*केजरीवाल राहुल के लिए चुनौती बनने वाले हैं?*
*दिलीप कुमार पाठक*
*पत्रकार नई दिल्ली*
*केजरीवाल राहुल के लिए चुनौती बनने वाले हैं?*
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सीएम केजरीवाल को इस्तीफ़ा देना ही था, लेकिन केजरीवाल के इस्तीफ़े के पीछे उनका एक मास्टर स्ट्रोक भी है. अन्यथा केजरीवाल इस्तीफ़ा पहले ही दे देते. दरअसल केजरीवाल दिल्ली से निकलकर अब केंद्र की राजनीति में हाथ आज़माना चाहते हैं. आतिशी को दिल्ली सौंपकर आम आदमी पार्टी प्रमुख इसकी शुरुआत हरियाणा से करेगें. केजरीवाल जेल जाने के बाद लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से जनता के सामने होंगे? दरअसल हरियाणा केजरीवाल का गृह प्रदेश है, दिल्ली से सटे हरियाणा में केजरीवाल का ज़्यादा वर्चस्व नहीं है, लेकिन किसान आंदोलन, पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्होंने हरियाणा में जीतने के ख्वाब ज़रूर देखे होंगे. और बड़ी बात आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल पूरे देश में अपने लिए कैंपेन कर सकते हैं, उन्हें देश की जनता जानती है, केजरीवाल एक चर्चित, शिक्षित, राजनेता तो हैं ही साथ ही दिल्ली के स्कूल, पानी, बिजली, मोहल्ला क्लिनिक के बाद उनके पास एक विकास मॉडल भी है. केजरीवाल के पास एक दशक से ज्यादा बतौर मुख्यमंत्री का अनुभव भी साथ है. ऐसी नाज़ुक परिस्थितियों में राजनेता जनता के सामने जाकर अपनी बेगुनाही साबित करने के प्रयास करते हैं. केजरीवाल ने यह पांसा भी फेंक दिया है कि अब जनता की अदालत में जाऊँगा जनता जो कहेगी वो करूंगा, और यह भी सिद्ध है जनता की सहानुभूति मिल जाना बहुत आसान होता है.
देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी की राजनीति अब कुंद पड़ चुकी है. ख़ासकर लोकसभा चुनाव के बाद सर्मथन से सरकार चलाने वाले पीएम मोदी की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है. वहीँ महाराष्ट्र, हरियाणा चुनाव की सम्भावित असफ़लता नरेंद्र मोदी को भाजपा के अंदर भी कमज़ोर करेगी, और अब भाजपा में मोदी के बाद कौन? फ़िलहाल यह बीजेपी के लिए अंदरुनी मामला हो सकता है, लेकिन मोदी के बाद भाजपा का सत्ता में वापस आना बड़ा कठिन है. अतः अब राजनीति अपने विकल्पों को तलाश रही है. पीएम बनने के लिए किसी भी राजनेता के पास जनाधार, लोकप्रियता, के साथ प्रशासनिक अनुभव को वरीयता दी जाती है. इस लिहाज अरविन्द केजरीवाल राहुल गांधी के सामने एक बड़ी चुनौती हैं. केजरीवाल कैंपेन करने, हेडलाइंस बनाने में प्रबुद्ध हैं.
अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस के विकल्प के रूप में दिल्ली में उभरे थे, आज उनके पास जितना भी कोर वोटर है, सब के सब कांग्रेस के साथ जुड़े परंपरागत वोटर्स हैं. कांग्रेस भावनात्मक राजनीति कर रही है, वहीँ राहुल गांधी के उलट केजरीवाल मास्टर स्ट्रोक खेलने में माहिर हैं. अभी कांग्रेस केजरीवाल के साथ इंडिया सर्मथन के नाम पर विपक्षी एकता का झंडा बुलन्द किए हुए हैं, लेकिन केजरीवाल अपनी राजनीति अपने अंदाज़ से करते हैं. केजरीवाल, नरेंद्र मोदी की कट्टर हिन्दुत्व की राजनीति के सामने सॉफ्ट हिन्दुत्व की राजनीति करते हैं. राहुल गांधी सामाजिक न्याय की राजनीति के पक्षधर हैं, राहुल ने मोदी - शाह के तिलिस्म को ज़रूर तोड़ा है लेकिन राहुल गांधी के सामने केजरीवाल की चुनौती आसान नहीं होने वाली.
राहुल ठेठ राजनेता की तरह नहीं बल्कि एक जननायक बनने की दौड़ में शामिल हो गए हैं, जबकि केजरीवाल देश के नेता के रूप में अपने आप को देखना चाहते हैं. उफान के बाद कुंद हो चुकी भाजपा अब केजरीवाल को रोक नहीं पा रही, वहीँ केजरीवाल को बदनाम करने का दांव भाजपा के गले की हड्डी बन चुका है. केजरीवाल को पता होता है कब क्या करना हैं, केजरीवाल जो एक दौर में कांग्रेस के विकल्प थे जिन्होंने कांग्रेस के दो राज्य जीत लिए, जनाधार में सेंधमारी कर ली, उन्हीं केजरीवाल ने कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बनाई थी, जबकि कुछ दिनों में इस्तीफा दे दिया था, कि कांग्रेस काम नहीं करने दिया. अतः अब आप मुझे पूर्ण बहुमत दीजिए. दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को प्रचंड बहुमत दे दिया, लेकिन सोचना चाहिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन क्यों दिया था? जिन केजरीवाल ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद की थी, उन्हें ही बार-बार समर्थन देना हैरान करने वाला है. कांग्रेस के निर्णय भावनाओं के आधार पर दिखते रहे हैं. एक तरफ़ राहुल गांधी इन्डिया गठबंधन में एकता बनाए रखने के लिए आतुर हैं वहीँ आम आदमी पार्टी ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और 'आप' के एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने की फिलहाल कोई संभावना नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल राहुल गांधी और कांग्रेस पर हमला करते दिखेंगे?? या नहीं! क्योंकि दिल्ली में केजरीवाल कांग्रेस के विरुद्ध रहकर ही अपनी जमीन बचाए रख सकते हैं. भूलना नहीं चाहिए, जो नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक रूप से खत्म करना चाहते थे, जिनकी राजनीतिक पहिचान मिटाना चाहते थे, क्या अब केजरीवाल के नाम पर राहुल को रोकना चाहते हैं? फ़िलहाल राहुल गांधी के सामने हिन्दुत्व की राजनीति का उभार अब कम हो गया है, राहुल गांधी के सामने अमित शाह भी कुछ कर नहीं पा रहे राहुल अपनी जननायक की शख्सियत के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जबकि केजरीवाल ठेठ राजनेता की तरह ... एक सवाल यह भी है क्या केजरीवाल के जरिए राहुल गांधी को रोका जा सकता है? इसका जवाब तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन उसके लक्षण हरियाणा चुनाव के साथ दिखने लगे हैं, वहीँ दिल्ली चुनाव बाद खुलकर सामने आएंगे... केजरीवाल राहुल गांधी के विकल्प बनते हैं या नहीं हालांकि उसकी रूपरेखा स्पष्ट दिखाई दे रही है.
दिलीप कुमार पाठक
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