'आधुनिक ग़ज़ल सम्राट'

आधुनिक ग़ज़ल सम्राट 

(गुलाम अली साहब) 

ग़ज़ल का एक और युग शुरू होता है, पंजाबी गायिकी का दौर.. जहां नॉलेज ऑफ म्युज़िक उभर कर आता है, जिसने सबसे पहला नाम गुलाम अली साहब का उभर कर आता है. गुलाम अली साहब की ग़ज़ल में देखता हूं, उनका जो रियाज़ है, उनका जो सरग़म है, उनकी जो मुरकिंया हैं, उसका भी वो इतना ही इस्तेमाल करते हैं, जितना एक अच्छे कलाम में करते हैं. ग़ज़ल सुनने वालों के लिए इससे बड़ा सुकून कुछ नहीं हो सकता.. यूँ तो गुलाम अली साहब को कोई ग़ज़ल सम्राट, कोई रागिनी उस्ताद कहकर पुकारता है. गुलाम अली ग़ज़ल की दुनिया में सबसे दिलकश नामों में से एक हैं. संगीत की दुनिया में गुलाम साहब की शख्सियत का मयार बहुत ऊंचा हैं, सच है गुलाम साहब की ग़ज़ल गायिकी ऐसे ही है जैसे कोई हाजी अपने गीतों को हज करा रहा हो. आधुनिक ग़ज़ल को एक आयाम तक ले जाने वाले गुलाम साहब ने जहां तक ग़ज़लों को पहुंचाया है, संगीत सीख रहे बच्चों के लिए बहुत मुश्किल सा है. कई लोग लड़ते - झगड़ते रहते हैं कि ग़ज़ल में सबसे बड़ा कौन है यह तो भगवान भी नहीं बता सकते... हालाँकि गुलाम साहब की उर्दू- अरबी पकड़ के साथ काफिया, रदीफ़ का संयोजन माशाल्लाह... वहीं छोटी बहर की ग़ज़ल में भी उनका कोई सानी नहीं है. एक ही ग़ज़ल में कई राग जोड़ देने में उनको महारत हासिल है. इसीलिए शायद संगीत की दुनिया में गुलाम साहब को आधुनिक ग़ज़ल सम्राट कहा जाता है.. 

बैठी हुई दबी सी खुश्क आवाज़ में जब भी गुलाम साहब हारमोनियम में राग छेड़ते हैं, तो, वो सुर अनायास ग़ज़ल में ढल जाते हैं. गुलाम साहब अपनी दबी सी आवाज़ का राज़ बताते हैं - 'मैं बचपन में खेलते हुए बहुत बड़े दूध के पतीले में घुस गया था. मेरी विचित्र सी आवाज़ हो गई थी. तब से आजीवन मेरा ज़ुकाम ठीक नहीं हुआ,और मेरी दबी सी आवाज़ हो गई थी. मैं गायक बनना चाहता था, मुझे लगा शायद मैं गायक नहीं बन पाउंगा, लेकिन मेरे उस्ताद बड़े गुलाम अली साहब ने मुझे कहा तुम्हारी आवाज़ तो कमाल है... आज यही दबी आवाज़ मेरे लिए वरदान बन गई'. कोमल, एवं तीव्र स्वर में भी उनकी आवाज़ उतनी ही असरकारक है. 

ग़र मौसीक़ी नशा है तो गुलाम साहब की आवाज़ की लर्जिश में वो नशा है. जब भी गुलाम साहब को सुनता हूं, पता नहीं होता कितना वक़्त बीत गया. आपार खुशियों की अनुभूति होती है कि हम उनको सुन पा रहे हैं, उनकी आवाज़ को स्पर्श कर सकते हैं.. उनके वक़्त में जन्म लिया एवं उनको सुनते हुए उनके साथ जुड़ाव महसूस करते हैं.. 

हिन्दुस्तान में ग़ज़ल ने अपने पैरों में विलासिता के घुँघरू बांधकर पदार्पण नहीं किया था, बल्कि भारतीय संस्कृति के साथ गठजोड़ करते हुए पंडित एवं मौलाना के साथ कभी दुआओं में हाथ जुड़े तो कभी हाथ में शास्त्रीय संगीत के साथ भजनों का खड़ताल लेकर अपना मुकाम हासिल किया था. ईरान की मौसीक़ी की विधा ग़ज़ल जब भारत पहुंची तो उसको संतों एवं सूफियों की संगति से प्रचलित हुई. ग़ज़ल अपने पांच सौ साल के इतिहास में अमीर खुशरो, ग़ालिब मीर, जॉक, फ़िराक़ गोरखपुरी, से लेकर दुष्यंत कुमार से लेकर राजेश रेड्डी तक अपने सामयिक बदलाव के साथ आम लोगों से जुड़ी रही. इसका सबसे बड़ा कारण गुलाम साहब भी हैं, जिन्होंने रकाशाओं के घुँघरूओ, कोठों से बाहर निकालकर ग़ज़ल को आम लोगों के साथ जोड़ दिया. यही कारण है कि आम आदमी की भूख जहां पेट - पीठ का फर्क़ खत्म हो जाता है, उसी दर्द एव राजनीतिक बटवारे के दर्द को ग़ज़ल गायिकी के धरातल पर उतारा तो लोग जुड़ते चले गए. 
 
गुलाम साहब हिन्दुस्तान - पाकिस्तान की साझी विरासत हैं, एक ग़जल गायक एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने के जाने माने गायक तथा संगीतकार है. गुलाम साहब ने बड़े ग़ुलाम अली ख़ान साह से तालीम ली है. गुलाम साहब अपनी गायिकी का श्रेय अपने उस्ताद को ही देते हैं... उन्होंने अपने गुरु बड़े गुलाम अली साहब को एक ठुमरी गाकर ही खुश किया था. 

वे अपनी ग़जलों में प्रायः ख़ुद संगीत देते हैं. इसके अलावा भी उन्होने दूसरों की सुरबद्ध ग़जलें भी गाई हैं. गुलाम साहब ग़ज़ल-गायकों की दुनिया के एक मक़बूल नाम हैं, उनका गायन किसी भी तरह की सरहदों के दायरों में नहीं आता.. हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया के दीवाने उन्हें सुनते हैं. 

उन्होंने पाकिस्तानी रेडियो से गाना शुरू किया था, उसके बाद उनकी बड़ी उपलब्धियों में शुमार है , उनके नाम का जिक्र पाकिस्तान प्रतियोगी परीक्षाओं में होता है... जब पाकिस्तान में टीवी का ट्रायल हो रहा था तो वहां की सरकार ने उनसे गुजारिश किया था कि वो अपनी गायिकी प्रस्तुत करें. पाकिस्तान की टीवी पर आने वाले पहले शख्स गुलाम अली साहब ही हैं... और आज वह दुनिया भर में एक जाना-माना नाम हो चुके हैं.. उनकी सुरों पर तो जबरदस्त पकड़ है ही साथ ही वह अपने गायन से ऐसा जादुई तिलिस्म रचते हैं, कि सुनने वाले सिर्फ़ सुनते हैं, और पहर के पहर बीत जाते हैं.. जिसे भी ग़ज़ल से मतलब न हो उसे गुलाम साहब को सुनना चाहिए उम्दा एहसास होगा.. 

गुलाम साहब हर बड़े से बड़े शायर की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ से मुक्कमल कर दिया है.. उन्होंने सबसे ज्यादा कैसर उल जाफ़री की काफी गजलों को अपनी आवाज दी है.. इसके अलावा अकबर इलाहाबादी, हसरत मोहानी, मुनीर नियाजी, अहमद फराज, फैज़, फ़िराक़, साहिर लुधियानवी, और मसरूर अन्वर, कमर जलालाबादी, शहरयार, की गजलें भी उन्होंने गाई है.. 

अहमद फ़राज़ साहब की बहुत ही उम्दा ग़ज़ल को किसी भी गायक, संगीतकारों ने संगीतबद्ध नहीं किया था, जबकि उन्होंने कई गायकों से इसके लिए इच्छा भी जाहिर की थी.. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल जिसके बोल हैं - 'फिर किसी राहगुज़र पर शायद हम कभी मिल सकें मगर शायद " - शायद का अगला शब्द मुन्तजिर आगे मुंसलिक होता है.. फराज़ साहब का ख्वाब था कि कोई इस ग़ज़ल को कम्पोज कर दे , कई गायकों ने गाया भी था लेकिन फराज़ साहब संतुष्ट नहीं हुए... फिर उन्होंने गुलाम अली साहब को बुलाया एवं गुज़ारिश किया, आप यह ग़ज़ल गाएं.... ग़र आपने इस ग़ज़ल के साथ न्याय किया तो मैं आपके लिए दुआएं करूंगा. गुलाम अली साहब ने वॊ ग़ज़ल कंपोज किया एवं गाया... फराज़ साहब निःशब्द हो गए थे. अतः उन्होंने कहा था कि एक बार अगर जन्म फिर मिलेगा तो गुलाम मैं आपकी ग़ज़लें सुनने के लिए जरूर आऊंगा.. यह प्रतिक्रिया ऐसे ही थी, जैसे कोई बह्र जाने के बाद बोल नहीं पाता.. 

गुलाम साहब कितने बेह्तरीन इंसान हैं... एक बार किसी संचारक ने उन्हें रागिनी उस्ताद कहकर संबोधित किया तो उन्होंने इसका किस्सा सुनाया था - कहते थे 'रागिनी उस्ताद तो स्वः जगजीत भाई जी हैं'. 'महान ग़ज़ल गायक गुलाम अली कहते हैं - एक बार मैं और जगजीत भाई लंदन में एक कंसर्ट करके एक एक हमारे कॉमन मित्र डॉ के पास पहुंचे. वही बैठे हुए जगजीत भाई ने सिगरेट जलाई, तब मैंने कहा "जगजीत भाई मुझे भी एक सिगरेट दीजिए, तब हमारे मित्र डॉ ने कहा "गुलाम साहब आप सिगरेट मत पिया करिए, हम जैसे थके हारे घर आते हैं तो आपकी आवाज ही तो सहारा है, अतः आप सिगरेट न पिएं', तब हंसकर जगजीत भाई बोले.-' डॉ. यार तुमने मुझे नहीं टोका क्या मैं अच्छा गायक नहीं हूं? तब डॉ ने कहा. 'जगजीत साहब आपकी आवाज सिगरेट के कश से खराब नहीं होने वाली आपकी आवाज में रागिनी है' यह किस्सा कहते हुए गुलाम अली रोने लगे थे. गुलाम साहब जैसे कलाकारो ने अपनी उच्च मानवीयता से दुनिया को दिलचस्प बना दिया है. कोई जरूरत नहीं थी, इस संस्मरण की फिर भी गुलाम साहब ने इसे बताया. 

गुलाम अली साहब की गायिकी एवं संगीत में उनकी तकनीकि का कोई सानी नहीं है. वाकई गुलाम साहब ग़ज़ल-शास्त्रीय संगीत में दो मुल्कों के लिए ही नहीं दुनिया में धरोहर हैं. गुलाम साहब को जब राजनीतिक अस्थिरता के हिन्दुस्तान छोड़ना पड़ा... अब पाकिस्तान में रहते हुए भी उनके दिल में हिन्दुस्तान के लोगों एवं उनके प्रशंसकों के लिए प्रेम झलकता रहता है. वे हमेशा कहते हैं - "पाकिस्तान ने जन्म दिया हिन्दुस्तान ने पाला है" यह सच है गुलाम अली साहब को किसी सरहद पर बांधा नहीं जा सकता, वो स्वच्छन्द आकाश हैं. उनके प्रशंसक किसी भी सरहद को नहीं मानते. उनका असर दोनों तरफ़ दिखाई देता है.. हम जब भी जब भी तन्हाई में होते हैं, व्यथित होते हैं , रातें बोझिल होती हैं तो अनायास गुलाम साहब की ग़ज़लें हमें थाम लेती हैं.. उनकी ग़ज़लें सुनते हुए हम खो जाते हैं..हमेशा गुलाम अली साहब को तन्हाई के हमसफ़र के रूप में संबोधित करता हूँ, ग़ज़ल का विद्यार्थी होने के नाते गुलाम साहब कभी जेहन से नहीं निकलते... उनका हिन्दुस्तान से जाना एक प्रतिभा को ऐसे दुत्कारना वाकई मेरे जैसे मौसीक़ी के कद्रदानो के लिए बहुत बड़ा भारी नुकसान था, जिसकी टीस रह-रहकर आती रहती है. तब मेरी वेदना बढ़ जाती है सियासती लोगों से एक सवाल रहता की आपने ऐसे क्यों किया??? अभी नहीं तो एक वक़्त सियासत को मेरा यह छोटा सा जवाब देना होगा... हालाँकि आपकी कोई भी दलील मुझे बहला नहीं सकती. 

       दिलीप कुमार

#gulamaligazals

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