गुरु परम्परा का राष्ट्र भारत

गुरु परम्परा का राष्ट्र भारत 
--------------------------------------


हमारे संस्कृति प्रधान मुल्क में गुरु यानि अध्यापक का महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है. माता - पिता के बाद अगर भगवान  से भी बड़ा  किसी का स्थान होता है तो वो केवल और केवल गुरु का होता है.. पुरातन काल से हमारे देश में गुरु की महिमा गाई जाती हैं.. इतिहास उठाकर देखें तो हमारे भारतीय इतिहास में महान गुरुओ की गाथाएं भरी पड़ी हैं. आज व्यवसायिकता के दौर में जब शिक्षा पैसे के बाद प्राथमिकताओं में आने ही वाली है या आ चुकी है, तब उन गुरुओ, अध्यापकों को याद करना आवश्यक हो जाता है जिन्होंने भारत के इतिहास में अपने कर्तव्य के दायित्व निभाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. हमारे मुल्क में ऐसे महान गुरुओं की महान गाथाएं भरी पड़ी हैं, जो प्रेरित करती हैं. 

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय, बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय,” अर्थात - यदि भगवान और गुरु ; दोनों एक साथ मिल जाएँ तो मैं पहले गुरु को प्रणाम करुँगा फिर परमात्मा को... क्योंकि परमात्मा दिखाई नहीं देते जबकि गुरु प्रत्यक्ष भगवान हैं. देखा जाए तो भगवान श्री कृष्ण ही दुनिया के गुरु हैं जिनके श्रीमद्भागवत गीत के ज्ञान से आज भी पूरी दुनिया आलोकित हो रही है...किसी भी प्रश्न का उत्तर श्रीमद्भागवत गीता में ढूढ़ सकते हैं. गुरु की दृष्टि अपने शिष्य के प्रति पुत्र के समान स्नेहित होती है. इसके उदाहरण भगवान भास्कर, गुरु द्रोणाचार्य रहे हैं. भगवान भास्कर को फल समझकर लील जाने वाले भगवान हनुमान को भगवान भास्कर ने शिष्य के रूप में स्वीकार किया था. वहीँ गुरु द्रोणाचार्य के पास असीमित शक्ति होने के बाद भी उन्होंने अपने शिष्यों का वध नहीं किया था. चूंकि अपने शिष्यों के प्रति पुत्र से भी अधिक स्नेह लुटाते थे. गुरु द्रोण ने अपने शिष्यों के लिए न जाने कितने आरोप अपने सिर पर ले लिया था, हालांकि गुरु द्रोण को समझने के लिए वेद व्यास रचित महाभारत पढ़े जाने की दरकार है. गुरु द्रोण अपने शिष्य अर्जुन को अपने पुत्र से भी अधिक प्रेम करते थे. हालांकि अर्जुन की प्रमुख पहिचान द्रोण शिष्य के रूप में ही जानी जाती है. 

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः l
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ll

एक व्यक्ति के जीवन में अध्यापक का क्या स्थान होता है, यह श्लोक इसकी पुष्टि करता है. देखा जाए तो यह श्लोक महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित 'गुरु गीता' से लिया गया है, जो कि स्कंद पुराण का एक भाग है. इसी श्लोक की व्याख्या आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी की है. यह श्लोक गुरु स्त्रोतम का एक हिस्सा है. इस श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महेश यानी शिव हैं, और गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं. इस श्लोक को आदि गुरु शकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद भगवद्पादा को समर्पित किया था. 

महान संत कबीर दास जी ने गुरु की महिमा भी कुछ इस अंदाज में गाई है.

 - गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत l                           लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ ---अर्थात - गुरु और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है. 

सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥ - - अर्थात - सारी पृथ्वी को कागज और जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते. 


 *भारत के कुछ महान अध्यापक* - - - - 

यूं तो शिक्षक दिवस भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनकी याद में मनाया जाता है, जिनका जीवन एक प्रेरणा है. लेकिन उनसे भी सदियों पहले देश में एक ऐसे अध्यापक हुए जिन्होंने जीवन की सारी कठिनाइयों से निकलने के लिए एक ही रास्ता बताया जीवन जीने का सबसे सुगम मार्ग मध्यमार्ग है. गौतम बुद्ध का जन्म 480 ईसा पूर्व में सिद्धार्थ के रूप में हुआ था. वे प्राचीन भारत में रहने वाले एक दार्शनिक, भिक्षुक, ध्यानी, आध्यात्मिक अध्यापक थे वे बौद्ध धर्म के संस्थापक भी थे, और उन्हें कर्म से परे और जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से बचने वाले व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता है. बुद्ध कहते थे - "मन ही सब कुछ है, आप जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं. गौतम बुद्ध के एक-एक विचार पर पूरी दुनिया विमर्श कर रही है. ऐसे अध्यापक का होना भारत के लिए गौरव की बात है. 

ऐसे ही एक गुरु और हुए हैं जिन्होंने जंगल में खेल रहे बालक को विजेता राजा बना दिया... आचार्य चाणक्य पहले भारतीय विद्वान थे जो प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे जो कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से जाने गए. उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया. आज भी आचार्य चाणक्य के वाक्य पथ प्रदर्शन का काम करते हैं. आचार्य ने कहा था -- "शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है शिक्षित व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है. शिक्षा सुंदरता और यौवन को मात देती है, जब व्यक्ति शिक्षित हो जाता है तब उसे पता चलता है कि व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से महान होता है. 

गुरु रवींद्रनाथ टैगोर  एक बंगाली कवि, लेखक, संगीतकार, दार्शनिक और चित्रकार थे. जिन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की जो भारत और दुनिया के बीच 'जोड़ने वाले धागे' के रूप में काम करता था, जिसने 'गुरुकुल' की अवधारणा को फिर से परिभाषित किया था... गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के विचार आज भी अज्ञानियों को ज्ञान की ओर ले जाने का काम करते हैं. 

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे अध्यापकों के कारण ही देश में शिक्षकों के प्रति अब तक आदर का भाव बना हुआ है. महान वैज्ञानिक होते हुए देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंचे लेकिन डॉ. कलाम साहब का ख्वाब था कि दुनिया उन्हें एक शिक्षक के रूप में याद करे. और आज उन्हें दुनिया सबसे पहले एक शिक्षक के रूप में याद करती है. 

सावित्रीबाई फुले एक भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद और कवियत्री थीं. वह भारत की पहली महिला शिक्षिका रहीं हैं जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें भारतीय नारीवाद की जननी भी माना जाता है.. सावित्री बाई फुले जैसी महान अध्यापिका भारत के इतिहास का प्रमुख हासिल हैं. सावित्रीबाई फुले जैसी अध्यापिकाएं समाज के लिए और भी आवश्यक हैं. 

भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को हुआ था
 राजनीति में आने से पहले उन्होंने कई वर्षों तक विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाया. 5 सितंबर 1962 को उनके छात्रों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने का अनुरोध किया, जिस पर उन्होंने छात्रों से कहा कि वे इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाएं. तब से यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है... शिक्षक दिवस का दिन हमारे देश में अध्यापकों के लिए एक सम्मान प्रदर्शित करता हुआ दिवस है. 

आज छात्रों में अध्यापकों के प्रति वह आदर, वह श्रद्धा और विश्वास नजर नहीं आता. क्या इसका सारा दोष केवल आधुनिक छात्रों की बदलती सोच को दिया जाना चाहिए? क्या, इस सोच की उपज भी उतनी ही दोषी नहीं है. अध्यापकों की गरिमा के धुंधलापन के कारण नहीं है? अगर पूरी तरह उन्हें दोषी न भी माना जाए तो क्या, हमारा सिस्टम, हमारी शिक्षा -प्रणाली निर्दोष मानी जा सकती है? आज स्कूल और कॉलेज पैसा कमाने वाले संस्थानों के रूप में दिखाई देते हैं. 

हमारा देश महान गुरुओं की परम्परा पर चलने वाला एक देश है. जहां गुरुओं के लिए शिष्यों ने और शिष्यों के लिए गुरुओं ने अपना सब कुछ कुर्बान कर देने की परंपरा वाले देश में अब शिक्षा एक व्यापार बन गई है. आज भी अधिकांश अध्यापक अपने शिष्यों के लिए समर्पित हैं, वहीँ आज भी अधिकांश शिष्य अपने गुरुओं के लिए समर्पित हैं, लेकिन कुछ गुरु घन्टालो ने गुरु परंपरा को धूमिल ज़रूर किया है, वहीँ कुछ शिष्य भी धूर्तता की पराकाष्ठा कर जाते हैं. आज गूगल के दौर में अध्यापकों के प्रति वो सम्मान भाव केवल छात्रों में ही नहीं है बल्कि समाज में भी कम हो चला है. तब हमारे अध्यापकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उनके जिम्मे ही श्रेष्ठ, संवेदनशील और देश भक्त युवा पीढ़ी के निर्माण का दायित्व है. 

दिलीप कुमार पाठक 



Comments

Popular posts from this blog

*ग्लूमी संडे 200 लोगों को मारने वाला गीत*

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

राम - एक युगपुरुष मर्यादापुरुषोत्तम की अनंत कथा