जन सरोकार का सिनेमा बनाने वाले मनोज कुमार

जन सरोकार का सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार 

(मनोज कुमार) 

एक दौर था जब कहा जाता था कि हर ऐक्टर शोमैन राजकपूर नहीं हो सकता है, जो खुद ही फिल्म का ऐक्टिंग, निर्देशन, निर्माता हो.. हर किसी के बस की बात नहीं है. राज कपूर साहब का नाम आते ही एक ही शब्द जेहन में आता है... प्रतिभा... ऐसे ही एक ऐक्टर हैं, मनोज कुमार जी या भारत कुमार जी कह लें.. मनोज कुमार जी ने अपनी फिल्म में रायटर, ऐक्टर, डायरेक्टर, एडिटर, निर्माता आदि की भूमिका बड़ी शिद्दत से निभाते थे. 60 के दशक के बाद यह जुमला फिर उन्हें सुनने को नहीं मिला, जो कभी उनके ऊपर ताना मारते हुए बोला गया था, कि हर कोई राज कपूर नहीं हो सकता... सच है कोई ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब की जगह नहीं ले सकता... लेकिन मनोज कुमार साहब की प्रतिभा भी उनका मुकाम बयां करती है.. वो हमें किसी का खुद का वज़ूद परछाईयों में देखने की आदत पड़ी है.. 

सिनेमा का समाज को गढ़ने में प्रमुख रोल रहा है... सिनेमा भी दो तरह का होता है एक जहां खूब पैसा बनाया जाता है, दूसरा जहां ज़न सरोकार का सिनेमा गढ़ा जाता है. मनोज कुमार जी ने सिनेमा में पागल कर देने वाला स्टारडम, नहीं देखा, अपितु इज्ज़त बहुत कमाई. मनोज कुमार जी ने अपने अभिनय से लोगों के दिल में देशप्रेम का जज्बा बढ़ाया है. मनोज कुमार जी अविभाजित हिन्दुस्तान आज के पाकिस्तान में जन्मे थे.. इनका नाम हरीकिशन गिरी गोस्वामी था... बचपन से ही हीरो बनने की चाहत हिन्दुस्तान खींच कर ले आई. बंटवारे की त्रासदी, पलायन का दर्द काफी था, उपकार, 'रोटी कपड़ा और मकान', 'पूरब और पश्चिम',' क्रांति' जैसी फिल्म को गढ़ने के लिए... 

 
बचपन से ही पलायन, दुःख, दर्द अगर रचनात्मकता की राह पकड़ ले तो आदमी कुछ न कुछ कमाल ही करता है...जो मनोज कुमार जी ने सिनेमा की दुनिया में रचा वो कमाल ही तो है. मनोज कुमार जी मात्र 10 साल के थे, जब माता-पिता के साथ पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए थे. मनोज कुमार जी को फ़रिश्ता बनने की चाहत हिन्दी सिनेमा में खींच लाई थी. मनोज जी बचपन में रिफ्यूजी कैंप में रहते थे.. उस समय दिलीप साहब की फिल्म दिखाई जा रही थी. फिल्म का नाम जुगनू था... मनोज कुमार दिलीप साहब की पर्सनलिटी से बहुत प्रभावित हुए, उस समय इनकी उम्र करीब 12 साल रही होगी.. यह वही दौर था, जब हर कोई दिलीप कुमार बनना चाहता था. 


कुछ दिन बाद मनोज कुमार को दिलीप साहब की एक फिल्म और देखने का मौका मिलता है.. इस फिल्म का नाम शहीद था.. दोनों फ़िल्मों के क्लाइमेक्स में दिलीप साहब की मृत्यु हो जाती है... मनोज कुमार जी तब छोटे थे, उनमे फिल्म समझने की समझ नहीं थी, हालांकि दिलीप साहब ज़रूर अच्छे लगे थे..उनको यह यह समझ में नहीं आ रहा था, कि कोई इंसान दो बार कैसे मर सकता है.. मनोज कुमार यही सब बार बार सोच कर चिंतित रहने लगे. उनकी मां ने मनोज कुमार को शांत बैठा देख गुमशुम रहने की वजह पूछा तो मनोज कुमार ने अपनी मां से पूछा की एक आदमी कितनी बार मरता है? तो मां ने कहा 'एक बार' तो मनोज कुमार ने कहा 'अगर 2–3 बार मरे तो, तो मां ने कहा "फिर तो वो इंसान नही वो फरिश्ता होता है"... छोटे से मनोज कुमार जी ने तभी सोच लिया था कि वो बड़े होकर दिलीप कुमार की तरह फरिश्ता बनेंगे... बड़े होकर जब ऐक्टर बने तो अपना नाम मनोज कुमार रख लिया.. क्योंकि दिलीप साहब की फिल्म शबनम में उनके कैरेक्टर का नाम मनोज था.. 


मनोज कुमार ने हिन्दी सिनेमा में अपनी शुरुआत साल 1957 में आई फ़िल्म 'फैशन' में मनोज कुमार ने एक 80 वर्षीय बुजुर्ग का किरदार निभाते हुए अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग की. दो तीन साल कहानियों में गुम थे.. 1960 में उनकी फिल्म 'कांच की गुड़िया' में लीड रोल में नज़र आए और कमाल कर गए. उनकी सिनेमाई सफलता विजय भट्ट की फिल्म हरियाली और रास्ता रही... 'हिमालय की गोद में' आदि फ़िल्मों में माला सिन्हा के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी. डायलॉग किंग राजकुमार के साथ कालजयी फिल्म 'नीलकमल' में एक समझदार, संवेदनशील पति प्रेमी के रूप में किसी को भी अपना मुरीद बना ले. मनोज कुमार एवं राजेन्द्र कुमार दोनों एक ही पृष्ठभूमि से हीरो बने थे.. मनोज कुमार, राजेन्द्र कुमार को अपना बड़ा भाई मानते थे.. मनोज कुमार को जब उनकी पहली बड़ी फिल्म मिली, जिसका नाम था 'पिया मिलन की आस' और उसके लिए उन्हें 1 हजार रुपये एडवांस मिले. मनोज कुमार पैसे लेकर सीधे राजेंद्र कुमार के पास पहुंचे. मनोज ने रुपये उनके पैरों में रख दिए. राजेंद्र कुमार ने ये देखकर मनोज कुमार को गले से लगा लिया. उन हजार रुपयों में अपनी तरफ से 100 रुपये और मिला दिए. वो रुपये राजेंद्र कुमार ने मनोज कुमार को देते हुए कहा, - ये लो ये ग्यारह सौ रुपये, बहुत शुभ होते हैं.' राजेंद्र कुमार उस दिन इतने खुश हुए जैसे मनोज को नहीं बल्कि उन्हें पहली फिल्म मिली हो. यहीं से मनोज कुमार बड़े स्टार बनते चले गए. 


इसके बाद सस्पेंस थ्रिलर, रूहानी, म्यूजिकल फिल्म 'वो कौन थी' में मनोज कुमार ने साधना के माइलस्टोन स्थापित किया. साथ 'लग जा गले' और 'नैना बरसे' जैसे सदाबहार गीतों के लिए आज भी याद आती है.. मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित रहे हैं... और इसी भावना ने उन्हें फिल्म 'शहीद' में देश के इस जियाले अमर सपूत को जिसने इस महान अभिनेता को सच्चे देशभक्त की छवि को सिल्वर स्क्रीन पर दर्शकों को दीवाना बना दिया. फिल्म में मनोज की परफार्मेंस से खुश हुए पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें फिल्म उपकार बनाने की प्रेरणा दी, जिसे हिन्दी सिनेमा में आज भी देशप्रेम पर बनी खूबसूरत फिल्मों में गिना जाता है. कालजयी फिल्म 'पूरब-पश्चिम' में अपने ही देश को भूल कर विदेशी सभ्यता व संस्कृति के रंग में रंगे तथा स्वदेश को तिरस्कार की भावना से देखने वाले भारतीयों को ग़ज़ब का संदेश दिया. 70 के दशक में भी एक से बढ़कर एक फ़िल्मे 'रोटी कपड़ा और मकान’, ‘संन्यासी’, ‘दस नंबरी’... जैसी हिट फ़िल्में रिलीज हुई..मेरे देश की धरती, है प्रीत जहां की रीत सदा.. आदि गीतों के जरिए मनोज कुमार जी रोमांचित कर देते हैं.. बहुत कम ही अदाकार रहे हैं जिन्हें अपनी आवाज़ के गायक मिले...इन्हे अपनी आवाज के गायक महेंद्र कपूर मिले... 


मनोज कुमार ने अपनी सिनेमाई समझ का बेहतरीन उपयोग करते हुए अपनी अगली फिल्म 'क्रांति' बनाई, जिसने उनके करियर को तो चरम पर पहुंचाया ही साथ ही साथ खराब दौर से गुजर रहे दिलीप साहब की भी शानदार वापसी करवाई. दिलीप साहब पहले फिल्म करने के लिए राजी नहीं थे, लेकिन उन्होंने मनोज कुमार के प्रेम में फिल्म करने के लिए हाँ कर दिया.. मनोज कुमार दिलीप साहब के इतने बड़े दीवाने हैं कि आज भी कोई उन्हें कहता है कि आप दिलीप साहब की नकल करते हैं तो उन्हें सुनकर बुरा नहीं अपितु खुशी होती है कि मैं भी दिलीप साहब जैसे अभिनय कर सकता हूं". 


कालजयी फिल्म क्रांति के साथ ही अपनी बनाई गई फिल्मों की अभूतपूर्व सफलता के बाद मनोज कुमार का खराब दौर भी शुरू हो गया था.. उनकी 1989 में बनी फिल्म ‘क्लर्क’ फ्लॉप रही और ‘संतोष’, ‘कलयुग की रामायण’ जैसी फिल्मों से उनका करियर ग्राफ नीचे की ओर आता रहा... मनोज कुमार ने अपने लम्बे सिनेमाई सफ़र में पचास से भी कम फ़िल्मों में अभिनय किया, लेकिन उनकी सारी की सारी फ़िल्में यादगार हैं... तीन सौ से अधिक फ़िल्मों में काम करने वाले अभिनेताओं ने भी इतनी ब्लॉकबस्टर फ़िल्में नहीं दी, जितनी ब्लॉकबस्टर फ़िल्में मनोज कुमार ने अपने कॅरियर में दी..मनोज कुमार अपनी सिनेमाई यात्रा के लिए कहते हैं "मैंने कम ही फ़िल्में बनाई हैं, लेकिन जितनी भी बनाई हैं सभी कंटेंट के लिहाज से उम्दा रही हैं.. भले ही मैंने पचास से कम फ़िल्मों में काम किया लेकिन दर्शकों को मेरी सभी फ़िल्में मुँह जुबानी याद हैं. मैंने सिनेमाई यात्रा में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां मैंने काम किया और सफलता नहीं पाई हो". हालाँकि मैं अब भी फ़िल्में देखता हूं, लेकिन देव साहब, दिलीप साहब, 
राज कपूर साहब, राजेन्द्र कुमार, प्राण साहब, अजीत साहब, आदि की फ़िल्में मैं नहीं देख पाता, क्योंकि मुझे उनकी याद आती है. 


सच है ऐसा कोई अवॉर्ड नहीं है, जो मनोज कुमार जी को मिला न हो.. वहीँ मनोज कुमार जी जैसे अनोखे लोग थे, जो सरकार के करीबी भी थे. इंदिरा जी, अटल जी जैसे नेताओ को अपना मित्र भी बताते थे.. हमेशा सम्मानीय थे, और जब समाज के साथ खड़े होने की बात आती थी, तो बोल देते थे, कि रोटी हमारे घर में देश के हर वर्ग से आती है... हम आपकी दोस्ती के लिए ईमान नहीं बेच सकते.. कीमत चाहे जो भी चुकानी पड़े.. ऐक्टर मनोज कुमार जी का आज जन्मदिन है.. ऐसे अदाकार को मेरा सलाम जिन्होंने कभी उसूलों से समझोता नहीं किया.. 


दिलीप कुमार पाठक 
नई दिल्ली 
मो :9755810517 

लेखक, पत्रकार, एवं फ़िल्म समीक्षक हैं, देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सिनेमा साहित्य संगीत एवं राजनीतिक विषयों पर गभीरता से लिखते हैं. 




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