जब सिल्वर स्क्रीन पर देवानंद एवं दिलीप कुमार एक साथ आए...
जब सिल्वर स्क्रीन पर देवानंद एवं दिलीप कुमार एक साथ आए...
हिन्दी सिनेमा में कुछ फ़िल्में अपने कथानक के तो कुछ अपने म्युज़िक के लिए.. वहीँ फ़िल्म 'इंसानियत' अपनी स्टारकास्ट के लिए जानी जाती है.. दरअसल ये वही फ़िल्म है जिसे अमिताभ बच्चन बचपन में देखना चाहते थे.. इस फिल्म के पोस्टरों को देखकर उन्हें फिल्म देखने की जिज्ञासा हुई.. इंसानियत अनोखी ब्लैक & व्हाइट फिल्म है, जिसके पोस्टर खूब रंगीन थे.. कई बार एक ही एरा के दो मेगास्टारों को सिल्वर स्क्रीन पर लाना बड़ा जोखिम का काम होता है. वहीँ उनकी शख्सियत को ध्यान में रखते हुए भूमिकाएं लिखना.. मेढ़क तौलने जैसा होता है.. ऐसे ही एक बार फ़िल्मकार एसएस वासन ने मेढक तौलने की कोशिश की थी, तौल पाए या नहीं वो तो दूसरा सन्दर्भ है, लेकिन सिने प्रेमियों के लिए उम्दा फिल्म रच गए... जिसमें पहली एवं आखिरी बार देवानंद साहब - दिलीप साहब की जोड़ी सिल्वर स्क्रीन पर एक साथ दिखी थी..
फिल्म 'इंसानियत' देवानंद - दिलीप कुमार की (बिग बजट) साथ में इकलौती फ़िल्म है. इसमे विवाद पैदा हो गया था..
उस दौर में खूब चटकारे लिए जाते थे, कि दिलीप साहब उस दौर में साथी अभिनेताओं की क्लिप कटवा देते हैं... यह घटना दादामुनि अशोक कुमार के साथ हुई थी, ऐसे भी अफवाह थी, हालांकि दिलीप साहब दादा मुनि को अपना हीरो कहते थे. यही चटकारे देवानंद साहब को सुनने को मिले.. देवानंद साहब वाकिफ़ थे कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है. यह ध्यान में रखते हुए, देव साहब और दिलीप साहब दोनों की बातचीत आमने - सामने हुई थी. निर्देशक एसएस वासन ने वायदा किया कि आप दोनों के कद का ध्यान रखा जाएगा, क्योंकि उस दौर में ये दोनों उत्तर - दक्षिण ध्रुव थे, दोनों टॉप पर थे.शूटिंग के दौरान गॉसिप हुई, देव साहब को सुनाई दी, कि उनकी कुछ क्लिप कट गई हैं, तो उन्होंने निर्देशक एसएस वासन को तलब किया, और पूछा "आपने ये चालाकी क्यों किया" निर्देशक ने जवाब दिया कि यह दिलीप कुमार ने क्लिप कटवा दिया है, तो देव साहब ने पूछा निर्देशक कौन है?? दिलीप कुमार या आप? फिर भी दिलीप कुमार होंगे बड़े अभिनेता मैं अपनी तबियत से काम करता हूँ. आकर मेरे ऑफिस से पैसे ले जाना तो निर्देशक ने मनाया कि ऐसा कुछ भी नहीं है आप अपनी क्लिप देख सकते हैं.... कहते हैं वासन साहब समझाना चाहते थे कि ऐसा कुछ नहीं है..
इंसानियत की कहानी बड़ी दिलचस्प है फिल्म में एक क्रूर शासक ज़ंगूरा (जयंत) जो कि रोमन परिधान में होता है, जिसके संवाद में क्रूरता के साथ ही कॉमिक टाइमिंग भी कमाल है, जो हमेशा एक सुन्दरी से घिरा रहता है. भानू (देव साहब) ज़ंगूरा की सेना के एक कमांडर की भूमिका निभाते हुए खूब लूटपाट करता है, ऐसे ही एकदिन लूटपाट के दौरान गॉव की एक धाकड़ लड़की दुर्गा (बीना राय) एक दिन भानू को कसकर थप्पड़ जड़ देती है.. दुर्गा के एक थप्पड़ की गूँज भानू को इंसानियत का पाठ पढ़ा देती है, जिससे भानू एक अच्छे इंसान बन जाते हैं.. अपने राजा जंगूरा के खिलाफ़ बगावत करते हुए भानू उसे इंसानियत की दुहाई देता है, लेकिन वो क्रूर राजा अट्टहास करते हुए गुस्सा हो जाता है, भानू को कुछ दिनों की मोहलत देता है कि अपने हो रहे मन परिवर्तन को रोको अन्यथा तुम्हें पूरे गाँव के साथ मिलकर मेरा कहर भोगना पड़ेगा.... भानू (देव साहब) अपने राजा को सबक सिखाने के लिए गांव वालों को लड़ना सिखाता है, और कसम लेता है कि वो इस क्रूर राजा को खत्म कर के ही दम लेंगे.
गांव का सबसे बहादुर युवक मंगल (दिलीप कुमार) दुर्गा (बीना राय) को बहुत प्यार करता है, लेकिन वो अपने मन की बात कह नहीं पाता...हालाँकि दोनों की बचपन से ही फिक्स कर दी गई थी. एक शर्मीले युवक की भूमिका में दिलीप साहब को देखते ही बनता है, खासकर उनका पहनावा अगर गांव के मिजाज़ का हो... मंगल (दिलीप कुमार) जब तक दुर्गा (बीना राय) से दिल की बात कहते तब तक दुर्गा - भानू की प्रेम कहानी परवान चढ़ जाती है.... दिलीप साहब जब पर्दे पर अपने प्रेम को न पाते हुए अभिनय करते हैं तो फिर वॊ खुद भी डूबते हैं, और दर्शकों को भी डुबो देते हैं.. आख़िरकार फिल्म ड्रामेटिक मोड़ पर आती है.. फिल्म के क्लाइमेक्स में दुर्गा (बीना राय) भानू (देव साहब) को मिलती हैं.
फिल्म में अमेरिका से आयात किया गया जिपी नामक चिंपैंजी एवं कॉमिक ऐक्टर आघा दोनों की कॉमिक टाइमिंग बेहतरीन सिनेमा रचती है...जिपी हॉलीवुड की कई फ़िल्मों में ऐक्ट कर चुका था. एसएस वासन को किसी ने कहा कि फिल्म को रोचक बनाने के लिए जिपी नामक चिंपैंजी को भारत बुला लीजिए... जिपी चिंपैंजी जब भारत आया तो उसका एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत किया गया था... फिल्म की सहायक ऐक्ट्रिस मोहना ने जिपी की अगवानी की, तब जिपी ने अपने अंदाज़ में मोहना की गोद में चला गया था उसने मोहना को किस करते हुए धन्यवाद दिया था... यह देख सभी यूनिट के लोग आश्चर्य में पड़ गए थे... जिपी की खासियत थी कि वो प्यानो भी बजा लेता था.. रोलर स्केटिंग, एवं टाइप रायटर भी चला लेता था... उस दौर में जिपी ने तालियों से ज्यादा खूब पैसे बटोरे थे.. फिल्म में जिपी के ऊपर दो गाने भी फ़िल्माए गए. 50 के दशक में जिपी लगभग 55,000 डॉलर कमाता था..
कहते हैं चिंपैंजी के रोल को स्पेस देने के लिए वासन साहब ने देव साहब - दिलीप साहब के थोड़ा - थोड़ा रोल कट कर दिए थे.. दिलीप साहब - देवानंद साहब दोनों चिंपैंजी की आवभगत देखकर परेशान हो गए थे... सन 1955 में मद्रास में चल रही शूटिंग के दौरान जिपी इतना फेमस हो गया था... कि लोग दोनों मेगा स्टार देवानंद साहब - दिलीप साहब के साथ फोटो बाद में खिंचवाते थे.. दिलीप कुमार - देवानंद मद्रास से जब शूटिंग करके बंबई लौटे तो दोनों सितारों ने तय कर लिया था कि अपनी इस फिल्म को कभी नहीं नहीं देखेंगे..
दरअसल दोनों अपनी - अपनी भूमिका से खुश थे, लेकिन फिल्म में बन्दर एंगल से दोनों नाखुश थे, फिल्म आधे से ज्यादा शूट हो चुकी थी, अन्यथा दोनों फिल्म ही छोड़ देते.. यह फिल्म रिलीज हुई और सुपरहिट हुई.. कई बार फ़िल्मकार जुनून में एक साथ बड़े सितारों को फिल्म में कास्ट कर लेते हैं, और बाद में न्याय करना मुश्किल होता रहा है... वैसे दिलीप साहब बहुत कम फ़िल्में करते थे, वहीँ देव साहब सोलो ऐक्टर सिल्वर स्क्रीन पर आते थे... इस फिल्म के बाद दोनों दिग्गज एक - दूसरे के साथ स्क्रीन साझा नहीं की.. जो सिनेमाई दर्शक देवानंद साहब - दिलीप साहब दोनो की तुलना करते हैं उन्हें यह फिल्म ज़रूर देखना चाहिए, कि कोई किसी पर भारी नहीं पड़ा.. दोनों को स्क्रीन भी बढ़िया मिली.. दिलीप साहब के साथ एक ट्रेजेटिक एंगल ही फिल्म में चार - चाँद लगा देता है... दिलीप साहब एवं देवानंद साहब दोनों का एक साथ स्क्रीन साझा करना सिनेमाई दर्शकों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है... दोनों को चाहने वालों को एक बार इंसानियत ज़रूर देखना चाहिए..
दिलीप कुमार
Comments
Post a Comment