'2003 नहीं 2023 चल रहा है'
2003 नहीं 2023 चल रहा है
क्रिकेट में हर एक दिन नया होता है. विश्वकप फ़ाइनल सबसे बड़ा मैच होता है, इस मैच का बहुत बड़ा प्रेशर होता है, लेकिन पहली बार ब्लू ब्रिगेड को इस भूत को स्टेडियम के बाहर ही मार देना चाहिए.. मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने में कंगारुओं को महारत हासिल है... ऑस्ट्रेलिया टीम आज इंग्लैड जितनी मजबूत नहीं है, और न ही न्यू जीलैंड जितनी, फिर भी फाइल में खड़ी है. इसका सबसे बड़ा कारण है, मनोवैज्ञानिक बढ़त बना लेना.. ऑस्ट्रेलिया को अटैकिंग क्रिकेट के ज़रिए ही हराया जा सकता है, ऑस्ट्रेलिया को हराने का एक ही मंत्र है, अटैकिंग क्रिकेट...
ऑस्ट्रेलिया को फिसड्डी टीम इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि पूरे विश्वकप में इस टीम ने किसी भी टीम को डोमिनेट नहीं किया, प्रत्येक मैच में मनोवैज्ञानिक बढ़त के साथ उतरे, यह सच है कि ऑस्ट्रेलिया मानसिक रूप से सुदृढ़ टीम है... जिसका परिणाम है फ़ाइनल में खड़ी है, अन्यथा यह टीम फ़ाइनल खेलने लायक नहीं है.
20 साल बाद इंडिया ऑस्ट्रेलिया विश्वकप के फ़ाइनल में होंगे, ऑस्ट्रेलिया को ज्यादा हारने की आदत नहीं है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया को हराने का ज़ज्बा केवल और केवल ब्लू ब्रिगेड के पास ही है. अनायास 2003 का विश्वकप जेहन में आ गया है, जब दोनों टीमें भिड़ी थी, तब ऑस्ट्रेलिया ने बहुत बड़े अन्तर से हराया था... जो भी दो दशक से ज्यादा से क्रिकेट से जुड़ा हुआ है वो इस मनोदशा को समझ सकता है... उस दिन मैच शुरू होने से पहले ही हमें पता था हम ऑस्ट्रेलिया से जीत नहीं पाएंगे, और वही हुआ... हम हार गए, पूरी इंडियन टीम सहित पूरे भारतीय क्रिकेट फैन्स रोकर रह गए. आज जो भारतीय क्रिकेट फैन्स की मनोदशा है, वही पहले ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट फैन्स की रही होगी. क्योंकि तब क्रिकेट की दुनिया में सबसे ज्यादा खौफ़ ऑस्ट्रेलिया टीम का होता था, आज भारतीय टीम का सबसे ज्यादा खौफ़ है... हमसे भी ज्यादा 2003 की टीम के मेंबर्स को रात में नींद नहीं आई होगी.... सबसे बड़ी बात उस टीम के उपकप्तान भारत की दीवार राहुल द्रविड़ आज टीम के कोच हैं, चुपचाप बैठे रहते हैं, बस उनका गुरुज्ञान मैदान में खिलाड़ियों के ज़रिए देखा जा सकता है, राहुल द्रविड़ से अच्छा शायद ही कोई इस टीम को गाइड कर पाए, कि अनुकूल परिस्थितियों एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में मानसिक रूप से सहज रहने की आवश्यकता है...
राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, सहवाग, जैसे इन्डियन टीम के मेंबर को एक एक मंत्र तो इस टीम को देना ही चाहिए, आखिरकार टीम फिर से उसी मोड़ पर खड़ी है... टॉस अहम होने वाला है. फ़ाइनल में कोई भी टीम चेज नहीं करना चाहती, गांगुली आज भी इस बात को बेहतर समझा सकते हैं. आज रोहित जिस फॉर्म में हैं, जो उनका रोल है ग़र वो 10 ओवर खेल गए तो सामने वाली टीम वैसे भी बैकफुट पर आ जाती है, रोहित के जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी आना बांकी है..
साथ ही छोटी सी उम्र में शुभमन गिल का संयम काबिले तारीफ है. रही बात पारी को अपने कांधे पर बिल्ड करने की तो अपने पास विराट कोहली है जो इस रोल को अदा करेंगे. श्रेयस, राहुल दोनों भरोसेमंद के साथ तेज़ खेल सकते हैं, वहीँ सूर्या बॉल को हिट कर सकते हैं, इंग्लैंड के खिलाफ थोड़ा संयम भी बरता था, काबिले तारीफ है. रविन्द्र जडेजा को टीम के तुरुप के इक्के के रूप में देखता हूं, बल्ले, बॉल, फील्डिंग के जरिए बढ़त दिला सकते हैं. कुलदीप ऑस्ट्रेलिया के बैटर के लिए बहुत मुश्किल पैदा करेंगे. बुमराह को आज भी दुनिया का सबसे अच्छा बॉलर मानता हूं, नई बॉल एवं डेथ ओवर में इनसे अच्छा कोई भी नहीं है. सामी को अपना कन्धा ऐसे ही मजबूत करना होगा. सिराज को सामी एवं द्रविड़ गाइड करें. नया लड़का है, दमदार है बस संयम की आवश्यकता है. रोहित विराट दोनों पूरी टीम के बच्चों को अपने साथ लेकर जाएं. सभी खिलाड़ी फ़ाइनल सेमीफाइनल, जैसा स्ट्रेस लेकर न जाएं. ऐसे ही लीग मैच की तरह खेलें. ग़र चेज भी करना पड़े तो प्लान लेकर चलिए, ऑस्ट्रेलिया को 250 के पहले ही रोकने कोशिश करें, क्योंकि उन्हें स्पिन खेलना में परेशानी आती है, ग़र ऑस्ट्रेलिया पहले खेले तो रोहित को पहली ही बॉल से थोड़ा प्रेशर उनके ऊपर डालना होगा. चाहे पहले खेलें या बाद में विराट को अंतिम गेंद तक मैच को लेकर जाना होगा. यह उम्मीद उनसे हर कोई कर सकता है. हमारी टीम के सभी खिलाडियों के जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन आना बांकी है.
टॉस के सहारे हमें नहीं बैठना हैं... हमने इस विश्वकप में 290+ भी चेज किया हुआ है. हम यूनिटी के साथ खेलेंगे तो हम जरूर जीतेंगे... क्रिकेट में बदला जैसा कुछ नहीं होता हमें 2003 का बदला भी नहीं लेना, क्योंकि उम्मीदो का बोझ लेकर कभी भी खिलाडियों को जाना नहीं चाहिए. वैसे भी महान योद्धा भीष्म पितामह ने कौरव-पांडवो दोनों को कहा था, किसी भी शूरवीर को अपेक्षा की पट्टी बाँधकर मैदान में नहीं जाना चाहिए'.
अर्जुन जब अंगराज कर्ण के लिए सर्वोत्तम बाण चुन रहे थे तो नकुल ने पूछा था - 'भ्राता श्री वो सूतपुत्र कर्ण आपका क्या बिगाड़ लेगा'... अर्जुन ने कहा था - 'वो चाहे किसी का भी पुत्र हो, जिस सेना में भारतवर्ष के महान योद्धाओं ने उसके ध्वजतले युद्घ करना स्वीकार कर लिया हो, वो साधारण इंसान नहीं हो सकता, मत भूलो वो पितामह भीष्म एवं गुरु द्रोण का गुरुभाई, एवं गुरु श्रेष्ठ परशुराम का शिष्य है' ... तब नकुल अर्जुन कहते हैं- 'भैया आप मुझे डरा रहे हैं? तब अर्जुन एक वाक्य बोलते हैं वो लाइन हर प्रतिस्पर्धी के अंदर होना चाहिए 'नकुल डर योद्धाओं को चौकन्ना बनाता है'.
ऑस्ट्रेलिया मानसिक रूप से मजबूत है, यह भी दिमाग में नहीं होना चाहिए. हमें बस अच्छा क्रिकेट खेलना हैं, जो हम आजकल ऑस्ट्रेलिया से बेहतर खेल रहे हैं. नियति कहिए या ईश्वर वो भी मेहनतकश लोगों के साथ होता है. फ़ाइनल के लिए आत्मीय शुभकामनाएं टीम इन्डिया. मेरे सहित 140 करोड़ लोगों की दुआएं...
दिलीप कुमार
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