*भाई - बहिन के रिश्ते का पवित्र पर्व रक्षाबन्धन*
*भाई - बहिन के रिश्ते का पवित्र पर्व रक्षाबन्धन*
-----------------------------------------------
हमारे देश की संस्कृति कितनी सुन्दर है; रिश्तों को भी कितनी खूबसूरती के साथ परिभाषित किया गया है. हमारी संस्कृति में हर रिश्ते को विशेष प्रकार से महसूस किया जाता है. इस दौर में भी सारे के सारे रिश्ते कितने खूबसूरती के साथ समाज को संगठित किए हुए हैं. ऐसा ही एक खट्टा - मीठा रिश्ता रक्षाबन्धन है. सारे के सारे रिश्तों को प्रेम एवं श्रद्धा के साथ मानने में हमारे देश का कोई सानी नहीं है. रक्षाबन्धन का त्यौहार भाई -बहिन के अनोखे प्रेम के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. देखा जाए तो रक्षाबन्धन इतना खूबसूरत पर्व है कि इसको जाति धर्म की दीवारों में भी नहीं बांट सकते, यह सिर्फ़ प्रेम, सम्मान, के लिए मनाया जाता है. बहिन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर प्रेम एवं सलामती की दुआएं मांगती है, तो भाई अपनी बहिन की रक्षा करने का वचन देता है. दर-असल यह सब कहा भी नहीं जाता सिर्फ़ यह प्रेम, विश्वास महसूस किया जा सकता है. देखा जाए तो रक्षाबन्धन हमारे देश में पुरातन काल से मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत मुँह बोली बहनो से शुरू हुई. रक्षाबन्धन के इस रक्षा सूत्र का स्नेह देखिए कि ये खून के रिश्तों से भी ज़्यादा प्रगाढ़ता लाता है. रक्षाबन्धन हमारे देश में रिश्ते निभाने की परंपरा की कहानी बयां करता है. मेरे सगी बहने नहीं हैं, लेकिन कई बहने मुझे राखी बांधती आ रही हैं. बचपन से बहिन न होने का मलाल बहुत पहले ही ख़त्म हो गया है. मेरी बहनो ने कभी भी मेरी कलाई सूनी नहीं रखी.. वैसे भी माना जाए तो दुनिया अपनी हैं, अन्यथा खून के रिश्ते भी कुछ नहीं है.
रक्षाबन्धन के शुरू होने पर विचार करें तो पौराणिक कथाओं के अनुसार यह युगों पहले राक्षसों के धर्मात्मा राजा बलि एवं जगत माता श्री लक्ष्मी जी दोनों ने एक - दूसरे को भाई बहिन मानकर इस पवित्र त्यौहार की शुरुआत की. राजा बलि बड़े दानी राजा थे और भगवान विष्णु के भक्त थे. एक बार वे भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे. अपने भक्त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का वेष रखकर यज्ञशाला पहुंचकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी. राजा ने ब्राह्मण की मांग स्वीकार कर ली. ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया. राजा बलि ने कहा तीसरा पैर मेरे सिर पर रख लीजिए. बलि ने भगवान से कहा - "भगवान अब आप मेरी विनती स्वीकार करें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें. भगवान को राजा की बात माननी पड़ी. उधर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के वापिस न लौटने से चिंतित हो उठीं. उन्होंने एक गरीब महिला का वेष बनाया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांध दी. राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा. मां लक्ष्मी फौरन अपने असली रूप में आ गईं और राजा से अपने पति भगवान विष्णु को वापिस लौटाने की मांग रख दी. राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के साथ वापिस भेज दिया. यहां से रक्षाबन्धन की शुरुआत कही जाती है.
पुराणों के अनुसार मृत्यु के भगवान यमराज एवं यमुना नदी दोनों भाई - बहिन थे. कहा जाता है 12 साल हो गए थे यमुना ने अपने भाई यमराज को देखा नहीं था. तब ही यमुना ने माँ गंगा के पास पहुंचकर कहा - "मेरे भाई यमराज से कहिए आपकी बहिन आपको याद कर रही है, तब यमराज अपनी बहिन यमुना के पास पहुंचे तब यमुना ने यमराज की कलाई पर रक्षाबांध दिया, तब यमराज ने यमुना को अमरत्व का वरदान दे दिया था. 
द्वापर युग में देखें तो सम्राट युधिष्टिर के राजतिलक के समय शिशुपाल वध करने के बाद भगवान श्री कृष्ण की उंगली से खून निकलता देखकर द्रोपदी ने भगवान की उंगली पर अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर बांध दिया. तब भगवान कृष्ण ने वचन दिया - "बहिन समय आने पर एक एक धागे का ऋण उतारूंगा. भगवान श्री कृष्ण ने तब द्रोपदी की इज्ज़त बचाते हुए भाई का फ़र्ज़ निभाया था जब उन्हें कौरवों द्वारा भरी सभा में निर्वस्त्र करने का घृणित प्रयास किया गया. 
ऐसा ही एक बहुत ही सुन्दर रिश्ता सिकंदर व राजा पोरस के बीच दिखता है. हमेशा विजयी रहने वाला सिकंदर भारतीय राजा पोरस की वीरता से काफी विचलित हुआ इससे सिकंदर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं. सिकंदर ने रक्षाबंधन के के बारे में सुना था. उन्होंने पोरस को राखी भेजी. तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी. क्योंकि राजा पोरस ने सिकंदर की पत्नी को बहन मान लिया था. और वचन अनुसार सिकंदर को जीवन दान दिया था.
रक्षाबंधन का त्यौहार किसी भी धर्म जाति तक सीमित नहीं है बल्कि यह प्रेम, विश्वास का बंधन है. मुगलकालीन भारत में ऐसा ही एक सुन्दर रिश्ता देखने को मिलता है. मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं. उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी कर्णावती ने शहंशाह हुमायूँ को राखी भेज कर अपनी रक्षा का वचन माँगा था, तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें अपनी बहन का दर्जा देकर उनकी रक्षा की थी.
रक्षाबन्धन का त्यौहार समय के साध और मधुर होता गया, हालांकि सिनेमा के बाद तो रक्षाबन्धन का स्वरुप ही बदल गया था. अभी तक के इतिहास में रक्षाबन्धन सिर्फ़ एक विश्वास सलामती की दुआएं मांगने के लिए मनाया जाता था, लेकिन सिनेमा में रक्षाबन्धन की एंट्री हुई तो रक्षाबन्धन व्यापक रूप से मनाया जाने लगा. हिन्दी सिनेमा को समाज का आईना यूं ही नहीं कहा जाता. रक्षाबन्धन को हिन्दी सिनेमा में लेकर आने वाले फ़िल्मकार एक पारसी सोहराब मोदी हैं जो रक्षाबन्धन को सिल्वर स्क्रीन पर लेकर आए. 1941 में महबूब खान ने हुमायूं नामक फ़िल्म में कर्णावती एवं मुगल शासक हुमायूं के भाई - बहिन के सुन्दर रिश्ते को दर्शाया गया था, इस फ़िल्म का समाज पर व्यापक असर हुआ था. इसके बाद हिन्दी सिनेमा में भाई - बहिन के इस रिश्ते को फ़िल्मों में खूब दर्शाया गया है.
हिन्दी सिनेमा ने हमारे समाज को रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर कालजयी गीतों का निर्माण कर के इसे और भी मधुर बना दिया है. साल 1959 में आई फिल्म 'छोटी बहन' का गाना ''भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना'' बड़े भाइयों को छोटी बहनो के प्रति और भी ज़्यादा भावुकता के साथ जोड़ने की नसीहत देता है. 1974 में आई फिल्म 'रेशम की डोरी' में भाई-बहन के बीच प्यार को बखूबी दिखाया गया. इस फिल्म में धर्मेद्र और उनकी बहन के प्यार ने दर्शकों की आंखों में आंसू ला दिए और इस फिल्म का गाना 'बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है..' आज भी बड़ी शिद्दत से सुनते हुए हर कोई भावुक हो जाता है. हिन्दी सिनेमा में समय के साथ कन्टेन्ट में बदलाव आते रहे हैं, लेकिन फ़िल्मों से भाई बहिन का प्यारा सा रिश्ता सिल्वर स्क्रीन पर और भी ज़्यादा प्रगाढ़ होता रहा है. "फ़ूलों का तारो का सबका कहना है एक हज़ारों में मेरी बहना है". यह गाना 1971 में आई फ़िल्म 'हरे राम हरे कृष्णा' का है. भले ही लोगों को यह फिल्म पता न हो लेकिन इस गाने को हर कोई सुन कर भावुक हो जाता है. इस गाने के बिना राखी का पर्व अधूरा है. "मेरी प्यारी बहनिया"," मेरे भैया, मेरे 'चंदा, मेरे अनमोल रत्न"," मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया", "धागों से बांधा", "हम बहनो के लिए", "बहन हँसती है तो", "चंदा रे मेरे भैया से कहना", "भैया मेरे मत रोना"... जब सिनेमा को देखते हैं तो भाई बहिन के इस रिश्ते को केवल गहराई से दिखाया ही नहीं बल्कि बहुत सी आवाजों को अभिव्यक्ति दी है. ऐसे सैकड़ों गीत हैं, जिनमें भाई बहिन के बीच तात्कालिक परिस्थितियों में उपजे विषाद, चिंता, भावुकता, को बड़े ही मार्मिक अंदाज़ से प्रस्तुत किया गया है. वाकई ये त्यौहार हिन्दी सिनेमा के गीतों के ज़रिए और भी ज्यादा सार्थक हो गया है.
पौराणिक काल से लेकर अब तक इस त्योहार के लिए लोगों में उमंग, प्रेम, सद्भाव बढ़ता ही चला आ रहा है. ये इकलौता ऐसा त्यौहार है जो अनजानों को भी अपना बना देता है. ये विश्वास का सम्बन्ध अब तो धर्मों, मुल्कों की सीमाएं लांघकर दुनिया भर के लोगों में लोकप्रिय हो रहा है. पूरे देश-दुनिया भर की बहने इस दिन का शिद्दत से इंतज़ार करती हैं. रक्षाबन्धन का त्यौहार भाई - बहिन के प्रेम का प्रतीक है. भाई की सलामती एवं बहिन की रक्षा के लिए भाइयों को जोड़े रखता है. तारीखें बदल गईं, युग बदल गए , लेकिन ये पर्व नहीं बदला और न बदलेगा.
दिलीप कुमार पाठक
Comments
Post a Comment