अश्लीलता के चरम पर ओटीटी

अश्लीलता के चरम पर ओटीटी 

पिछले कुछ सालों से ओटीटी का व्यापार व्यापक रूप से फैल रहा है. ख़ासकर कोविड लॉकडाउन के साथ ही इसके व्यपार में बढ़ोत्तरी हुई है. कोविड के कारण बंद हुए थियेटर्स के बाद यह सिनेमैटिक लोगों के लिए एक नई बयार लेकर आया है. ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने के बाद अब लोगों को घर बैठे ही एंटरटेनमेंट का जरिया मिल गया है. पहले ऑडियंस थिएटर्स जाने के लिए वीकेंड का इंतजार करते थे, लेकिन ज्यादातर लोग अब अपने हिसाब से घर में बैठे-बैठे मूवीज और सीरीज को एंजॉय करना चाहते हैं. दर्शकों में ये बदलाव स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के आने के बाद देखा गया है. ओटीटी अब यूजर्स को घर बैठे उनके मन मुताबिक फिल्में और सीरीज देखने का ऑप्शन देता है, इससे एंटरटेनमेंट का जरिया तो आसान हुआ है, लेकिन इसका व्यापक असर युवाओं में देखा जा रहा है..
 आने वाले दौर में यह एक विकराल समस्या बनने वाली है. 
वैसे भी जब कोई बहुत बड़ा परिवर्तन होता है तो उसके सकारात्मक प्रभाव एवं दुष्प्रभाव उसके साथ ही आते हैं , हालांकि उसके दुष्प्रभावो से भी हमें ही निपटना होता है.  

इससे इंकार नहीं किया जा सकता हालांकि सकारात्मक प्रभाव यह हुआ है कि फिल्मी दुनिया में फैले एकाधिकार के कारण जो उभरते हुए कलाकारों की प्रतिभा के साथ न्याय नहीं होता था, जो सिनेमा की अंदरुनी गुटबाजी, राजनीति के शिकार होते थे, उन्हें ओटीटी प्लेटफॉर्म ने जगह दी है. कहानियाँ लिखने वाले लेखक, कलाकार, निर्देशक, आदि को नए मौके उपलब्ध कराने का काम किया है. ओटीटी आने के बाद मनोरंजन के क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है जो महसूस भी होता है. जहां हिन्दी सिनेमा के कन्टेन्ट में बीते कुछ सालों से एकरसता आ गई थी, तो ओटीटी पर विविध प्रकार का कन्टेन्ट देखने को मिलता है. यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता चरम पर है. 

बीते पिछले कुछ सालों में ऑनलाइन मनोरंजन इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा वृद्धि देखी गयी है. नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, डिज़नी होस्टस्टार, आदि जैसी ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं के मिलने और तेज़, सस्ती इंटरनेट सेवाओं की शुरूआत होने से भारत में ओटीटी कंटेंट की बहुत बड़ी मात्रा खपत हो रही है. डॉ. प्रकृति पोद्दार, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, के मुताबिक यहाँ पर बहुत सारे लोग ओटीटी कंटेंट के उपयोगकर्ता बन गए है. पीडब्ल्यूसी के मीडिया एंड एंटरटेनमेंट आउटलुक 2020 के अनुसार भारत का ओटीटी बाजार 2024 तक दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार बनने की ओर अग्रसर है.ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता के पीछे सबसे बड़ा कारण मनोरंजन के साथ युवाओं को टार्गेट करना है. स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि जैसे गैजेट्स की उपलब्धता और इंटरनेट सेवाओं की पहुंच आसान होने से ओटीटी कंटेंट को कभी भी, कहीं भी देखने की सुविधा मिल जाती है.  विशेष रूप से युवाओं को फ्रेश कंटेंट, दिलचस्प प्लॉट्स और किरदारों और परिस्थितियों की यथार्थवादी प्रस्तुतियों के प्रतिनिधित्व से ओटीटी कंटेंट को ज्यादा देख रहे हैं, इन कंटेंट के साथ वे खुद को जोड़ कर देखते हैं. जबकि कुछ कंटेंट शिक्षित और सूचनात्मक है, कुछ हिंसक, अश्लील सामग्री को इस तरह से दिखाया जा रहा है जो दर्शकों के मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर रहे है.हिंसा, ड्रग्स, सेक्स और अपराध की संवेदनशीलता को बढ़ा रहे हैं जिससे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है और सोशल स्किल में गिरावट हो रही हैं.

बड़ी बात ये है कि सरकार ने क्या इसके लिए कोई नियम कायदे बनाए? क्या ओटीटी के गुणवत्ता मापने का कोई मानक है? नहीं है! सबसे विचित्र है निजता के अधिकार का हवाला देते हुए अश्लीलता, अभद्रता को बढ़ावा देते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बेचा जा रहा है. अश्लीलता, अभद्रता किसी भी स्वस्थ्य समाज़ के लिए हानिकारक होती है, इससे जितना परहेज़ हो सके किया जाना चाहिए. ओटीटी प्रबंधकों का कहना है कि अभी ओटीटी शुरू ही हुआ है पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ अतः अभी हमें छूट दी जानी चाहिए, हमें सपोर्ट किया जाना चाहिए! लेकिन क्या इनके प्रबंधकों ने सामाजिक, नैतिक जिम्मेदारी उठाई हुई है? बड़ा सवाल है. 

ओटीटी ही नहीं सभी को खरीदने-बेचने की अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, फिर भी किसी भी प्रॉडक्ट की गुणवत्ता की जाँच तो होना ही चाहिए. एक दौर था, जब सोशल मीडिया आया था, मनोरंजन के रूप में आया था, उसके विपरीत सोशल मीडिया आज मेन स्ट्रीम मीडिया को गाइड कर रहा है, और उसके अब तक मेन स्ट्रीम मीडिया को लगभग - लगभग कमज़ोर कर दिया है या यूं कहें कि उसके एकाधिकार को खत्म कर दिया है... बहुत हद तक उसको संचालित भी करने ही वाला है. मेन स्ट्रीम मीडिया में फैले हुए एकाधिकार के कारण जो उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर सकते थे, जिनके पास संसाधन की कमी थी, सोशल मीडिया ने वह जगह तो दी है, हालांकि आज सोशल मीडिया में किसी की भी इमेज ख़राब की जाती है या चमकाई जाती है. इसके अपने नकारात्मक प्रभाव हैं जो सम्भवतः विकराल समस्या बनने वाली है या रूप धारक कर चुकी है. जो लगाम लगाने से बहुत दूर की बात हो चुकी है. 

ओटीटी अभी कुछ सालों से शुरू ही हुआ है, इसलिए इस को स्वस्थ मनोरंजन के रूप में तैयार करना सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कन्टेन्ट इतना अभद्र है कि उसे आप अपने परिवार के साथ स्वस्थ्य माहौल में देख भी नहीं सकते. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की घोर लापरवाही कहिए इस पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं है. निजता अधिकार के नाम पर वेब सीरीज पर औसतन हर पांच मिनट में गंदी गालियां होती हैं, वहीँ हर मिनट में कोई न कोई अश्लील शब्द बोला जाता है. खुलेआम अश्लीलता बेची जा रही है. हाँ इसमे इतनी पर्दादारी है कि हमारे युवा हेड फोन लगाकर देखते - सुनते हैं. उसके लिए क्या अधिकार है? दस से पंद्रह एपिसोड की सीरीज में लगभग हर मिनट में गलियाँ, अश्लीलता, देखेंगे तो मानसिक रूप से युवाओ को तार्किक तैयार कर रहे हैं या हिंसक, अभद्र बना रहे हैं?? गालियाँ, अभद्रता किस सभ्यता में उचित है? या कौन सी आधुनिकता है जो गाली - गलौज को बेचना भी निजता के अधिकार क्षेत्र में आता है ! दुनिया की ऐसी कोई सभ्यता नहीं है जो गाली, अभद्रता, अश्लीलता को उचित मानती हो. करोड़ों ओटीटी ग्राहकों में अधिकांश युवाओं की संख्या ही है इस प्लेटफॉर्म पर तार्किक, रिसर्चरों, दार्शनिकों, विचारक प्रवृत्ति के लोगों की संख्या नहीं है. 

ओटीटी प्लेटफॉर्म से पर चल रहे अश्लीलता, अभद्रता के व्यापार पर लगाम या इस प्रॉडक्ट के लिए मानक तय किए ही जाने चाहिए. फिर भी आपको अपने बच्चों, या आसपास के लोगों की निजता के अधिकार के नाम पर अभद्रता, हिंसा को बेचना है तो सचमुच मुझे आपसे कुछ नहीं कहना..... सोचिए ज़रूर!!!!! क्या आज के युवा यह देखकर तार्किक बनेंगे या महज एक अभद्र बाजार के रोबोट रूपी ग्राहक!! वैसे भी एक जिम्मेदार नागरिक एवं ग्राहक होने के नाते हम सभी को प्रत्येक प्रोडक्ट के मानक जांचने का हक है. और लोगों को प्रेरित करने का भी...इसलिए यह लिखना आवश्यक है कि गालियां, अश्लीलता, अभद्रता यह व्यवहारिक रूप से भी गलत है, तो नैतिकता के आधार पर इस पर पाबंदी लगाई जाने की दरकार है. 

                    दिलीप कुमार पाठक 

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