*कड़वी हवा एक बुजुर्ग किसान की व्यथा*
*कड़वी हवा एक बुजुर्ग किसान की व्यथा*
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संजय मिश्रा छोटे से कद का ऐक्टर.... ऐसे लगता है कोई गाँव का आदमी देखने में लगता ही नहीं कि संजय मिश्रा कोई अदाकार हैं. देखा जाए तो संजय मिश्रा कोई अदाकार हैं भी नहीं वो किरदारों को जीने वाले इंसान हैं. जब भी ज़नसरोकार सिनेमा की बात आती है तब 'संजय मिश्रा' इस व्यपारिक दौर में भी अव्वल दर्जे पर खड़े मिलते हैं. एक दौर में 'ओम पुरी' , 'नसीरूद्दीन शाह' , 'श्याम बेनेगल' जैसे कला फ़िल्मों के उस्तादों ने जो ज़मीन तैयार की थी, आज उस पर 'संजय मिश्रा' जैसे अदाकार एक उम्मीद जैसे लगते हैं. 'संजय मिश्रा' की प्रत्येक फिल्म झकझोर देने वाली होती है, लेकिन एक बुजुर्ग किसान की भूमिका में 'संजय मिश्रा' को देखने के लिए हिम्मत चाहिए क्योंकि किसी भी अति संवेदनशील इन्सान के लिए वो देख पाना आसान नहीं है.
निर्देशक 'नील माधव पांडा' की फिल्म 'कड़वी हवा' हमें उस कड़वी सच्चाई से रूबरू कराती है, जिससे देश के किसान जूझ रहे हैं. फिल्म की कहानी सूखे की मार झेल रहे बुन्देलखण्ड एरिया की है. जहां के किसान सूखा पड़ने की वजह से अपने खेत खो चुके हैं, और बैंक का लोन ना चुका पाने के डर से आत्महत्या कर रहे हैं. देखा जाए तो केवल बुन्देलखण्ड नहीं बल्कि देश के किसानों की कमोवेश यही स्थिति है. फिल्म में यही डर एक अंधे बूढ़े बाप को भी सता रहा है, कहीं उसका बेटा भी कर्ज ना चुका पाने की वजह से आत्महत्या ना कर ले. कमाल के ऐक्टर 'संजय मिश्रा' फिल्म में एक अंधे बुजुर्ग किसान की भूमिका में हैं, जो अपने बेटे मुकुंद का कर्ज किसी भी तरह चुकाना चाहते हैं. वो बुज़ुर्ग किसान नहीं चाहता कि उसका बेटा भी गांव के और किसानों की तरह आत्महत्या कर ले.
अतः वो बेटे के कर्ज की रकम जानने के लिए बैंक पहुंच जाता है, लेकिन बैंक का वसूली अधिकारी उसे बैंक से डांट कर भगा देता है. कितनी विसंगतियों वाला हमारा सिस्टम है, दर-असल हमारे बैंकों में लिखा होता है "हमारे ग्राहक भगवान हैं, आपकी सेवा हमारा कर्तव्य है". लेकिन हमारे देश के बैंकों में गरीबो को बेइज्जत होना पड़ता है, क्योंकि उनका लिबास रईसों की तरह नहीं होता. किसानों पर फ़िल्में बनाने की दरकार यूँ भी इसलिए है कि देश के लोगों को पता चल पाए कि देश के किसानों की कितनी ख़राब हालत है.
फिल्म जिस पृष्ठभूमि पर बनी है वहाँ सूखा बहुत आम बात है, वैसे भी बुन्देलखण्ड में औसत से कम ही बारिश होती है. फिल्म में 'संजय मिश्रा' जिस एरिया में रहते हुए दिखाए गए हैं, बुंदेलखंड के बच्चे तो यह भी नहीं जानते कि मौमस के कई रंग होते हैं. बल्कि मौसम चार होते हैं. बच्चे सिर्फ दो मौसम ही जानते हैं सर्दी और गर्मी, बरसात के नाम पर तो बच्चों को बस इतना याद है कि कभी कभार एक दो दिन के लिए बारिश हो जाती है. बुंदेलखंड के लोगों एवं किसानों की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण पानी ही है. जबकि प्रकृति का यह अनोखा परिवर्तन देखिए जिस बुन्देलखण्ड में पहले पंद्रह - बीस दिन तक लगातार बारिश होती थी, लेकिन यह विपदा बहुत विकराल रूप धारण कर चुकी है.
बुंदेलखंड के लोगों के लिए हवा भी कड़वी हो चुकी है, उन्हें अब हवा भी अज़ीब लगती है. फिल्म अनोखे तरीके से हमारे देश की जलवायु के विविध रंग दिखाती है. बैंक के कर्मचारी की भूमिका में 'रणवीर शौरी' वसूली के लिए बुंदेलखंड में उड़ीसा से आए हैं. मौसम विभाग की चेतावनी कहती है कि बढ़ता हुआ जलस्तर उड़ीसा के लिए इतना बड़ा खतरा है, कि उड़ीसा के कई शहर बढ़ते हुए जलस्तर से संकट के मुहाने पर हैं. जबकि बुंदेलखंड में पानी को तरसते हुए किसान हैं. बैंक अधिकारी गांव के अंधे बुजुर्ग (संजय मिश्रा) से समझौता करता है कि अगर आप गांव में बैंक का कर्जा वसूलने में मेरी मदद करेंगे तो मैं आपका कर्ज़ मुआफ करवा दूँगा. और जल्दी से कर्ज वसूलने का कारण यह भी है कि बैंक अधिकारी जल्दी से अपने परिवार को यहां लाना चाहता है कि वो बढ़ते हुए जलस्तर में फंसे हुए परिवार को बचा सके. वहीँ अंधा बुजुर्ग इस टास्क को पूरा करने के लिए इसलिए तैयार हो जाता है कि वो कर्ज के बोझ तले अपने बेटे को समाप्त नहीं होने देना चाहता.
फिल्म की कहानी इतनी सरल नहीं है कि कोई भी देख ले, इसके लिए कठोर हृदय चाहिए. आख़िरकार बैंक अधिकारी एवं बुजुर्ग अंधा किसान बैंक कर्ज वसूलने में नाकाम रह जाते हैं. नतीजतन बुजुर्ग का बेटा एक दिन गायब हो जाता है, और बैंक अधिकारी के परिवार वाले भी वहाँ फंसे रह जाते हैं. फिल्म आख़िरकार अपने सब्जेक्ट को सफ़लतापूर्वक दिखाने में सफ़ल तो हो जाती है लेकिन कई कचोटने वाले सवाल कर जाती है. ऐसे सवाल जो किसानों की पेशानी की झुर्रियों में स्पष्ट दिखते हैं, हालांकि हमारे सिस्टम को क्या ही गरज़ है कि वो किसानों की पेशानियों को पढ़े. ऐसी फ़िल्में बनाने के लिए जोखिम कहना इसलिए भी उचित है कि इनका ज़्यादा जिक्र नहीं होता. यह फिल्म संजय मिश्रा की अदाकारी का क्लास कहती है.
दिलीप कुमार पाठक
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