'जितेन्द्र हिन्दी सिनेमा के मध्यमार्गी सुपरस्टार'
हिन्दी सिनेमा के मध्यमार्गी सुपरस्टार
(जितेंद्र)
हैंडसम हंक जितेन्द्र हिन्दी सिनेमा के मध्यमार्गी सुपरस्टार थे. हिन्दी सिनेमा को सबसे ज्यादा हिट देने वाले अभिनेताओं में शुमार हैं. धरम जी के बाद सबसे ज्यादा सुपरहिट फ़िल्में देने का रिकॉर्ड जितेन्द्र के ही नाम है.. 80 के दशक में स्टाइलिश जितेंद्र के सफेद जूतों ने ट्रेडमार्क सेट कर दिया था. वह अपनी हर फिल्म में व्हाइट आउटफिट के साथ व्हाइट शूज़ पहने हुए दिखाई देते थे. एक सच यह भी है कि हम सब का बचपन जितेन्द्र जी की अदाकारी की छांव तले ही बीता है. आज सिनेमैटिक समझ के लोग जितेन्द्र की फ़िल्मों एवं उनके अभिनय कौशल पर कम ही विमर्श करते हैं. कई पीढ़ी का मनोरंजन करने वाले जितेन्द्र इतना तो मुकाम रखते हैं कि उनकी फ़िल्मों, अदाकारी पर बात हो. हम सब उनके सदाबहार अभिनय के साथ ही उनके अद्भुत नृत्य कौशल के दीवाने थे.
जितेंद्र ने अपनी नृत्य छवि को प्रदर्शित करते हुए सिनेमा के नायकों को देवदास जैसी संजीदा बँधी हुई छवि से बाहर निकालकर एक मस्तमौला आकार दिया. यह कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज बहुतेरे सिने प्रेमियों को अज़ीब लगता है, जब वो सुनते हैं कि जितेन्द्र एक दौर में अमिताभ बच्चन एवं धर्मेंद्र को भी कड़ी टक्कर देते थे. लगातर हिट देने वाले जितेन्द्र हमेशा ऐक्टिंग की लीक पर ही चलते रहे. जबकि अपने दौर में हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार की दुनिया हिन्दी सिनेमा के बाहर भी चर्चित रही. अज़ीब है, जितेन्द्र को सिनेमाई विमर्श में उतना स्पेस नहीं मिला जिसके हकदार थे.
मैंने व्यक्तिगत रूप से जितेन्द्र को खिलौना फिल्म में नोटिस किया था, जिसमें अभिनय के महान उस्ताद ग्रेट संजीव कुमार जी, बुलन्द आवाज़ के खलनायक शत्रुघ्न सिन्हा के साथ पारिवारिक लड़के की सकारात्मक भूमिका में मध्यमार्गी छोटी सी लेकिन असरदार भूमिका से मेरे जेहन में असर छोड़ गए थे. ग्रेट संजीव कुमार, दिलीप साहब, राजकुमार साहब, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र जी... जैसे धूमकेतुओ के साथ भी जितेन्द्र अपनी अदाकारी से अपना असर छोड़ जाते थे. जितेन्द्र की अभिनय गुणवत्ता कमाल थी. कभी भी एक तरह की भूमिकाओं के साथ खुद को बांधा नहीं. हमेशा बदलती हुई भूमिकाओं के साथ सिल्वर स्क्रीन पर आते थे. वैसे भी एक तरह की भूमिकाएं निभाने से ऐक्टिंग में नीरसता आती है. जितेन्द्र कभी पारिवारिक, कभी खिलंदड़ किरदार, कभी नेगेटिव, हर तरह की भूमिका में खुद को उतार देते थे.
जितेन्द्र बचपन से ही ऐक्टर बनने का जुनून पाले हुए थे. हमेशा स्कूल बंक मारकर फ़िल्में देखने जाते थे. कहते हैं ! जब अपने ख्वाब के प्रति जुनून हो तो ख्वाब मुक्कमल भी हो जाते हैं. हालाँकि जितेन्द्र बहुत मेहनती थे. हीरो बनने की जद्दोजहद में उन्होंने काम भी सिनेमा से सबंधित तलाशा. फ़िल्मों में उपयोग होने वाली आर्टिफिशल जूलरी बेचा करते थे. एक दिन जितेंद्र फ़िल्मालय पहुंचे, जहां वी. शांताराम की फ़िल्म ‘नवरंग’ की शूटिंग चल रही थी. शांताराम की नज़र हैंडसम जितेंद्र पर पड़ी तो बातचीत के दौरान जितेंद्र ने शांताराम से फ़िल्मों में काम करने की अपनी इच्छा जाहिर की . वी. शांताराम की पारखी नज़र का ही कमाल था, कि उन्होंने स्टूडियो-दर-स्टूडियो नकली जेवरों की सप्लाई करने वाले जितेंद्र को हिंदी सिनेमा का 'जंपिंग जैक' जितेंद्र बना दिया. आर्टिफिशल जूलरी बेचने वाले जितेंद्र को असल में अदाकार बनने के लिए वी. शांताराम को भी कुछ कम पापड़ नहीं बेलने पड़े. अपनी पहली फ़िल्म में एक डायलॉग को सही तरीके से बोलने के लिए जितेंद्र ने इतने रीटेक किए कि शांताराम जैसे शांत स्वभाव वाले निर्देशक भी अपना धैर्य खो बैठे. 30 रीटेक के बाद भी जब जितेंद्र सही डायलॉग नहीं बोल पाए तो अंत में हार कर शांताराम ने ग़लत डायलॉग को ही ओके कर दिया और इस तरह जितेंद्र हिन्दी सिनेमा में पदार्पण कर चुके थे. वी शांताराम ने ही रवि कपूर को जितेन्द्र नाम से नवाजा था. जितेंद्र ने अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म 'नवरंग' से की, जिसमें उन्हें छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला..
जितेन्द्र की हिन्दी सिनेमा में एंट्री तो हो गई थी, लेकिन सही मायने में उन्हें 1964 में वी. शांताराम ने फ़िल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' से मौका दिया. इस फ़िल्म के बाद जितेंद्र अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए. वर्ष 1967 में जितेंद्र की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'फर्ज' प्रदर्शित हुई. रविकांत नगाइच द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में जितेंद्र ने नृत्य कलाकार की भूमिका निभाई. इस फ़िल्म के बाद जितेंद्र को 'जंपिंग जैक' कहा जाने लगा.
80 के दशक में अमिताभ बच्चन के सितारे भी गर्दिश में थे, लेकिन जितेन्द्र की सुपरहिट फ़िल्मों का कारवाँ बढ़ता जा रहा था. 70-80 के दशक में जितेन्द्र का सिनेमाई कॅरियर उरूज पर था. कहा जाए कि हिन्दी सिनेमा के 80 का दशक जितेन्द्र के नाम था तो बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी. 1977 से 1987 तक सालाना सात या अधिक फ़िल्में रिलीज़ होने का सिलसिला चला. इसमें 1981 में 12, 1982 में 14 और 1986 में 11 प्रभावशाली फ़िल्में शामिल थीं. हिन्दी सिनेमा में सुपरहिट फ़िल्मों का एक ग्रुप बना हुआ था. 'जितेन्द्र - बप्पी- किशोर -आशा' के नाम से फेमस था. साल 1983 से 1988 के बीच जितेन्द्र और बप्पी दा ने 20 फिल्में की हैं जिनमें से 16 सिल्वर जुबली थी. सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली, प्लेटिनम जुबली, डायमंड जुबली थीं, तब फ़िल्मों की सफ़लता का मानक था. जितेन्द्र ने रेखा के साथ 26 फिल्मों में काम किया है जिनमें से 16 फिल्में हिट रहीं. इन फिल्मों में 'मवाली', 'हिम्मतवाला' और 'तोहफा' जैसी फिल्में शामिल हैं. वहीँ श्रीदेवी - जयाप्रदा के साथ जितेन्द्र सिल्वर स्क्रीन पर खूब पसंद किए गए.
साल 1971 में जितेंद्र और आशा पारेख स्टारर फिल्म 'कारवां' ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था. फिल्म ने कमाई के भी कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. न सिर्फ इस फिल्म की कहानी बल्कि फिल्म के गानों ने भी लोगों को दीवाना बना दिया था. उस साल की एक्टर की ये ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हुई थी. या यूं कहे कि उनके करियर के लिए ये मील का पत्थर साबित हुई थी. फिल्म ना सिर्फ हिट हुई बल्कि ये एक म्यूजिकल हिट साबित हुई थी. इस फिल्म का एक रिकॉर्ड 1975 में आई अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की 'शोले' भी नहीं तोड़ पाई थी. जितेंद्र और आशा पारेख की जबरदस्त जोड़ी वाली फिल्म ‘कारवां’ साल 1971 की बड़ी हिट साबित हुई थी. जब इस फिल्म ने सिनेमाघरों में दस्तक दीं तो बॉक्स ऑफिस को हिला कर रख दिया था. लव ट्रायंगल वाली इस फिल्म का प्लॉट ऐसा था जिसने लोगों का दिल जीत लिया था. आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में अमिताभ और धर्मेंद्र की फिल्म ‘शोले’ के करीब 25 करोड़ टिकट बिके थे. जबकि जितेंद्र- आशा पारेख की फिल्म ‘कारवां’ के लाइफटाइम में 31 करोड़ से ज्यादा टिकट बिके थे. देखा जाए तो एशिया में ‘कारवां’ का ग्रॉस कलेक्शन 1300 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रहा था.
दो सौ से ज़्यादा फ़िल्मों में लीड रोल की भूमिका निभाने वाले जितेंद्र की 'फर्ज़','जीने की राह' , 'धरम वीर', 'धरमवीर', 'जानी दुश्मन','द बर्निंग ट्रेन', धर्मकांटा', 'जुदाई', 'मांग भरो सजना', 'एक ही भूल', 'मवाली', 'कारंवा', 'हिम्मतवाला', 'तोहफा', 'धर्माधिकार' आदि यादगार फ़िल्में हैं. जिसमें से मैं सबसे ज्यादा' परिचय' फ़िल्म को याद करता हूँ '. गुलज़ार द्वारा निर्देशित यह फिल्म जितेन्द्र के सबसे यादगार कामों में से एक है. उन्होंने एक शिक्षक की भूमिका निभाई, जिसे पांच बिगड़ैल बच्चों को पढ़ाने का काम सौंपा गया था. फिल्म में कहानी, अभिनय, निर्देशन कमाल है.
एक बेह्तरीन नायक की पहिचान यह भी होती है कि आने वाली पीढ़ी उनकी लेगेसी को आगे बढ़ाते हुए उनका नाम आगे ले जाएं. डांसिंग स्टार की उनकी छवि को ही आगे चलकर मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा जैसे नायकों ने अपनी फ़िल्म में भुनाया और हिंदी सिनेमा में अपनी नृत्य भूमिका से लोगों के पसंदीदा बन गए. जितेन्द्र अदाकारी के साथ ही हिन्दी सिनेमा में अपने नृत्य कौशल के ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं. इस तस्वीर में दिख रहे जितेन्द्र 82 साल के हैं आज भी ज़बर्दस्त फिटनेस मेंटेन करते हैं. सीखना चाहिए आज के हम सभी युवाओं को की उम्र सिर्फ़ एक संख्या है, आदमी हमेशा जवान रहता है..आपके उत्तम स्वास्थ्य की कामनाएँ. जंपिंग जैक' जितेंद्र जी आपके कारण हमारा बचपन बहुत ही शानदार बीता है.. इसके लिए हम सब आपको सलाम करते हैं.
दिलीप कुमार
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