" मनोज कुमार जी ने कभी उसूलों से समझौता नहीं किया"

 "जिन्होंने कभी उसूलों से समझौता नहीं किया"

(मनोज कुमार जी) 

सत्ता हमेशा से ही सिनेमा को प्रभावित करती रही है, कर रही है, और करती रहेगी, लेकिन आज के कुछ ऐक्टर / फिल्मकारों को ऐक्टर मनोज कुमार जी से सीखना चाहिए. जब इन्दिरा जी ने देश में आपातकाल थोप दिया था, तब लगभग मनोज कुमार जी कैसे लोग बहुत कम बचे थे.. जिन्होंने अपना ईमान कायम रखा था. मनोज साहब उन लोगों में शुमार थे, जिन्होंने सत्ता की छाती पर चढ़कर उसके काले मुखौटे उतार दिए थे... बहुत हिम्मत चाहिए होती है. हर व्यक्ति राजनीति नहीं कर सकता, लेकिन उसके अन्दर एक राजनीतिक चेतना तो होती ही है.. चाहे फिर वो कोई कलाकार ही क्यों न हो! 

आपातकाल के दौर में सूचना प्रसारण मंत्री मंत्री विद्याचरण शुक्ला के तानाशाही के किस्से तब आम हुआ करते थे.. तब सूचना प्रसारण मंत्री ने देव साहब, किशोर दा, संजीव कुमार आदि पर बैन लगा दिया गया था... मनोज कुमार हमेशा देशभक्ति, कि फ़िल्मों के लिए प्रसिद्ध थे.. थी.मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित रहे हैं... और इसी भावना ने उन्हें फिल्म 'शहीद' में देश के इस जियाले अमर सपूत को जिसने इस महान अभिनेता को सच्चे देशभक्त की छवि को सिल्वर स्क्रीन पर दर्शकों को दीवाना बना दिया. फिल्म में मनोज की परफार्मेंस से खुश हुए पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें फिल्म उपकार बनाने की प्रेरणा दी, जिसे हिन्दी सिनेमा में आज भी देशप्रेम पर बनी खूबसूरत फिल्मों में गिना जाता है.उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के सुझाव पर फिल्म उपकार बनाई थी, तो विद्याचरण शुक्ला ने अपना संदेश मनोज कुमार के पास भेजा कि आप आपातकाल के सर्मथन में फिल्म बनाइए." जब मनोज कुमार के पास अमृता प्रीतम द्वारा लिखी हुई एक प्रो-इमरजेंसी डॉक्युमेंट्री का ऑफर पहुँचा.. तब मनोज ने साफ मना कर दिया. मनोज कुमार जी को दुख पहुंचा तो उन्होंने अमृता प्रीतम को फोन कर कहा - " क्या आपने लेखक के रूप में समझौता कर लिया है? अमृता प्रीतम इस बात से शर्मिंदा हो गई थी. 

बड़ी शक्तियों से टकराना हमेशा नुकसानदेह होता है, लेकिन एक कलाकार के चूल्हे में जब रोटी पकती है, तो समाज के हर वर्ग का आटा शामिल होता है.. यही वो वक़्त होता है, जब एक ऐक्टर समाज को कुछ दे सकता है.. कि सही को सही न भी कहे तो कम से कम गलत को गलत तो कह ही सकता है.... और इसी के कारण मनोज कुमार को सरकार की तरफ से सजा भुगतनी पड़ी... मनोज कुमार की एक फिल्म ‘दस नंबरी’ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था...हालाँकि उन्होंने सरकार पर ही केस कर दिया था.. उन्होंने सरकार के खिलाफ केस कर दिया और वो केस जीत भी गए थे. मनोज कुमार जी एकमात्र फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने इमरजेंसी काल में सरकार के खिलाफ कोई केस जीते थे... आज सत्ता के चारण बने हुए सिनेमाई लोगों को समझना चाहिए. आप पर हमेशा एक उधार रहता है, जो समाज आपके लिए करता है, इसलिए कम से कम सच को सच और झूठ को झूठ कहने का माद्दा ज़रूर रखिए.. आज छोटे - छोटे नेताओं के फोन आने पर बड़े - बड़े कलाकार सत्ता के दरवाज़े पर कत्थक करने लग जाते हैं.. पीएम, सीएम से अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए फोटो सेशन कराते हुए खुद को दरबारी बना लेते हैं. 

वहीँ मनोज कुमार जी जैसे लोग थे, जो सरकार के करीबी भी थे.इंदिरा जी, अटल जी जैसे नेताओ को अपना मित्र भी बताते थे.. हमेशा सम्मानीय थे, और जब समाज के साथ खड़े होने की बात आती थी, तो बोल देते थे, कि रोटी हमारे घर में देश के हर वर्ग से आती है... हम आपकी दोस्ती के लिए ईमान नहीं बेच सकते.. कीमत चाहे जो भी चुकानी पड़े.. ऐक्टर मनोज कुमार जी का आज जन्मदिन है.. ऐसे अदाकार को मेरा सलाम जिन्होंने कभी उसूलों से समझोता नहीं किया.. 

दिलीप कुमार

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