"नैना बरसे रिमझिम रिमझिम"
रूहानी संगीत एवं ग़ज़लों के बादशाह
(संगीतकार मदनमोहन जी)
विलियम शेक्सपियर कहते थे . "जिसको संगीत पसंद न हो, उसे इंसान नहीं मानना चाहिए. शेक्सपियर से शायद ही कोई असहमत हो! संगीत का ज़िन्दगी से बड़ा अंतर्संबंध है. अस्तित्व में जो भी शै है, जो भी क्रिया है, सभी से संगीत प्रतिध्वनित होता है... समुन्दर की लहरों से, घोड़े की टाप से, विजली कौंधने से, बर्तनों से, बारिश की गिरती बूंदों से, झरनों, झीलों से, जानवरों की आवाजों से, ट्रेन की पटरियों से, झींगुर की आवाज़ से.. शायद ही ऐसा कुछ हो जिससे संगीत न निकलता हो.. आज हम न भूलने वाले नग्मे सुनते हैं, तो सोचने लगते हैं कि संगीत में ऐसा क्या है ? गहराई से देखा जाए तो, गीतों में हैं संगीतकारों की गहरी समझ, संगीत के प्रति समर्पण... संगीतकार एक गीत का संगीत रचते हुए पूरी दुनिया की मानसिक शैर कर आता है.. तब कहीं एक गीत का संगीत तैयार कर पाता है...
हिन्दी सिनेमा में एक से बढ़कर एक संगीतकार हुए हैं. एक महान संगीतकार मदनमोहन जी हुए हैं, जिन्हें नियति असामयिक अपने पास ले गई..मैं एक दिन मदन जी के गीतों को सुन रहा था, तो सोच रहा था, मैंने ज्यादा मदन जी पर लिखा नहीं है, अनायास ही मेरे आँखों से अश्रुधारा फ़ूट पड़ी कि जिनके गीतों को हर रोज़ गुनगुनाता हूं, गाता हूं.. आज तक श्रद्धांजलि के दो शब्द नहीं लिखे.. फिर सोचा मदन मोहन जी तो हमेशा से ही हम जैसे लोगों की रूहानी रातों के हमसाया रहे हैं.. क्या उन्हें कोई भूल सकता है. मदनमोहन जी के गीतों में ज़िन्दगी का फलसफा होता है. हर रस का संगीत रचने वाले मदन जी ने ज़िन्दगी में हर रंग जिया था. कहते हैं कलाकार की रची गई दुनिया उनकी निजी जिंदगी का मुखपत्र होती है. यही बात मदन मोहन जी पर सटीक बैठती है... उन्होंने अपने जीवन में पलायन की त्रासदी भी झेली... वो ही दर्द उनके संगीत में दिखता है... मदन मोहन जी का जन्म 1924 बगदाद, इराक में हुआ था...
उनके पिता भारत आने के बाद राय बहादुर चुन्नीलाल फ़िल्म व्यवसाय से जुड़े थे. बाम्बे टाकीज और फ़िल्मिस्तान जैसे बड़े फ़िल्म स्टूडियो में साझीदार थे... मदनमोहन जी के घर में फ़िल्मी माहौल होने के कारण उनका रुझान फ़िल्मों की तरफ़ भी रहा है. अपने पिता की आज्ञानुसार फ़ौज में भर्ती हो गए थे.. हालाँकि उनके अन्दर एक संगीतकार बैठा था, वो बंदूक की गोलियों की आवाज़ से दिल छू लेने वाला संगीत तो रच सकते थे, लेकिन गोलियां चलाना उनके लिए आसान नहीं था. साल 1965 में चेतन आनन्द की फिल्म 'हक़ीक़त' सेना, युद्ध पृष्ठभूमि पर बनी है, जो आज भी सिने प्रेमियो के दिल में एक खास जगह रखती है. फ़िल्म हकीकत में मोहम्मद रफी की आवाज़ में मदन जी के संगीत से सज़ा यह गीत 'कर चले हम फिदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'...आज भी गीत सुनने वालों में देशभक्ति के जज्बे को भर देता है. आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत मदन मोहन ही दे सकते थे... उन्होंने यह सब असल ज़िन्दगी में भी महसूस किया था..
संगीत सम्राट नौशाद अली साहब, मदनमोहन जी के एक गीत से ख़ासे प्रभावित हुए थे. मदनमोहन जी के इस धुन के बदले अपनी सम्पूर्ण संगीत की दुनिया तज देने के लिए तैयार थे.. आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे/ दिल की ऐ धड़कन ठहर जा, मिल गई मंजिल मुझे' इस गीत को आज भी शायद कोई भूला नहीं है... महान संगीतकार ओपी नैय्यर साहब कहते थे. मुझे नहीं पता कि मदन जी लता के लिए बने हैं या लता मदन जी के लिए बनी हैं, लेकिन दोनों के जैसा दूसरा कोई भी नहीं हो सकता.. बर्मन दादा मदन जी को सबसे महान संगीतकार मानते थे...
मदन जी ने अपने दो दशक से ज्यादा की संगीत यात्रा में 100 से ज्यादा फ़िल्मों में अपना संगीत दिया.. आज भी हर रस में उनके गीत कर्णप्रिय बने हुए हैं... संगीतकारों में मदन जी अनोखे रहे हैं, उन्होंने शास्त्रीय संगीत, ग़ज़ल, सभी तरह का महान संगीत रचा. मदनमोहन जी को विशेष रूप से हिन्दी सिनेमा में गज़लों के लिए याद किया जाता है... मदन जी जितने जीनियस संगीतकार रहे हैं, उन्हें उतना काम नहीं मिला, और न ही उन्हें उतना लोग जानने हैं.. मदनमोहन जी लता मंगेशकर, तलत महमूद, रफी साहब, आशा भोसले के पसन्दीदा संगीतकारों में से एक रहे हैं.. रफ़ी साहब के बुरे वक़्त में हमेशा रफी साहब से ही गवाते थे, रफी साहब को पुनः वही मुकाम दिलाने में इनका ही खास योगदान था..
फौज की नौकरी छोड़ने के बाद 1946 में, वह सहायक के रूप में ऑल इंडिया रेडियो , लखनऊ से जुड़े. वहाँ उन्हें उस्ताद फैयाज़ खान , उस्ताद अली अकबर खान , बेगम अख्तर और तलत महमूद जैसे महान संगीतकारों की सोहबत मिली.
तब तक आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले गीतों के लिए संगीत भी रचते थे. आज़ादी के साल 1947 में, उन्हें ऑल इंडिया रेडियो ने लखनऊ से दिल्ली भेज दिया. उन्हें गायिकी का भी बहुत शौक था, अतः 1947 में उन्हें दो ग़ज़लों को रिकॉर्ड करने का पहला मौका मिला था.. 1948 में उन्होंने दीवान शरार द्वारा लिखी गई दो और निजी ग़ज़लें रिकॉर्ड किया. 1948 में, उन्हें फिल्म शहीद के लिए संगीतकार गुलाम हैदर के अंडर लता मंगेशकर के साथ फिल्म 'युगल पिंजारे' में बुलबुल बोले और मेरा छोटा सा दिल डोले गाने का पहला मौका मिला , हालांकि इन गीतों को कभी भी रिलीज़ नहीं किया गया. न ही किसी फिल्म में उपयोग किया. 1946 और 1948 के बीच, उन्होंने 'दो भाई' के लिए संगीतकार एसडी बर्मन और 'अभिनेत्री' में श्याम सुंदर के सहायक के रूप में काम किया.
संगीतकार के रूप में 1950 में आई फ़िल्म आँखें से मदन जी हिन्दी सिनेमा में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए थे. फ़िल्म आँखें के बाद लता मंगेशकर मदन जी की पसन्दीदा गायिका बन गई थीं. मदन जी अपनी हर फ़िल्म के लिए लता मंगेश्कर से गवाने के लिए प्रतिबद्ध थे. लता मंगेश्कर भी मदन जी के संगीत से प्रभावित थीं. लता मंगेशकर उन्हें गज़लों का शहजादा कहकर संबोधित किया करती थीं. "लता मंगेशकर मदन जी को अपना बड़ा भाई मानती थीं, हमेशा राखी भी बांधती थीं.. एक बार साक्षात्कार में लता जी कहती हैं - "मदन भैया बहुत ही महान संगीतकार रहे हैं, मेरे जैसे न जाने कितने गायक /गायिकाओं के कॅरियर में उनका अविस्मरणीय योगदान है. एक दौर में संगीतकारों की दुनिया एक ग्रुप में बंट गई थी, देव साहब के साथ बर्मन दादा, राज कपूर साहब के साथ शंकर - जय किशनजी, वहीँ दिलीप साहब के पास नौशाद साहब हमेशा रहे... तब उन्हें काम बहुत मुश्किल से मिलता था. मैंने उनके संघर्ष को देखा है.. मदन भैया किसी गुट में नहीं थे, सभी के लिए संगीत रचते थे.. सभी से गवाते थे... वे मध्यमार्गी संगीतकार थे.. वे किसी भी गुट में नहीं थे... हमेशा मुझे याद आते हैं. लता मंगेशकर की मदन जी के प्रति बड़े भाई के समान आदर का भाव बहुत सकारात्मक है
हिन्दी सिनेमा में संगीतकारों के साथ ही गीतकारों का भी एक गुट था... मजरुह, साहिर.. बर्मन दादा के लिए गीत लिखते थे.. वहीँ कविराज शैलेन्द्र जी, हसरत जयपुरी, शंकर - जय किशनजी के लिए लिखते थे... वहीँ शकील बदायूंनी नौशाद साहब के लिए लिखते थे... मदन जी ने यहां भी हैरान किया... हमेशा से ही राजेन्द्र किशनजी, कैफ़ी आज़मी, राजा मेंहदी अली खान उनके पसंदीदा संगीतकार थे.. अधिकाँश काम इन्हीं गीतकारों के साथ काम किया.
पचास के दशक में मदनमोहन जी का रूहानी संगीत प्रसिद्ध था. राजेन्द्र किशन के रचित रूमानी गीत काफ़ी लोकप्रिय हुये. एक से बढ़कर एक गीत आज भी कर्णप्रिय बने हुए हैं. मदन जी संगीत बहुत रूहानी रचते थे, कभी बारिश की बूंदों से, तो कभी झरने की आवाज़ से, तो कभी झींगुर की आवाज़ से तो कभी..ऊल्लू की आवाज़, कभी समुद्र की लहरों तो कभी बर्तनों की खनक से कभी रेल की पटरी से.. तरह तरह की आवाज़ से संगीत निकाल लाते थे.. उनके निशा के गीतों में एक अलग ही रोमांच होता है. उनके गीतों में एक ख़ामोशी समझ आती है, जो उनकी निजी जिंदगी का अक्स थी, जो उनके संगीत में घुल जाती थी..
साठ के दशक में आते आते मदन जी प्रमुख संगीतकारों में शुमार थे.. इस दशक में सबसे ज्यादा राजा मेंहदी अली खान रचित गीतों में अपनी आभा बिखेरी. अनपढ़, वो कौन थी, मेरा साया... जैसी सस्पेंस थ्रिल फ़िल्मों का संगीत मदन जी के महान संगीत की गावही देता है... मेरा साया, वो कौन थी, हीर रांझा, हक़ीक़त, ... जैसी फ़िल्मों में संगीत के बाद मदन जी किवदंती बन चुके थे.. मदन मोहन जी एक से बढ़कर एक कालजयी धुनों को रच कर रिकॉर्ड कर गए हैं.. सत्तर के दशक आते आते तक उनके पसंदीदा गीतकारों में कैफ़ी आज़मी थे, जिनके साथ मिलकर अपने संगीत से मदन जी ने अमर गीतों का निर्माण किया.
अपने निधन के 28 साल बाद अपने संगीत के ज़रिए ढेर सारे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. यश चोपड़ा अपनी फ़िल्म वीर जारा में पुराना स्कोर चाहते थे, तमाम संगीतकारों से मिले कोई भी प्रभावित नहीं कर सका... तब मदन जी के बेटे ने कहा "मेरे पिता जी बहुत सी धुनें रिकॉर्ड कर के रख गए हैं.. यश चोपड़ा को पसंद भी आईं.. वीर जारा फिल्म में लता मंगेशकर ने अपने भैया मदन जी के संगीत को आवाज़ देकर फिर से अमर बना दिया था. मदन जी के बेटे ने दावा किया है कि अभी उनके पिता जी की रची गई बहुत सी धुनें दुनिया के सामने आना बांकी हैं... अब वैसे संगीत की फ़िल्में बनती नहीं है, फिर भी उम्मीद है कि कोई न कोई फ़िल्मकार उन महान धुनों को दुनिया के सामने ले कर आएगा...
मदनमोहन जी अनोखे संगीतकार थे, उनका रूहानी कर्णप्रिय संगीत आज भी सुनते हुए दूसरी दुनिया में ले जाता है. उनके गीतों को सुनते हुए उनके प्रवाह में कोई भी बह जाता है... बहुत लम्बी संगीत यात्रा नहीं थी, फिर भी अपनी संगीत की एक नई दुनिया रच गए... कभी - कभार सोचता हूं यह दौर न होता तो क्या होता.. मदन मोहन जी जैसे संगीत के पैगंबर बहुत कम समय के लिए दुनिया में आते हैं, और अपनी नई दुनिया का निर्माण कर के चले जाते हैं... महान संगीतकार मदन मोहन जी को मेरा सलाम...
मदन मोहन जी के कुछ यादगार नग्मे
दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो...
नैना बरसे रिमझिम रिमझिम
ये दुनिया ये महफिल’
आपके पहलू में आकर रो दिये
कौन आया मेरे मन के द्वारे
लगजा गले के फिर ये हंसी रात
मेरा साया साथ होगा
तुम जो मिल गए हो
जाना था हमसे दूर
तेरी आँखों के सिवा
बईयाँ न धरो
आपकी नज़रों ने समझा
अगर मुझसे मुहब्बत है
नैनो में बदरा छाए
मिलो न तुम तो हम घबराएं
झुमका गिरा रे
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
तेरे लिए
दो पल रुका ख्वाबों का कारवाँ
ऐसा देश है मेरा
मै यहां हूं यहां हूं....
दिलीप कुमार
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