सच तो ये है कि ज़िन्दगी को क्रिकेट की तरह खेलते हैं इमरान

सच तो ये है कि ज़िन्दगी को क्रिकेट की तरह खेलते हैं इमरान'
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इमरान ने ज़िन्दगी को बखूबी जिया है. जवानी को जवानी की तरह...इमरान की खूबसूरती ऐसी कि प्रेमिकाएं सरहद लांघ जातीं.. इमरान की मुहब्बत ऐसी की महबूबा विकसित पश्चिमी सभ्यता छोड़कर संकीर्ण मुल्क में रहने आ गईं . कप्तान की दीवानगी हर पीढ़ी के लोगों में आज भी देखी जाती है. क्रिकेट की दुनिया का ऐसा नाम जिसका तिलिस्म शायद कभी टूटेगा नहीं.. !! 

जवानी में कैसेनोवा की छवि से बंधे दिलफेंक, आशिक मिजाज़ इमरान की उम्र बढ़ी मैच्योर हुए तब राजनीति, एवं अपने आचरण से युवाओं को जियो पालिटिक्स समझाते. कभी नेल्सन मंडेला के किस्से सुनाते. कभी फ्रेंच रेवोल्यूशन के बारे में लोगों बताते. अपने भाषणों में ज़िन्दगी जीना सिखाते. उनकी स्पीच देखी जाएं तो समझ आएगा. कुल मिलाकर इमरान कमाल के कप्तान, जबरदस्त राजनेता एक बेहतरीन इंसान मालूम होते हैं. ऐसे व्यक्ति को खुदा फुर्सत में गढ़ता है. अपनी उम्र के लोगों को धार्मिक बारीकियां समझाते कि यूरोप धार्मिक रूप से हमसे पीछे हैं लेकिन वो बहुत विकसित हैं क्योंकि वो उदारवादी हैं. मैं इमरान की स्पीच सुनता रहता हूं. वो पीएम बनने के बाद हमेशा अपने मआशरे को लताड़ते थे. जिसने पीएम होते हुए कहा था 'हम एशियाई लोग अपनी संस्कृति पर गुरूर करते रहते हैं, जबकि देखा जाए तो हम एशियाई लोग मानवीय मूल्यों में बहुत पीछे हैं. हमें यूरोप से सीखना चाहिए कि एक इंसान की जान की कीमत क्या होती है. पाक जैसे संकीर्ण मुल्क के पीएम होते हुए यह सब बोलना आसान नहीं रहा होगा. 

कप्तान ने ज़िन्दगी में क्रिकेट खेला तो ऐसा खेला कि दुनिया का सबसे महान कम्प्लीट क्रिकेटर बना. लीडर बना तो विश्वकप जीत लाया. 1987 विश्वकप हारने के बाद इमरान ने सन्यास लेने का एलान कर दिया. बिना विश्वकप जीते इमरान ने सन्यास ले लिया यह विश्व क्रिकेट की सबसे बड़ी घटना थी. वहीँ पूरे एशिया के लिए स्तब्ध करने वाला निर्णय!! तत्कालीन पाक राष्ट्रपति के अनुरोध पर क्रिकेट की पिच पर लौट आए. 

1992 विश्वकप शुरू के पांच मैच में चार मैच हार चुकी पाक टीम की टीम मीटिंग होती है. इमरान खान टीम को संबोधित करते हुए कहते हैं 'मैंने हिसाब लगा लिया है' सब खिलाड़ी सकते में आ गए कि पता नहीं कप्तान ने क्या हिसाब लगा लिया है.. इमरान ने कहा इस विश्वकप को हम जीत रहे हैं'. तब इमरान से सारे के सारे खिलाड़ी डरते थे. क्योंकि तब इमरान 40 साल के सीनियर खिलाड़ी थे, जो रिटायर्मेंट के बाद वापस लौट कर आए थे. इंजमाम उल हक उस समय 22 साल के युवा बल्लेबाज़ थे, एक मैच में गलत शॉट खेलकर आउट हो गए. बाद में इमरान ने कहा' इंजी तुमने आज बहुत कमाल का शॉट खेला इंजमाम को लगा' मैंने एक चौका लगाया शायद आप उसके लिए कह रहे हैं' इमरान ने कहा 'तुम जिस बॉल पर आउट हुए हो वो बेहतरीन शॉट था मैंने आजतक दुनिया में किसी को ऐसा शॉट खेलते नहीं देखा. उस वक़्त युवा इंजमाम के अन्दर अलग ही साहस आया. न्यूजीलैंड की सरजमीं में न्यू जीलैंड के विरुद्ध जब चेज करते हुए सेमीफाइनल मैच फंस गया तब 6 वें नंबर पर आए इंजमाम ने 37 गेंद पर 60 रन की तेज़ तर्रार पारी खेलते हुए पाक टीम को फ़ाइनल में पहुंचा दिया... फ़ाइनल में पहुंची पाकिस्तान टीम के कप्तान और इंग्लैंड के कप्तान ग्राहम गूच दोनों टॉस के लिए मैदान पर आए... तब चर्चा हुई कि टॉस से पहले ही इंग्लैड विश्वकप फ़ाइनल हार गया.. क्योंकि इमरान ने मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली थी.. तब इमरान टॉस के वक़्त जोश से मैदान में दाखिल हुए, उनकी टी शर्ट में टाइगर की तस्वीर थी... थके हारे से ग्राहम गूच तब ही हार गए थे. विश्व के समय उम्र हावी थी, तब इमरान न ख़ास बोलिंग कर पाते थे और न ही बैटिंग फ़िर भी फ़ाइनल में फर्स्ट डाउन खेलने आए, और पारी को सम्भाला. विशेष रूप से अंतिम ओवर भी खुद ही लेकर आए, स्टेज पर कब कैसे आना हैं.. महफ़िल कैसे लूटना है कप्तान को बखूबी आता था. 

इमरान खान टीम के कप्तान के साथ ही ऐसे लीडर थे जो खिलाड़ियों में उत्साह भर देते थे. उनकी टीम के बांकी प्लेयर्स को उम्मीद ही नहीं थी कि हम विश्वकप जीत पाएंगे. जो टीम शुरू के मैच हारकर मुश्किल से टूर्नामेंट में बनी रह पाई... कोई खिलाड़ी गलत शॉट खेलकर आउट होता उसे लगता कप्तान की गालियाँ मिलेंगी, लेकिन इमरान पीठ थपथपाते हुए खिलाड़ी को कहते तुमने कितना जबरदस्त शॉट खेला, कभी - कभार क्रिकेट में ऐसे होता है अन्यथा तुमने लाज़वाब शॉट खेला. कोई बॉलर खराब बॉल पर पिट जाता तो इमरान समझाते तुमने जो बॉल फेंकी है इस पर शायद की कोई बच पाता आउट होना निश्चित था. हम ही विश्वकप जीतेंगे. इसको अति आत्मविश्वास कहा जा सकता था, लेकिन इमरान को पता था इन टूटे हुए मन के खिलाडियों के अन्दर जुनून पैदा करना होगा.. उस टीम के सारे के सारे प्लेयर बताते हैं कि इमरान ऑस्ट्रेलिया में हमारे लिए खुदा के समान थे. हमारे लिए लड़ पड़ते थे. हमें ऐसे लगता था हम इमरान की सरपरस्ती में सुरक्षित हैं. इमरान खान केवल और केवल कप्तान नहीं, बल्कि एक लीडर थे. जो ज़ख्मी सैनिकों के साथ 1992 का समर जीत कर ले आए. इमरान ही थे जिसने उनके पूरे मुल्क को क्रिकेट की मुख्य धारा से जोड़ दिया. इमरान ने पाक क्रिकेट को खेलना, जीतना, सिखाया. इंग्लैंड में पढ़ने वाले इमरान ने उसी प्रोफेशनलिज्म को अपनाया और अपनी टीम पर भी लागू किया. 70 - 80 के दशक में पाकिस्तान के पास एक से बढ़कर एक क्रिकेटर थे, लेकिन उनके पास वो लीडर नहीं था. जो विश्वकप जीतकर लाता. इमरान खिलाडियों को स्टार बनाना जानते थे, खिलाड़ियों से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाना जानते थे. सड़क से उठाकर किसी भी लड़के को सुपरस्टार बना देते थे.

मुझे इमरान की एक बात शिद्दत से पसंद आती है वो कहते हैं 'इस दुनिया में बड़े से बड़े सिकंदर आए और गए कौन याद करता है. याद वो किया जाता है जो मआशरे के लिए कुछ करे... इमरान ने एक नहीं कई कैंसर हस्पताल बना डाले.. यूनिवर्सिटीज बना दी. बहुत सी किताबें लिख डाली.. लोकप्रियता ऐसी की राजनीति में आने की सोचा तो पीएम बनने के लिए खूब मौके उप्लब्ध हुए... लेकिन उन्होंने संघर्ष चुना एक राष्ट्रीय पार्टी खड़ा कर दिया. 25 साल मंचों से गिरते रहे मज़ाक के पात्र बने रहे, कोई राजनीतिक रूप से सीरियस नहीं लेता था. लेकिन अपने संघर्ष से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे. पीएम बनने के बाद सबसे बड़ी शक्ति सेना से ही भिड़ने लगे! परिणामस्वरुप सत्ता से बर्खास्त हो गए. पाकिस्तान में सेना सर्वे-सर्वा होती है कोई भी टक्कर नहीं ले सकता. इमरान की लोकप्रियता, इज्ज़त ऐसी की वहाँ की जनता सेना के विरोध में सड़कों पर आ गई. यह भी पाकिस्तान में पहली बार घटित हुआ. 

कप्तान के मुल्क में कप्तान की ताकत ऐसी कि चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी का सिम्बल ले लिया. उस नेता का जलवा ऐसा की समर्थित प्रत्याशी निर्दलीय लड़े.. और सौ से ज्यादा जीत कर आए पाकिस्तानी मीडिया, इमरान का दावा है कि हमारे प्रत्याशी बहुमत से जीते हैं.. हालाँकि सेना, मीडिया, कार्पोरेट सब एक तरफ इमरान अकेले फिर भी पूरे पाकिस्तान के सिस्टम को बता दिया कि लोकप्रियता, जनता की ताकत क्या होती है. भले ही वहाँ की सेना ने कप्तान को सत्ता से बेदखल कर दिया है. भले ही जेल में ठूस दिया है. भले ही पार्टी का सिंबल जब्त कर लिया है.. लेकिन यह तय है कि वहाँ की सेना कोई बड़ी हिमाकत नहीं कर सकती... जनरल मुनीर में न जिया उल हक जितनी हिम्मत है, और न इमरान जुल्फिकार अली भुट्टो जितने असहाय. 

नवाज शरीफ जैसे भृष्ट व्यक्ति को भी कई बार सर्मथन देने वाली सेना ने ही इमरान को भी सर्मथन दिया था. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि अब वही सेना इमरान की सबसे बड़ी मुखालिफ बनकर खड़ी हो गई है. कारण भी एक ही है. पाकिस्तान के पीएम होते हुए इमरान ने वहाँ के सदन में कहा था जिस देश में सेना का राजनीतिक दखल होता है वो मुल्क कभी तरक्की नहीं कर सकता'. जिस देश में सेना का राजनीतिक दखल होता है वो कभी भी लोकतंत्र के रूप में स्थापित नहीं हो सकता. इमरान ने भारत के लोकतंत्र की तारीफ़ करते हुए कहा था भारत को एक मुल्क के रूप में देखिए वहाँ की सेना का कोई राजनीतिक दखल नहीं है. लिहाज़ा भारत एक लोकतांत्रिक, संप्रभुतावादी देश के रूप में शानदार मुल्क है, जिसे न अमेरिका की परवाह है न रसिया की.. हम भारत की तुलना में पिछड़े मुल्क में गिने जाते हैं. हम आजादी के 73 साल बाद भी एक मुक्कमल लोकतांत्रिक मुल्क नहीं बन पाए. हमारे यहां लोकतंत्र आज भी स्थायी नहीं है. इतना ही कारण था, इमरान को सत्ता से बेदखल कर दिया गया. इमरान अपने देश की सेना के पर कतरने की फ़िराक़ में थे.. सेना ने इमरान को सत्ता में वापस नहीं आने दिया. इमरान पाक सेना का राजनीतिक दखल खत्म करने के लिए दोबारा प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. भारत की तरह पाक को सम्प्रभुतावादी मुल्क बनाना चाहते हैं, हालांकि इतना आसान नहीं होगा... क्योंकि पाक की सेना कभी नहीं चाहेगी की भारत जैसे उसका मुल्क बने... वहाँ की सेना पाक को मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखना चाहती है... लिहाज़ा इमरान को दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बनने देगी. कप्तान फ़िर से अपने मुल्क के पीएम बने न बने, लेकिन यह तय है ऐसे कप्तान क्रिकेट और माशरे को मुद्दतों में मिलते हैं. 

दिलीप कुमार

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