नेहरू जी अपने आप में एक मुक्कमल राष्ट्र -------------------------------------------------------

नेहरू जी अपने आप में एक मुक्कमल राष्ट्र 
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परम विद्वान प्रेम , बाँटने वाले करिश्माई शख्सियत पण्डित ज़ी के बारे में इतना लिखा गया है, कि कोई भी उनके व्यक्तित्व का अध्ययन करे तो बहुत कुछ समझ सकता है. पण्डितजी केवल एक शख्स नहीं बल्कि अपने आप में एक राष्ट्र थे . भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में एक ऐसा महानायक हुआ जिसके राजनीति में पदार्पण के बाद वैश्विक परिदृश्य में उत्सुकता बढ़ी कि पण्डित ज़ी नेहरू की शख्सियत क्या है? आज कई लोगों को लगता है, कि भारत की ख्याति अब ही बढ़ी है, जबकि सच्चाई यह है, कि भारत हमेशा से ही ज्ञानियों की धरती रही है. अपने मुल्क का स्थान हमेशा उच्च रहा है. आज के दौर में भारत में कोई भी पीएम बन जाए किसी की भी इज्ज़त होगी, इसमे कोई ढोल पीटने की बात नहीं है. जानने लायक पहलू यह है कि देश में आज पण्डित नेहरू जी के कद को छोटा करने के लिए तरह तरह से दुष्प्रचार किया जाता है.. फिर भी नेहरू जी कद का विराट होता जा रहा है. आज के नकारात्मक दौर में पण्डित नेहरू जी का नाम ज्यादा प्रासंगिक हुआ है. हमें आज के दौर में बहुत सोचने की जरूरत है कि ऐसा क्या है कि हम आधुनिक युग में संकीर्णता से ग्रसित होते चले जा रहे हैं. नेहरू ऐसे युगपुरुष थे, जिन्होंने जेल में अपने समय का सदुपयोग करते हुए, एक से बढ़कर एक महान पुस्तकें लिख डाली... 

यह सभी को पता है कि देश 1947 आजाद हुआ था.अंग्रेजी सत्ता के बाद बाद भी भारत दुनिया में अपनी संस्कृति और परंपराओं और शांतिप्रिय होने की वजह से काफी नाम कमा रहा था. पूरी दुनिया में भारत के प्रति जिज्ञासा रही है. समय - समय पर भारत में महानायक हुए हैं, जिन्होंने भारत सहित पूरी दुनिया को एक नई दिशा दी. ऐसे ही एक महानायक हुए! पण्डित जवाहर लाल नेहरू.... पण्डित नेहरू जब देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब देश में आधी से ज्यादा आबदी कपड़े नहीं पहनती थी.... भारत - पाकिस्तान दोनों मुल्क एक साथ ही आज़ाद हुए, मुस्लिम लीग पार्टी ने मज़हब के नाम पर पाकिस्तान की मांग की थी.. वहीँ भारत अपनी रूढ़िवादी सोच को छोड़कर आधुनिकीकरण की राह पर अग्रसर था. पूरी दुनिया की तारीख उठा कर देखा जाए जिस देश में सेना का राजनीतिक दखल रहा है, उस देश ने कभी भी स्थिरता नहीं पाई. आज भी पाकिस्तान लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में स्थिरता प्राप्त नहीं कर सका.. वही भारत में कांग्रेस इतनी मजबूत थी, कि उसने सेना पर नियंत्रण भी पाया, एवं ऐसे प्रशासनिक सुधार किए की आज भारत में सेना का कोई भी राजनीतिक दखल नहीं है. यह पण्डित नेहरू जी की ही बेहतरीन प्रशासनिक व्यवस्था की नज़ीर है. आज़ादी के बाद पण्डित नेहरू ने अगस्त, 1947 को ब्रिटिश कमांडर इन चीफ को लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा,' सेना या किसी दूसरे क्षेत्र से जुड़ी नीति में भारत सरकार के आदेश का पालन होना चाहिए. अगर सेना का कोई अधिकारी भारत सरकार द्वारा निर्धारित नीति का पालन नहीं करेगा , तो भारतीय सेना में उसकी कोई जगह नहीं होगी. आज भी सेना को भारतीय प्रशासनिक आदेश की बाध्यता है. 

भारत जैसा रूढ़िवादी देश जो अंग्रेज़ी सत्ता की ग़ुलामी से बाहर निकला ही था, लेकिन पण्डित नेहरू जी बतौर प्रधानमंत्री ग्लोबल लीडर बनकर उभरे. जिनकी वजह से दुनिया की बड़ी संस्थाएं भारत की ओर देख रही थी. यूनेस्को चाहता था कि भारत में उसका एक समिट कराया जाए. 1955 में यूनेस्को पेरिस समिट में पण्डित नेहरू ने फोरम की बैठक में सुझाव दिया कि अगला समिट यानी 1956 में दिल्ली में कराया जाए. यूनेस्को में बड़े-बड़े मुल्कों ने मंजूरी दे दी कि अगला समिट भारत में ही होगा. इस समिट के कारण कुछ मुल्कों की मंशा थी कि भारत इतने बड़े-बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मेज़बानी नहीं कर पाएगा. उदेश्य सिर्फ़ नेहरू जी की क्षमता को जानना था. समस्या यह थी कि दुनियाभर से आने वाले मेहमानों के ठहरने के लिए पीएम नेहरू जी के पास देश में कोई फाइव स्टार होटल नहीं था. उस दौर में नेहरू की अपील पर रियासतों के पूर्व शासकों ने इसके न‍िर्माण में योगदान दिया था. उनकी तरफ से 10 से 20 लाख का योगदान दिया गया. बाकी ख़र्च फण्ड बनाकर किया गया था . इस होटेल का जिक्र इसलिए किया गया है कि यह देश का पहला फाइव स्टार होटेल था, जिसे नेहरू जी ने देश की इज्ज़त बचाने के लिए किया था. आज भी दिल्ली के चाणक्यपुरी में बना अशोका होटेल नेहरू जी के महान व्यक्तित्व की गवाही देता है. एक साल बाद जब यूनेस्को सम्मेलन हुआ तो बहुतेरे राष्ट्राध्यक्षों ने पण्डित नेहरू जी की तारीफ़ की थी. आज नेहरु जी की मृत्यु के 59 साल बीत जाने के बाद भी देश के तत्कालीन पीएम के द्वारा नेहरू नाम की आड़ लेकर अपने कुशासन को सही ठहराया जाता रहा है. 

आज कितनी घृणित बात है, देश का पीएम गालियाँ सुनात
 है कि मुझे गालियाँ दी जाती हैं, जबकि पण्डित नेहरू जी देश की स्वाधीनता संग्राम में बतौर क्रांतिकारी नौ बार जेल गए, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी भी इसका जिक्र नहीं किया... उन्होंने कभी अँग्रेजी सत्ता पर ठीकरा नहीं फोड़ा. आजाद भारत के निर्माता पण्डित नेहरू जी के बारे में किसी ने क्या खूब कहा था "पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक राजनीति में एक ऐसा महानायक हुआ, जिसने पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक राजनीति को छुआ और राजनीति शुद्ध हो गई". वहीं, भारत के आजाद होने के बाद पंडित नेहरू ने शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगीकरण सहित कई क्षेत्रों में किया. पण्डित नेहरू जी अपने विचारों और अपने उल्लेखनीय कार्यों की वजह से ही महान बने. आजादी के बाद नेहरू ने देश की तस्वीर बदलने के लिए कई कड़े फैसले लिए. उस दौरान उनके फैसलों की निंदा की गई और मजाक भी बनाया गया, लेकिन उनके उन फैसलों ने ही देश को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत बनाया. आज भी पण्डित नेहरू जी को कुछ भी बोला जाता हो, लेकिन सच्चाई यही है कि पण्डित नेहरू जी ने देश को जब सम्भाला, और संवारने का काम किया, जब देश में 90% लोगों को हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, से लेकर उद्योग जगत को बेहतर बनाने के लिए कई काम किए. उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की. साथ ही उद्योग धंधों की भी शुरूआत की. उन्होंने भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध और बोकारो इस्पात कारख़ाना की स्थापना की थी. पण्डित नेहरू जी इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे... यह कोई अत्यंत आधुनिक सोच का इंसान ही बोल सकता था. 


आज बात - बात पर अमेरिका - रसिया - चाइना की दादागिरी देखने मिलती है. पूरी दुनिया में भारत की हैसियत पिछलग्गू देशों की कभी नहीं रही. भारत हमेशा से ही अपनी गुटनिरपेक्ष राजनीति का प्रधान मुल्क रहा है. पण्डित नेहरू जी चाहते थे कि भारत किसी भी देश के दबाव में न कभी आए. विश्व में हमारी स्वतंत्र पहचान हो. पण्डित नेहरु जी की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा था, उनका पंचशील का सिद्धांत जिसमें राष्ट्रीय संप्रभुता बनाए रखना और दूसरे राष्ट्र के मामलों में दखल न देने जैसे पांच महत्वपूर्ण शांति-सिद्धांत शामिल थे. नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया. गुटनिरपेक्षता का मतलब यह है कि भारत किसी भी गुट की नीतियों का समर्थन नहीं करेगा और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बरकरार रखेगा. इससे किसी भी राष्ट्र को कोई आपत्ति नहीं हुई. आज भी भारत नेहरू जी की विदेश नीति पर चलता है. पण्डित नेहरू जी को खारिज करने वाले लोगों को ज़रूर सोचना चाहिए.


भारत कई राज्यों को मिलाकर एक देश बना है, सभी की अपनी अपनी विशेषता है. फिर भी देश एकता के सूत्रों में बँधा हुआ है. हमेशा से ही राज्यों की अस्मिता के नाम पर कुछ कट्टरपंथी लोगों ने हर राज्य में अस्थिरता की कोशिश की. एक दौर में दक्षिण भारत में अलग देश की मांग उठी, पण्डित नेहरू जी ने जो फैसला लिया उसने देश की एकता और अखंडता को और भी मजबूत कर दिया. 'द्रविड़ कड़गम' पहली ग़ैर राजनीतिक पार्टी थी, जिसने द्रविड़नाडु बनाने की मांग रखी. द्रविड़नाडु के लिए आंदोलन शुरू हुआ. लेकिन पण्डित नेहरू जी ने देश की अंखडता को बनाए रखने के लिए एक बड़ा कदम उठाया. नेहरू की की अगुवाई में कैबिनेट ने 5 अक्टूबर 1963 को संविधान का 16वां संशोधन पारित किया... इसी के साथ अलगावादियों की कमर टूट गई. इस संशोधन के माध्यम से देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गए साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत 'मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखंडता को बनाए रखूंगा' जोड़ा गया था. संविधान के इस संशोधन के बाद द्रविड़ कड़गम को द्रविड़नाडु की मांग को हमेशा के लिए भूलना पड़ा.


पण्डित नेहरू जी अपनी बौध्दिकता, दूरदृष्टि के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. पण्डित ज़ी ने अपनी दूरदृष्टि और समझ से पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं उनसे देश को आज भी लाभ मिल रहा है. पहली पंचवर्षीय योजना 1951-56 तक लागू हुई. शुरुआत में अर्थशास्त्रियों के मन में इस योजना के सफल होने को लेकर संदेह था,लेकिन 1956 में पहली पंचवर्षीय योजना से वो संदेह खत्म हो गया था. इस योजना के दौरान विकास दर 3.6 फीसदी दर्ज की गई. इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय सहित अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ोतरी हुई. पहली पंचवर्षीय योजना कृषि क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाई गई थी, तो दूसरी 1956-61 में पण्डित नेहरू जी के दौर में औद्योगिक क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया, जब औद्योगिकीकरण का सुनहरा दौर शुरू हुआ था. आज औद्योगिकीकरण के नाम पर सारी की सारी सम्पति निजी हाथो में सौंपकर आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. 

आज बहुमत के नाम पर देश में मनमानी करती हुई सत्ता को सोचना होगा, कि लोकतांत्रिक सुधार वो थे, जो पण्डित नेहरू जी ने किया था. 1952 में देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे. नेहरू लोकतंत्र में आस्था रखते थे. लोकसभा चुनाव 1957 और 1962 में लगातार जीत के बाद भी उन्होंने विपक्ष को पूरा सम्मान दिया. संसद में नेहरू विपक्षी नेताओं की बात ध्यान से सुनते थे. 1963 में अपनी पार्टी के सदस्यों के विरोध के बावजूद भी उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराना मंज़ूर किया. अटल जी ने पंडित नेहरू से कहा था कि उनके अंदर चर्चिल भी है और चैंबरलिन भी है. लेकिन नेहरू उनकी बात का बुरा नहीं माने. उसी दिन शाम को दोनों की मुलाकात हुई तो नेहरू ने अटल की तारीफ की और कहा कि आज का भाषण बड़ा जबरदस्त रहा. नेहरू विपक्ष के नेताओं द्वारा की गई आलोचना का बुरा नहीं मानते थे और उनका सम्मान करते थे. आज के दौर में आलोचना के नाम पर विपक्षी नेताओं के घर सीबीआई, ईडी भेज दी जाती है.


पण्डित नेहरू जी को भारत रत्न दिए जाने पर हमेशा निशाना बनाया जाता है, जबकि सच्चाई यह है, कि उन्होंने खुद को कभी भी भारत रत्न देने की सिफारिश नहीं की. आज की पीढ़ी के लिए यह समझना ज़रूरी हो जाता है. शीत युद्ध के उस दौर में 13 जुलाई, 1955 को पंडित नेहरू जी तत्‍कालीन सोवियत संघ, और यूरोपीय देशों के सफल दौरे से भारत लौटे. वैश्विक मामलों में भारत की बड़ी भूमिका को स्‍थापित करने की प्रधानमंत्री की कोशिशों को उस यात्रा के दौरान खूब समर्थन भी मिला. उसका नतीजा यह हुआ कि वह यात्रा काफी चर्चित रही. इसी कारण जब पंडित नेहरू स्‍वदेश लौटे तो राष्‍ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उनको रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचे. नेहरू के स्‍वागत के लिए जबरदस्त भीड़ भी दिल्‍ली एयरपोर्ट के बाहर जमा हो गई थी. नतीजतन नेहरू ने उपस्थित जनसमूह के समक्ष एक छोटा सा भाषण भी दिया था. तमाम मतभेद होने के बाद भी राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने खुद यह निर्णय लिया था.. यह भी आरटीआई से खुलासा हुआ है. आज मौजूदा दौर में बिडम्बना यह भी है कि देश के पहले महान क्रांतिकारी प्रधानमंत्री, नेहरू जी की पुण्यतिथि 27 मई को होती है, इसी दिन देश के नए संसद भवन का उद्घाटन होना चाहिए था, अफ़सोस और अफ़सोस. निंदनीय.. पण्डित नेहरू जी की पुण्यतिथि को दरकिनार करते हुए, सावरकर के जन्मतिथि पर उद्घाटन किया जाएगा.. यह दिन भी भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में याद रखा जाएगा...... 


दिलीप कुमार

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