कि सही अर्थों में शक्तिशाली ही क्षमा कर सकता है और जो हिंसा करता है वास्तव में वह कमजोर ही है. कभी - कभार क्रोध को पानी की भांति पी जाना चाहिए. क्षमा धर्म है, क्षमा ही यज्ञ है, क्षमा ही वेद है, क्षमा ही ब्रम्ह है, क्षमा ही सत्य है, क्षमा तप है, क्षमा शक्तिशाली का बल है. अतः क्षमा का मार्ग कभी नहीं त्यागना चाहिए. भारत को दो सदी से अधिक समय तक गुलाम बनाकर रखने वाला ब्रिटेन अपनी संसद में गाँधी जी की प्रतिमा बनाकर... अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव करता है, गांधी जी के अहिंसा के मार्ग पर चलने की कसमे खाता है, यही गांधी जी की सबसे बड़ी ताकत है. गांधी जी ने पूरे विश्व में जो इज्ज़त प्राप्त की उसके पीछे उनके अपने विचार उनकी साधना थी..
गाँधी जी ने रामराज्य की कल्पना की थी, जो आज भी ख्वाबों से बाहर कभी मुक्कमल नहीं हो सका है. आज न्याय लोगों से दूर होता जा रहा है. अत्याचार बढ़ रहा है. गाँधी जी के लिए आजाद मुल्क की परिभाषा ही अलग थी, वो झंडा फहराने के बाद प्रसाद वितरण को आज़ादी नहीं मानते थे, गांधी जी ने कहा था जब तक हम किसी भी तरह की अनैतिक पाबन्दी झेलते हैं हम अपने आप को आजाद कैसे मान सकते हैं? आज़ादी की पूर्व संध्या जब दिल्ली दुल्हन की तरह सजी हुई थी तब गांधी जी दिल्ली की उस चकाचौंध से बहुत दूर बंगाल में एक संघर्ष रोकने के लिए शांति कायम करने के जद्दोजहद में थे.. आज इज्ज़त के लिए गरीबो के घर ढंक दिए जाते हैं.
कि कहीं गरीबो के घर रईसी की कलई न खोल दें. पण्डित नेहरू, सरदार पटेल ने गाँधी जी के पास एक पत्र भेजा कि आप राष्ट्रपिता हैं अतः आप आएं और इस आज़ादी के समारोह में शामिल होकर हमें अशीर्वाद दें, जिससे यह समारोह सफल हो सके. पत्र पढने के बाद महात्मा गांधी ने कहा.. कितनी मूर्खतापूर्ण बात है. जब बंगाल जल रहा है, हिन्दू और मुस्लिम एक-दूसरे की हत्याएं कर रहे हैं और मैं कोलकाता के अंधकार में उनकी मर्मान्तक चीखें सुन रहा हूं. तब मैं कैसे दिल में रोशनी लेकर दिल्ली जा सकता हूं. बंगाल में शांति कायम करने के लिए मुझे यहीं रहना होगा और यदि जरूरत पड़े तो सौहार्द और शांति सुनिश्चित करने के लिए अपनी जान भी देनी होगी. आजादी के दिन गांधी जी का आशीर्वाद लेने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री भी उनसे मिलने आए थे, गांधी जी ने उनसे कहा.. विनम्र बनो, सत्ता से सावधान रहो... सत्ता भ्रष्ट करती है, सत्ता में बने रहने के लिए आदमी किसी भी हद तक गुज़र जाता है. याद रखिए, आप भारत के गरीब गांवों की सेवा करने के लिए पदासीन हैं. गांधी जी समरसता, शांति, अहिंसा के पुजारी थे .. बापू बंगाल के नोआखाली में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द कायम करने के लिए गांव-गांव घूमे. उनके पास धार्मिक पुस्तकें ही थीं. उन्होंने सभी हिन्दुओं और मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की और उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्याएं नहीं करेंगे. वह हर गांव में यह देखने के लिए कुछ दिन रूकते थे कि जो वचन उन्होंने दिलाया है, उसका पालन हो रहा है या नहीं.. गांधी जी ने सभी से आव्हान किया कि आइए एक दूसरे के साथ प्रेम से रहने का संकल्प लीजिए, लेकिन कोई भी घर से नहीं निकल पा रहा था, बाद में गांधी जी ने बच्चों को बुलाया उनके साथ गेंद खेलने लगे. तब फिर से गाँधी जी ने आव्हान किया कि आप लोग बच्चों से सीख लीजिए कि कोई किसी का दुश्मन नहीं होता, महात्मा गांधी के अथक प्रयासों से बंगाल में शांति स्थापित हो गई थी.
आज गांधी जी के विचारो को पढ़ने, समझने की आवश्यकता है कि उन्होंने अपने विचारो अपनी विनम्रता से पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था.. गांधी जी के विचारो में बहुत शक्ति है. गांधी जी आज भी किसी गरीब, सताए व्यक्ति के लिए मुकम्मल न्याय की आवाज़ हैं.. ये दुनिया भले ही अपने क्रियाकलापों से बदलती रहेगी लेकिन नहीं बदलेंगे गाँधी जी के अमर विचार.. वो रहती कायनात तक पूरी दुनिया के लिए पथ प्रदर्शन का काम करेंगे. अपनी ही एक रचना से अपने महान राष्ट्रपिता को नमन करना चाहता हूं..
गांधी कोई व्यक्ति नहीं बल्कि सोई हुई रूहें जगाने की मुकम्मल आवाज़ थेे. गांधी प्रयोगवादी संत होकर कालिख से निकले फिर भी बेदाग खड़े थे.. तब ही गांधी सबसे बड़े थे. गांधी पैरोकार थे राष्ट्रउत्थान के.. बंधक आँखों में ख्वाब दिखाकर स्वाधीनता का बीज़ डालकर मंत्र अहिंसा का लेकर सबके साथ चले थे. तब ही गांधी सबसे बड़े थे
कहते हैं प्रारब्ध लिखना किसी के बस की बात नहीं है
गांधी कोई व्यक्ति थे ऐसा मुझे भी भान नहीं है
व्यक्ति जब खुद को भूल जाता है तब व्यक्ति नहीं रह जाता
आतिश विचार बन जाता है. गांधी सांसारिकता से परे थे
तब ही राष्ट्र में सबसे बड़े थे गांधी मृत रूहों में प्राण फूंकते
बंधक सांसो के अगुआकार आत्मसम्मानी तूफान पैदा कर
जनसमूह के साथ चले थे तब ही गांधी सबसे बड़े थे....
जब जब हिंसा भारी पड़ेगी मनुष्यता पर,क्षरण होगा सद्भाव का अस्तित्त्व से तब-तब गाँधी याद आएंगे, और अंकुरित होंगे
टूटे हुए मन से गांधी ही वो सुकून हैं गांधी ही वो वटवृक्ष हैं
जिसकी छाया तले महफ़ूज़ है समस्त मनुष्यता
क्योंकि गांधी उम्मीद है, ड़र चुके सहमे लोगों के लिए
जैसे ही समाज में नफ़रत फैलाएगी अपने पंख
तब महात्मा गांधी आएंगे गांधी ही तो हैं
वो खुला आसमान,जहां हिंसा, नफ़रत, भय
द्वेष, डर, कट्टरता उड़ान तो भरते हैं,अंततः विलीन हो जाते हैं,
फिर उद्गम होता है, प्रेम का जहां पक्षी चुगते हैं दाना
मानवता गीत गाती है जो अपनेपन का एहसास दिलाते हैं
उद्वेलित होते मन में गांधी आते हैं राह दिखाते हैं, स्थायित्व देते हैं कि जीत सकते हो ख़ामोशी से बड़े से बड़े निरंकुश हुक्मरानों को.. सिकंदरों का मान मर्दन करवाते हैं क्योंकि हर टूटे हुए मन को महात्मा गांधी याद आते हैं.
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