क्यों डूब गया महान टाइटैनिक?
क्यों डूब गया महान टाइटैनिक?
महान टाइटैनिक जहाज के बारे में कहा गया था, कि यह कभी डूब ही नहीं सकता, भगवान भी इसे डूबा नहीं सकते. इस भरोसे के अपने कारण भी थे. टाइटैनिक जहाज़ को बनाने में अत्यधिक समय लिया गया था. इसको बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया था. बड़े अध्ययन के बाद इसको तैयार किया गया था. 111 साल बीत जाने के बाद भी टाइटैनिक अपनी प्रासंगिकता लिए हुए है! कई बार अति आत्मविश्वास ले डूबता है. कभी भी सुरक्षा कारणों को दरकिनार नहीं करना चाहिए... ज़िन्दगी जीने का रोमांच मूर्खता के मुकाम पर भी ले जाता है.. टाइटैनिक बढ़िया बनाया गया था, लेकिन सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए! लिहाजा समुद्र की सतह में समा गया.
दुनिया का सबसे चर्चित लग्जीरियस जहाज टाइटैनिक 10 अप्रैल 1912 को 41 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से साउथम्पैटन से अमेरिका की ओर अपनी पहली यात्रा में निकला था. इसमे कई किस्म के यात्री सवार थे , जो अमेरिका जा रहे हैं कोई अमेरिका में अपनी ज़िन्दगी तलाश करने जा रहा है तो कोई टाइटैनिक में यात्रा करते हुए अपने पैसे का सुख भोग रहा था. इसके प्रमुख चालक 'एडवर्ड जॉन स्मिथ' जिनकी उम्र लगभग 62 साल थी, मिस्टर स्मिथ जहाज़ चालकों में ख्याति प्राप्त थे. तब दुनिया का सबसे बड़ा जहाज 269 मीटर लम्बा, वहीँ 53 मीटर ऊंचा जहाज पूरी दुनिया में चर्चा का विषय था. उस दौर में जहाज बनाने की लागत 7.5 मिलियन डॉलर थी, जो आज के 400 मिलियन डॉलर होते हैं.. इसकी सुविधाएं 5 स्टार होटेल जैसी थीं.. इस जहाज के मालिक ने पब्लिकली आकर कहा था कि टाइटैनिक डूब ही नहीं सकता. 12 अप्रैल को ही पहली चेतावनी मिली कि संभलकर यहां बड़े बड़े हिमबर्ग हैं, लेकिन 'एडवर्ड जॉन स्मिथ' ने चेतावनी को दरकिनार कर दिया था, और अपनी स्पीड कम नहीं की थी. इसके बाद शाम को ही 7 बार और चेतावनियाँ मिलती हैं.. उस रात चाँद भी नहीं निकला था, तो कोई चांदनी का उजाला भी नहीं था, तो विजिबिलिटी एकदम जीरो थी. आसपास जो भी जहाज होते हैं, वो रेडियो के जरिए एक - दूसरे को जानकारियां साझा करते हैं. अटलांटिक महासागर में अत्यधिक सर्द होने के कारण वहाँ - 2 से - 4 डिग्री रहता है, जिससे वहाँ बड़े - बड़े हिमबर्ग होने के कारण दूसरे जहाजों ने यात्रा को रात भर के लिए रोक रखा था. जहाज के बहुत ऊपर एक लुक आउट पॉइंट होता है, वहाँ एक नाविक बिठाया जाता है, जो जहाज के सामने कोई पहाड़ न आ जाए, जहाज कहीं क्षतिग्रस्त न हो नाविक जानकारी देता है, लेकिन विजिबिलिटी जीरो एवं सर्द होने के कारण नाविक को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
अचानक 11:38 बजे रात को नाविक को अचानक एक हिमबर्ग दिखता है, उसने तीन बार घन्टा बजाया, अन्दर कॉल किया, कि जहाज मोड़ दो हमारे सामने एक विशाल बर्फ़ का पहाड़ है, यह कोई छोटा मोटा पहाड़ नहीं था, लगभग एक फुटबॉल स्टेडियम जितना बड़ा वहीँ जहाज के लुक पॉइंट एरिया तक ऊंचा था. नाविक को चेतावनी देने में एक मिनट की देरी हो गई, और दस सेकेंड तक जहाज पहाड़ से सटा टकराते हुए चला गया.. टाइटैनिक की सतह क्षतिग्रस्त हो गई कॅप्टन स्मिथ ने जायजा लिया तो पता चला कि यह जहाज डूब जाएगा. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो टाइटैनिक के निचली सतह पर डबल बॉटम मतलब दो लेयर लगाई गईं थीं, कि एक को नुकसान होगा, तो दूसरा है, दूसरे को नुकसान होगा, लेकिन हिमबर्ग से टकराने के साथ ही इसकी दोनों लेयर क्षतिग्रस्त हो गईं थीं. टाइटैनिक की निचली सतह टूट जाने के बाद भी, अगर अंदर पानी भर जाता है, तो निचली सतह पर 16 वाटर टाइट कंपार्टमेंट बनाए गए थे, कह्ते हैं कि अगर एकसाथ चार वाटर कम्पार्टमेंट भर जाएं तो भी जहाज को कुछ नहीं हो सकता था, लेकिन टाइटैनिक के एक साथ 6वाटर टाइट कम्पार्टमेंट में पानी भर गया था... एक साथ पानी निकाला नहीं जा सका..
'कैप्टन स्मिथ' ने क्रू मेंबर को ऑर्डर दिया कि रेडियो पर डिस्ट्रेस कॉल करो.. डिस्ट्रेस कॉल मतलब आसपास कोई भी जहाज होगा तो वो मदद के लिए आ जाएगा. टाइटैनिक के सीनियर रेडियो ऑपरेटर 'जैक फिलिप' लगातर डिस्ट्रेस कॉल करते रहते हैं, लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं आता. अचानक रात 12:20 पर एक कारपेथियर जहाज रेडियो पर रिस्पॉन्स देता है, कि हम आ रहे हैं, अब दिक्कत यह थी, कि यह कारपेथियर जहाज टाइटैनिक से लगभग 100 किलोमीटर दूर था, अगर यह जहाज अपनी फुल स्पीड पर भी आता तो इसे लगभग साढ़े तीन घण्टे का समय लगेगा.. तब तक बांकी यूनिट के लोग हवा में रॉकेट छोड़ते हैं कि आसपास कोई जहाज होगा तो प्रकाश देखकर मदद के लिए आ जाएगा, अफ़सोस कोई रिस्पॉन्स नहीं आता... अब फाइनली 'कैप्टन स्मिथ' ने ऑर्डर दे दिया कि लाइफबोट को समुन्दर में उतार दीजिए, अब एकमात्र वही रास्ता है लोगों की जान बचाने का.. नियमानुसार सबसे पहले महिलाओं - बच्चों को लाइफबोट इस्तेमाल करने का मौका मिलता, लेकिन अधिकांश यात्रियों को यह सब टेक्निकल बातेँ नहीं पता थीं, उन्हें अभी भी लगता था कि टाइटैनिक नहीं डूब सकता, और अब तक बहुतेरे लोग एडवेंचर एंजॉय कर रहे थे.
एक लाइफबोट में 70 लोगों को बिठाने की क्षमता थी, लेकिन लापरवाही का आलम सिर्फ उसमें 25 लोग सवार थे. अब धीरे - धीरे वाटर कम्पार्टमेंट भरते जा रहे थे, अचानक से यात्रियों को लगने लगा था कि अब यह जहाज डूब जाएगा. आगे के कम्पार्टमेंट भर जाने के कारण आगे का हिस्सा पानी में डूब गया था, अब टाइटैनिक को लाइफबोट की आवश्यकता थी, क्योंकि जहाज में केवल 20 लाइफबोट थीं, जिसमें केवल 1200 यात्री ही बैठ सकते थे, अब यात्री भागमभाग में जान बचाने लगे थे. भयावह यह था, कि जहाज में लगभग 2200 लोग सवार थे. लगभग रात 02 बजे आख़िरी लाइफबोट पानी में उतारी गई तब तक जहाज में 1500 लोग मौजूद थे, कुछ जहाज में मरने का इंतजार करने लगे, कुछ ने मौत से बचने की जद्दोजहद ही नहीं की. रात 02 :20 में जहाज असंतुलित होकर दो टुकड़ों में टूटकर समुन्दर की सतह पर समा गया..
लगभग तीन घण्टे में टाइटैनिक डूब गया, 1500 यात्रियों में कुछ डूबकर तो कुछ अत्यधिक सर्द के कारण मर गए. अटलांटिक के पानी का तापमान - 2% था.. इस तापमान में आदमी पंद्रह मिनट से ज्यादा ज़िन्दा नहीं रह सकता. कहते हैं 'एडवर्ड जॉन स्मिथ' अंतिम साँस तक अपनी चेयर पर बैठे रहे और पानी में डूब गए थे.. कारपेथियर जहाज जो टाइटैनिक की सहायता के लिए आ रहा था वो लगभग 03:30 बजे रात में पहुंचा तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लाइफबोट के साढ़े सात सौ लोगों को यह जहाज अपने सुपुर्द लेकर जान बचा लेता है.
टाइटैनिक की त्रासदी पूरी दुनिया को रोमांचित कर देने वाली थी, बहुत सी जांचे हुईं, तो पता चला कि टाइटैनिक जहाज के पास 37 किलोमीटर दूर एक जहाज था, जिसका नाम था एसएस कैलिफोर्नियन.... टाइटैनिक जहाज को पहली वार्निंग 'एसएस कैलिफोर्नियन' जहाज ने ही दिया था कि ध्यान रखना यहां बहुत से बर्फ के पहाड़ हैं, और कैलिफोर्नियन जहाज के ऑपरेटर ने अपना रेडियो बंद कर दिया था, सुरक्षा कारणों से जहाज ने रात को अपनी यात्रा रोक दी थी. कहते हैं कि कैलिफोर्नियन जहाज के नाविक ने टाइटैनिक जहाज की उड़ती हुई रॉकेट को भी देखा था, उसने अपने कॅप्टन को बताया कि शायद उसे हमारी मदद की जरूरत है, तो कैलिफोर्नियन जहाज के कैप्टन लॉर्ड ने कहा टाइटैनिक में बहुत रईस यात्री यात्रा कर रहे हैं वो पार्टी कर रहे होंगे यह डिस्ट्रेस रॉकेट नहीं है.. ग़र कैलिफोर्नियन के जहाज कैप्टन लॉर्ड ने नाविक की बात सीरियस ली होती तो एक भी आदमी की जान न जाती.. जैसे ही कैप्टन लॉर्ड सुबह अपना रेडियो ऑन करते हैं तो इन्हें टाइटैनिक की बहुत सी डिस्ट्रेस कॉल पेंडिंग मिलती हैं, और कैलिफोर्नियन बिना देर किए टाइटैनिक की ओर जाते हैं तब तक वाकई बहुत देर हो चुकी थी...
इस त्रासदी का ठीकरा कैलिफोर्नियन जहाज के कैप्टेन लॉर्ड पर फोड़ दिया जाता है. एक व्यक्ति ही जिम्मेदार नहीं था, एक रिपोर्ट में पता चलता है, कि इतनी सारी चेतावनी मिलने के बाद भी जहाज फुल स्पीड से क्यों चल रहा था?
आवश्यक लाइफबोट रखने की जगह होते हुए भी क्यों नहीं रखा गया, लेकिन जहाज कम्पनी यह दिखाना चाहती थी कि टाइटैनिक कभी डूब ही नहीं सकता था !
जब आसपास के जहाज रात में रुके हुए थे, टी टाइटैनिक क्यों चल रहा था? मुश्किलों के बीच भी इस पर जल्दी से जल्दी सफ़र पूरा करने का अत्यधिक दबाव था. दरअसल यह दबाव 'ब्लू बैंड' को हासिल करने का था. 1839 में शुरू हुआ यह सम्मान अटलांटिक महासागर के सबसे तेजी से पार करने वाले जहाज को मिलता था. टाइटैनिक को इस सम्मान का सबसे ज़ोरदार दावेदार माना गया था... हमेशा से ही बड़ी - बड़ी त्रासदी के पीछे आदमी की संकीर्ण सोच ही होती है. कुछ धूर्त लोगों के निजी फायदे के कारण मनुष्यता भी शर्मिंदा होती है.इतने बड़े समुद्र की सतह पर टाइटैनिक को ढूढ़ने में 70, साल का समय लगा.. साल 1985 में टाइटैनिक को ढूंढ लिया गया समुद्र की सतह पर जहाज दो टुकड़ों में टूटा मिला. दोनों टुकड़े छह सौ मीटर थे. बड़े - बड़े विद्वानों ने दावा किया है कि 2030 तक टाइटैनिक पूरी तरह से खत्म हो जाएगा..
सोनार युक्ति के तहत टाइटैनिक के मलबे की अलग - अलग एंगल से लाखों तस्वीरें भी जारी हुई थीं, वहीँ दशकों बाद कुछ मिले मलबे को लाखों लोगों ने देखा था, जिनका अनुभव रोमांचित कर देने वाला था.... वहीँ उसका नष्ट मलबा आज भी समुद्री सतह पर मौजूद है.. -2 डिग्री तापमान में इतने विशाल टाइटैनिक जहाज को निकाल पाना बहुत मुश्किल है.... देखना यह है कि क्या टाइटैनिक कभी समुद्र की सतह से निकल पाएगा..क्योंकि हज़ारों सवाल उसी में दफ्न हैं.. आज भी जिनके बहुतेरे अनसुलझे प्रश्नो के जवाबों की दरकार है...टाइटैनिक की अगली कड़ी में अगला भाग जल्द ही......
दिलीप कुमार
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