'रमैया वस्तावैया...... रमैया वस्तावैया'

'रमैया वस्तावैया...... रमैया वस्तावैया' _______________________________

'रमैया वस्तावैया...... रमैया वस्तावैया' कविराज शैलेन्द्र का लिखा नग्मा  - आज से लगभग 70 साल पहले ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब, नरगिस जी की कल्ट क्लासिक फिल्म श्री 420 में फिल्माया गया था. मज़ाक - मज़ाक में बने इस गीत की धुन आज भी लोगों के बढ़ते हुए कदमों को थाम लेती है. रमैया वस्तावैया' गीत आज भी संगीत प्रेमियों को लुभाता है. ये गीत बजते ही बेफिक्री मे झूमते लोगों के बीच मायूस नरगिस, मजबूर राजकपूर की छवि जेहन में आ जाती है. राज कपूर साहब के महबूब गीतकार शैलेन्द्र लिखित इस गाने के पीछे गहरी रिसर्च है, जिसे महान संगीतकार शंकर - जय किशनजी ने संगीतबद्ध किया था. जिसे रफी-मुकेश लता की तिकड़ी ने अपनी आवाज़ से कर्णप्रिय बना दिया था.

ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब केवल एक फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि वो एक जौहरी भी थे. जिन्होंने  चुन-चुन कर टैलेंटेड हीरे अपनी टीम में रखे थे. तब हिन्दी सिनेमा में तीन तरह के ग्रुप थे, एक प्रमुख ग्रुप ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब का भी था. राजकपूर साहब की टीम में संगीतकार शंकर - जय किशनजी, गीतकार शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, गायक मुकेश जी हमेशा उनके साथ होते थे. आवारा की सफ़लता के बाद जब राजकपूर साहब ने श्री 420 फिल्म का एलान किया, और अपनी टीम से कहा मुझे फिर से कालजयी गीत - संगीत चाहिए, और पूरी टीम गीत-संगीत रचने में जुट गए. इस टीम की ख़ासियत थी ये एक जगह बैठकर संगीत नहीं रचते थे, हमेशा घूमते रहते थे... कभी भी इनकी कला इनके जेहन से निकलती ही नहीं थी. हमेशा सुर, शब्द धुन, राग, मुखड़े, वाद्य यंत्र इनके दिमाग में चलते रहते थे... कभी - कभार तो घूमने खंडाला, लोनावाला निकल पड़ते थे, ये टीम खूब मस्ती करती थी. 

आप सभी को जानकर अचरज होगा कि इस गीत का जन्म मज़ाक - मज़ाक में एक ढावे पर हुआ था. खाने का ऑर्डर देते - देते यह गीत अस्तित्व में आया और जब रीलिज हुआ तो लोकप्रियता की सारी हदें पार कर गया. एक बार शंकर - जय किशनजी, शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, चारो घूमने के लिए खंडाला जा रहे थे. बीच रास्ते में एक ढावा पड़ता है, जहां हमेशा रुककर चाय - नास्ता करते थे. इस बार भी ऑर्डर लेने वाले का इंतज़ार करने लगे, वहाँ एक तेलुगु भाषी रमैया नाम का लड़का काम करता था. गीतकार शंकर को तेलुगु भाषा आती थी, तो उन्होंने तेलुगु में उस लड़के को आवाज़ दी 'रमैया वस्तावैया' तेलुगु में जिसका मतलब था  'रमैया' यहां जब आओगे '. बग़ल में बैठे महान गीतकार शैलेंद्र को ये शब्द बहुत ही जबरदस्त लगे, तब चाय -नाश्ते का इंतज़ार करते शैलेन्द्र रमैया वस्तावैया...... रमैया वस्तावैया'.... बार दोहराने लगे. ये सुनकर गीतकार हसरत जयपुरी ने हँसकर कहा बस इतना ही? आगे तो गाइए कविराज ! शैलेन्द्र ने कहा मैंने दिल तुझको दिया-2 
तब बगल में बैठे संगीतकार शंकर मेज थपथपाने लगे. जय किशनजी माउथ आर्गन से स्वर निकालने लगे..बहुत देर तक सभी गुणी लोग बच्चों की तरह कर रहे थे... फिर बोले यार यह तो बेहतरीन गीत बन सकता है. रास्ते भर शैलेन्द्र जी अपने शब्दों को पिरोते रहे और यह गीत शानदार बनता चला गया. 

खंडाला से सीधे ये चारो आर के स्टूडियो पहुंचे जितना भी गीत तैयार था, उन्होंने राज कपूर साहब को सुनाया. राज साहब सुनकर बोले बिल्कुल ऐसा ही गीत चाहिए था. राज साहब ने इस गीत को फिल्माने की पूरी रूपरेखा बनाई गई, कि जब गाना शुरू होगा, फ़िर कैसे फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाएगा. आम तौर पर तो राज साहब के लिए मुकेश जी ही गाते थे, लेकिन इस गीत को मुकेश जी के साथ रफी साहब से भी गवाया गया. इस गीत में जो महिला नृत्य करती हुए सभी का ध्यानाकर्षित करतीं हैं उनका नाम शीला बाज है, जिन्होंने हिन्दी सिनेमा के सैकड़ों गानों में उम्दा नृत्य किया है. शीला बाज को लता जी ने आवाज दी. इस श्वेत - श्याम गीत में एक कमाल का रंगीन जादू है, जो सुनने वालों को थिरकने के लिए खींचता है. हमेशा तबले का प्रयोग करने वाले शंकर - जय किशनजी ने गीत में तबले की जगह ढोलक का इस्तेमाल किया गया है. 

राज कपूर साहब की फ़िल्मों के गीत फिल्म की कहानी सुनाते हुए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. श्री 420 की कहानी एक सीधे सादे बेरोजगार नवयुवक इलाहाबाद से बंबई जाने वहाँ की झुग्गी बस्ती में रहकर संघर्ष करने की है. यहां राजकपूर की मुलाकात टीचर (नरगिस) से होती है, और दोनों को एक - दूसरे से इश्क़ हो जाता है. तब ही यह नवयुवक ( राजकपूर) ज़ुर्म की दुनिया में चला जाता है, और बस्ती वालों से दूर हो जाता है. आख़िरकार  इस चमक - धमक की असलियत उसके सामने आ जाती, उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है, और वह अपनी बस्ती में फ़िर से वापस आ जाता है. गीत कहानी को आगे बढ़ाता है. दर-असल राज कपूर साहब के लौटने के लिए ही रमैया वस्तावैया...... रमैया वस्तावैया' 
शब्दों का उपयोग कारगर साबित हुआ. खुद फ़िल्म में गीत सुनते हुए राज कपूर साहब की भाव भंगिमाओं को देखकर पछतावा, दुख, दर्द जहां जेब बेशक खाली है लेकिन दिल में मुहब्बत है. सामने बैठी मायूस नरगिस जी की अदाकारी गीत का अर्थ समझा रही हैं. गीत में राज साहब का अभिनय गीत को अमरत्व दे रहा है, जहां ललिता पावर फ़िर से राज कपूर को अपनाकर गले लगा लेती हैं.शैलेन्द्र लिखित गीत के शब्दों में छिपे अर्थ को जो राज कपूर साहब ने अपनी आला अभिनय शैली से समझाया, ऐसे दूसरा कोई भी पाता मुमकिन ही नहीं है. 

गाना बनकर तैयार हुआ तो कईयों ने कहा कि तेलुगु शब्द लोगों को समझ नहीं आएंगे, लेकिन राज कपूर साहब ने कहा गीत ऐसे ही रिलीज किया जाएगा... फिर वो दिन है 70 साल हो गए गीत आज भी अपनी लोकप्रियता के चरम पर है. 

दिलीप कुमार 




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