*मास्टर मदन' भुला दिए गए एक गायक की मार्मिक दास्तान

*मास्टर मदन' भुला दिए गए एक गायक की मार्मिक दास्तान*
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'मास्टर मदन' एक ऐसा नाम जो संगीत की दुनिया से ताल्लुक़ रखता है लेकिन भुला दिया गया. क्या आप सभी जानते हैं?? जी हां 'मास्टर मदन' एक भुला दिए गए गायक की दास्ताँ हैं, जिन्हें 14 साल की उम्र में ज़हर देकर मार दिया गया. मास्टर मदन हल्की सी उम्र में ही एक ख्याति प्राप्त गायक बन गए थे... लेकिन नियति ने उन्हें इस दुनिया में रहने लायक ही नहीं समझा, और अपने साथ अल्पायु में ही ले गई. 

'मास्टर मदन' बहुत कम उम्र में ही इस दुनिया से रुख़सत कर गए.. 'मास्टर मदन' शांत स्वभाव के धर्मनिष्ठ बालक थे. उनका परिवार उन्हें बाल योगी एक तपस्वी की तरह उन्हें सम्मान देता था. उनकी बहन शांति देवी का कहना था - "मदन गुरु नानक की रेशम से लिपटी एक तस्वीर, एक माला, एक गुटका हमेशा अपने साथ रखते थे". इतनी सी छोटी उम्र में गायक होते हुए भी इतने आध्यात्मिक थे, सोचा जा सकता है 'मास्टर मदन' कितने अनोखे बालक संत प्रवृत्ति के गायक थे. छोटे से बालक को इस रूप में देखना बेहद दिलचस्प रहा होगा. 

1930 के दशक से ही मास्टर मदन ने मात्र 3-4 वर्ष की अल्प आयु में ही शास्त्रीय रागों पर आधारित रचनाओं का गायन प्रारम्भ कर दिया था. मास्टर मदन दीर्घायु प्राप्त करते तो हिन्दी सिनेमा के पार्श्व गायन में उनका नाम सम्भवत: रफ़ी साहब जैसे महान गायकों की श्रेणी में पहले आता.. 'मास्टर मदन' रफ़ी साहब से बमुश्किल 3-4 साल छोटे थे, लेकिन जब 'रफी साहब' गायक भी नहीं बने थे तब ही 'मास्टर मदन' को पूरा हिन्दुस्तान जानता था. 

अफ़सोस इतने प्रसिद्ध गायक 'मास्टर मदन' की दो ग़ज़लें ही रिकॉर्ड हो सकीं थीं. "यूं न रह-रह के हमें तरसाइए" और "हैरत से तक रहा जहान-ए-वफा मुझे" दोनों ग़ज़लें सौगात तो हैं ही साथ ही दोनों ग़ज़लें उनके होने की गवाही भी देती हैं. इन ग़ज़लों को लिखने वाले शायर 'सागर निज़ामी' थे, जिन्हें 1935 में रिकॉर्ड किया गया था. इसके साथ ही रिकॉर्ड किए गए दो पंजाबी गीत, दो ठुमरी, दो गुरबानी भी हैं. अभी कुछ सालों पहले एचएमवी की सीडी 'ग़ज़ल का सफ़र' आई थी, जिसमें मास्टर मदन' की दोनों ग़ज़लें शामिल थीं, जिनका चयन गज़लों के बादशाह स्वः जगजीत सिंह जी ने किया था... ग़ज़ल बादशाह स्वः जगजीत सिंह जी 'मास्टर मदन' के बहुत बड़े फैन रहे हैं. उन्होंने कई बार उनकी ग़ज़लों को अपने मंचों से गाते हुए उनका नाम लेकर बताया है. 

1931 - 32 में 'मास्टर मदन' ऑल इंडिया रेडियो के साथ काम करते थे. गायक बालक मास्टर मदन की हैसियत इस बात से समझी जा सकती है कि आकाशवाणी के इस लाइनअप में उनके साथ महान उस्ताद 'बड़े गुलाम अली', 'दिलीप चंद्र वेदी', 'दीना क़व्वाल', 'मुबारक अली', फतेह अली' जैसे दिग्गजों के साथ मास्टर मदन भी थे, जो कि उनकी उम्र के हिसाब से देखा जाए तो वो छोटे बालक ही थे लेकिन अपनी प्रतिभा के धनी 'मास्टर मदन' बड़े - बड़े उस्तादों के साथ मंच साझा करते थे. मास्टर मदन उस समय के प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल के बहुत क़रीब थे जिसका कारण दोनों का ही जालंधर का निवासी होना था. 

तब तक 'मास्टर मदन' की लोकप्रियता अपने फलक पर थी. अपने बड़े भाई के साथ मिलकर देश भर में शो करते थे. ये दौर आज़ादी से पहले का था, देश भर के राजा - महाराजा 'मास्टर मदन' को अपनी रियासतों, अपने दरबार में प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित करते थे. अपने शहर में प्रस्तुति देने के लिए 'मास्टर मदन' को 80 - 100 रूपए मिलते थे, वहीँ शहर से बाहर उन्हें 250 - रुपए मिलते थे, यह 1930 के दशक के लगभग की बातेँ हैं समझ सकते हैं कि 'मास्टर मदन' कितने महंगे गायक रहे होंगे. खाने - खेलने, आराम करने की उम्र में दूर दराज के राज्यों की यात्राएं, कई - कई घण्टों मंच पर प्रस्तुति देने का सिलसिला काफ़ी सालों पुराना था. 

'मास्टर मदन' के परिवार में दौलत की बारिश हो रही थी, राजा महाराजाओं से बेशकीमती उपहारों का भर - भर कर आना, उनके घर के लोगों को लालची बना दिया. उनके बड़ों ने उनके बचपन, उनकी सेहत पर न ध्यान देते हुए, सिर्फ दौलत को प्राथमिकता दी. ज़्यादा यात्राओं के कारण 'मास्टर मदन' का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. अब तक उनकी उम्र 14 साल थी ; एक बार 'मास्टर मदन' एक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने के लिए कलकत्ता गए थे, इस मंच में उन्होंने लगातार दो घण्टे तक राग बागेश्वरी में एक ही गीत गाया, और महफिल में ऐसा समां बांधा की कार्यक्रम खत्म होने के बाद भी श्रोता अपने घरों में जाने के लिए तैयार नहीं थे, इस गीत के बोल थे "विनती सुनो मोरी अवधपुर के बसिया" जब यह गीत खत्म हो जाता तो श्रोता वंस मोर कहकर फ़िर से इसी गीत को सुनने का अनुरोध करते. उनकी ज़िन्दगी के आख़िरी शो में उनके श्रोता उन्हें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उस शो में ढेर पैसे की बारिश हुई उस दौर में एक बड़े सेठ ने उन्हें 500 रुपए का पुरुस्कार दिया. इसके अलावा नौ लोगों ने उन्हें एक - एक स्वर्ण पदक से सम्मानित किया... 

कोलकाता कंसर्ट के बाद 'मास्टर मदन' दिल्ली लौट आए, और लगातार चार महीने तक दिल्ली के आकाशवाणी रेडियो स्टेशन में अपनी प्रस्तुति देते रहे. इसी दौरान उनकी तबियत बिगड़ने लगी, जानना ज़रूरी है कि उनकी तबियत नासाज़ होने का कारण क्या था? ऐसा लिखा गया है कि उनकी कामयाबी, शोहरत से जलने वालों में तब के उभरते हुए सिंगर्स में असुरक्षा की भावना पैदा हो गई थी, ईर्ष्या, नफ़रत में डूबे गायकों ने देश के एक प्रसिद्ध उभरते हुए गायक को दूध में पारा मिलकार मार डाला था, यही उनकी मौत का कारण बना. 05 जून 1942 को करीब साढ़े 14 साल की उम्र में देश का उभरता गायक लोगों की ईष्या का शिकार हो गया. जैसे ही 'मास्टर मदन' के मौत की ख़बर पुख्ता होकर लोगों तक पहुंची उनके चाहने वाले शोक में डूब गए.. बदहवास उनके दीवाने लोग शिमला में उनके घर की तरफ दौड़ पड़े... लगभग - लगभग पूरा शहर शांत हो गया था, शोक में पूरा शहर बंद कर दिया गया. उनकी अंतिम यात्रा में हज़ारों लोगों की भीड़ एकत्र हुई थी... अब तक मिले सभी पदक पहने यह फनकार अपनी यात्रा में गया और खाक हो गया. 'मास्टर मदन' के खाक होने के साथ ही उनके चाहने वालों के अरमान भी जलकर खाक हो गए जो उनकी लंबी जीवन यात्रा को देखना चाहते थे. 

मौत को 8 दशकों से ज्यादा वक़्त बीत गया है लेकिन आजतक उनकी मौत का कारण पुख्ता नहीं है. उनके मौत की बातेँ कई तरह से पढ़ने को मिलती हैं, हालांकि सभी में एक बात मिलती है कि उन्हें ज़हर देकर ही मारा गया था, हालांकि ज़हर कहाँ दिया गया जगह पुख्ता नहीं है. एक कहानी कहती है कि अंबाला में एक लड़की ने उन्हें कोठे में बुलाया, और पान खिला दिया, जिसमें ज़हर था, और उनकी मौत हो गई ; तो एक कहानी कहती है कि 'मास्टर मदन' को उनके आख़िरी कोलकाता कंसर्ट में ही ज़हर दे दिया गया था, जो धीरे-धीरे उनके शरीर में फैलता गया और वही मौत का कारण बना. एक और कहानी बताती है कि दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियो में उनके एक क्रूर साथी कलाकार ने उनके पेय पदार्थ में पारा मिला दिया जो मौत का कारण बना.... ऐसी कई कहानियां सुनने - पढ़ने को मिलती हैं, हालांकि मौत का कारण ज़हर ही माना जाता है, इसके पीछे कौन था इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है... 

एक क्रूर सोच के कारण संगीत की दुनिया छोड़ कर एक गायक असामयिक चला गया. लेकिन उससे भी ज़्यादा अफ़सोस की बात है कि मुश्किल से ऑल इंडिया रेडियो अभिलेखागार में उनकी 08 रिकॉर्डिंग ही सुरक्षित रखी गईं हैं जिनमे दो गजलें, दो पंजाबी गीत, दो ठुमरी, दो गुरबानी भी हैं. जबकि उन्होंने लगभग दो सालो तक ऑल इंडिया रेडियो में अपनी गायिकी प्रस्तुत की थी. शुक्र है कि ऑल इंडिया रेडियो ने उनके 08 गाए गीतों को सुरक्षित रख लिया अन्यथा आज लोग इस बात पर भी यकीन नहीं करते कि 'मास्टर मदन' नामक कोई गायक इस दुनिया में आया था.. इसीलिए ही आर्टिकल के शुरुआत में कहा कि ये गजलें केवल ग़ज़लें नहीं है, वो 'मास्टर मदन' के होने की गवाही देतीं हैं. 

2022 में नेटफ्लिक्स में अन्विता दत्त की 'कला' नामक एक फ़िल्म रिलीज हुई थी, जिसमें सुपरस्टार इरफ़ान के बेटे बाबिल खान स्वास्तिका मुखर्जी एवं तृप्ति डिमरी थीं. इस फ़िल्म में बाबिल ने जगन नामक एक उभरते हुए गायक की भूमिका निभाई है, जो 'मास्टर मदन' की ज़िन्दगी से प्रेरित किरदार है... यह फिल्म अपने आप में बेहद दिलचस्प है. 'मास्टर मदन' जैसे सात्विक बालक जो गायक भी थे, उनके साथ गुज़री सोचकर वाकई दुःख होता है. दौर कोई भी रहा हो ईर्ष्या, क्रूरता ऐसे ही व्याप्त थी. ग़र हम इतिहास उठाकर देखें तो पाते हैं कि बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं के खिलाफ़ क्रूरता की कहानियाँ भरी पड़ी हैं... आज भी न जाने कितने ही 'मास्टर मदन' जैसे बालक अन्याय पूर्ण तरीके से मार दिए जाते हैं.. ख़ैर 'मास्टर मदन' की ज़िन्दगी अपने आप में एतिहासिक क्रूरता की कहानी कहती है. 'मास्टर मदन' भुला दिए गए एक गायक की दास्तान है. 

दिलीप कुमार पाठक

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