'ये चाँद सा रोशन चेहरा'

'ये चाँद सा रोशन चेहरा'
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'ये चाँद सा रोशन चेहरा जुल्फों का रंग सुनहरा' शक्ति सामंत निर्देशित फ़िल्म 'कश्मीर की कली' का ये सदाबहार गीत अपनी लोकप्रियता के साथ आज भी टॉप पर बना हुआ है. इतने दशकों बाद भी यह गीत आज के दौर के युवाओं का ख़ास बना हुआ है. 

रफ़ी साहब की आवाज़ में शम्मी कपूर - शर्मिला टैगोर के ऊपर फ़िल्माया गया कभी न पुराना होने वाला गीत अपने दौर के प्रेमियों की अभिव्यक्ति बन गया था. जो अपनी प्रेमिका की तारीफ़ में इस गीत के ज़रिए कसीदे पढ़ते थे. यह गीत शम्मी कपूर साहब के दिल के बहुत करीब था. शम्मी कपूर साहब अपने गीतों के निर्माण के समय उसके शब्द, धुन, संगीत आदि पर खुद भी दिलचस्पी लेते हुए खुद भी डूब कर दखल देते थे. 

शक्ति सामंत पूरी फिल्म यूनिट के साथ इस गाने की सिचुएशन के बारे में बात कर रहे थे. तब वहीँ सिनेमैटोग्राफर बी एन रेड्डी शम्मी कपूर को बता रहे थे कि 'आप कश्मीर की खूबसूरत झील के शिकारे में बैठकर शर्मिला टैगोर को निहारते हुए गाने पर डांस, अभिनय करेंगे'. तब बैठे ही बैठे शम्मी कपूर ने अपने मन में इस गीत के लिए कैसे डांस, अभिनय करना है, उन्होंने इसकी रूपरेखा अपने मन ही मन बना ली. ओपी नय्यर की धुन के हिसाब से गीतकार एच. एस. बिहारी ने जब गीत के बोल लिखे तब शम्मी कपूर ने खुद को पूरी तरह तैयार कर लिया कि गीत गाते हुए वो कब, कहां, कैसे, थिरकेंगे. वैसे रॉकिंग स्टार शम्मी कपूर बहुत ज़्यादा अन्प्रिडिक्टबल थे कब कहाँ से कूद जाएं, कब कहां से घूम जाएं, निर्देशक इस बात से परिचित होते थे, हालांकि शम्मी कपूर साहब बिना कोरियोग्राफर ही खुद ही डांस स्टेप तैयार करते थे जो उनका अंदाज़ मौलिक होता जो सिने प्रेमियों को खूब पसंद आता. 

ग़र आप सभी संगीत प्रेमियों ने गौर किया हो तो गीत के आखिरी मुखड़े की अंतिम पंक्ति को कई बार दोहराया गया है. 'तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया' इस लाइन को एक दो नहीं बहुत बार जल्दी - जल्दी दोहराया गया है. इसमे भी रफ़ी साहब की सिंगिग का कमाल है कि उन्होंने उस अंतिम लाइन में जल्दी - जल्दी गाते हुए तारीफ़ शब्द को हर बार अलग ही अंदाज़ में बोलकर गाया है. हालाँकि यह सब ओपी नय्यर या रफी साहब के कारण नहीं हुआ, शुरू में तो इसकी कोई योजना ही नहीं थी. शम्मी कपूर ने अपने अंदाज़ में गाने की पूरी तैयारी कर ली थी, उन्होंने बीएन रेड्डी को बताया भी, हालांकि जब शम्मी कपूर ने संगीतकार ओपी नय्यर से बदलाव के लिए कहा 'तुम मेरे सुरीले गीत का कबाड़ा मत करो मैं यह नहीं करूंगा, नय्यर साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया. वैसे अब शम्मी साहब की दुविधा थी कि' ग़र ऐसा नहीं हुआ तो मैं गाने पर मनचाहा परफॉर्मेंस नहीं दे पाउंगा' ऐसे में निर्देशक शक्ति सामंत को अपनी व्यथा सुनाई. तब शक्ति सामंत से नैय्यर साहब के मुआमले में दखल देने से मना कर दिया. अब शम्मी कपूर सकते में आ गए अज़ीब समस्या मोल ले ली. गोल्डन एरा में शायद अन्य सभी कलाकारों से ज्यादा गीतकारों, संगीतकारों का अपना जलवा होता था ! ख़ासकर ओपी नय्यर साहब के काम में दखल मतलब मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालना. 

जब कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई तो शम्मी कपूर ने अपनी दुविधा रफी साहब को बताया, और अनुरोध किया कि कृपया आप ओपी नय्यर साहब को समझाएं. रफ़ी साहब ने पूरी सिचुएशन समझा उन्हें शम्मी कपूर की बात समझ आई. वैसे रफी साहब बहुत सम्मानित इंसान थे, शायद ही उनको कोई किसी भी बात के लिए मना करता. रफी साहब किसी के काम के बीच में कोई दखल नहीं देते थे, फिर भी रफी साहब पहुंचे नैय्यर साहब के पास उन्होंने यह पूरा वृतांत सुनाया. नैय्यर साहब ने कहा कि गाने के मुखड़े को बार - बार दोहराने से उसकी रफ्तार खत्म हो जाएगी, गीत बोरिंग हो जाएगा'. रफ़ी साहब ने कहा गाना बोरिंग नहीं होने दूँगा मैं गाने को गाते हुए अपनी संगीत की पूरी समझ लगा दूँगा'. आख़िरकार ओपी नय्यर साहब ने रफी साहब का मान रखा और बदलाव के लिए तैयार हो गए, हालांकि नय्यर साहब शम्मी कपूर से बेहद गुस्से में बात करना छोड़ चुके थे. 

तय समय पर यूनिट कश्मीर पहुंच गई. वादियों में खूबसूरत झील पर शिकारे में इस गीत को शानदार ढंग से फिल्माया गया कि पूरी यूनिट भी हैरान हो गई. गाने के अंत में तारीफ़ करूँ क्या उसकी' बोलते हुए शम्मी कपूर शिकारे से झील में छपाक से जा गिरते हैं, तब शर्मिला टैगोर जोर-जोर से हँसने लगीं पूरी पूरी फिल्म यूनिट भी हँस पड़ी. यह रियल हँसी, यूनिट का ठहाका गाने में भी सुनाई देता है, जो बहुत रियल लगता है. गाने के इस सिचुएशन के बारे में शर्मिला को भी नहीं पता था. क्योंकि शम्मी कपूर बहुत अन्प्रिडिक्टबल थे, वो कब कहां से छलांग लगा दें, कहाँ से गिर जाएं कोई नहीं बता सकता. फिल्म निर्देशक भी इस जोखिम के लिए तैयार रहते थे. तब फिल्मी तकनीक इतनी नहीं थी, आख़िरकार गाना एडिटिंग के लिए बंबई पहुंचा. सबसे पहले ओपी नय्यर साहब को दिखाया गया नय्यर साहब ने कहा 'मुझे गाने का क्लाईमैक्स दिखाओ जब उन्होंने गाने का क्लाईमेक्स देखा, जो ओपी नैय्यर साहब शम्मी कपूर से गुस्से के कारण बोलना छोड़ चुके थे, गाने को देखकर मुस्कराते हुए उन्होंने शम्मी कपूर को गले लगा कर कहा 'शम्मी कपूर की अदायगी, रफी साहब की आवाज़ ने गीत को वहाँ पहुंचा दिया है जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी. जहां लोकप्रियता के सारे मानक खत्म हो जाएंगे. शम्मी कपूर साहब की अदायगी देखते हुए हम सब आज भी खिलखिला पड़ते हैं..कमाल था वो दौर, कमाल थे वो लोग जो ऐसा अमर गीत-संगीत रचते थे... 

दिलीप कुमार

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