'ज़िन्दगी हादसों की जगह है'

'ज़िन्दगी हादसों की जगह है' 

एक ऐसी अदाकारा जिसने आते ही हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों को ग्लैमर का मतलब समझाया. एक ऐसी ऐक्ट्रिस जिसने हिन्दी सिनेमा की हिरोइनों की रूपरेखा बदल डाली. एक ऐसी अदाकारा जिसकी बिंदास पर्सनैलिटी, खूबसूरती पर पूरी दुनिया फिदा थी.. लेकिन उसकी खुद की ज़िन्दगी में था, एकाकीपन जिसको प्यार कभी मुक्कमल नहीं हुआ. 'मोस्ट ब्यूटीफुल, एन मेज़्मराइज़िंग ब्यूटी मोस्ट ग्लेमरर्स ऐक्ट्रिस इन दी हिस्ट्री ऑफ हिन्दी सिनेमा. 'परवीन बाबी' रिच फैमिली में जन्मीं परवीन बाबी को उनका ग्लैमर ही हिन्दी सिनेमा तक खींच ले गया अन्यथा फ़िल्मों में काम करने की आवश्यकता नहीं थी. एकाकीपन परवीन के साथ आजीवन रहा बचपन में ही पिता का इंतकाल, माता - पिता की शादी के 14 साल बाद जन्मी इकलौती संतान अकेली रहतीं थीं... परवीन बाबी ने अपनी पढ़ाई इंग्लिश लिटरेचर में की.. अपने दौर में फ़्लूएंट इंग्लिश बोलने अदाकारा थीं... प्राण साहब, एवं परवीन बाबी के हिन्दी सिनेमा में पदार्पण की कहानी एक जैसी है. स्टाइल, हाथ में सिगरेट कपड़े पहनने का ग्लेमरर्स लुक ही कारण बना... 

मॉडलिंग करती हुई परवीन यूनिवर्सिटी में हाथ में सिगरेट मिनी स्कर्ट में पहली नज़र पड़ी निर्देशक 'बी आर इशारा' की और वो काफ़ी प्रभावित हुए... उन्होंने कहा 'क्या तुम मेरी फ़िल्म में काम करोगी' जवाब हाँ में था... पहली फ़िल्म 'चरित्र' बुरी फ्लॉप हुई, लेकिन बोल्ड ऐक्ट्रिस ने अपनी अदाओं से सिने प्रेमियों को ख़ासा प्रभावित किया, पूरी दुनिया उनके ग्लेमर की दीवानी थी, लेकिन परवीन बाबी डैनी की दीवानी थी. यह अफेयर जल्दी ही ख़त्म हो गया. खुद को सम्भाला और फ़िल्म आई मज़बूर1974 जो सुपरहिट हुई, जिसमें अपोजिट थे, अमिताभ बच्चन.. 1975 में आई फ़िल्म दीवार उसमें भी अमिताभ थे, इस फिल्म का ग्लैमर अंदाज़ दर्शकों को लुभाता रहा. 1977 मनमोहन देसाई की फ़िल्म 'अमर अकबर एंथनी' में अमिताभ के साथ ऑन स्क्रीन सुपरहिट रहीं. 'सुहाग, कालापत्थर, में शशि कपूर के साथ भी शानदार अभिनय किया. 1981 में क्रांति - कालिया जैसी सुपरहिट, ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों में सराहनीय अभिनय किया. परवीन बाबी का नृत्य कौशल काबिले कमाल रहा है. 

इसके बाद उनकी एक और सुपरहिट फ़िल्म आई 'नमक हलाल'.... परवीन बाबी ने भारतीय अभिनेत्रियों के साड़ी - सूट पहनने वाले अटाय़र को बदल कर रख दिया. हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों की इमेज बदलकर रख दिया... इन्होंने हिन्दी सिनेमा में बोल्ड और ग्लैमरर्स कैसे रहा जाता है, सिखा दिया. बोल्ड एवं ग्लैमर का नया ट्रेंड शुरू कर दिया. परवीन बाबी का जलवा ऐसा था, कि सन 1976 में टाइम मैग्ज़ीन ने अपने कवर पेज पर जगह दिया था, टाइम मैग्जीन के कवर पेज पर आने वाली भारतीय सिनेमा की पहली महिला थीं. इससे पहले कभी किसी भी भारतीय सिनेमाई महिला को टाइम मैग्जीन में जगह नहीं मिली थी... हालाँकि शोहरत की बुलन्दियों पर टिके रह पाना बड़ा कठिन होता है, वैसे भी यूनिटी में रहने वाली फिल्मी दुनिया असल दुनिया से भी ज्यादा क्रूर है, क्योंकि यहां न कोई किसी का दोस्त है न दुश्मन... 1983 में परवीन बाबी ने हिन्दी सिनेमा से खुद को किनारे कर लिया, कैलिफोर्निया में इंटीरियर डिजायर के रूप में काम करने लगीं. मन की अशांति, निज़ी ज़िन्दगी में मिले धोखे प्रमुख कारण थे. कई पत्रिकाओं में छापा गया कि अंडरवर्ल्ड से परेशान थीं, एकाकीपन में वहाँ मानसिक हालत और बिगड़ गई थी. किसी शायर ने कहा हैं दुनिया हादसों की जगह है, यह लाइन परवीन बाबी पर सटीक बैठती है. 

एक बार जॉन ऑफ केनेडी एयरपोर्ट पर चेकिंग के दौरान सुरक्षाकर्मियों ने परिचय पूछा तो अपना परिचय नहीं दे पाने में असमर्थ थीं. तब उन्हें हाथो में हथकड़ी लगाकर ऐसी जगह रखा गया, जहां कुछ पागल पहले से ही रखे गए थे, तब भारतीय एंबेसी ने उनकी मदद की, और तब पता चला मशहूर अदाकारा को सिजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी हो गई थी. इस बीमारी में आदमी वास्तविक दुनिया से दूर, अपने दिमाग के द्वारा बनाई दुनिया में ही रहता है. जिसे अपनी जान का खतरा है ऐसी आशंकाएं भी जन्म लेती हैं. परवीन बाबी ने इस बीमारी को कभी स्वीकार नहीं किया, और छह साल बाद 1989 में वापस भारत आ गईं... भारत आते ही अमिताभ बच्चन पर इल्ज़ामो की बौछार कर दिया .. यहां तक कोर्ट केस भी कर दिया था, कि अमिताभ बच्चन मुझे मारना चाहते हैं, कोर्ट ने सबूत न होने के कारण मुआमले को रफा- दफा कर दिया. एक मैग्ज़ीन को दिए इंटरव्यू में कहा था 'अमिताभ बच्चन गैंगस्टर हैं, उनके गुंडों ने मुझे किडनैप तक कर कर लिया था. परवीन बाबी ने मीडिया से भी दूरी बना ली थी... उनसे कौन मिला है, किसने क्या कहा है, सबकुछ रिकॉर्ड करती थीं. फोन पर पहले ही बता देतीं थीं आपका कॉल सर्विलांस पर है सोच समझकर बोलिएगा... 

अपनी मौत से पहले परवीन बाबी ने क्रिसमस पार्टी दी थी, जिसमें सात लोग शामिल हुए थे, उन्होंने सबके नाम, डेक्टा फ़ोन पर रिकॉर्ड कर लिया था. वो सारी रिकॉर्डिंग आज भी महाराष्ट्र गवर्नमेंट के पास आज भी सुरक्षित रखी हुई हैं. परवीन बाबी के दीवानों में 'बॉब क्रिस्टो' का भी नाम है, जो ऑस्ट्रेलियन थे, लेकिन अपना मुल्क छोड़कर मुंबई में बस गए, परवीन बाबी फिर भी नसीब नहीं हुईं तब खुद भी फ़िल्मों में काम करने लगे... "अज़ीब - अज़ीब सिरफिरों से भरी हुई है सिनेमाई दुनिया जहां न किसी का कोई दोस्त है न दुश्मन " 

परवीन की डैनी के साथ इश्क़ की अधूरी दास्ताँ, अमिताभ बच्चन के साथ भी परवान तो चढ़ी, लेकिन मुकम्मल नहीं हुई. कहते हैं इश्क़ तो होता है, बस हो जाता है. फिर भी अपने भविष्य का निर्णय सोच समझकर लिया जाना चाहिए, अन्यथा खुद को ही भोगना पड़ता है. शादीशुदा कबीर बेदी के साथ भी अफेयर हुआ लेकिन शादी नहीं हुई... ये सब हिन्दी सिनेमा में आम बातेँ हैं, अफेयर, तलाक ग्लैमर की चकाचौंध में ये सब बहुत छोटा सा लगता है, परवीन बाबी को फिर एक साथी मिला, रायटर, महेश भट्ट, जिन्होंने अपने बीवी बच्चों को त्याग दिया, शादी परवीन बाबी के साथ भी नहीं कर सके.. विचित्र सी दुनिया है हिन्दी सिनेमा... परवीन बाबी के निधन के बाद महेश भट्ट ने कहा 'वो मेरी यादों में हमेशा ज़िन्दा रहेंगी, लेकिन कोई समझ नहीं सकता कि कोई पागल के साथ कैसे रह सकता है?? यह सुनकर कितना हास्यापद लगता है, बार - बार धोका खाने वाली लड़की पागल थी, तो तुमने सम्भाल क्यों नहीं लिया?? ख़ैर हिन्दी सिनेमा में कोई किसी का दोस्त दुश्मन नहीं होता, अफेयर का ट्रेंड हमेशा परवान चढ़ता है, जो ब्रेक अप पर खत्म हो जाता है. निभाने की परंपरा हिन्दी सिनेमा में अपवाद ही रही हैं. महेश भट्ट ने अर्थ नामक फिल्म लिखी थी, इस फिल्म को परवीन बाबी की बायोग्राफी के रूप में बनाया गया था.. बाद में 2006 में 'वो लम्हे' नामक फ़िल्म में भी परवीन बाबी एवं महेश भट्ट के रिश्ते को देखा जा सकता है! महेश भट्ट से अलग होने के बाद हिंदी सिनेमा से हमेशा के लिए ही अलग रहीं, और कभी शादी नहीं की.. ज़िन्दगी भर सच्चे प्रेम के लिए तरसती भावुक अदाकारा ने 20 जनवरी 2005 असमय ही दुनिया को अलविदा कह दिया.

 दुनिया छोड़ जाने की ख़बर किसी को नहीं हुई, फ्लैट के बाहर अखबार, और दूध के पैकेट इक्कठे होते गए, साथ ही फ्लैट के बाहर दुर्गन्ध ने तस्दीक किया कि अदाकारा दुनिया छोड़ गईं...कई दिनों तक भूखी प्यासी बिस्तर से न उठ पाने के कारण मृत्यु हो गई. 

परवीन बाबी का एक पहलू सोचने पर मज़बूर कर देगा, जिसके पास पानी देने वाला भी कोई नहीं था, मरने के पहले भी अदाकारा ने न जाने कितने लोगों के लिए सोचा होगा. मृत्यु के कुछ सालो पहले उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था. अपनी संपत्ति का 70% अपने मूल बाबी पठानो के नाम 10% गरीब ईसाइयों के नाम पर कर दिया था. इतनी प्रसिद्ध अदाकारा की क्रूर मौत दुःखद है, वहीँ आने वाली अभिनेत्रियों के लिए सबक की हिन्दी सिनेमा में कोई किसी का नहीं होता, आपका व्यक्तित्त्व ऊरूज़ पर होगा, तब लोग आपके आसपास होंगे. और जैसे ही आप मुसीबत या परेशानियों में आए आपके पास अंधेरे के अलावा कुछ भी नहीं होगा. महान चार्ली चैप्लिन ने कहा था 'जब कला किसी को गॉड देता है तो उसके पैर पहले ही लहूलुहान कर देता है", जिस भी सुपरस्टार ने इस बात को आत्मसात कर लिया तो वास्तविकता से परिचत रहेगा जिसने भी इसको आत्मसात नहीं किया, आदमी वास्तविकता से दूर चला जाता है. महान चार्ली चैप्लिन की यह बात अभी तक कलाकारों के लिए यूनिवर्सल सत्य साबित हुई है... 

दिलीप कुमार

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