"ये भी एक दौर है... वो भी एक दौर था"
"ये भी एक दौर है... वो भी एक दौर था"
राजेश खन्ना (काका)
समुन्दर की लहरे तो बहुत आती हैं, एक ऐसी भी आती है, जो निशाँ छोड़ जाती है. वो लहर हमेशा से ही समुद्र की गावही देती है.. ऐसा ही स्टारडम सुपरस्टार राजेश खन्ना का रहा है, आज भी उस सुपरस्टारडम की उस लकीर को कोई भी क्रॉस नहीं कर सका... जो काका के सुपर स्टारडम की गवाही देती है. हिन्दी सिनेमा में पहली बार किसी भी स्टार के लिए सुपरस्टार शब्द का प्रयोग किया गया. राजेश खन्ना 70-80 के दशक में वो स्टारडम हासिल कर चुके थे, जो न उनसे पहले किसी ने देखा और न ही वो सुपरस्टारडम बाद में किसी को मिला.. किसी की किसी से तुलना होती है, सिनेमा भी ब्रांडिंग की दुनिया है, दौड़ने वाले घोड़े पर पैसा लगाती है....राजेश खन्ना हिन्दी सिनेमा के सबसे कमाऊ पूत थे. उन्होंने अपनी सिनेमाई यात्रा में अपनी विविधतापूर्ण अदाकारी अपने रूमानी अंदाज, स्वाभाविक अभिनय सिग्नेचर स्टाइल, प्राकृतवाद के जरिए अपनी जो लेगेसी खड़ी की.. उसे न कोई छू सकता है, न छू सकेगा, वो एक सिनेमाई स्मारक है, जो देखने में अच्छी लगती है, हालांकि है, उतनी ही ख़तरनाक...
राजेश खन्ना शुद्ध माटी के अदाकार थे, उन्होंने सिनेमा में अपना मुकाम अपनी प्रतिभा से हासिल किया था.. आज के दौर में टीवी के जरिये टैलेंट हंट किया जाता है, ऐसे ही 1965 यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेअर ने किया था. वे नया हीरो खोज रहे थे. फाइनल में दस हजार में से आठ लड़के चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे. अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए....फिल्मफेयर कॉन्टेस्ट जीतकर हिन्दी सिनेमा में राजेश खन्ना ने शुरुआत चेतन आनन्द की फिल्म आखिरी खत से से किया था. फिल्म फ्लॉप हुई थी.. 'राज', 'बहारों के सपने' आदि फ़िल्में भी फ्लॉप रहीं..
राजेश खन्ना का असल में कॅरियर 1969 में आई फिल्म 'आराधना' से शुरू हुआ. जिसे शक्ति सामंत बनाना ही नहीं चाहते थे, जिसमें शर्मिला टैगोर ने राजेश खन्ना को रिजेक्ट कर दिया था... न न करते फिल्म बनी... और रातों रात राजेश खन्ना बुलंदियों पर जा पहुंचे. फ़िल्म में शर्मिला टैगोर के साथ उनकी जोड़ी बहुत पसंद की गई और वह हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बनकर प्रशसंकों के दिलोदिमाग पर छा गए थे.
फिल्म 'आराधना' ने राजेश खन्ना की क़िस्मत के दरवाज़े खोल दिए और उसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 सुपरहिट देकर समकालीन एवं सीनियर देव साहब, राजकपूर साहब, दिलीप साहब, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार धर्मेद्र, आदि के लिए भी एक ऐसा मील का पत्थर कायम कर दिया, जिसे छू पाना उनके लिए भी आसान नहीं था...राजेश खन्ना के स्टारडम की आँधी के दौर में कोई और दिखता ही नहीं था... आंखे चौध्या देने वाला स्टारडम.. आज भी बहुतेरे अदाकार उनके मैनरिज़्म को कॉपी करते हैं. हिन्दी सिनेमा में इस हद तक कि दिवानगी उनके प्रशंसकों में कभी देवानंद साहब की हुआ करती थी, वैसे ही स्टारडम राजेश खन्ना को मिला. देव साहब के बाद काका ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस को अपने अंदाज़ में पेश किया, और वह रोमांस की परिभाषा बन गया. यह करिश्मा काका था.
किसी भी ऐक्टर के स्टार से सुपरस्टार तक के सफर में अच्छी स्क्रिप्ट, विश्वसनीय निर्देशक, पटकथा, संगीतकार,
उससे भी ज्यादा प्लेबैक सिंगर ये सब सीढ़ियां होते हैं, जो सफलता का स्वाद चखवा सकते हैं.... वैसे काबिले तारीफ है, राजेश खन्ना ने सच में इन सभी टूल की उपयोगिता समझते हुए सब के साथ अच्छा सामंजस्य स्थापित किया था. पंचम दा, का रूमानी संगीत, किशोर दा की सदाबहार आवाज़ एवं राजेश खन्ना की तिकड़ी ने हिन्दी सिनेमा में संगीत के उस युग को जिंदा रखा... जो नौशाद साहब, शंकर - जय किशनजी, मदनमोहन जी , बर्मन दादा, आदि के समय था...आज भी राजेश खन्ना अभिनीत सदाबहार गीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं.. किशोर दा, पंचम दा, राजेश खन्ना तीनों एक दूसरे के पर्याय बन गए थे, राजेश खन्ना की आवाज़ ही किशोर दा माने जाते थे.
साथी अभिनेत्रियों में शर्मिला टैगोर, मुमताज़, स्मिता पाटिल के साथ सबसे ज्यादा राजेश खन्ना को पसंद किया गया है. सीनियर वहीदा रहमान जी, आशा पारेख के साथ पर्दे पर रोमांस करना राजेश खन्ना के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. ऋषिकेश मुखर्जी, चेतन आनन्द यश चौपड़ा, बी आर चोपड़ा, जैसे टैलेंटेड निर्देशक का साथ भी राजेश खन्ना को बुलंदियों तक ले गया.. लगातार 15 फ़िल्में सुपरहिट देने के लिए राजेश याद किए जाते हैं, आज भी वो रिकॉर्ड कायम है, जो टूटा नहीं है. उस दौर की ल़डकियों में काका दिवानगी उन्हें अलौकिक ऐक्टर बनाती हैं, उनके दौर की महिलाएँ बताती हैं, "पर्दे पर राजेश खन्ना की फ़िल्म देखने सज-संवर कर ऐसे जाती जैसे वो राजेश खन्ना के साथ डेट पर जा रही हों, खुद ही ऐसे महसूस करती कि वो डायलॉग मुझे बोल रहे हैं, मानो हमसे ही संवाद कर रहे हैं. क्लासिक कल्ट फिल्म "आनन्द" जो राजेश खन्ना की सबसे बड़ी हित मानी जाती है, हिन्दी सिनेमा की सफलतम फिल्म है. राजेश यानी जिंदादिल युवक आनन्द की भूमिका शायद कोई भूल नहीं सका.. काका केवल रोमांटिक अभिनय ही नहीं संजीदा अभिनय भी ऐसे करते थे, कि दर्शक वर्ग उनसे जुड़ता चला गया..
काका बहुत ही एरोगेंट व्यक्तित्त्व थे, ज्यादा परवाह करते नहीं थे, रायटर सलीम खान एक किस्सा बताते हैं, - "मेरे आँखों देखा हाल है, एक बार मैं मुंबई ताज होटल पार्टी में शामिल होने गया था, मैं अंदर जा रहा था, राजेश खन्ना निकल रहे थे, एक साथ दिलीप कुमार, देवानंद, राजकपूर तीनों दिग्गज खड़े पॉज दे रहे थे,इस तिकड़ी का मतलब ही हिन्दी सिनेमा होता था, एनाउंसमेंट हो रही थी, राजेश खन्ना आ रहे हैं, पूरे कैमरे राजेश खन्ना की ओर घूम गए थे, चाल - ढाल क्या थी अपनी हवा में बहने वाला नवयुवक जिसकी तब तीन फ़िल्में ही रिलीज हुई थीं, बाद में वही आत्मविश्वास से लबरेज युवा पहला सुपरस्टार बना.. मीडिया एवं कैमरे को खुद भी पता होता है कि कब किस ओर घूमना हैं..
काका के गिरते ग्राफ को लेकर अमिताभ बच्चन के बढ़ते स्टारडम को माना गया है... जिससे राजेश खन्ना डिप्रेस्ड हो गए... .. यह सच है प्रसिद्धि मिलना उतना कठिन नहीं है जितना संभालना मुश्किल है. बहरहाल अपना - अपना मत है. हकीकत यह है, कि कि इमर्जेंसी के दौरान एंग्रीयंगमैन अमिताभ ने रोमांस से हटकर सिनेमा को गढ़ा एवं राजेश खन्ना ने अपने आप से समझौता नहीं किया रोमांस करते रहे और उनका बॉलीवुड से लगभग पैक-अप हो गया.... दूसरा कारण यह भी रहा है, कि काका के बारे में फिल्म समीक्षक एवं उनके क़रीबी बताते हैं कि वो एरोगेंट थे, समय के पाबंद नहीं थे, वो अपनी हवा में बहते थे. आम तौर पर कहा जाता है कि इस स्वभाव का आदमी बहुत ज्यादा हासिल नहीं कर सकता... फिर भी उन्होंने अपने फिल्मी जीवन के लिए अपने लाइफस्टाइल में कोई बदलाव नहीं किया. यह भी उनके वक़्त बदलने या सितारे गर्दिश मे जाने का कारण रहा ..जिसे कहा जाता है, काका अपने स्टारडम को बरकार नहीं रख सके. यह बात भी पूर्णतः सच नहीं है कि अमिताभ बच्चन के बाद काका का कॅरियर ही खत्म हो गया था, क्योंकि अमिताभ बच्चन के समकालीन बहुत से ऐक्टर रोमांटिक रोल करते हुए सफल हो रहे थे.. काका खुद से ही परेशान थे, उन्हें वैसा ही स्टारडम नहीं मिल रहा था जैसा पहले था, हालांकि सिनेमा में वो स्टारडम किसी का भी कुछ सालों के लिए ही होता है.. एक विशेष दर्शक वर्ग नए ऐक्टर में कुछ नया ढूढ़ने लगता है, जो पुराने ऐक्टर के लिए मुश्किल होता है स्वीकार करना की अब वक़्त किसी दूसरे का है... हाँ काका अमिताभ बच्चन से थोड़ा ज्यादा भावुक इंसान थे, अमिताभ बच्चन ने स्वीकार कर लिया था कि उन्हें मिथुन चक्रवर्ती के सामने वो सफलता नहीं मिलेगी जो मिल रही थी... यही बात काका नहीं समझ सके, कि अब वक़्त अमिताभ बच्चन का है. वैसे उनका सिनेमा सफ़र एक मील का पत्थर है, जहां उन्होंने सोलो हिट लगभग 70 हैं... हालाँकि भावुक व्यक्ति कई बार गलत निर्णय कर बैठता है, काका कहते थे "मैं अपनी ज़िन्दगी में बहुत संतुष्ट हूं मुझे फिर से मौका मिले जन्म लेने का तो मैं फिर से राजेश खन्ना बनना चाहूँगा".
प्रत्येक व्यक्ति की एक मूल प्रवृत्ति होती है, बेपरवाह ज़रूर थे, लेकिन दुख ओढ़े रहते थे. उनके जीवन को देखकर लगता है, वो अपने दुःख के दिनों बहुत एकाकी हो गए थे.. कैंसर ने उन्हें दबोच लिया था... काका की जीवनी एवं उनके सामाजिक - पारिवारिक पृष्ठभूमि पढ़ने के बाद लगता है, उनके साथ जो हुआ... उस सुपरस्टार के कैफ़ियत के दिनों को महसूस करना भी मुश्किल है,... गनीमत है मैं राजेश खन्ना नहीं...काका का एक पुराना साक्षात्कार देखा ... वो अपने कैफ़ियत के दिनों का जिक्र करते हैं, वो "साहिर लुधियानवी " का शेर हर महफिल हर साक्षात्कार आदि में बार - बार बोलते पाए गए हैं..
"इज्जत ए शोहरत ए उल्फत ए सब कुछ इस दुनिया में रहता नहीं,
आज मैं हूँ जहां कल कोई और था, ये भी एक दौर है वो भी एक दौर है "
राजेश खन्ना के घर जन्मदिन पर एक ट्रक गुलदस्ते आते थे, घर गुलजार हो जाता था, पता नहीं किस किस ने भेजे.. काका ने एक जन्मदिन ऐसा भी देखा गुलदस्ता तो एक भी नहीं आया, तब लगता है, शेर ठीक ही बोलते थे, सच ही किसी ने कहा है, प्रशंसक भी वक़्त के पाबंद होते हैं...एकाकी काका ने एक दिन कहा अब लगता है मैं राजेश खन्ना नहीं बन सकता, मेरा टाइम ओवर हो गया... बोलते हुए खामोश हो गए...
दिलीप कुमार
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