"सच तो ये है हम राष्ट्रनायकों का सम्मान करना ही नहीं जानते"
*सच तो ये है हम राष्ट्रनायकों का सम्मान करना ही नहीं जानते*
------------------------------------------------------
अभी कुछ दिनों पहले मैंने नीरज चोपड़ा के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए आवाज़ उठाई थी. बहुत लोगों ने समर्थन किया तो कईयों ने सवाल किया नीरज को सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्यों दिया जाना चाहिए? क्योंकि नीरज व्यक्तिगत रूप से गोल्ड जीतने वाले दूसरे एथलीट हैं. वहीँ गोल्ड के साथ सिल्वर जीतने वाले देश के पहले एथलीट हैं. नीरज ने इंजरी के बावजूद भी मेडल जीता...ऐसे नायकों को हमें सहेजना चाहिए ऐसे एथलीट बड़े मुश्किल से तैयार होते हैं. देश के लिए पहला व्यक्तिगत गोल्ड जीतने वाले अभिनव बिंद्रा का हमने कितना सम्मान किया है?? जबकि पेरिस ऑलंपिक आयोजन समापन के बाद ऑलंपिक संघ ने हमारे हीरो अभिनव बिंद्रा को ऑलंपिक ऑर्डर यानी ऑलंपिक के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया है... जबकि हम ऐसे नायकों को पद्म सम्मान तक सीमित कर देते हैं. कइयों को तो पद्म सम्मान भी नहीं दिया जाता. आज देश के अधिकांश लोगों को पता भी नहीं होगा कि अभिनव बिंद्रा कौन है. लोगों को जानना चाहिए भारत रत्न सम्मान के मायने क्या हैं.
एक सच्चाई यह भी है हमारे देश में सर्वोच्च नागरिक सम्मान को जातिगत आधार पर नेताओ के लिए हमने सीमित कर रखा है, या फिर राजनीतिक समझौतों पर बांटे जाते हैं. देश के कितने वैज्ञानिको को सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया है? अब्दुल कलाम साहब जैसे कोई अपवाद हैं. वहीँ समाज़ सेवियों को भी अपवाद ही मिला है. आज हम चाँद तक पहुँच चुके हैं, लेकिन स्पेस के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले विक्रम साराभाई को हमने कितना सम्मान दिया है?? हमारी सरकारों ने इनके नाम से कई संस्थान खोले, पद्म विभूषण से सम्मानित किया लेकिन सर्वोच्च नागरिक सम्मान लायक नहीं समझा गया. गुरु की महिमा पढ़ाने वाले मुल्क में अब तक कितने शिक्षको को सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया है? यह भी बड़ा आसान प्रश्न है. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को आजतक भारत रत्न से सम्मानित नहीं है गया.
हमारे देश में हम ही मज़ाक उड़ाते है कि देश के बच्चे शतरंज खेलने के लिए उत्सुकता क्यों नहीं रखते. कई कुतर्क देते हैं हमारे मुल्क के बच्चों का आईक्यू लेवल इतना हाई नहीं होता. देश के अधिकांश लोगों से पूछा जाए कि विश्वनाथन आनन्द कौन हैं? तो अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा, जिन्हें पता होगा वो भी भूल गए होंगे. शतरंज में पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन सुपर ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद सही मायनों में भारत रत्न के हकदार हैं. विश्वनाथन को देश के सारे पद्म पुरस्कार दिए गए हैं लेकिन देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा नहीं गया. अखिल भारतीय शतरंज महासंघ ने इसकी मांग भी कई बार उठाई है..
देश के लिए पहला मेडल लाने वाली महिला सायना नेहवाल को पद्मश्री तक सीमित कर दिया! अभी सायना बहुत ऐक्टिव हैं, कुछ सालों बाद लोग भूल जाएंगे. जब ऑलंपिक, कॉमनवेल्थ गेम्स होंगे तो जरूर याद किया जाएगा. अभी एक दिन सायना नेहवाल को एक पॉडकास्ट में सुना उन्होंने बताया कि जब तक नीरज चोपड़ा ने ऑलंपिक में गोल्ड नहीं जीते थे तब तक मैं उन्हें जानती ही नहीं थी, बल्कि नीरज के कारण ही पता चल पाया कि भाला फेंक खेल भी होता है. दर-असल इसमे सायना नेहवाल का दोष नहीं है, हमारे देश के ही लोग बड़े से बड़े एथलीट को ढंग से नहीं जानते. जब जानेंगे ही नहीं तो प्रेरणा कैसे लेंगे.
महान मेजर ध्यान चंद को आज तक भारतरत्न सम्मान से सम्मानित नहीं किया! जबकि इन्होंने अपने देश के लिए क्या नहीं किया, इनका इतिहास बच्चों को पढ़ना चाहिए. मुझे लगता है मेजर ध्यानचंद को दुनिया के कोने-कोने में लोग जानते हैं, लोग मांग भी करते हैं कि मेजर को सम्मानित किया जाए, लेकिन सरकारें कहाँ सुनती हैं.
देश के लिए पहला क्रिकेट विश्व कप जीतकर लाने वाले कपिल देव को आजतक सर्वोच्च सम्मान नहीं दिया. जबकि देश में क्रिकेट क्रांति लाने वाले कपिल देव- सुनील गावस्कर ही हैं. देश के लिए तीन विश्वकप जीतने वाले महेंद्र सिंह धोनी को आजतक सर्वोच्च सम्मान नहीं दिया. जबकि दुनिया अपने खिलाडियों, एथलीट, आदि को सम्मानित करती है, जिससे आने वाली पीढ़ी प्रेरित होती हैं. अभी ये नाम सुने हुए हैं ऐक्टिव हैं कुछ सालों के बाद लोग भूलने लगेंगे.
साहित्य की दुनिया में भी हमारा यही हाल है, कभी पूछिए खुद से आप ऐसे कितने साहित्यकारों को जानते हैं जिन्हें सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया हो?? प्रेमचंद, टैगोर, जैसे साहित्यकारों तो मान भी लिया कि वो किसी भी सम्मान से बड़े हैं. फिर भी ऐसे कितने साहित्यकारों, संगीतकारों, को भारतरत्न से सम्मानित किया गया है?? जब आप भारतरत्न से सम्मानित व्यक्तियों की लिस्ट देखेंगे तो आपको ऐसे कोई एथलीट, साहित्यकार, नहीं दिखेंगे यही कारण है कि हमारे देश में साहित्य, एवं खेलों के प्रति उदासीनता है. आप कितना भी कुछ बड़ा कर दीजिए आपको सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया जाता. यही कारण है कि हमारे देश में नेता बनने की सोचने वाले बच्चे हर गली मुहल्ले वाले मिल जाएंगे... देश का बच्चा - बच्चा जानता है कि देश की चाबी नेताओ के हाथ होती है. हमारे देश में ज्यादातर नेताओं पर इनवेस्ट किया जाता है तो देश में भरपूर मात्रा में नेता तैयार होते हैं. हमारे देश में पढ़ने, खेलने, का कल्चर यूं लगता है जैसे नेपथ्य की ओर है, हालांकि पहले भी कोई स्वर्णिम दौर नहीं था.
दुनिया भर के लोग कहते हैं भारत में राम, संगीत, गंगा, बुद्ध, गांधी हैं.. तब समझ आता है भारत का संगीत भारत के मूल में है. जिन मुहम्मद रफ़ी साहब के नाम पर दुनिया भर में थीसिस लिखे जा रहे हैं, दुनिया भर के बड़े से बड़े संस्थानों में पढ़ाया जाता है. जिन रफी साहब ने देश के लिए विभिन्न राग, भजन, कव्वाली, ग़ज़ल, सबकुछ गाया. बच्चे, बुजुर्ग, भिकारी, पुजारी, सैनिक, लेखक कवि, राजा, रंक, ईश्वर, हर किसी की आवाज़ बने.. जिन्होंने देश के सैनिकों के लिए सैकड़ों गाने गाए. उन्हें आजतक सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया. जब हम रफी साहब जैसे ग्लोबल सुपरस्टार का सम्मान नहीं करेंगे तो हमारे देश के संगीत में गिरावट ही आएगी, बढ़ोत्तरी का तो सवाल ही नहीं उठता.
सिनेमा समाज का आईना होता है, ग़र हमारा सिनेमा नहीं होता तो भारत की जीवन-शैली कुछ और ही होती. हमारे तीन दिग्गज कलाकारों ने हिन्दी सिनेमा के ज़रिए दुनिया भर के कोने - कोने में भारत की संस्कृति को पहुँचाया. एक समय ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब के कारण रूस भारत के बहुत करीब आया तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. राज कपूर साहब पहले ऐसे भारतीय कलाकार हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को वैश्विक स्तर पर पहिचान दिलाई. आज दशकों बाद भी रूस सहित कई मुल्कों में राजकपूर साहब के फैन्स उनके गीत गाते हुए मिल जाएंगे...पण्डित नेहरू जी ने कहा था कि रूस सहित दुनिया भर के मुल्कों में बहुत से लोग राजकपूर को जानते हैं. रुस के साथ घनिष्टता में ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब के गीतों ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है. भारत सरकार ने राजकपूर साहब को पद्म सम्मान दिए लेकिन आजतक सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित नहीं किया.. ये बताता है कि हम अपने नायकों का सम्मान करना नहीं जानते. अब तक के सिनेमा, साहित्य, समाज का अध्ययन करने वाले लोग बताते हैं कि अभिनेता दिलीप कुमार का भारतीय जीवन शैली को आगे बढ़ाने उसे संस्कृति के साथ खान, पान, पहनावा आदि को बढावा दिया. दिलीप कुमार से कई पीढ़ियां प्रभावित रही हैं. पाकिस्तान ने तो दिलीप कुमार को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया, लेकिन अपने मुल्क में इस सम्मान के लायक नहीं समझा गया. भारतीय सिनेमा में प्राकृतवाद सिनेमा के अग्रदूत जिन्होंने देश, दुनिया की कई पीढ़ियों को सिनेमा के साथ जोड़ा. देवानंद भारतीय सिनेमा के ऐसे स्तम्भ रहे हैं जिन्होंने भारत के सिनेमा की सबसे ज्यादा कई दशकों तक सेवा की, हमारे देश में अधिकांश लोग अवसाद में रहने के आदि हों उस मुल्क के लोगों को जिन्होंने जिंदादिल रहना सिखाया. जिनकी दीवानगी यूरोप , अमेरिका, सहित पूरी दुनिया में है, भारत सरकार ने पद्म सम्मान, सहित दादा साहेब फाल्के पुरूस्कार से सम्मानित ज़रूर किया, लेकिन उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान लायन नहीं समझा गया. जो कभी नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, ब्रिटेन, अमेरिका में भारत के एक ध्वजवाहक के रूप में देखे गए हैं. श्याम बेनेगल जैसे उस्ताद जिन्होंने भारत के आम लोगों की ज़िन्दगी को अपने समानांतर सिनेमा में लेकर आए जिन्होंने समझाया कि किन किन क्षेत्रों में सहयोग काम करने की आवश्यकता है. उन्हें आजतक इस सम्मान लायक नहीं समझा गया.. जबकि देश के ऐसे ही एक हीरो महान सत्यजीत रे को जब ऑस्कर मिला तब उसके अगले दिन उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जब हम देवानंद, दिलीप कुमार, राज कपूर, मुहम्मद रफ़ी जैसे विश्व नायकों का सम्मान नहीं कर सकते तो देश में कला को लेकर एक उदासीनता का भाव होना लाजिमी है.
साहित्य, सिनेमा हमारे समाज की आत्मा होते हैं, जब अमेरिका के दो - दो राष्ट्रपति भारत आकर हिन्दी फ़िल्मों के डायलॉग बोलते हुए खुद भारत के नजदीक लाने की कोशिश करते दिखते हैं तब समझ आता है, हमारा सिनेमा दुनिया भर में भारत के एम्बेसडर के रूप में काम करता है. हमें अपने मुल्क के नायकों का सम्मान करना अमेरिका, यूरोप से सीखना चाहिए. सोचिए हमारे देश में सम्मान प्राप्त करने के लिए किसी भी नायक के फैन्स आंदोलन करते हैं, तब भी सरकारें नहीं ध्यान देतीं.
समाज, खेल, साहित्य की दशा देख कर अंदाजा लगा सकते हैं. हम खुद अपने नायकों का सम्मान नहीं करते और रोते रहते हैं कि हमारे देश को नोबेल पुरस्कार, ऑस्कर, नहीं मिलते... मुझे एक बात समझ आती है जिनका घर में सम्मान नहीं होता मुहल्ले वाले, रिश्तेदार भी सम्मान नहीं करते. यही बात हमारे नायकों पर फिट बैठती है. ग़र हमें अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों में नायक पैदा करने हैं तो उनके लिए प्रेरणा स्त्रोत भी पैदा करने होंगे वो केवल और केवल प्रोत्साहन से किया जा सकता है. केवल कहने से नहीं होता कि ये सब भारतरत्न से भी बड़े नायक है.. सम्मान किया जाए तो वो दिखना और महसूस होना चाहिए.
दिलीप कुमार पाठक
Comments
Post a Comment