'टुनटुन हिन्दी सिनेमा की पहली हास्य अभिनेत्री'

'टुनटुन हिन्दी सिनेमा की पहली हास्य अभिनेत्री


एक लड़की ने संगीत सम्राट नौशाद साहब से अपने लिए एक विचित्र आवेदन किया - 'साहब मुझे अपनी फ़िल्म में गाने का मौका दीजिए'. भला ऐसे मांगने पर काम मिलता होता तो शायद हर कोई अपनी प्रतिभा के साथ अपने मुकाम पर होता.. जाहिर है नौशाद साहब ने लड़की को काम देने से मना कर दिया. तब लड़की ने कहा 'साहब ग़र आपने मुझे अपनी फिल्म में गाने का अवसर नहीं दिया तो मैं आपके घर के सामने समुद्र में डूबकर जान दे दूंगी'... विचित्र सा आवेदन कहिए या धमकी नौशाद साहब सुनकर हैरां हो गए, क्योंकि ऐसा आवेदन उनके सामने किसी ने पहली बार किया था, आख़िरकार नौशाद साहब ने उस लड़की का ऑडिशन लिया.. संयोगवश वो लड़की पहली परीक्षा में पास हो गई. नौशाद साहब ने अपनी फिल्म के लिए एक गाना रिकॉर्ड कराया 'अफ़साना लिख रही हूँ, दिले बेकरार का' और यह गीत सुपरहिट हो गया. इसी लड़की का नाम था 'उमा देवी खत्री' जिन्हें आज दुनिया टुनटुन के नाम से जानती है.

देखा जाए तो टुनटुन की किस्मत बहुत ही ख़राब थी, जिसे जन्म से ही मनहूस माना गया, लेकिन टुनटुन ने अपनी मेहनत, और प्रतिभा से अपनी मनहूसियत को हवा में उड़ा दिया. टुनटुन बहुत ज्यादा पढ़ - लिख तो नहीं पाईं, और न ही माता-पिता का साया था.. बचपन से ही उनके हिस्से सिर्फ़ और सिर्फ़ दुःख ही आया था, जिसका सिलसिला इनकी ज़िन्दगी की आख़िरी साँस तक चलता रहा, लेकिन इनकी जिंदादिली कमाल थी. हालाँकि टुनटुन ने हिन्दी सिनेमा में अपने हिस्से का सम्मान किस्मत से नहीं बल्कि अपनी मेहनत से हासिल किया..

सिनेमा का हमारे जेहन में गहरा असर होता है. इनके टुनटुन नाम होने के कारण हमारे आसपास ग़र कोई भारीभरकम शरीर की लड़की दिखाई देती है तो हमारे जेहन में टुनटुन घूमने लगती हैं. टुनटुन का सिनेमाई सफ़र देखा जाए तो बिल्कुल चार्ली चैप्लिन की तरह दिखता है जो खुद पर हँसकर लोगों को हंसाने के लिए  मानसिक रूप से सुदृढ़ दिखाई देती हैं. आम तौर पर देखा जाए तो बाहर से ज्यादा हँसने वाले अंदर से खुद की टूटन छिपाते हुए खुद को मजबूत दिखाते हैं. भारी-भरकम शरीर की महिला टुनटुन जब भी सिल्वर स्क्रीन पर आती थीं, बेशुमार लोगों को हँसाती थीं, जिसका भारीभरकम शरीर जन्म से ही अभिशाप था, टुनटुन के लिए वरदान साबित हुआ... अपनी बेह्तरीन कॉमिक टाइमिंग के ज़रिए टुनटुन ने फर्स्ट लेडी कॉमिक ऑफ हिन्दी सिनेमा का खिताब हासिल किया.

टुनटुन ने हिन्दी सिनेमा में अपना एक अलग मुकाम बनाया, साथ ही अपने तरह का एक विशेष दर्शकों का वर्ग खड़ा कर दिया था.. हिन्दी सिनेमा की कॉमिक साम्रगी बनने से पहले टुनटुन एक नौकरानी थीं, हालांकि इन्हें एक बेह्तरीन जीवन साथी बना जो बहुत ज्यादा धर्मनिरपेक्ष था, जिसे जाति धर्म से कोई परहेज नहीं था. हिन्दी सिनेमा के गोल्डन एरा में टुनटुन अपने तरह की एक महान स्क्रीन उपस्थिति देती थीं, जिनकी अपनी ख्याति थी, जिनकी सबसे बड़ी ताकत उनका भारीभरकम शरीर ही था, जब स्क्रीन पर उनके आते ही, एक भी शब्द बिना बोले दर्शक लोटपोट हो जाते थे. देखा जाए तो टुनटुन एक महान अदाकार थीं, लेकिन टुनटुन हमेशा एक मोटी लड़की के किरदार को ही निभाती दिखती थीं. ख़ासकर टुनटुन का एक्स फैक्टर उनका मोटापा ही था. हालाँकि अधिकांश लोग उनकी अदाकारी मुरीद थे, क्योंकि उन्हें दर्शकों तक पहुंचने के लिए ज्यादा संवाद की आवश्यकता नहीं हुई, बल्कि उनकी उपस्थिति ही काफी होती थी, जो अपनी भाव भंगिमाएं ही सारी कहानी बयां कर देती थीं. 

टुनटुन विचित्र-विचित्र भूमिकाएं करते हुए दिखती थीं. कभी मोटी लड़की, कभी नौकरानी, कभी गँवार, कभी शादी के लिए हीरो के पीछे भगाने वाली.. कभी - कभार अज़ीब अज़ीब हरकतें, कभी विचित्र विचित्र पहनावे के साथ दीवानी बन जाती. उस दौर में अभिनेत्रियाँ ऐसे किरदार को छूना भी पसंद नहीं करतीं थीं, तब टुनटुन ऐसे किरदार निभाते हुए लोगों का दिल जीत रही थीं, देखा जाए तो उनके बाद बहुत सी ऐसी ल़डकियों को हास्य अभिनय करते हुए देखा गया है... टुनटुन भी अपनी तरह की लड़कियों के लिए प्रेरणा बनकर उभरी थीं. टुनटुन का जन्म अमरोहा में हुआ था.. जहां एक जमीनी विवाद के कारण पूरे परिवार को मार डाला गया था. ढाई साल की टुनटुन अनाथ हो गईं थीं. रिश्तेदारों के घर में झाड़ू पोंछा करते हुए अपना भरण पोषण करती थीं, तब उनके किसी पारिवारिक ने उन्हें दिल्ली नौकरानी के रूप में भेजा, यहीं से टुनटुन की किस्मत ने करवट बदली.. दिल्ली में ही टुनटुन की मुलाकात 'अख्तर अब्बास काज़ी' से हुई जो दिल्ली के आबकारी विभाग में नौकरी करते थे. 'अख्तर अब्बास काज़ी' ने ही टुनटुन की प्रतिभा को पहिचाना और विश्वास दिलाया कि तुम गायिका बन सकती हो.. रेडियो में गाना सुनते हुए घर वालों के डर से हमेशा गाने गाती थीं, लेकिन उन्हें पता नहीं था, कि उनका धीरे-धीरे रियाज़ हो रहा है... इतने मे ही  'अख्तर अब्बास काज़ी' लाहौर चले गए.. तब टुनटुन अपनी एक दोस्त की मदद से मुंबई पहुंच गईं...यह दौर आजादी से एक साल पहले 1946 था, जब टुनटुन 23 साल की थीं. उनके दोस्त की कुछ पहिचान हिन्दी सिनेमा में थी, जिसके जरिए उन्होंने सबसे पहले उन्होंने निर्देशक जव्वाद हुसैन से मुलाकात की. कुछ दिनों बंबई में खाक छानने के बाद, सिंगर एवं अभिनेता अरुण अहूजा से हुई जो अभिनेता गोविंदा के पिता थे... बहुत सारे निर्देशकों से अरुण अहूजा ने टुनटुन को मिलाया.. तब उनकी मुलाकात 'ए आर कारदार' से हुई, उन्होंने कारदार को पहचाने बिना ही उनसे ही अपनी अपनी ईच्छा व्यक्त किया कि मुझे आपकी फ़िल्म में गाना है. कारदार साहब टुनटुन की बेबाकी से खुश हुए और उन्होंने टुनटुन को संगीत सम्राट नौशाद साहब के पास भेज दिया.... नौशाद साहब ने उन्हें 500 रू की नौकरी पर रख लिया... टुनटुन गाना तो गा लेती थीं, लेकिन उन्हें शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं थी, इसलिए उनकी कुछ लिमिट भी थी.. हालाँकि नौशाद साहब ने उन्हें कुछ संगीत की तालीम दी थी. टुनटुन का गाया गाना  'अफ़साना लिख रही हूँ, दिले बेकरार का' सुपरहिट हुआ.. उस दशक में टुनटुन ने लगभग 50 गाने गाए जिनमे से अधिकांश गीत सुपरहिट थे..  गीत सुनकर  'अख्तर अब्बास काज़ी' लाहौर से मुंबई आ गए, और टुनटुन से शादी कर ली थी.. 

शादी के बाद टुनटुन घर - गृहस्थी में व्यस्त हो गईं कुछ सालो बाद नौशाद साहब के पास फिर से पहुंची, कि मुझे काम करना हैं.. हालाँकि कुछ ही समय में दुनिया जाने कहाँ से कहाँ पहुंच जाती है, नौशाद साहब ने कहा देखो अब हिन्दी सिनेमा में प्रशिक्षित गायिकाओं का उदय हो चुका है.. जिनमे सुरैया, गीता दत्त, लता, आशा अब तुम्हारी बात नहीं बनेगी. "लेकिन तुम निराश मत हो, तुम बेबाक हो, तुम्हारा भारीभरकम शरीर भी तुम्हारे काम आएगा तुम फ़िल्मों में हास्य भूमिकाएं करते हुए अपने जीवन को सार्थक करो'. नौशाद साहब की ही फिल्म बाबुल से टुनटुन ने बतौर हास्य अभिनेत्री डेब्यू किया... इसी फिल्म में दिलीप साहब के साथ' उमा देवी खत्री' का एक सीन था, तब दिलीप साहब ने कहा तुम्हारा नाम टुनटुन रख लो'... 'उमा देवी खत्री' ने दिलीप साहब का दिया हुआ नाम एक उमा देवी के लिए वरदान सिद्ध हुआ. देखते ही देखते' उमा देवी खत्री' टुनटुन के रूप में विश्वविख्यात हुईं. जिन्हें फ़िल्मों में काम के कारण फुर्सत ही नहीं मिलती थी.. हिन्दी सिनेमा की पहली हास्य नायिका के रूप में स्थापित हुई. पहिचान ऐसी की उस दौर की सारी कल्ट फ़िल्मों में टुनटुन को अदाकारी करते हुए देखा जा सकता है. बाज, बाबुल, आर - पार, उड़न खटोला, मिस कोला कोला, कोहिनूर, नया अंदाज़, Mr&Mrs 55, दिल अपना और प्रीत पराई, मुज़रिम, एक फूल चार कांटे, कश्मीर की कली, सीआईडी, एक से बढ़कर एक फ़िल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा दिखाया. दिलीप साहब, गुरुदत्त साहब, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त, राजकुमार आदि अभिनेताओं के साथ स्क्रीन साझा की थी. टुनटुन की ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि रायटर उनके लिए रोल लिखने लगे थे. 70 के दशक में नमक हलाल, कुर्बानी जैसी सुपरहिट फ़िल्मों के बाद स्वास्थ्य कारणो से हिन्दी सिनेमा से दूरी बना ली.. 24 नवंबर 2003 को टुनटुन ने हिन्दी सिनेमा सहित इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया.. अपने सिनेमाई सफ़र में 50 से ज्यादा सुपरहिट गीत गाने वाली टुनटुन ने 200 से ज्यादा फ़िल्मों में अपनी कॉमिक अंदाज़ से पूरी दुनिया को गुदगुदाती रहीं... आज भी हिंदी सिनेमा की सबसे सफल महिला कॉमेडियन के रूप में टुनटुन का नाम सबसे पहले आता है.... टुनटुन केवल हिन्दी सिनेमा ही नहीं प्रत्येक हारे हुए इंसान, कम पढ़े लिखे, अनाथ, शारीरिक रूप से कुरूप होने के बाद भी अपनी मेहनत, एवं प्रतिभा से इस क्रूर दुनिया से अपने हिस्से का सम्मान हासिल किया... टुनटुन केवल ल़डकियों के लिए ही नहीं प्रत्येक हारे हुए इंसान के लिए प्रेरणा हैं.. 

दिलीप कुमार 





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