'विश्व पर्यटनो में शुमार खजुराहो अब खत्म होने के कगार पर'

'विश्व पर्यटनो में शुमार खजुराहो अब खत्म होने के कगार पर'

खजुराहो' भारत के मध्यप्रदेश प्रान्त के छत्तरपुर ज़िले में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है. यूनेस्को ने खजुराहो स्मारक समूह को 1986 से यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया है. वहीँ खजुराहो को भारत के "सात अजूबों" में से एक माना जाता है. खजुराहो का इतिहास गौरवशाली रहा है.  खजुराहो महोबा से 54 किलोमीटर दक्षिण में, छतरपुर से 45 किलोमीटर पूर्व और सतना से 105 किलोमीटर पश्‍चिम में स्‍थित है. खजुराहो वैसे एक छोटा-सा क़स्बा है, लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद, सबसे ज़्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो विश्व पर्यटन स्थल खजुराहो है....खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है. खजुराहो की अपनी पहिचान इसके अलंकृत मंदिरों एवं अपनी मूर्तियों के कारण है, जो देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं. चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन 900 से 1130 ईसवी के बीच कराया था.

दरअसल यह क्षेत्र प्राचीन काल में वत्स के नाम से, मध्य काल में जैजाक्भुक्ति नाम से तथा चौदहवीं सदी के बाद बुन्देलखन्ड के नाम से जाना गया है. खजुराहो के चन्देल वंश का उत्थान दसवीं सदी के शुरू से माना जाता है. राजधानी प्रासादों, तालाबों तथा मंदिरों से परिपूर्ण थी. स्थानीय धारणाऑं के अनुसार तक़रीबन एक हज़ार साल पहले यहां के दरियादिल व कला पारखी चंदेल राजाओं ने क़रीब 84 अद्भुत मंदिरों का निर्माण कराया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ़ 25 मंदिरों की ही खोज हो पाई है. या यूं कहें कि इतने ही बचे हैं.. यद्यपि दूसरे पुरावशेषों के प्रमाण प्राचीन टीलों तथा बिखरे वास्तुखंडों के रूप में आज भी खजुराहो तथा इसके आसपास देखे जा सकते हैं. अपने दौर में खजुराहो सत्ता के केंद्र में था, लेकिन पंद्रहवीं सदी के बाद इस इलाक़े की अहमियत ख़त्म होती गई. फ़िर भी खजुराहो अपनी एतिहासिक विरासत को लेकर ज़िन्दा रहा है.. 1986 में जब यूनेस्को ने खजुराहो को वैश्विक पर्यटन में शामिल किया तो खजुराहो को लेकर दुनिया भर में उत्सुकता बढ़ी, इससे पहले तो इस गुमनाम होते महान एतिहासिक शहर को देश के दूर - सुदूर क्षेत्रों में भी लोग नहीं जानते थे.. लेकिन जब यूनेस्को में शामिल हुआ तो उम्मीदें बढ़ गईं थीं. हालांकि भारत सरकार ने कोई खास रुचि ही नहीं रखी. भारत सरकारों ने कुछ खास किया नहीं अन्यथा खजुराहो आज विश्व के प्रमुख पर्यटनो में शुमार होता अतः खजुराहो शहर समेत पूरा बुंदेलखंड विकास की राह पर होता. कितनी बिडम्बना है आज बुंदेलखंड के पास खजुराहो जैसी वैश्विक धरोहर तो है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं नहीं है. 

कहां तो खजुराहो विश्व में एक आला मुकाम पर होना चाहिए था, लेकिन आज के दौर में खजुराहो सिकुड़ रहा है. खजुराहो विकास में भी सिकुड़ रहा है, और अपनी पहिचान के लिहाज से भी सिकुड़ रहा है...खजुराहो का चंदेलकालीन तालाब संकट में है. आने वाले दिनों पर्यटक इसे ढूंढेंगे!!! चंदेलकालीन तालाबों की खूबसूरती खत्म होती जा रही है.. बारिश के दिनों में आकर्षक नजर आने वाले इस तालाब में धीरे-धीरे ही सही अतिक्रमण के निशाने पर हैं. खजुराहो नगर में आने वाले पर्यटकों को जलभराव के साथ सौंदर्यीकरण का अहसास कराने वाले चंदेलकालीन तालाब लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं. खजुराहो में पश्चिमी मंदिर समूह के बाजू में दायीं तरफ बमीठा मार्ग स्थित शिवसागर तालाब, पश्चिमी मंदिर समूह के बाजू में बायीं ओर राजनगर मार्ग स्थित प्रेमसागर तालाब तथा पूर्वी मंदिर समूह के नजदीक पुरानी बस्ती स्थित ननोंरा (खजूर) तालाब प्रमुख हैं. तालाब के बंधानों पर हुए अतिक्रमण ने उनकी खूबसूरती पर भी गृहण लगाया हुआ है.. मध्यप्रदेश सरकार ने कई बार घोषणाएं की हैं कि अतिक्रमण हटाया जाएगा लेकिन सरकारों के पास इतना समय कहाँ होता है.. 

*खजुराहो में आपार सम्भावनाएं हैं*

ऐसा नहीं है कि खजुराहो में सम्भावनाएं नहीं है, आपार सम्भावनाएं हैं... खजुराहो के आसपास एक से बढ़कर एक प्राकृतिक सौंदर्य समेटे पर्यटन स्थल हैं..लाइट एंड साउंड शो देखने का नायाब स्थल है. इसे देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे खजुराहो घूमना सफ़ल हो गया. 

खजुराहो से लगा हुआ पन्ना नेशनल पार्क से घूमते हुए भी पांडव जल प्रपात... ज़्यादातर सैलानियों को इस जगह के बारे में मालूम नहीं है लेकिन यहां के स्थानीय लोग सुंदर वातावरण का पूरी तरह से मज़ा उठाते हैं. झरने के नाम को लेकर भी दिलचस्प इतिहास है कहते हैं महाभारत के दौर में पांच पाण्डव द्रोपदी सहित इस स्थल पर कुछ दिनों के लिए रुके थे लेकिन फिर भी इसको पर्यटन के नाम पर  विकसित नहीं किया गया जबकि हमारा देश तो वैसे भी आस्थावान है. अन्यथा खजुराहो आने वाले सैलानियों को पाण्डव जल प्रपात मोह लेता है. झरने की गहराई को लेकर भी कई किस्से सुनने में आते हैं. पौराणिक कहानियों में कहा जाता है कि पांडवों में से भीम ने पानी पीने के लिए अपनी गदा से छेद बनाया था. झरने की गहराई को अर्जुन और उसके तीरों से भी जोड़ा जाता है. ऐसा कहा जाता है स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने 4 सितंबर 1929 को इसी स्थान पर अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर एक बैठक की थी.. जिसकी याद में कुछ साल पहले, पार्किंग के पास में चंद्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा रखी गयी है ताकि यादों को संजोया जा सके. साथ ही खजुराहो के नज़दीक पन्ना नेशनल पार्क ‘ टाइगर रिज़र्व‘ के लिए जाना जाता है. यह लगभग 542.67 वर्ग किमी. में फैला हुआ है. 'पन्ना टाइगर रिजर्व' भारत का 22 वां ‘ टाइगर रिज़र्व‘ पार्क है और मध्यप्रदेश का पांचवा... यहां  अलग–अलग तरह की जनजातियां देखने को मिलती हैं. यहां बाघ, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सांभर और आलसी भालू आदि जानवर पाए जाते हैं. यहां लगभग 200 से ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियां पायीं जाती हैं.. पन्ना के पास अजयगढ़ किला भी अपनी एतिहासिकता के लिए जाना जाता है, इस किले को गहराई से देखने के लिए कई दिन बीत सकते हैं. खजुराहो, पन्ना, पाण्डव जलप्रपात, ओरछा, आदि बुंदेलखंड के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में शुमार हैं, लेकिन यहां कोई खास विकास नहीं हैं, और न ही आवागमन के सुगम साधन हैं. मध्यप्रदेश सरकार को अपने इन एतिहासिक, प्राकृतिक सौंदर्य समेटे पर्यटन स्थलों को सहेज कर रखना चाहिए.. दुनिया का अध्ययन करने से पता चलता है कि कई देशों की अर्थव्यवस्था सिर्फ़ पर्यटन से चल रही है.. वैसे भी बुंदेलखंड देश के अति पिछड़ा हुआ भाग है, जहां आपार सम्भावनाएं हैं, लेकिन कोई विकास दिखाई नहीं देता.. बुंदेलखण्ड में केन, बेतवा, चंबल जैसी विशाल नदियां हैं लेकिन पानी का  आवंटन सही नहीं है, जिससे बुंदेलखंड सूखे की मार खाता हुआ इलाका है.. पन्ना टाइगर रिजर्व, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान धरती के मनोरम स्थलों में शुमार हो सकता है अगर प्रयास किए जाएं लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति पन्ना, खजुराहो के नेताओं में नहीं है. जनता तो और भी ज़्यादा पिछड़ी हुई है. 

खजुराहो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण राजनीतिक रूप से भी पूरे देश में चर्चित रहने वाला राजनीतिक अखाड़ा है. देश की दो प्रमुख राजनीतिक  दलों की महत्वाकांक्षी सोच में झूलता रहा है, फिर भी किसी  राजनीतिक दल ने खजुराहो के लिए कुछ किया नहीं है. सरकारें बदलती रहीं हैं नहीं बदला तो खजुराहो.... खजुराहो में यातायात के साधनों में रेल, हवाई सुविधाओं का आभाव है. ऐसे में विदेशी पर्यटक खजुराहो से दूरी बना रहे हैं. खजुराहो में आकर दुनियाभर के लोग आनंद महसूस करते हैं और ऐतिहासिक धरोहरों का दीदार करते हैं, लेकिन उनके चेहरों पर पसीना तब आ जाता है जब खजुराहो आकर वह खुद को ठगा हुआ हुआ महसूस करते हैं. इस वैश्विक पर्यटन नगरी में बेहतर रेल सुविधा या अत्यधिक हवाई सेवाएं नहीं मिल पाती. वन्दे भारत ट्रेन आने के बाद देश भर में लोगों में एक उत्साह की लहर आई, लेकिन बड़े प्रयासो के बाद खजुराहो को मुश्किल से एक वन्दे भारत ट्रेन मिल पाई है.... एक मात्र दिल्ली से खजुराहो की विमान सेवा है. बड़े जतन से खजुराहो से बनारस की इंडिगो ने विमान सेवा शुरू किया था लेकिन उसके भी बंद होने से खजुराहो को एक नुकसान हुआ है. अगर रात के समय खजुराहो से दिल्ली, मुंबई  आदि शहरों में जाना हो तो आप जा नहीं पाएंगे. क्योंकि ट्रेन, हवाई सेवा या लग्जरी बसों का संचालन नहीं है. आपार सम्भावनाओं वाले एतिहासिक शहर पर्यटकों के बीच दीवानगी धीरे-धीरे दूर होती जा रही है. एक समय था जब बड़ी संख्या में यहां विदेशी मेहमान घूमने आते थे, लेकिन आवागमन की सुविधाओं के कारण वह खजुराहो कम आते हैं. वे राजस्थान की ओर रुख कर जाते हैं. पर्यटक खुद कहते हैं यहां से आने-जाने की समस्या खलती है. अब अंतराष्ट्रीय स्थल है तो फास्ट सेवाएं तो देनी पड़ेंगी.

*खजुराहो पिछड़े बुंदेलखंड को विकास की रफ़्तार देने में सक्षम*

पर्यटन से जुड़े और होटल व्यवसायी कहते हैं - "खजुराहो को एक मास्टर प्लान की जरूरत है, जिसे बनाया तो गया है पर अमल नहीं हो पाया... करीब 15 साल पहले दिल्ली, आगरा, बनारस से होते हुए काठमांडू के लिए हवाई सेवा पर्यटकों को मिलती थी, जिससे खूब पर्यटक खजुराहो आते थे. अब वो प्लेन सेवा बाद में बंद हो गई. ऐसी ही हवाई सेवा की खजुराहो से दरकार है. मेट्रो शहरों से जोड़ते हुए हवाई सेवाएं मिलेंगी तो टूरिज्म बढ़ेगा और खजुराहो में विकास भी होगा.. हमारा देश अपनी धरोहरों को सम्भालने के मामले में बहुत पीछे है, हम अपनी धरोहरें ढंग से सम्भाल नहीं पाते.. बहुत से मुल्क धनाढ्य हैं तो केवल और केवल अपने पर्यटन के कारण.... हमारी सरकारों को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना चाहिए. जैसे ही वैश्विक स्तर पर पर्यटन बढ़ता है तो देश की ग्लोबल स्तर पर विश्वसनीयता तो बढ़ती ही है, साथ ही विकास के नए आयाम बनते हैं. मध्यप्रदेश सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है कि अपने पर्यटन स्थलों को सहेजे अपितु सुविधाएं भी उपलब्ध कराए, जिससे खजुराहो, पन्ना, अजयगढ, आदि में आम लोगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हों.. खजुराहो केवल एमपी ही नहीं विश्व में देश की पहिचान बनने की सम्भावनाएं रखता है. 

*मेरा आखों देखा भेड़ाघाट*

भेड़ाघाट धरती पर  सबसे सुन्दर मनोरम स्थल कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी.विश्व के खूबसूरत धुआंधार जलप्रपात में से एक भेड़ाघाट को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल कर लिया है. यह मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ा तोहफा है. भेड़घाट की विहंगम खूबसूरती को देखने देश ही नहीं, विदेश से भी सैलानी आते हैं..

जबलपुर में इस जगत का, इस पृथ्वी का एक सुंदरतम स्थल है भेड़ाघाट.. मेरे हिसाब से शायद पृथ्वी में इतने सुन्दर स्थल बिरले ही होंगे. दो मील तक नर्मदा संगमरमर की पहाड़ियों के बीच से बहती है. दोनों तरफ संगमरमर की पहाड़ियां हैं. एक तो संगमरमर की पहाड़ी...हजारों ताजमहल का सौंदर्य इकट्ठा! फिर बीच से नर्मदा का बहाव... देखने में मनोरम लगता है. यह दृश्य देखने वालों को अपने तिलिस्म में बांध लेता है. मैं कई बार जबलपुर गया, लेकिन कभी भी भेड़ाघाट जाने का मौका नहीं लगा, जबलपुर जाकर लौट आता था, लेकिन इसी साल अप्रैल में जाने का अवसर मिला...  जब मैंने नाव में बैठकर वोटिंग की, तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था! मैंने अगल - बगल में मौजूद कई लोगों से पूछा - "मैं सचमुच इस संगमरमर के मनोरम दृश्य को देख रहा हूँ या कोई ख्वाब... पूर्णिमा की रात में भेड़ाघाट स्वर्ग का कोई टुकड़ा जैसा प्रतीत होता है...कई बार तो आभास होता है कि हम कोई ख्वाब देख रहे हैं क्योंकि इतना सुन्दर स्थान कैसे हो सकता है.. इतना ही जादू हो जाता है. भेड़ाघाट में तस्वीरें क्लिक कराने के लिए सुन्दर स्थान है... भेड़ाघाट की संगमरमर की मूर्तियों की नक्काशी मन मोह लेती है. 

भरोसा नहीं आता कि इस पृथ्वी पर इतना सौंदर्य हो सकता है. लेकिन जबलपुर में ऐसे हजारों लोग हैं, जो तेरह मील दूर भेड़ाघाट देखने नहीं गये. लोगों के घरों में मेहमान आते हैं जो भेड़ाघाट देखने के लिए आते हैं, लेकिन उनको खयाल नहीं आया कि देखने जाना है, जबकि इतने पास है, कभी भी देख लेंगे... जो पास होता है, उसे कभी भी देख लेंगे... यही मेरे साथ हुआ है.  हालाँकि भेड़ाघाट में एक बात पर गहरा दुख हुआ... मैंने देखा जहां पानी नीचे गिरता है, वहां के आसपास की जगह को सुसाइड पॉइंट कहते हैं, वहाँ रेलिंग तो लगी है, लेकिन वहाँ रोकने - टोकने के लिए कोई सुरक्षाकर्मी नहीं थे. हज़ारों सैलानियों की भीड़ भाड़ को नियन्त्रित करने के लिए कोई गार्ड नहीं थे, हालांकि भेड़ाघाट देखने के लिए मुफ्त है, लेकिन वहाँ जब हज़ारों सैलानी आते हैं तो उनकी सुरक्षा के इंतजाम होने चाहिए या नहीं?? अगर कोई दुर्घटना होती है तो उसका कौन जिम्मेदार होगा? वहाँ मैंने देखा सुसाइड पॉइंट पर बहुत से लोग रेलिंग क्रॉस करते हुए फोटो क्लिक करा रहे थे. यह बदइंतजामी ध्यान देने लायक है. भेड़ाघाट को यूनेस्को ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय सूचि में वैश्विक पर्यटन के रूप में शामिल कर लिया है. वैसे जबलपुर में आवागमन, ठहरने के लिए कोई समस्या नहीं है, लेकिन वहाँ इतने लोग आते हैं अगर किसी का बच्चा गिर गया तो बचाएगा कौन?? कम से कम भेड़ाघाट में एक टीम तैनात की जानी चाहिए जिससे लगे कि सरकार सुरक्षा के लिहाज से सतर्क और संजीदा है. 

अभी पिछले साल भेड़ाघाट खूब लाइमलाइट में रहा. शाहरुख खान और तापसी पन्नू की फिल्म ‘डंकी’ में भेड़ाघाट को दिखाया गया है.  इसके अलावा हृतिक रोशन की फिल्म मोहनजोदड़ो में भी भेड़ाघाट को खूब दिखाया गया है.. प्राण जाये पर वचन ना जाये, अशोका, जिस देश में गंगा बहती है और बॉबी जैसी फिल्मों की भी यहां शूटिंग हो चुकी है... कुलमिलाकर दुनिया भेड़ाघाट को लेकर खूब उत्सुकता दिखा रही है. अब मध्यप्रदेश सरकार को पर्यटन के क्षेत्र में अतुलनीय काम करने के लिए भेड़ाघाट को वैश्विक स्तर पर सैलानियों को आकर्षण के लिए काम करना चाहिए, और बजट भी बनाना चाहिए, इसके लिए विज्ञापन भी निकलवाने की आवश्यकता है. दुनिया जितना देखेगी उतना मानेगी... अन्यथा बात तो वही रही कि भेड़ाघाट, खजुराहो, जैसे वैश्विक पर्यटन स्थलों को न हम सहेज पाए और न ही जागृत कर पाए...ये कुछ गम्भीर सवाल उकेरे गए हैं जिससे जिन पर प्रशासन का ध्यान आए.

दिलीप कुमार पाठक 

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