*हिन्दी सिनेमा के पहले रॉकस्टार हीरो शम्मी कपूर*
*हिन्दी सिनेमा के पहले रॉकस्टार हीरो शम्मी कपूर*
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हिन्दी सिनेमा का पहला रॉकस्टार, कपूर खानदान का पहला ऐसा हीरो शम्मी कपूर जिसने हिन्दी सिनेमा में डांसिंग हीरोज की परम्परा कायम की. अत्याधुनिक एनर्जी, रॉक अंदाज़ के कारण हिन्दी सिनेमा में डांस ऐक्टिंग के ब्रांड एंबेसडर बन गए थे. कॉलेज में जब शम्मी का मन नहीं लगा, तो पढ़ाई छोड़ कर घर आ गए. पिता पृथ्वीराज से कहा मन नहीं लग रहा. इस पर पिता ने कहा "कोई बात नहीं, पुत्तर, थियेटर आ जाओ ! अगले दिन से वे थियेटर जाने लगे" . वहां उन्हें 50 रुपए की सैलरी मिलने लगी. शम्मी हमेशा अपने बड़े भाई राजकपूर की फिल्म बरसात की शूटिंग देखने जाया करते थे. राज कपूर के भाई की हैसियत से नरगिस से खूब बातेँ करते, नरगिस ने कहा - "प्रार्थना करो की मुझे राज कपूर की आवारा फिल्म में काम करने का मौका मिला जाए. शम्मी कपूर ने कहा बदले में मुझे क्या मिलेगा? नरगिस ने हंसते हुए कहा कि एक 'किस' शम्मी कपूर राज कपूर के साथ उनकी नजदीकी को समझते थे, अतः शर्माते हुए चले गए. आवारा में नरगिस ने काम किया, फिल्म हिट साबित हुई. नरगिस ने शम्मी कपूर से कहा किस चाहिए?? लेकिन मैं तुम्हें किस नहीं करने वाली क्यों कि इस लिहाज से तुम अब बड़े हो गए हो? कुछ और मांग लो, शम्मी कपूर कहते हैं- "नहीं नहीं मुझे किस नहीं चाहिए, मुझे "ग्रामोफोन प्लेयर" चाहिए. ये सुनकर नरगिस की आंखों में आंसू आ गए. वे बोलीं, तुम्हे बस ग्रामोफोन प्लेयर चाहिए? चलो बैठो मेरी कार में, वे उन्हें लेकर मार्केट गईं. वहां इतने सारे ग्रामोफोन प्लेयर रखे थे, शम्मी ने एक लाल रंग का खूबसूरत रिकॉर्ड प्लेयर चुना. वहां से वो उन्हें रिद्म हाउस ले गईं. नरगिस ने कहा कि अपनी पसंद के 20 रिकॉर्ड चुन लो. शम्मी ने वेस्टर्न म्यूजिक से लेकर कई तरह के अपनी पसंद के रिकॉर्ड लिए. इसी प्लेयर और रिकॉर्ड से शम्मी के वेस्टर्न म्यूजिक की तरफ लगाव की शुरुआत हुई जो बाद में चलकर फिल्मों में उनका स्टाइल बना.शम्मी कपूर का उनका वेस्टर्न म्यूजिक से परिचय नरगिस ने ही करवाया था .
शम्मी कपूर से पहले हिन्दी सिनेमा में तीन सुपरस्टार स्थापित थे. देव - राज - दिलीप, त्रिमूर्ति यानि देवानंद साहब, दिलीप कुमार, राज कपूर, ये तीनों अपने - अपने अभिनय कला में माहिर थे. देव साहब ने रोमांस एवं स्टाइल, दिलीप कुमार ने ट्रेजडी, संजीदगी, राजकपूर ने मुफलिसी के यथार्थ के अग्रदूत के रूप में जाने गए. इसके बाद शम्मी कपूर के लिए पर्दे पर अपना कुछ पेश करना चुनौती पूर्ण था. कुछ भी करते तो दर्शक, समीक्षक, यही कहते, कि अब हीरो कोई भी बने देव - राज - दिलीप की अभिनय कला से अछूता नहीं रहेगा. शम्मी कपूर के लिए रास्ता आसान नहीं था. सबसे बड़ी चुनौती तो घर में ही मिलती थी. उनके बड़े भाई ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब जिनका कद बहुत बड़ा था. दिलीप कुमार, एवं उनके सबसे बड़े राईवल देव साहब दिग्गज जब तीनों पीक पर थे, तब शम्मी कपूर के लिए अपनी हटकर एक अलग पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं था. शुरुआत में खूब आलोचना मिली, कि राजकपूर के भाई नहीं होते तो कोई काम नहीं मिलता. परिवारवाद के कारण हो सकता है, कि आपको काम मिल भी जाए! लेकिन आपको कामयाबी आपकी प्रतिभा के कारण ही मिलेगी. शम्मी कपूर ने खुद को बखूबी साबित किया है. शम्मी कपूर ने वाकई तीनों दिग्गजों से हटकर अपनी पहचान बनाई, शम्मी कपूर ने खुद के लिए अपना अभिनय का एक ध्रुव क्रिएट किया. रॉकस्टार हीरो शम्मी कपूर ने डांस को अपना सिग्नेचर स्टाइल बनाया. शम्मी कपूर खुद ही अपना डांस स्टेप क्रिएट करते थे, उन्होंने कभी भी कोई कोरियोग्राफर की मदद नहीं लिया. एक बार किंवदन्ती बन गए, तो हमेशा बने रहे.
ऐक्टिंग को ईश्वर की देन मानने वाले शम्मी कपूर की कैमरे के सामने बेख़ौफ़, सहजता, आज भी एक मिसाल है. वहीँ ऐक्टिंग पढ़ाने वालों के लिए अनसुलझा रहस्य है. हिन्दी सिनेमा के पहले रॉक स्टार जिन्होंने अपनी अंतिम फिल्म रॉक स्टार में ही काम किया. लुक, रोमांस, डांस मेट्रोपोलिटन सुपरस्टार शम्मी कपूर का स्टारडम, फैन फॉलोविंग देखकर देव साहब ने कहा था, - "मैंने ही अपना सबसे बड़ा राईवल खड़ा किया था. शम्मी कपूर ने देव साहब के सामने कहा था, - "यह बात सही है, देव साहब से ही मुझे स्टारडम अधिकार मिला. शम्मी कपूर की राय थी ऐक्टिंग खुदा की दी हुई नेमत है, लेकिन कैमरे के सामने मजदूरी करनी पड़ती है, कैमरे के सामने उछलना- कूदना आसान काम नहीं है, कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. बची हुई कसर चीज़ किस्मत कर देती है,लेकिन फिल्म चलनी भी तो चाहिए. विरासत में मिली हुई ऐक्टिंग में अपना अंदाज़ जोड़ने वाले शम्मी कपूर जिनकी तुलना अमेरिकन सिंगर एवं अभिनेता एलविस प्रिस्ले से की जाती थी . यूँ तो शम्मी कपूर ने कम फ़िल्में की लेकिन उनकी अधिकांश फ़िल्में सुपरहिट रहीं.
दिलीप साहब ट्रेजडी किंग की छवि से बंधे हुए थे, वहीं राजकपूर शो मैन की भूमिका थे, दोनों के लिए कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं था. हिन्दी सिनेमा में इकलौते ऐसे सुपरस्टार देव साहब थे, जो अर्बन, खूबसूरती, स्टाइल की अदायगी से नुमांइदगी कर रहे थे. ऐसे में देव साहब के सामने एक स्टाइलिश युवा शम्मी कपूर के आने के बाद हिन्दी सिनेमा में राईवेलरी को समीक्षकों ने सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. देव साहब तो अद्वितीय ही रहे. शम्मी कपूर कहते थे, कि देव साहब मेरे लिए प्रेरणा थे, मैं उनका प्रतिद्वंद्वी नहीं था. यूँ तो देव साहब ने ही अपना प्रतिद्वंद्वी खड़ा किया था. शम्मी कपूर कहते थे - "मेरी सुपरहिट फ़िल्मों में सुबोध मुखर्जी की जंगली, पहले देव साहब को ऑफर हुई, देव साहब बहुत व्यस्त थे, तो देव साहब ने मना कर दिया. जंगली फिल्म शम्मी कपूर की सिग्नेचर फिल्म मानी जाती है. जंगली फिल्म ने हिन्दी सिनेमा में शम्मी कपूर नाम स्थापित कर दिया. जंगली फिल्म से शम्मी कपूर स्थापित रॉक स्टार बन गए थे. जब शम्मी कपूर 'तुमसा नहीं देखा' और दिल देके देखो, जंगली के साथ पहले ही स्टार बन चुके थे. शम्मी ने बाहरी लोगों के साथ इस नए रोमांस को भुनाया और उनकी कहानियों को शहर से दूर रखा. जंगली फिल्म की बेशुमार सफलता ने एक नया प्रारूप तय किया,जिसको इन फ़िल्मों में देखा जा सकता है. निर्माता, निर्देशक, नासिर हुसैन की फिल्म तीसरी मंजिल देव साहब को ध्यान में रखकर लिखीं गईं थीं. देव साहब फिल्म साइन भी कर चुके थे, नासिर एवं देव साहब दोनों जिगरी दोस्त थे. एक पार्टी में विजय आनन्द को लेकर कोई बात बिगड़ गई. देव साहब ने फिल्म करने से मना कर दिया. नासिर ने देव साहब को मनाने की खूब कोशिश की, यहां तक कि मध्यस्थता में माहिर विजय आनन्द की भी मदद ली. देव साहब नासिर के साथ कभी फिल्म न करने की कसम खा चुके थे. आख़िरकार शम्मी कपूर को फिल्म मिली,तीसरी मंजिल फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई.
शम्मी कपूर कहते थे, - "तुमसा नहीं देखा, दिल देके देखो, आदि फ़िल्में अगर देव साहब ने कर ली होतीं तो देव साहब तो देव साहब ही रहते, लेकिन मैं नहीं होता. शम्मी कपूर देव साहब के लिए हमेशा आदर्श बड़े भाई के रूप में ही देखते थे. दोनों ने कभी अदावत जैसा नहीं माना. शुरू में अपने ज़माने की बड़ी हीरोइनों में मधुबाला, नूतन, सुरैया, गीता बाली, नलिनी जयवंत, आदि के साथ अठारह फ्लॉप फ़िल्में देने वाले शम्मी कपूर आने वाले दिनों में उस दौर की युवा नायिकाओं शर्मिला टैगोर, आशा पारिख, सायरा बानो, आदि के लिए वरदान सिद्ध हुए, एवं सफलता की गारंटी माने जाते थे.
फिल्म निर्माताओं ने तब विदेशों में अपनी फ़िल्मों का व्यवसाय शुरू कर दिया था. लव इन टोक्यो, एन इविनिंग इन पेरिस, जैसी फ़िल्मों ने बैकग्राउंड, लोकेशन में आधुनिकीकरण के लिए विदेशी लोकेशन, स्विटजरलैंड, पेरिस, लंदन, टोक्यो में शूटिंग किया. यह दौर भारतीय दर्शकों को विदेशी दृश्यों, विदेशी जीवन - शैली को दिखाने का तरीका था. ईस्टमैन कलर' में फिल्माई गई, जंगली ने कश्मीर की पूरी सुंदरता को सामने लाया. फिल्म की सिलवान सेटिंग और बर्फ से ढकी पहाड़ियां दर्शकों के लिए और रोमांच का अहसास कराती थीं. यह एक अनोखा एवं नया अनुभव था. एक सफल प्रयोग भी था. जंगली फिल्म की रिलीज़ के वर्ष, तीन अन्य साउंडट्रैक थे, जो बहुत लोकप्रिय हुए, हम दोनो, गंगा जमुना और जब प्यार किससे होता है. तीनों फिल्मों में लगातार अच्छा संगीत था, लेकिन जंगली का संगीत कुछ और था, अज़ीब था, नया था, 'एहसां तेरा होगा मुझे पर' के सुरों से लेकर 'कश्मीर की कली हूं में शानदार युगल गीत 'मेरे यार शब्बा खैर' तक, हर दर्शकों और श्रोताओं द्वारा गीत को बहुत खुशी के साथ प्राप्त किया गया था.
फिल्म देखने वालों के बीच जंगली की अपील और लोकप्रियता को दर्शाने वाला गीत 'याहू! चाहे कोई मुझे जंगली कहे! “इस गाने ने लोगों में जुनून भर दिया था. इसका बहुत असर हुआ. यह उस दौर में बहुत पॉपुलर गीत था. उस दौर के युवाओं में मस्ती, ट्रिप, पिकनिक, पार्टी में इसने ट्रेंड स्थापित किया था. आज भी लगता नहीं है यह गीत इतना पुराना है! लगता है आज भी उतना ही मारक और प्रासंगिक है. सुनते हुए अंदर एक हलचल पैदा होती है, एवं गीत सुनते हुए मन खुश होता है. हम सुनते हुए गाने की मस्ती में बह जाते हैं. उस गीत के साथ एक सुखद एहसास जुड़ा है. सैकड़ों बार यह गीत सुना और गुनगुनाया मन एक हवा के साथ बह जाता है उस अनुभव को शब्दों से बताना मुश्किल हो रहा है. रऊफ अहमद ने अपनी पुस्तक शम्मी कपूर: द गेम चेंजर में लिखा है - "शुरुआत में जयकिशन ने 'याहू' को चिल्लाने का काम लिया था. जब यह महसूस किया गया था कि मोहम्मद रफ़ी के लिए ऐसा करना अव्यावहारिक होगा. रफी साहब प्रतिष्ठित गायक थे, सुरमाई शख्सियत के मालिक थे. उनकी इस असहजता को कविराज शैलेन्द्र समझ गए और उन्होंने इसका उपाय किया, जबकि उच्च स्वर गाते हुए संख्या, " लेकिन पहले दो रिहर्सल के बाद जयकिशन की आवाज कर्कश होने लगी. प्रयाग राज को तब बुलाया गया था, क्योंकि वह एक प्रशिक्षित गायक थे. उन्होंने अक्सर कोरस में शंकर-जयकिशन के लिए गाया था. प्रयाग चुनौती के लिए तैयार थे, और रफ़ी के साथ दो बार अभ्यास करने के बाद, गीत को आठ रीटेक में रिकॉर्ड किया गया था. अहमद कहते हैं, "प्रयाग राज को सामान्य होने में लगभग दो महीने लग गए. यह उस गीत की सफलता थी.
एक एहसास जो सबकुछ पा लेने के बाद की खुशी को बयां करता गीत है. फिल्म में शम्मी कपूर एवं सायरा बानो कश्मीर में एक तूफान में फंस जाते हैं. फिल्म में शम्मी कपूर एक मगरूर आदमी के रोल में थे, जिनका आम जनजीवन से कोई मतलब नहीं था.वॊ सायरा बानो को अपरिपक्व, लड़की समझते. किसी शायर ने क्या खूब कहा है, - "मुहब्बत को करीब से देखने का एक यह रूप होता है कि आप सोती हुई लड़की को देखेंगे, वो एक लड़की से कब आपकी नायिका बन जाए, हो सकता है भावनाएं काबू करना मुश्किल हो जाए. शम्मी कपूर के साथ यही हो जाता है. उन्होंने मुहब्बत को नजदीक से देखा ही नहीं उसकी धड़कन को भी सुना. फिर दुआ करते हैं - "भगवान तूफान रोक दो फिर कभी कुछ नहीं मांगूंगा, क्योंकि अब मुझसे अपनी भावनाएं बस में करना मुश्किल हो रहा है. यकायक तूफान रुक जाता है, वो याहू... याहू... चिल्लाने लगते हैं. सायरा बानो भी अज़ीब खुशी को महसूस करती हैं कि जिसको पत्थर समझा वो तो इंसान है, बल्कि ऐसा इंसान जो प्यार कर सकता है. दोनों तूफान रुक जाने एवं दोनों के अंदर की खुशी एवं इजहार ए मुहब्बत को बयां करते हुए गीत का सुखद एहसास है. जिसमें कितने नायक - नायिकाएं डूब गईं. जब भी हिंदी सिनेमा में एक शानदार सफर में नायक को याद किया जाएगा, तो शम्मी कपूर याद आते रहेंगे.
शम्मी कपूर की कामयाबी में सबसे बड़ा रोल रफी साहब का भी रहा है. हिन्दी सिनेमा में रफ़ी साहब ने सबसे ज्यादा शम्मी के लिए गाया. क्लासिकल, ग़ज़ल के उस्ताद रफी साहब शम्मी कपूर की इमेज का पूरा ख्याल रखते थे. रफी साहब ने बखूबी वेस्टर्न कल्चर के गाने गाकर हरफ़नमौला सिंगिग में खुद को अमर कर दिया. ये चाँद सा रोशन चेहरा, बदन पर सितारे लपेटे हुए, चाहे मुझे कोई जंगली कहे, जैसे रॉक गाने लगभग डेढ़ सौ ज्यादा हैं जो आज भी गुनगुनाए जाते हैं, खूब डांस भी किया जाता है, पार्टियों में आज भी बजाए जाते हैं, यूँ तो रफी साहब पर सभी अपना अधिकार सिद्ध करते थे, यह मुहब्बत रफी साहब महसूस करते हुए भावुक हो जाते थे. एक बार जुबली कुमार से मशहूर राजेन्द्र कुमार एवं शम्मी कपूर दोनों रफी साहब के सामने बहस कर रहे थे, कि मेरे लिए रफी साहब ने ज्यादा अच्छे गाने गाए हैं, हालांकि ऐसा सुनना आम बात है कि आपके लिए अच्छे गाने गाए हैं, मेरे लिए नही. रफ़ी साहब ने दोनों को सुनकर की दोनों कह रहे हैं कि रफी साहब ने मेरे लिए ज्यादा अच्छा गाया है. रफ़ी साहब अजूबा थे, यह मुहब्बत देख कर रफी साहब रोने लगे थे.
शम्मी कपूर अपनी निजी जिंदगी में भी बहुत ही शानदार इंसान थे. अपनी फिल्मी यात्रा के दौरान वो हमेशा गीता बाली को प्रोपोज करते रहते थे, गीता बाली से पहले उनका पहला प्यार नूतन थीं, कहा जाता है कि उनकी शादी तय हो गई थी, आख़िरकार सुपरस्टार मोतीलाल के कहने पर शादी टूट गई. शम्मी कपूर गीता बाली को चाहने लगे. कई बार प्रपोज करने के बाद गीता बाली कहती हैं कि मैं तुमसे शादी के लिए तैयार हूं. गीता बाली एवं शम्मी कपूर दोनों कॉमेडियन जॉनी वॉकर के पास पहुंचकर कहते हैं,कि हमे भी आपकी तरह शादी करना हैं. जॉनी हँसकर कहते हैं - "मैं इमाम के पास गया था, तुम्हें मंदिर जाना होगा, शम्मी कपूर ने जुनून से शादी कर ली... कुछ ही सालों में असामयिक उनकी पत्नी का निधन हो गया शम्मी कपूर के लिए आजीवन अपूरणीय क्षति थी. कई महीने बाद फ़िल्मों में लौटे. सन 1964 में आई फिल्म राजकुमार की शूटिंग के दौरान हाथी में बैठकर ' गीत यहां के हम राजकुमार' शूटिंग करते हुए गिर गए, जिससे उनका पैर टूट गया. इससे पहले जंगली फिल्म याहू गीत की शूटिंग के दौरान भी उनके दोनों पैर टूट गए थे, आखिरकार राजकुमार की शूटिंग के दौरान उनको खामियाज़ा उठाना पड़ा, यही डांस, एनर्जी ही उनके लिए मुसीबत बन गई. डेढ़ साल बाद फ़िल्मों में फिर से वापस आए, लेकिन उनको लगा कि अब मैं वैसे डांस, नहीं कर पा रहा, ज्यादा आराम करने के कारण उनका वजन बढ़ गया. बाद के दिनों में एवं शुरू के सालों के शम्मी कपूर को पहिचानना मुश्किल है. आखिरकार अपने वजन बिगड़ चुके लुक के कारण शम्मी कपूर ने अपनी दूसरी पारी शुरू किया. अपनी दूसरी पारी में उन्होंने शानदार यात्रा तय की. दूसरी पारी में धुरंधर ग्रेट संजीव कुमार, दिलीप कुमार के साथ भी प्रभावी रहे. बाद में विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, जैकी शॉफ, भतीजे ऋषि कपूर, मिथुन आदि के साथ ग़ज़ब की ट्यूनिंग बनी. अपनी दूसरी पारी में दमदार आवाज अभिनय के लिहाज से वो दो तीन ग्रेट अभिनेताओं में शुमार हैं, जो इतने कामयाब रहे. दूसरी पारी में सत्तर के दशक से अंतिम नब्बे के दशक तक ऐक्टिव रहे. फिर उन्होंने हिन्दी सिनेमा से सन्यास की घोषणा कर देने के बाद भी 2011 में पोते रणबीर कपूर के प्यार में हिन्दी सिनेमा के पहले रॉकस्टार ने अपनी आखिरी फिल्म 'रॉकस्टार' में काम किया. और 14 अगस्त 2011 को शम्मी कपूर इस फानी दुनिया को छोड़कर अनन्त में विलीन हो गए. हिन्दी सिनेमा के पहलेे रॉक सुपरस्टार को मेरा सलाम.
दिलीप कुमार पाठक
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