'एक स्वघोषित सुपरस्टार कुमार गौरव'
'स्वघोषित सुपरस्टार कुमार गौरव'
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80 के दशक में एक हैंडसम स्टार किड की हिन्दी सिनेमा में एंट्री हुई जिसकी मासूम अदायगी एवं ख़ूबसूरती, स्टाइल ने सभी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बना दिया. खुद कुमार गौरव ने भी सोचा नहीं होगा चॉकलेटी सा लड़का एक फ़िल्म के ज़रिए रातों रात स्टार बन जाएगा, और समकालीन अभिनेताओं के लिए कांटे का टक्कर साबित होगा. कुमार गौरव हिन्दी सिनेमा के जुबली कुमार राजेन्द्र कुमार के सुपुत्र हैं. कुमार गौरव के हिन्दी सिनेमा में पदार्पण को लेकर तब खासा उत्साह था. कुमार गौरव को हिन्दी सिनेमा में उनके पिता जुबली कुमार लेकर आए थे, और यह डेब्यू किसी सपने से कम नहीं था. कुमार गौरव की डेब्यू फ़िल्म लव स्टोरी ने हिन्दी सिनेमा सहित हमारे समाज को ख़ासा प्रभावित किया. एक फिल्म आती है, जो अपने दशक में सिनेमा एवं समाज दोनों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है... लव स्टोरी भी ऐसी ही एक कल्ट फिल्म है. लव स्टोरी फिल्म ने टीनएज़र लव का एक नया ट्रेंड स्थापित किया. फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल तो दिखाया ही साथ ही कुमार गौरव अपनी स्टाइल के कारण यूथ आइकॉन बनकर उभरे.
हैंडसम कुमार गौरव ने हेयरस्टाइल जो कभी अमिताभ बच्चन की तरह रखा हुआ था. वो कुमार गौरव हेयरस्टाइल बन गई. यही तो होता है हीरोइज्म... एक ही फिल्म से शोहरत की बुलन्दियों तक पहुंचने वाले कुमार गौरव के लिए उनका स्टारडम ही उनके लिए दुश्मन साबित हुआ. शोहरत पाना जितना कठिन है, उससे कहीं ज्यादा कठिन है, उसे पचा पाना, यह बात हिन्दी सिनेमा ही नहीं सभी क्षेत्रों लागू होती है. सुपरस्टार राजेंद्र कुमार ने कुमार गौरव को स्थापित करने के लिए.. पदार्पण से लेकर स्थापित होने के लिए एक से बढ़कर एक फ़िल्मों का निर्माण किया. वो फ़िल्में अपने कथानक के लिए जानी भी जाती है. हर पिता चाहता है कि उसका बेटा खूब नाम कमाए, चाहे वो जुबली कुमार हों या कोई आम मध्यमवर्ग व्यक्ति. हिन्दी सिनेमा में हमेशा से ही परिवारवाद का आरोप लगाया जाता है.. हो सकता है आसानी से काम मिल जाता हो, लेकिन कॅरियर में स्थिरता खुद की प्रतिभा, संयम से आती है.... कुमार गौरव में खूब प्रतिभा है, देखने सुनने में तो पिता की तरह ही आकर्षक दिखते हैं.. फिर क्या हुआ कि कॅरियर चौपट हो गया.. गुरूर था, लेकिन तब संयम नहीं था...
मैंने कुमार गौरव की जितनी भी फ़िल्में देखा सभी उम्दा हैं. देखकर दुःख होता है कि एक अभिनेता जो सुपरस्टार हो सकता था.. उसने खुद का यह हस्र किया..और उससे भी बड़ी बात है कि उसे ज़रा भी मलाल नहीं है.
एक फिल्म की आपार सफलता ने कुमार गौरव का दिमाग ख़राब कर दिया. बदगुमानी ने बुलन्दियों से सीधे गर्दिश में लाकर पटका. कॅरियर के उफान पर कुमार गौरव ने एक ऐसा अहमकाना फैसला ले लिया कि उस फैसले ने हिन्दी सिनेमा से पैक - अप ही करा दिया. पिता जुबली कुमार जो हिट फ़िल्मों की गारंटी थे, वहीँ उनका बेटा एक सुपरहिट देने के बाद एक हिट के लिए तरसने लगा. आम तौर पर एक धारणा होती है कि ऐसी सोच एटिट्यूड वाले लोग ज़िन्दगी में ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सकते, लेकिन कुमार गौरव के साथ एक अच्छी बात थी, वो कभी नकारात्मक नहीं हुए. खुद को कभी अप्रासंगिक नहीं माना. आम तौर पर हिन्दी सिनेमा में सितारे फ्लॉप होने के बाद ड्रग्स, नशे, डिप्रेशन में डूब जाते हैं, लेकिन गौरव ने कभी भी इस गुमनामी को स्वीकार नहीं किया. और इस तरह के विचारों को खुद पर कभी हावी नहीं होने दिया.
बेशक कुमार गौरव का वक्त बदल चुका था, फ़िल्में फ्लॉप पर फ्लॉप हो रहीं थीं. वे गुमनामी के अंधेरे में जा रहे थे. लगातार फ़िल्में पिट रहीं थीं, जिससे बड़े बड़े फ़िल्मकार भी उनसे कन्नी काट रहे थे, लेकिन कुमार ने इन सभी की परवाह किए बिना लगातार जद्दोजहद में लगे रहे. फ़िल्में नहीं चल रहीं तो क्या हुआ, ज़िन्दगी थोड़ा ही रुक गई है. ज़रूरी तो नहीं कि स्टार का बेटा स्टार बने, फ़िल्में ही तो ज़िन्दगी नहीं होतीं. मैं अपना कोई मुक्कमल मगर नया रास्ता बनाऊँगा. और अपने पिता का नाम रोशन करूंगा. कुमार गौरव ने बिजनैस की दुनिया में कदम रखा और आज बहुत सफ़ल उद्योगपति हैं. ये बात सच है कि हम कुछ सोचते हैं नियति ने पहले कुछ सोच रखा होता है. आज बिजनैस की सफ़लता देख कुमार गौरव को फ़िल्मों से दूर होने का कोई मलाल नहीं है. ऐसा नहीं है कि सुपरस्टार संजय दत्त के बहनोई कुमार ने कोई हिट फिल्म नहीं दी. लव स्टोरी में बाद उनकी एक बहुचर्चित फिल्म 'नाम' को राजेन्द्र कुमार ने बनाया था. इस फिल्म की कहानी कुमार गौरव के दिल के बहुत करीब थी, जो किरदार कुमार गौरव ने निभाया था वो फिल्म के हीरो का रोल था. लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई थी फिल्म के हीरो संजय दत्त बनकर उभरे, और पूरी तालियां बटोर ले गए. इसी फ़िल्म में कुमार गौरव सहायक अभिनेता बनकर रह गए. महेश भट्ट निर्देशित फ़िल्म नाम का सुपरहिट गीत 'तू कल चला जाएगा तो मैं क्या करूंगा' खूब लोकप्रिय हुआ था.
कुमार गौरव का कॅरियर जब उरूज़ पर था, तो कुमार गौरव के साथ भी वही हुआ जो अव्वल हर उगते हुए सूरज को सलाम करने का चलन होता है. बड़े से बड़े फ़िल्मकार कुमार गौरव को लेकर फ़िल्में बनाना चाहते थे. तब कुमार गौरव ने शोहरत की बुलन्दियों पर एक अहमकाना फैसला लिया था, उन्होंने सभी निर्देशकों के लिए एक फरमान जारी किया, वो यह था कि मैं किसी नई अदाकारा के साथ काम नहीं करूंगा. और यही एक फैसला गलत साबित हुआ, कुमार गौरव ने जिन अभिनेत्रियों को नई हिरोइन कहकर साथ काम करने से मना किया था, और कुमार गौरव का यही फैसला गलत साबित हुआ. कालांतर में वही हीरोइन्स हिन्दी सिनेमा की बड़ी अदाकारा बनकर उभरीं, जैसा बोया कुमार गौरव को वही काटना पड़ा. कुमार जब हिट थे तब नई हीरोइन्स के साथ काम नहीं करना चाहते थे . अब वो नई ऐक्ट्रिस सुपरहिट हो चुकी थीं तो एक फ्लॉप ऐक्टर के साथ काम क्यों करें? और निर्देशकों को उनकी बातेँ माननी पड़ती थीं. नतीज़ा यह निकला कि जो फ़िल्मकार कुमार गौरव के साथ काम करने के लिए आतुर थे, वो अब कुमार गौरव के साथ काम करने की बजाय कन्नी काट जाते. और उनका हिन्दी सिनेमा से पैक - अप हो गया.
कुमार गौरव को हिन्दी सिनेमा से बाहर होने का अब कोई मलाल नहीं है, क्योंकि जरूरी नहीं है कि जो ऐक्टर का बेटा ऐक्टर बने. हो सकता है आप को पिता के कारण स्टेज मिल जाए लेकिन आपको अपना मुकाम बनाने के लिए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना होगा. हर रोज़ खुद को साबित करने के अलावा कोई गुंजाईश नहीं होती. कुमार गौरव की छोटी सी सिनेमाई यात्रा हर एक स्टार किड्स के लिए एक सबक है, कि आपको पिता कारण मिले हुए मौकों की इज्ज़त करना चाहिए. वैसे भी आपसे ज़्यादा - ज़्यादा प्रतिभाशाली लोग हिन्दी सिनेमा में मुकाम बनाने के लिए हर रोज़ लाखो की संख्या में मुंबई जाते हैं.. वहीँ उन लोगों के लिए भी कुमार गौरव का जीवन एक प्रेरणा है कि जिंदगी में कभी कुछ खत्म नहीं होता. अच्छा - बुरा वक़्त आता रहता है. ग़र आप एक क्षेत्र में फेल होते हैं तो आपको दूसरा रास्ता पकड़ लेना चाहिए. वैसे भी कुमार गौरव ऐक्टिंग के लिहाज से कमाल के ऐक्टर थे, लेकिन नियति ने उनके लिए कोई दूसरा रास्ता बना रखा था.
दिलीप कुमार
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