ये कैसा अमृतकाल??

ये कैसा अमृतकाल ? 

मोदी सरकार देश में आज़ादी का अमृतकाल मना रही है. आज़ादी का अमृतमहोत्सव मानना बुरा नहीं है लेकिन इस जश्न में ज़रूरी मुद्दो को ढंक देना कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता. पिछले कुछ सालों से देश में पुल गिरना, सडकें बह जाना, हाईवे धंस जाना, एयरपोर्ट की छते गिर जाना, यूनिवर्सिटी ढह जाना, स्कूलों की इमारते गिर जाना, हर दूसरे दिन किसी न किसी ट्रेन के हादसे ये त्रासदियां अब भारतीय आम जीवन के हिस्से बन गए हैं. क्या इससे पहले ये हादसे नहीं हुए? पहले भी हुए हैं लेकिन हादसे यदा-कदा होते थे तो लोगों में उसके प्रति रोष होता था सरकारें ज़िम्मेदारी लेती थीं, लेकिन अभी तक का अनुभव कहता है कि देश में बहुत सी सरकारें हुई हैं लेकिन मोदी सरकार सबसे ज़्यादा असंवेदनशील सरकार सिद्ध हुई है.. मोदी सरकार की असंवेदनशीलता देखिए जिन रेलमंत्री से हादसे नहीं सम्भल रहे वे रेलमंत्री सदन में शर्म से ज़िम्मेदारी लेने की बजाय छाती ठोंककर कह रहे हैं कि देश में कोई हादसे नहीं हुए, हम काम करने वाले लोग हैं, विपक्ष छोटी - मोटी घटनाओं को मुद्दा बनाकर जनता को गुमराह कर रही है. क्या हादसे में मरने वाले लोगों की जान की कीमत मंत्री की नज़र में छोटा मुद्दा है? कितनी शर्म की बात है जिन रेलमंत्री को शर्म से इस्तीफा देना चाहिए था, वे आँखे दिखाकर विपक्ष को डांट रहे हैं. वही पीएम के असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा देखिए वे उन्हीं गैरजिम्मेदार मंत्री को दूसरे मंत्रालयों का अतिरिक्त प्रभार सौंप रहे हैं. हमारे देश में ऐसा भी कल्चर रहा है जब किसी भी हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री इस्तीफा दे देते थे. लेकिन ये आदर्श दौर की बातेँ मोदी सरकार के लिए मज़ाक बनकर रह गईं हैं. 
यह सच है, कमियां सभी में होती हैं दुनिया की ऐसी कोई सरकार नहीं जिससे गलतियां न हुई हों. लेकिन गलतियाँ स्वीकार की जाती हैं तो जनता में एक संदेश जाता है. कम से कम यह सरकार नागरिक अधिकारों के लिए तत्पर है. वहीँ संवेदनशील है. अभी पिछले कुछ सालों से देश में पेपर लीक के मामले खूब सुनाई दे रहे हैं. देश का युवा वर्ग सड़कों पर उतर आया, देश भर में छात्र पेपर लीक से परेशान हैं, परीक्षाएं रद्द कर दी गईं, अपराधी भी पकड़ लिए गए लेकिन देश के शिक्षा मंत्री का गैरजिम्मेदाराना रवैय्या, असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा देखिए वे सदन में कह रहे हैं कि देश में कोई पेपर लीक नहीं हुआ !! विपक्ष को कोसते हुए कह रहे हैं आप तो सिर्फ़ राजनीति के लिए मौके तलाश रहे हैं. जबकि इन्डिया टुडे का आंकड़ा कुछ और ही कहता है. पिछले पांच सालों में जिन पेपर लीक के बारे में पता चला है उनमें से 45 एग्जाम सरकारी विभागों में अलग-अलग पदों पर भर्ती के लिए थे. इनमें से कम से कम 27 एग्जाम या तो रद्द कर दिए गए या टाल दिए गए. सबसे ज्यादा पेपर लीक उत्तर प्रदेश में हुए, वहां 8 मामले सामने आए. इसके बाद राजस्थान और महाराष्ट्र में 7-7 पेपर लीक हुए. बिहार में 6, गुजरात और मध्य प्रदेश में 4-4 पेपर लीक हुए हैं. NEET UG ही नहीं, साल 2019 से अब तक पूरे भारत में 19 राज्यों में कम से कम 65 बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं. ये वो मामले हैं जिनमें या तो एफआईआर दर्ज हुई है, लोगों को गिरफ्तार किया गया है या फिर एग्जाम रद्द कर दिए गए. इंडिया टुडे ओपन सोर्स इंटेलिजेंस की टीम द्वारा डेटा एनालाइज करने पर यह खुलासा सामने आया है.. क्या मंत्री की कोई जिम्मेदारी नहीं है?? क्या प्रधानमंत्री को पूछना नहीं चाहिए कि आप जिम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं. 

इस अमृतकाल की क्रूर सच्चाइयों को देखिए जो प्रधानमंत्री के अट्टहास में छिपा दी जाती हैं. पिछले कुछ सालों से पुल गिरने की घटनाएं ऐसे सामने आ रहीं हैं जैसे बच्चों के रेत में घरोंदे गिर जाते हैं.. देश भर में सोशल मीडिया में इनका मज़ाक बनाया जा रहा है, लेकिन मज़ाक से हटकर देखा जाए तो ब्रिजो, विद्यालय, एयरपोर्ट, सडकें, पेपर लीक आदि ये सब बहुत भयावह है. मोदी सरकार ने नए संसद भवन का निर्माण कराया, उसका विडिओ वायरल हुआ है उसमे साफ देखा जा सकता है कि उसकी छत टपक रही है. ये कैसा विकास है? देश की सबसे जरूरी इमारत पर भी ऐसी लापरवाही चिंता का विषय है. बिहार जुलाई के महीने 18 दिनों में 12 पुल गिर गए. जब सबसे पहले अररिया जिले में सिकटी प्रखंड में एक पुल गिरा था. इसके बाद पुल गिरने का सिलसिला शुरू हो गया और एक पखवाड़े में करीब 10 पुल गिर गए. अगर छोटे मोटे पुलों को मिलाकर देखें तो 3 जुलाई को तो एक दिन में ही पांच पुल गिर गए थे . ये सब मज़ाक के विषय नहीं है अपितु घोर चिन्ताजनक है. एनसीआरबी के डेटा के हिसाब से बताया गया है कि साल 2012 से 2021 के बीच 214 पुल गिरने के केस दर्ज हुए हैं. पुलों के गिरने से न जाने कितनी जाने जाती हैं, जिस घर का इंसान मरता है उसके बच्चों की वेदना पुल गिरने की खबर में छुप जाती हैं. उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?? साल 2022 में गुजरात के मोरबी में एक पुल गिरने का हादसा हुआ था, जब मच्छु नदी में बने पुल के टूटने से 141 लोगों की मौत हो गई थी. प्रधानमंत्री मोदी को इस पुल का जायजा लेने जाते हुए अलग ड्रेस में.. वहीँ पुल के पास अलग ड्रेस में देखा गया था. पीएम का गैरजिम्मेदाराना रवैय्या, उनकी असंवेदनशीलता साफ़ - साफ दिखाई दी. जब किसी राज्य में कुछ होता है तो पीएम कोसने लगते हैं, वहीँ बीजेपी शासित प्रदेशों में कोई हादसा, दुर्घटना हो जाए तो पीएम बाकायदा दौरा करते हैं. वहीँ विपक्ष शासित प्रदेशों के लिए पीएम का रवैय्या ऐसा है कि पीएम को दुख प्रकट करने की भी फुर्सत नहीं मिलती. अभी केरल के वायनाड में दुःखद लैंडस्लाइड हो गया.  जारी रेस्क्यू ऑपरेशन में  308 लोगों के शव या फिर शव का कोई ना कोई हिस्सा बरामद कर लिया गया है. महज 195 लोगों के ही शव मिले हैं, बाकी 105 लोगों के शरीर का कुछ हिस्सा ही बरामद हो सका है... अफ़सोस देखिए प्रधानमंत्री वहाँ जाना तो बड़ी बात है उन्होंने ट्वीट करके शोक प्रकट करना भी ज़रूरी नहीं समझा..  ये कैसा अमृतकाल है?? बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमन्त्री सांसद खुलेआम कहते हैं 'सबका साथ सबका विकास' बंद करना होगा, मतलब जो वोट नहीं देगा उसकी हम कोई मदद नहीं कर सकते!! मोदी सरकार दुनिया की पहली ऐसी सरकार है जो ऐसा रवैय्या रखती है बल्कि खुलेआम उनके मंत्री,  सांसद बोलते भी हैं. क्या अमृत काल में ऐसा बोलने की छूट है? अगर नहीं है तो क्या पीएम को संज्ञान नहीं लेना चाहिए. 

जबलपुर, सूरत में एयरपोर्ट की छत गिर जाती है, अभी हाल फिलहाल बने श्री राम मन्दिर का नया प्रांगण बनाया प्रांगण पहली ही बारिश में बह गया. ये कैसा अमृत काल है?? मणिपुर पिछले एक साल से जल रहा है, लाखो लोग बेघर हो गए. हज़ारों लोग मार दिए गए, बेटियां निर्वस्त्र करके घुमाई गईं, चीफ जस्टिस ने खुद इसका संज्ञान लिया... लेकिन पीएम को मणिपुर नहीं दिखता. राहुल गांधी हमेशा कहते हैं - "कोई भी सांसद सदन में सरकार की आलोचना करता है उसका माइक बंद कर दिया जाता है. क्या अपने देश मे हो रही त्रासदियों पर बोलने पर अमृतकाल में मनाही है?? ये कैसा अमृतकाल है?, आजतक पीएम मणिपुर नहीं गए हैं! ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीतकर लाई बेटियों को पीएम प्रधानमंत्री हाऊस आमंत्रित करते हैं, बल्कि उन्हें सम्मानित भी करते हैं, लेकिन उन्हीं मेडल विजेता बेटियों ने जब कुश्ती संघ के अध्यक्ष बीजेपी के सांसद पर आरोप लगाया तो पीएम ने चुप्पी साध ली!! उन बेटियों को प्रदर्शन तक करने की इजाजत नहीं दी गई.. मेडल विजेता बेटियों को पुलिस ने प्रदर्शन तक नहीं करने दिया.. पूरे देश में मुद्दा छाया रहा लेकिन पीएम ने उनसे मिलने का तो बड़ी बात है बेटियों के लिए एक शब्द तक नहीं कहा!, यह कैसा अमृत काल है? जबकि कहीं चमकता हुआ इवेंट हो तो पीएम तुरंत हाजिर हो जाते हैं. क्या किसी भी संवेदनशील सरकार का यह रवैय्या हो सकता है?? 

देश में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, अपराध, में दिन - प्रतिदिन इजाफ़ा हो रहा है. भारत में जो जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा है, उसके बेरोजगार होने की संभावना उतनी ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट कहती है कि देश के बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं. भारत सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देशों में से एक है और इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े लाभ के रूप में देखा जाता है लेकिन आईएलओ की रिपोर्ट में इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि अधिकतर युवाओं में जरूरी कौशल की कमी है. अब सवाल उठता है? प्रधानमंत्री स्किल योजना जैसी योजनाएं क्या कर रही हैं? 

पीएम खुद दावा करते हैं कि देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है. जिस देश के लोग पेट भरने के लिए सरकार के 5kg राशन पर आश्रित हों.  ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 की रिपोर्ट में आंकड़े आए हैं . इसमें भारत और पिछड़ गया है. इस साल 125 देशों में भारत 111वें नंबर पर है.ग्लोबल हंगर इंडेक्स से पता चलता है कि किसी देश में भुखमरी और कुपोषण के कैसे हालात हैं? रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस मामले में भारत की स्थिति और खराब होती जा रही है. पिछले साल 121 देशों की रैंकिंग में भारत 107वें नंबर पर था. 2021 में 101वें और 2020 में 94वें नंबर पर था. इस साल भारत की रैंकिंग चार पायदान और गिर गई है. पड़ोसी मुल्कि पाकिस्तान (102वें), बांग्लादेश (81वें), नेपाल (69वें) और श्रीलंका (60वें) नंबर पर हैं.
हम भुखमरी में सबसे अव्वल होते जा रहे हैं, वहीँ पीएम देश को विश्वगुरु बनने का सपना दिखा रहे हैं! ये सब कितना हास्यापद है. 

अभी हमारे देश में लोगों को नागरिक अधिकारों की समझ नहीं है. जो सबसे ज्यादा चिंता का विषय है. पिछले कुछ सालों में बेरोजगारी, भुखमरी, अपराध, भ्रष्टाचार खूब बढ़ा है. लेकिन पीएम को बड़ी सहजता के साथ जिन मुद्दों पर बोलना चाहिए उन मुद्दो पर चुप्पी साध जाते हैं.. पीएम उन्हीं मुद्दो पर बोलते हैं जिनमे उनकी मर्जी होती है.. पीएम अपनी आलोचना को सुनना पसंद नहीं करते  अपने बनाए दायरे में रहना पसंद करते हैं. देश जब तमाम तरह की चुनौतियों से गुजर रहा है तब पीएम लोगों को अमृतकाल, विश्वगुरु, पांच ट्रिलियन इकनॉमी बनाएंगे जैसे बड़े - बड़े शब्दों को उछालते हैं... सरकार सहित पीएम का रवैय्या बहुत असंवेदनशील दिखाई देता है. जिन कमियों को दूर करना था, जिन कठिन परिस्थितियों से निपटने की आवश्यकता थी, तत्कालीन परिस्थितियों में मोदी सरकार इन्हें अपनी उपलब्धियों में शुमार कर रही है. 

 दिलीप कुमार पाठक 

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