'राजकुमार समझ नहीं आते थे'
'राजकुमार समझ नहीं आते थे'
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यूँ तो देव साहब ने राजकुमार साहब के साथ कभी कोई काम नहीं किया... राजकुमार साहब देवानंद साहब को सबसे बड़ा सुपरस्टार भी मानते थे, दोनों एक - दूसरे का बहुत सम्मान करते थे. दोनों इवेंट्स पर मिलते रहते थे, पुरानी तस्वीरें भरी पड़ी है. दोनों ने भले ही साथ काम न किया हो, लेकिन देवानंद साहब ने राजकुमार साहब को याद करते हुए अपनी आत्मकथा में एक महत्वपूर्ण संदर्भ में याद किया है.
देव साहब राजकुमार को लेकर अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विथ लाइफ' में लिखते हैं. 'यूँ तो राजकुमार में लोग नकारात्मकता, घमंड देखते हैं, लेकिन उस व्यक्ति के दिल में सादगी का एक स्थान था. सादगी को लेकर देव साहब कहते हैं, यही दृष्टिकोण ज़िन्दगी में मेरा भी रहा है, लेकिन मैंने कभी भी यह सोचा नहीं है, कि मैं भी ऐसा करूंगा. हालाँकि हम कभी भी आदर्श नहीं होते, और न ही पूर्ण होते कब आपको कौन क्या सीख दे जाए, कह नहीं सकते!
देव साहब लिखते हैं "राजकुमार का निधन हो जाने के बाद कुछ दिनों बाद उनकी बेटी वास्तविकता मेरे पास काम मांगने के लिए आईं. तो मैंने सहसा पूछा कि राजकुमार कैसा है? स्वास्थ्य ठीक है? वास्तविकता अपने पिता राजकुमार को याद करते हुए रो पड़ी. मैंने पूछा क्या हुआ, कहती है कि मेरे पिता इस दुनिया में नहीं रहे. मुझे भी दुःख हुआ, कि राजकुमार जैसे बड़े ऐक्टर के देहांत की खबर भी नहीं लगी. मैं अचरज में पड़ गया. फ़िर मैंने कहा मुझे तो पता ही नहीं चला! वास्तविकता ने जो बताया, राजकुमार का दृष्टिकोण उन्हें एक दार्शनिक सिद्ध करता है. वहीँ आश्चर्य हुआ कि आज की दुनिया में कोई ऐसा सादगी से भरा कोई कैसे हो सकता है! राजकुमार ने अपने देहांत से पहले ही तय कर दिया था, कि मेरे देहांत के बाद मेरे घर के लोग ही मुझे पंचतत्व को सौंप देना. किसी प्रकार की कोई शवयात्रा ड्रामा मेरी मौत का मत बनाना. मौत व्यक्ति की अपनी पर्सनल होती है. शरीर प्रकृति का है, उसको ही सौंप देना चाहिए. वो नहीं चाहते थे, कि राजकुमार को कोई असहाय रूप में नाक में रुई लगी अर्थी में लेटा हुआ देखे. मैं नहीं चाहता कि मेरे फैन्स उस रूप में देखकर मुझ पर दया करें. मैं अपनी बुलन्द तस्वीर लोगों के जेहन में ऐसी ही बनाए रखना चाहता हूं. जैसे मैं ज़िन्दा था मरने के बाद भी ज़िन्दा रहना चाहता हूं. बेटी वास्तविकता से सुनने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए ही सही स्तब्ध हो गया. तब से राजकुमार के लिए आदर का और भाव बढ़ गया.
देव साहब कहते हैं. सचमुच राजकुमार बहुत कम समझ आता था. तब देव साहब ने भी प्रेरणा लिया कि मरने के बाद इवेंट बाज़ी नहीं होना चाहिए. शरीर प्रकृति को सौंप देना चाहिए. चाहे, जिस मुल्क में चाहे जिस गांव में चाहे जिस शहर में जहां देहांत हो मुझे प्रकृति को सुपुर्द कर देना. कोई शवयात्रा, शोकयात्रा आदि नहीं होना चाहिए. यही देव साहब की इच्छा के मुताबिक लंदन में उनके कुछ रिश्तेदारों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. राजकुमार का यह दृष्टिकोण उनको दार्शनिक सिद्ध करता है.
दिलीप कुमार
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