गदर 2 ने सनी को ज़िंदा कर दिया है

गदर 2 देख ली गई है... जैसा मैं पिछले छह महीने से कह रहा हूं, फिल्म ब्लॉक बस्टर होगी. दर्शकों का प्यार भी बता रहा है, कि फिल्म ब्लॉक बस्टर होगी.. 

गदर एक प्रेम कथा फ़िल्म दो मुल्कों की सरहदो की त्रासदी पर बनाई गई थी. फिल्म का पहला भाग 2001 में रिलीज हुआ था. फ़िल्म ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर हुई थी. 22 सालों के लंबे इंतजार के बाद तारा सिंह एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौट आए हैं. फिल्म 'गदर 2' रिलीज हो गई है. यूँ तो सनी ने हम जैसे न जाने कितनों के बचपन को गुलजार किया है.. इसलिए सनी के साथ अपना कुछ ज्यादा ही लगाव है. शुरुआत में नैरेटर नाना पाटेकर तारा सिंह और सकीना की कहानी सुनाते हैं. कैसे तारा को सकीना मिली, उसे कैसे सकीना से प्यार हुआ और फिर कैसे अशरफ अली चालाकी से अपनी बेटी को वापस पाकिस्तान ले गया था. तारा सिंह अपने पुत्तर जीते को एक बार अपनी मां की याद में रोते देखते हैं तो क्लाईमेक्स में तारा सिंह अपनी पत्नी सकीना और जीते को पाकिस्तान से वापस भारत ले आते हैं...

 जिन्होंने इसका पहला भाग देखा है, उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं है, कि तारा सिंह एक ट्रक ड्राइवर है. जो अपनी पत्नी सकीना से बेहद प्यार करते हैं.. उम्र के इस पड़ाव पर भी रोमांस में कोई कमी नहीं आई है. तारा सिंह आज भी इंडियन आर्मी के आसपास ही काम करते हैं. तारा का पुत्तर जीते भी बड़ा हो गया है, और कॉलेज में पढ़ने लगा है. हर पिता की तरह तारा सिंह भी चाहते हैं, कि उसका बेटा पढ़-लिखकर खूब बड़ा आदमी बने, लेकिन जीते का तो पढ़ाई में मन ही नहीं लगता, जीते को हीरो बनने का जुनून है.. वहीँ पाकिस्तान में जनरल हामिद इकबाल, तारा सिंह को अपना जानी दुश्मन समझता है. आज भी जनरल को तारा सिंह से बेहद गुस्सा है. कारण यह है, कि जब तारा सिंह सकीना को भारत लेकर आए थे, तो जनरल के 40 जवान को तारा सिंह ने मार गिराया था. तब से जनरल तारा सिंह से बदला लेना चाहता है. जनरल को भारतीय लोगों से बेइंतिहा नफ़रत है, अब उसकी जिंदगी का मकसद है, तारा सिंह को ढूंढ कर खत्म करना. 

गुमशुदा पति की याद में तारा सिंह का बेटा जीते अपनी माँ को रोता देख अपने पिता को ढूढ़ने के लिए रिस्क लेकर अपने पिता के अंदाज़ में पाकिस्तान चला जाता है... जहां उसे एक पाकिस्तानी लड़की मुस्कान से मुहब्बत हो जाती है.. यह लड़की भी सकीना की तरह समर्पित रहती है, इतने में तारा सिंह पाकिस्तान की जेल से छुटकारा पाते हुए नहर से बहकर भारत आ जाते हैं..

तारा सिंह को पता चलता है कि मेरा बेटा मुझे ढूढ़ने पाकिस्तान गया है. अब तारा सिंह ने ठान लिया है, वो अपने बेटे को लेकर आएंगे.. फिल्म देखने वालों को फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो ज़रूर लगेगा क्यों कि यहां एक्शन नहीं भावनाओं का ज्वार फ़ूट पड़ता है.. यहां तारा सिंह अब थोड़ा परिपक्व दिखते हैं, थोड़ा आचरण भी परिपक्व दिखता है. तारा सिंह पाकिस्तान पहुंच जाते हैं.. यहीं एक बहुत ही भावनात्मक गीत आता है... जो किसी को भी भावुक कर देने वाला होता है. किसी भी फिल्म के लिए गीत उसकी आत्मा होते हैं, इस फिल्म में दो पुराने गाने भी रीक्रिएट किए गए हैं.. वो तो फिल्म देखिए और खुद ही तय करें कि फिल्म कैसी है..

मुझे फिल्म अच्छी क्यो लगी क्योंकि गदर 2 अपने पहले भाग से थोड़ा अच्छी है... गदर 2 में तारा सिंह का अंदाज़ परिपक्व है.. जैसे इसमे जनरल हिन्दुस्तान मुर्दाबाद लगाने के लिए कहता है तो तारा सिंह बेवजह चिल्लाते नहीं हैं, और वो जनरल से कहते हैं - "मैं अगर यह नारा लगा भी दूँगा तो हमारे मुल्क की शान नहीं घट जाएगी. वहीँ जैसे युवावस्था में जैसे जोश होता है, तो बेटा जीते नारा लगाता है... हिन्दुस्तान जिंदाबाद था, है, और रहेगा... वही फिर से अगर यही नारा तारा सिंह लगाते तो थोड़ा ओवर लगता. 

तारा सिंह (सनी देओल) जीते एवं (उत्कर्ष शर्मा) ऐसे लगते हैं जैसे असल में भी पिता पुत्र हैं, इनकी केमिस्ट्री देखते ही बनती है. जीते कहता है - "मेरा पापा आ गया न तो पूरे पाकिस्तान के चीथड़े उड़ा देगा... वहीँ अपने पिता के सामने जनरल से कहता है, जिसके ऊपर पिता का साया होता है, उसे चिंता करने की जरूरत नहीं होती.. यह भावनात्मक दृश्य अच्छा लगता है. 

जीते को मौत की सजा देने के पहले जनरल जीते को काफ़िर आदि तरह - तरह से कुछ कहता है, लेकिन जीते जवाब देता है कि अरे तू क्या जाने कुरान शरीफ... जितनी तू नहीं जानता, उससे कहीं अधिक मेरी माँ ने मुझे सुनाई है.. वहीँ सकीना एवं तारा सिंह का बेटा जीते पूरे पाकिस्तान में प्रसिद्ध है, तो जान बचाने के लिए किसी शहर में भटक रहा होता है. एक अधेड़ पाकिस्तानी महिला उसे अपने घर में शरण देकर खाना खिलाते हुए, कुछ खाना भी देती है कि भूख लगने पर फिर खा लेना... बदले में जीते उस महिला को मौसी माँ कहकर संबोधित करता है .. कारण भी बताता है, कि पाकिस्तान में मेरा ननिहाल है, और तुम्हारा सिर पर हाथ रखना यही एहसास दे गया ... चूंकि मेरी माँ हिन्दुस्तान में है, तो तू तो मेरी मौसी माँ है, कहकर चरण स्पर्श करता है. यह दृश्य भावुक कर देने वाला है. दोनों मुल्कों के नफ़रती लोगों को यह शायद अच्छा न लगे. 

तारा सिंह से मुस्कान के पिता कहते हैं, तारा जी मेरी बेटी की खुशियाँ लौटा दीजिए. तब तारा सिंह उसे कहते हैं - "आपकी बेटी अब मेरी है, और वो उसके सर पर हाथ रखकर अपनाते हैं. वो दृश्य अच्छा लगता है. पहले भाग एवं दूसरे भाग में काफी अन्तर है.. पहले भाग में हिंदू - मुस्लिम एंगल भारत - पकिस्तान ज्यादा ही था, लेकिन इस बार फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है.. आज के दौर में यह देखकर अच्छा लगता है. वहीँ सुकून देता है. 

फिल्म के अंत में जनरल से तारा सिंह पूछते हैं "गीता या कुरान क्या चुनोगे.. तो जनरल जान बचाने के लिए कहता है 'गीता'... तो तारा सिंह की बात दिल जीत लेती है- "अरे नफ़रत में अंधे दोनों बच्चों को गले नहीं लगा सकते थे... दोनों बच्चों का मतलब तारा सिंह के बहू और बेटे से था.

फिल्म में तीन किरदार ही प्रमुख हैं. तारा सिंह एवं उनका पुत्तर जीते, तीसरा पाकिस्तानी जनरल.. इसके बाद अमीषा पटेल का खास कोई रोल नहीं हैं, वहीँ सिमरत कौर (मुस्कान) का भी ज्यादा कोई खास रोल नहीं हैं, लेकिन अदाकारा बढ़िया है. मनीष वाधवा (पाकिस्तानी जनरल) के रूप में उम्दा लगे हैं, लेकिन फिर भी वो सनी देओल के सामने ज्यादा प्रभावी नहीं रहे... क्योंकि अमरीश पुरी, जैसे दिग्गज ही सनी के सामने अच्छे लगते हैं. फिर भी मनीष वाधवा ने फिल्म को जिंदा रखा है.. मैंने आजतक किसी फिल्म का निर्माण नहीं किया इसलिए मूल्यांकन करते हुए सितारे नहीं दूँगा.. दर्शक वर्ग से ज्यादा कोई मूल्यांकन नहीं कर सकता.. 

निर्देशक अनिल शर्मा के द्वारा चालाकी की गई है, इसमें सनी देओल के बराबर रोल अपने बेटे उत्कर्ष का भी किया है, लेकिन अगर कुछ कम करते वहीँ थोड़ा बहुत सिमरत का रोल बड़ा किया जा सकता था, जो नहीं किया गया.. अनिल शर्मा ने एक अच्छी फिल्म बनाई है, एक्शन फिल्म है, लेकिन इसमे इमोशंस ज्यादा है.. सबसे बड़ी बात फिल्म दो सरहद के आर - पार की कहानी है, तो वो तो ड्रामा है, लेकिन हिन्दू - मुस्लिम एंगल फिल्म में नहीं डाला गया, यह देखकर ज्यादा अच्छा लगता है...कुलमिलाकर फिल्म देखी जा सकती है. अनिल शर्मा एवं सनी देओल दोनों एक - दूसरे के पूरक सिद्ध हुए हैं. यह फिल्म सनी देओल को बॉक्स में पर फिर से जिंदा कर देगी...बशर्ते सनी को भुनाना आना चाहिए.

दिलीप कुमार

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