'बहुत मुश्किल है खुद को बचा पाना'
बहुत मुश्किल है खुद को बचा पाना
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हमेशा सच लिखने की कोशिश करता हूँ, जितनी बुद्धि है, कोशिश करता हूँ अतिरेक में न बह जाऊँ.. सम्भाला भी पड़ता है, और संभालना आसान नहीं होता. हमेशा आत्मीय जन समझाते रहते हैं, कि हवा के विरुद्ध इतना भी नहीं जाना चाहिए, कि खुद कभी लौटने की कोशिश करो तो लौट न सको... पहले अपना देखो बाद में दुनिया की सोचो यह बात भी सही है, पहले अपने बुनियादी ढांचे का ख्याल रखना चाहिए.
हमेशा बहुतेरे लोग कहते हैं अकेले रह जाओगे, कोई भी पास नहीं होगा, फिर क्या कर लोगे", सच कहते हैं मेरे आत्मीयज़न... अकेले रह जाते हैं ऐसे लोग..अपनी दुनिया में टहलने वालों के पास कोई नहीं होता..
एक मित्र ने शायद सलाह दी थी..
"एम्पेथ होने का विषाद यही है कि कितना भी कुछ कर लो सिस्टम से जीतना मुश्किल हैं, इसलिए मुझे अब खुद में सिमटना सही लगता हैं. सही मायनों में यही सही हैं. अगर सिस्टम से लड़ते लड़ते इन्सान की सहजता चली जाए तो अंजाम सत्यकाम मूवी के नायक सत्यप्रिय जैसा होता हैं, बचाइए अपने आप को "
बहुत ज्ञानी लोगों का मार्गदर्शन मिलता है बहुत खुशी होती है, लेकिन मुझे कभी समझ ही नहीं आया, संतुलन कैसे साधते हैं, जानता हूं सामने वाला बुरा मान जाएगा, फिर भी सच कहने की प्रवृत्ति है, और आज के दौर में यह ऐसी विसंगति कहिए या क्रूर सच आपके पास कोई नहीं रह जाता... आप खुद को अकेले पाते हैं.. उसमें कोई दुःख नहीं है, जब आप कुछ करते हैं, तो इंसान भावुक होता है, तो सोचता है जब मैं ही नहीं तो क्या??? फिर लगता है चलने दो... मैं कौन सा इस दुनिया में अनंतकाल तक रहने आया हूँ.. जो भी हो आत्मबोध होता है, कि मैंने खुद को बर्बाद कर लिया था... वैसे भी मेरी छोटी सी ज़िन्दगी का हासिल एक सच है कि हमारे पास कोई नहीं होता.. कभी कभार हम भी खुद के पास नहीं होते..
मैंने लिखा भी था वो दाद मिलना... शाबाशी किस काम की जो हवा में उड़ जाए.. आखिरकार हमे अकेले ही रह जाना हैं... ज़िन्दगी में जो फायदे के लिए योजना बनाते हैं, वो दुनियावी रूप में सचमुच सफल होते हैं,लेकिन खुद को आईना नहीं दिखा पाते.. एक बार ही सही आत्मा तो जाग भी जाती है, इसीलिए ज्यादा योजनाएं बनाने का कोई उदेश्य नहीं है.. कुछ फूल ही रह जाते हैं. जिन्हें गुमान है, उन्हें गुमान मुबारक.. याद रहे अनंतकाल तक आपको भी नहीं रहना है..
दिलीप कुमार
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