रवीश हमेशा सत्ता के विरुद्ध रहे हैं
रवीश हमेशा सत्ता के विरुद्ध रहे हैं
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रवीश हमेशा सत्ता के विरुद्ध रहे हैं आज सत्ता में लोट रही मीडिया को रवीश ने ही गोदी मीडिया नाम दिया. तब कांग्रेस की सत्ता की दलाली कर रही मीडिया को रवीश ने ही लुटियंस मीडिया कहा था. रवीश तब कांग्रेस सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए पत्रकारिता करते थे. 'रवीश की रिपोर्ट' 'नौकरी सीरीज' प्रोग्राम रवीश की पत्रकारिता की गवाही देती हैं. आज रवीश अपना पुराना अड्डा छोड़कर नए यूट्यूब पर आ गए हैंं. खुद को जीरो टीआरपी एंकर कहने वाले रवीश यूट्यूब की दुनिया में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पत्रकार हैं.
एक ही चैनल देखते हैं कहते हुए करोड़ों दर्शक उस चैनल पर रवीश को देखने के लिए जाते हैं. वो देखते हैं कि जिस समय, जिस जगह पर रवीश बोलते थे वहाँ अब पत्रकारिता नहीं पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ़ भरम बचा हुआ है.
आज जब विपक्ष रवीश की तारीफे करता है तो सत्ता पक्ष के लोग याद दिलाते हैं 'रवीश आपकी सत्ता के विरोधी थे याद कीजिए वो दौर' , 'पुरानी क्लिप उठकर देख लीजिए' . दर-असल सत्ता पक्ष जाने अनजाने रवीश की पत्रकारिता को सलाम ठोंक रही होती है. चूंकि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा गया है जिसका काम सरकार का स्थायी विपक्ष होना है. सत्ता चाहे किसी की भी हो.
रवीश की विश्वसनीयता ऐसी की उनकी क्लिप के कारण कोर्ट को अपना निर्णय देना पड़ा हो. जिन रवीश की पत्रकारिता को दुनिया इज्ज़त की दृष्टि से देखती हो, जिन रवीश कुमार को वैश्विक पत्रकारिता में भारतीय पत्रकारिता का चेहरा मानते हुए दुनिया उन्हें पत्रकारिता की आबरू कहती हो. रवीश कुमार ने कई वैश्विक स्तर पर सम्मान पाए हैं, लेकिन उनकी पेशानी पर बिखरे बेतरतीब पके बाल उनकी बेचैनी कहिए या मुस्तैदी वो स्थायी है. कोई भी किसी भी पक्ष का क्यों न हो जब भी उसे कोई सच या तार्किक खबरों का विश्लेषण देखना हो तो वो रवीश को ही देखना चाहता है. रवीश के लिए यह भी एक बडा सम्मान है. इतना अनुभव होने के बाद भी रवीश की जिज्ञासा सीखने की ललक सोशल मीडिया के दौर में बढ़ती जा रही है. फ्रेम में आने वाले रवीश बड़े - बड़े आर्टिकल्स, सम्पादकीय लिखते रहते हैं.. मुझे व्यक्तिगत रूप से रवीश का इतना पढ़ना - लिखना प्रभावित करता है. वैसे भी एक पत्रकार आलोचक के साथ एक स्टूडेंट होना नैसर्गिक है.
टीवी स्कीन काली कर देने वाले रवीश को खूब तंग करने की कोशिश की गई. रवीश को गिराने के लिए एक ताकत खड़ी हो गई, उनका बहिष्कार भी कर दिया गया लेकिन रवीश लगे रहे. हताश भी हुए, नकारात्मक भी हुए, सख्त भी हुए लेकिन ऐसे सस्ते दौर में भी रवीश ने कभी भी अपनी शालीनता नहीं छोड़ी. व्यंग करते हैं कटाक्ष करते हैं लेकिन रवीश की भाषायी शिष्टता सीखने योग्य है.
एक दिन एक्स (पूर्व के ट्विटर) पर एक रिटायर्ड आईएएस एवं एक वरिष्ठ पत्रकार की तू तू मैं मैं से भी ज्यादा अभद्र वॉर देखी तो बहुत दुःख हुआ कोई कितना ही नकारात्मक क्यों न हो अपनी शालीनता नहीं छोड़ना चाहिए. वैसे भी व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो ग़र वो अभद्र है तो उसका कोई अर्थ नहीं है.
सचमुच उस दिन से रवीश के लिए इज्ज़त और बढ़ गई. रवीश को आजतक शायद ही कभी किसी ने शालीनता त्यागते हुए देखा हो. मैंने कभी भी रवीश को अशिष्ट होते नहीं देखा. रवीश ने भारतीय पत्रकारिता को अपने कांधे पर उठाया हुआ है. वाकई बहुत बड़ा उतरदायित्व है. आज भाजपा की नीतियों का विरोध करते हुए भाजपा समर्थकों को लगता है रवीश कांग्रेस समर्थक हैं, लेकिन यकीन रखिए जब आप विपक्ष में होंगे तब रवीश आपके साथ आपकी अच्छी नीतियों के साथ होंगे. पत्रकारिता का यही धर्म है. जो रवीश निभा रहे हैं.
याद करिए ये वही रवीश कुमार हैं जो मनमोहन सिंह को कहते थे 'कृपया रवीश कुमार की रिपोर्ट देखिए हिन्दी में मिलेगी, वैसे भी इंग्लिश से समाचार देखो तो लगता है देश विकसित हो चुका है " आज बीजेपी की सरकार कोई भी निर्णय लेते यह कहकर बचना चाहती है कि यह अंदर की बात है तब रवीश कहते है 'लोकतंत्र अंदर पहनने वाली बनियान नहीं है बल्कि बाहर पहनने वाली सफेद कमीज है. रवीश कहते हैं 'हर ज़ंग जीतने के लिए नहीं लड़ी जाती बल्कि दुनिया को बताया जा सके कि कोई है जो लड़ रहा है. डरा हुआ पत्रकार सड़ा हुआ लोकतंत्र बनाता है कहने वाले रवीश कुमार उस स्तर पर जा पहुंचे हैं कि पत्रकारिता में पढ़ाए जाएंगे लेकिन उनके सवालों का जवाब कौन देगा, कि तुम राजनेता के फैन क्यों बन गए?? नागरिक से जनता क्यों बन गए?? सवाल खत्म नहीं होंगे! वैसे भी देश केवल कोई काग़ज़ पर बना नक्शा नहीं होता. जब तक लोकतंत्र है यूँ ही सवाल किए जाएंगे.
जिस आईटी सेल ने रवीश को बदनाम करने के लिए कई साल, खूब पैसे तक खर्च कर डाले... रवीश ने उसे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर उसे खुद एक्सपोज़ कर दिया था.
आज रवीश से प्रेरित होकर ध्रुव राठी ने उसी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को बंद होने के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है.. आज पत्रिकारिता करता हुआ हर छात्र रवीश कुमार बनना चाहता है. यह रवीश की ज़िन्दगी का हासिल है
दिलीप कुमार
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